अमृत दर्शन / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Gadya Kosh से
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चानन नदी के पाटोॅ-चौड़ाई में आधोॅ कोसोॅ सें बेसिये होतियै। बैशाखोॅ के दिन, कड़कड़िया रौदी में बालू तबी केॅ आगिन होय जाय छेलै। बैलोॅ के भी वै पर चलवोॅ कठिन, ई सोची केॅ चकरधरें गाड़ी जल्दीये हँकवा देलकै। लीक बनलोॅ छेलै तहियो बैलोॅ के खूर सौसे धंसी जाय, ओकरा साथें गाड़ी के पहिया भी धंसी जाय छेलै।

सूरुजदेव आपनोॅ पूरे ताव के साथ उगलोॅ छेलै। एकाध हाथें आभी सूरज उपर उठलोॅ रहै मतुर लागै छेलै कि पछिया लेनें पूरे आगिन के साथें हुनी एैतौ। चकरधर नीचू उतरी केॅ पीछू-पीछू चलै लागलै। बोझोॅ कम होला सें बैलें तेजी सें गोड़ उठावेॅ लागलै।

गरमी में चानन नदी में भरलोॅ पानी नै रहै छेलै। सुखला बालू के बीचोॅ सें तीन-चार छोटोॅ-छोटोॅ धार फूटलोॅ छेलै। बीचला धारोॅ में ठेहुना भरी सें बेशी पानी छेलै। वै धारोॅ नगीच पहुँचतैं दूर खापोॅ में नुकाय के बैठलोॅ बीस-पच्चीस आदमी गाड़ी केॅ चारोॅ तरफोॅ सें घेरी लेलकै। सभ्भेॅ के हाथों में गोली भरलोॅ बंदूक छेलै। सवारी में से तीनू के होश उड़ी गेलोॅ रहै। चकरधरें हियाय केॅ चारोॅ तरफें ताकलकै। चारों तरफें जंगले-जंगल छेलै दूर तलक खाली गाछे-बिरिछ।

चकरधरें हिम्मत बान्ही केॅ पूछलकै, "... के छेकोॅ तौंय सीनी। तोरा की चाहियोॅ।"

घेरला आदमी में से एक ने पूछलकै, "टप्परोॅ में की छौं?"

"सवासिन, हमरोॅ मोसमात फूफ्फू।" चकरधरें जवाब देलकै।

"कहाँ से आवै छोॅ?"

"बाजा गाँव सें।"

"कहाँ जाय रहलोॅ छोॅ?"

"मिर्जापुर।"

"केकरा कन?"

"सोनमनी मड़रोॅ के हम्में पोता छेकियै आरो सवासिन हुनके बेटी."

"तोंय लालजी मड़रोॅ के बेटा छेकोॅ की?"

"हों, चकरधर हमरोॅ नाम छेकै?"

"गजाधर अपनें सें छोटोॅ छौं की?"

"हों।" चकरधरें जवाब देतें महसूस करलकै कि के छेकै आखिर जें हमरोॅ परिवारोॅ बारें में अतना जानकारी राखै छै आरो आदर सें तोंय नै कही केॅ अपनें कहेॅ लागलै।

यही बीचोॅ में चकरधरें देखलकै कि आगू टेकी केॅ सवाल पूछै वालां हाथ उठाय केॅ कुछ्छू संकेत करलकै आरो हुनका छोड़ी केॅ शेष सब लोग तेजी सें लौटी केॅ चललोॅ गेलै। वहाँ आबेॅ कोय नै छेलै, भूत-प्रेतोॅ नांकी सब गायब होय गेलोॅ रहै। तबेॅ वें आदमी कहलकै, "अपने के ससुराल बंधुडीह। भोथरी माँझी रो जमाय, पारवती रो दुलहा।"

"अपनें के तेॅ हमरा खानदानोॅ के सौसे खतियाने मालुम छौं। आवेॅ बतावोॅ तोंय के छेकोॅ?"

