अमीर के कुत्ते की कुंडली / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 08 दिसम्बर 2012
हाल ही में एक राष्ट्रीय अंग्रेजी अखबार के प्रथम पृष्ठ पर खबर थी कि कुछ अमीर लोग अपने कुत्ते के लालन-पालन पर हजारों रुपए प्रतिमाह खर्च करते हैं और अपने प्रिय कुत्ते को अपने भाग्य का टोटका भी मानते हैं। एक अमीर व्यक्ति ने ज्योतिषशास्त्री को बुलाकर उसकी जन्म-कुंडली बनाने का आदेश दिया। अब यह बताना कठिन है कि ज्योतिषी ने कुत्ते का हाथ देखा या माथा, परंतु उन्होंने कुंडली बना दी। हमारे कतिपय ज्योतिषी विवाह के लिए झूठी कुंडली मिलाने के काम में भी प्रवीण रहे हैं। यह आश्चर्य की बात है कि जिस तरह आदतन शराबी गम में भी पीता है और खुशी में भी, उसी तरह व्यवस्था में छेदों के कारण रातोरात अमीर हुए लोग अच्छे और बुरे दोनों समय में ज्योतिष की सेवाएं लेते हैं। यह अमीर का भय और नशा है तथा ज्योतिषी का व्यवसाय है। चतुर ज्योतिषी ग्रहों के अशुभ योग के साथ ही उस संकट के उपचार की विधि भी बताते हैं तथा पूजा-पाठ का खर्चा यजमान की आर्थिक हैसियत के मुताबिक तय किया जाता है। शनि की दशा को सुधारने के लिए की जाने वाली पूजा का खर्च पांच हजार से शुरू करके जब यजमान ने अपनी स्थिति मात्र सवा रुपए की बताई तो ज्योतिषी ने कहा कि आपको पूजा की जरूरत नहीं है, क्योंकि आपका तो शनि भी कुछ नहीं बिगाड़ सकते।
सामंतवादी परिवारों में बच्चे अपने गुड्डे-गुडिय़ों का विवाह करते थे, तब भी वर-वधू का गुण-मिलान बताने वाले ज्योतिषी मौजूद होते थे। भारत में आर्थिक उदारवाद के बाद यकायक अमीर बने लोगों की संख्या इतनी अधिक है कि ज्योतिष व्यवसाय का यह स्वर्णयुग है। सांस्कृतिक शून्य और विराट आर्थिक खाई के योग से अंधविश्वास, कुरीतियों तथा ज्योतिष का व्यवसाय खूब फैलता है। भारत की कुंडली में उपरोक्त शून्य और खाई स्थायी ग्रह बन चुके हैं। एक जमाने में आयकर काफी अधिक था और वर्तमान में अधिकतम तीस प्रतिशत है, परंतु अगर यह दस प्रतिशत भी कर दिया जाए तो कुछ लोग इसकी चोरी से बाज नहीं आएंगे। यह लत राष्ट्रीय डीएनए का हिस्सा है। बहरहाल, एक बार यह भी प्रकाश में आया था कि एक धनाढ्य व्यक्ति ने अपने कुत्ते के नाम पर बैंक अकाउंट खोला था और संचालन की पावर ऑफ अटॉर्नी उनके ड्राइवर के नाम थी। अपने को अन्य दलों से अलग बताने के दावे करने वाले दल के अध्यक्ष ने भी ड्राइवर को अंशधारक बताया था, मीडिया ने जोश-खरोश से तथ्य उजागर किए, परंतु मजबूत व्यक्ति का बाल भी बांका नहीं हुआ और आयकर विभाग ने उन पर कोई कार्रवाई भी नहीं की और घपलों को उजागर करने के 'हिट एंड रन' की शैली में केवल सप्ताहांत की उच्च टेलीविजन टीआरपी के लिए काम करने वाले लोग किसी काम को उसके अंजाम तक नहीं ले जाते।
बहरहाल, एक सज्जन हर शनिवार को मंदिर प्रांगण में एकत्रित कबूतरों के लिए बाजरा ले जाते थे, परंतु उसी प्रांगण में मौजूद कुछ कुत्तों के लिए वे एक दिन दुकानदार की सलाह पर आयात किया डॉग बिस्कुट का पैकेट भी ले गए और मंदिर से लौटकर उन्होंने दुकानदार को बताया कि उन कुत्तों ने बिस्कुट सूंघकर छोड़ दिया। दुकानदार ने बताया कि सड़क के मालिकविहीन कुत्ते आयात किए बिस्कुट का स्वाद क्या जानें! अनेक सितारे भी अपने कुत्तों के लिए विदेश से आहार लाते हैं। महानगरों में कुत्तों के रोग का इलाज करने वाले डॉक्टर भी मनुष्य के रोगों के डॉक्टर के बराबर ही धन कमाते हैं। यह भी संभव है कि ऐसी प्रार्थना कुछ लोग करते हों कि अगले जन्म में गरीब के घर इंसान के रूप में पैदा करने से बेहतर है कि किसी अमीर के घर के कुत्ते के रूप में जन्म हो।
अंग्रेजी भाषा में साधनहीन वर्ग को अंडरडॉग कहते हैं। राज कपूर की फिल्म 'आवारा' के प्रथम दृश्य में ही गरीब नायक के पास सड़क का कुत्ता आता है और नायक कहता है कि हम दोनों की हालत एक-सी है।
बहरहाल सिनेमा में कुत्तों का प्रयोग बहुत हुआ है। मेरी एक कथा में गरीब का कुत्ता अमीरों के कुत्तों के डॉग-शो में ऊंची नस्ल का न होने के कारण अस्वीकृत किया जाता है। उस हास्य-व्यंग्य के मोन्टाज प्रसंग के लिए इंदौर के मेरे मित्र सरोजकुमार ने गीत लिखा था-
कुत्ता किसी का सगा नहीं। देता किसी को दगा नहीं।
कुत्ता न बामन, कुत्ता न छतरी। कुत्ते की न कोई जन्म पतरी।
कुत्ते का दर्द तो देखो। कैसा अनूठा है मर्द देखो।
आम हैं कुत्ते, खास हैं कुत्ते। अपनी गली के बॉस हैं कुत्ते।।
इसके दस मिनट के मोन्टाज के लिए अनेक पंक्तियां लिखी गई हैं।