"पैन्हें टप्परोॅ में गुमसुम, डरली, सहमली दीदी केॅ गोड़ छुवी केॅ आसीरवाद लियेॅ देॅ। ओकरोॅ बाद सब कुछ बतैवेॅ करभौं।" आरो अतना कही केॅ वें अनजान आदमी पैन्हें विसकरमा रूपी गाड़ी केॅ परनाम करलकै आरो फेरू जैवा दी के गोड़ छूवी केॅ कहलकै, "हम्में बंधुडीह के माधो गोप। रिश्ता में हम्में दूनोॅ सारोॅ-बहनोय।" कही केॅ माधोॅ चकरधरोॅ सें पांजों भरी गल्ला मिललै। "अरे, अपनें यहाँ घरोॅ पर महेन्द्र गोपोॅ साथें दू दाफी खाना खैनें छियै। गजाधर आरो अधिकलाल बाबू रो चूड़ा, दही, गूड़ मरलौ पर नै भुलावेॅ पारौं। बारह बजे रात में अपनें के बथानी पर दाल, भात, तरकारी आरो फेरू जें जत्तेॅ दही खावेॅ पारोॅ।"

"तेॅ ई परशुरामी दल के लोग छेलै।" चकरधरें कहलकै।

"आवेॅ महेन्द्र गोपें आपनोॅ अलग दल अपना नामोॅ सें बनाय लेनें छै। सौसे भागलपुर कमिश्नरी में एक्के साथें काम करै में दिक्कत होय छेलै।"

"तेॅ तोंय सीनी गाड़ी घेरै छोॅ। साधारण लोगोॅ के तकलीफ दै छोॅ।" चकरधरें सवाल करलकै।

"ऐन्होॅ बात नै छै। तोरा छोड़ाय केॅ कोय दोसरोॅ भी होतियै तेॅ ओकरा कोय क्षति ने पहुँचैलोॅ जैतियै। सच तेॅ ई छै कि अंगरेजें यहेॅ रंग टप्परगाड़ी रो चकमा दै केॅ गोली, बारूद, हथियार एक थाना सें दोसरोॅ थाना भेजी दै छै। कुछ्छू डरोॅ सें पैसा के लालचोॅ में अपन्है लोगें ई काम करै छै। कभी-कभार अंगरेजोॅ के सिपाही भी टप्परोॅ में छिपी के बैठलोॅ रहै छै। हिन्नेॅ यहेॅ चार-पाँच रोज होय रहलोॅ छै पुलिसोॅ केॅ भेदिया अलीजान मियां रो नाक महेन्द्र गोपें काटी केॅ अंगरेजोॅ केॅ ललकारनें छै। अखनी अंगरेजोॅ के छानबीन, पकड़-धकड़ जादा बढ़ी गेलोॅ छै। खिसियाय केॅ गोपजी केॅ खोजी रहलोॅ छै।" माधो भरम दूर करै के आवाज में बोललै।

चकरधरोॅ के माथा में चार-पाँच रोज पैन्हेॅ घटलोॅ अलीजान मियां रो घटना घूमेॅ लागलै। अलीजान थाना में दफेदार छेलै। महेन्द्र गुटोॅ के सब समाचार थाना पहुँचाय दै। तीन दाफी ओकरा पकड़ी केॅ समझैलकै। चौथोॅ दाफी माफी के सवाले नै छेलै। यहेॅ मिर्जापुर पुनसिया मोड़ोॅ पर पक्की सड़केॅ पर सें खुद महेन्द्र गोपें असकल्ले अलीजानोॅ केॅ पकड़लकै आरो चार हाथ लंबा मुसतंड वै कट्ठा-फाड़ जवानोॅ केॅ कंधा पर उठैनें, दौड़लोॅ चार-पाँच कोस दूर जेठौर-जीतनगर पहाड़ोॅ पर लानी केॅ नाक काटी के लहूलुहान छोड़ी देलकै।

माघो कहि रहलोॅ छेलै, "अपनें के पुनसिया सें दक्खिन बढ़ी केॅ मिर्जापुर मोड़ै पर सें अलीजानोॅ के उठैनें रहै। आगू-आगू अलीजानोॅ केॅ कान्हा पर लादनें गोप जी आरो पीछू सें पुलिस। एक्केॅ दरबनियां पहाड़ै पर दम लेलकै। जान से ही मारै के विचार छेलै मतुर गोड़ पकड़ी के कानें लागलै अलीजान मियां तेॅ गोपजी केॅ दया आवी गेलै आरो खाली नाके काटी केॅ छोड़ी देलकै। टप्पर वाली गाड़ी देखी केॅ हमरा सीनी केॅ लागलै कि आय टक्कर होतै। महेन्द्र भाय देशोॅ के आजाद करै वासतें लड़ै छै। हम्में सीनी सुराज बिना लेनें चैन सें नैं बैठवै। आय दू दिनोॅ सें खाना नसीब नै होलोॅ छै। एक-एक करी केॅ पारा-पारी बालू के खाप बनाय केॅ सूतै छियै। रात भरी चानन के बालू पर आरो रौद होतैं जंगल-पहाड़ोॅ पर। तहियो कोय चिन्ता नै। ई धरती लेली जान देना भागेॅ वाला केॅ नसीब होय छै।" कही केॅ माधोॅ मुड़लै आरो जावेॅ लागलै।

धूप होय रहलोॅ छेलै। चकरधरोॅ केॅ जल्दी बालू सें निकलना छेलै, तहियो माधोॅ केॅ रोकतें हुअें कहलकै, "माधो जी, गोपजी कहाँ छौं।"

"हमरा सबकेॅ अपना रक्षा में जागलोॅ रहै लेॅ कहि केॅ रात भर केॅ जागलोॅ हुनी बालू केॅ खापोॅ में बेसुध सुतलोॅ छै। बौखलैलोॅ पुलिसोॅ डरोॅ सें रातों में सूतै के मौका कहाँ मिलै छै। रातभर चलतें ही बीतै छै। कहाँ, कखनी पुलिसोॅ सें सामना होय जैतेॅ, ई के जानै छै?"

"चाहै छेलियै, हुनकोॅ दरसन जौं होय जैतियै तेॅ बड्डी बढ़ियां?" चकरधरें आपनोॅ मनोॅ के बात कहलकै।

"आदेश नै छौं आरो फेरू हुनी कन्नें, कहाँ सूतै छौं, है केकरोॅ पता नै होय छै। हिन्ने महिना भर सें, जहिया सें अंगरेज वायसराय नें हिनका जानोॅ पर पचास हजार रु। के ईनाम रो घोषणा करलेॅ छै तहिया सें हिनी बेशी सावधान आरो सतर्क होय गेलोॅ छै।"

तब तांय जैवा भी गाड़ी पर सें उतरी केॅ बालू पर खाड़ी होय गेली रहै। परसादी बैलोॅ केॅ जुआ से खोली केॅ सिरपहा लगाय केॅ बैलोॅ के कंधा केॅ जीरौंन दै देनें रहै। गाड़ी खाड़ोॅ रहै के कारण पहिया रोॅ हाल बीत्तोॅ भरी सें जादा ही धंसी गेलोॅ रहै। परसादी दूनोॅ हाथोॅ सें पीछड़ना रोॅ तरबल्ली पकड़ी केॅ पहिया केॅ धसलोॅ बालू सें उपर करै वासतें जोर लगैलकै मतुर पहिया टस सें मस नै होलै।

जैवा दी माधो सें कहलकै, "हम्में बिना हुनका सें मिललें आगू नै बढ़भौं। कोय उपाय करोॅ माधोजी. माधो हाथ जोड़ी केॅ घिघियैतें कहलकै," आधोॅ कोसोॅ रो घेरा बनाय केॅ बीस आदमी हुनकोॅ सुरक्षा में हथियार लैकेॅ तैनात छियै। बाँका के बहादुर शेर महेन्द्र गोप अलीजान मियां के नाक काटला के चार दिन बाद आय भोरें गाढ़ी नीन्द सुतलोॅ छै। धूप होय रहलोॅ छै। हुनी आबेॅ अपने जगतै। हम्में में सें कोय नै जगावेॅ पारौं। अधनीनै में हुनका जगैवोॅ पापेॅ होतै। "

दीदी बात समझी गेली रहै। चक्रधरोॅ सें कहलकै, "राते रात जगी केॅ हमरोॅ सासें आरो ननदें एक झांपी में भरी केॅ चूड़ा एक झांपी पूड़ी-खवौनी आरो एक टीन गूड़ सनेश देनै छै। है सभ्भेॅ उतारी केॅ सुराजोॅ वास्तें लड़ै वाला यै सिपाही सबकेॅ भेंट करी दहोॅ।"

परसादी आरो चकरधरें तीनों सामान उतारी केॅ नीचू बालू पर राखी देलकै। माधो के भुखला आँखी में वहेॅ रंग खुशी नाची गेलोॅ रहै जेनां मरी रहलोॅ कोय बीमार रोगी केॅ कुनैन मिली गेलोॅ रहै। खुशी में माधो सबकुछ भूली गेलै। अजीबे नांकी आवाज मुँहोॅ सें निकाली केॅ दीदी के दौड़ी केॅ गोड़ छूवी लेलकै, "कत्तेॅ बड़ोॅ दिल छौं तोरो दीदी।"

तब तांय सब सुराजी साथी चारोॅ तरफोॅ सें दौड़ी केॅ एक जगह जमा होय गेलै। बालू के घोॅर बनाय केॅ सुतलोॅ गोप जी भी जगलै। शायद माधोॅ के आवाजोॅ के संकेत यहेॅ छेलै। जागोॅ, जघ्घोॅ बदलोॅ। चानन नदी के बीच धारोॅ के किनारी पानी सें मुँह, हाथ धोय केॅ कोवें-कोवें पानी पीबी रहली औरत केॅ देखी केॅ गोप जी जेरा से कुछ बात करलकै आरो झटकलोॅ जेरोॅ साथें गाड़ी ठिंया एैलेॅ।

चक्रधरोॅ केॅ तेॅ चिन्हतैं छेलै। गोड़ छूवी केॅ परनाम करतैं विहवल होय गेलै महेन्द्र गोप, बोललै, "साथी हमरा कहलकै कि चकरधर बाबू मिर्जापुरोॅ के छेकै, साथोॅ में एक ठो जनानी भी छै तेॅ हम्में सोची लेलियै कि हमरो भैगनी पार्वतीये होतै। चार बरस होय गेलै ओकरा सें मिललें। हिनका नै पहचानलियै? हिनी के छेकौं, कहाँ सें आबै छोॅ जमाय बाबू? जल्दी बतावोॅ। अंगरेजोॅ केॅ सेना आरो पुलिस दूनोॅ हमरा पीछू लागलोॅ छै। ई दाफी आठ बटालियन फिरंगी फौज हमरै पकड़ै लेॅ भेजलोॅ गेलोॅ छै। तोंय सीनी कोय पचड़ा में नै पड़ी जा, हमरा सीनी रो की, फायरिंग करतें लड़तें होलोॅ जंगल, पहाड़ोॅ में छिपी जैभौं। अंगरेजोॅ के अत्याचार सें लहूलुहान अपना देश भारत के हमरोेॅ बलिदान के ज़रूरत छै।"

चकरधरोॅ मुँहोॅ सें परिचय सुनतैं कि हमरोॅ फूहा छेकै, महेन्द्र गोपें हाथ जोड़ी केॅ परनाम करलकै, "दीदी, ई सनेस सुराजोॅ केॅ भेंट करी केॅ अपनें जे हमरा सुराजी साथी सीनी केॅ बल प्रदान करनें छोॅ ऐकरा इतिहासें याद करतै या नै, मतुर हम्में फांसी के तखता पर झूलतें हुअें भी नै भूलभौं। खाय सामानोॅ के कमी नै छै दीदी मतुर सब झरना पहाड़ोॅ के हमरा सीनी रोॅ सुरक्षित खोह (गुफा) में छै। हमरा सब आय चार दिनोॅ सें वहाँ जावेॅ नै पारी रहलोॅ छियै। चारोॅ तरफोॅ सें अंगरेज सिपाही घेरनें छै। घतपत नहाय-धोय केॅ चार दिनोॅ से भुखलोॅ तोरोॅ देलोॅ भेंट खैभौं आरो पहाड़ोॅ में कन्होॅ छिपी केॅ दिन बितैभौं। दीदी! यै दाफी जिन्दा बचलिहौं तेॅ घोॅर आबी केॅ भेंट करभौं।" अतना कही केॅ उ$ विशाल काया रो पुरुष उलटे गोड़ लौटी गेलै। माधो सात-आठ सुराजी साथी के मदद सें बालू में धंसलोॅ गाड़ी के पहिया केॅ उपर करलकै। परसादीं सिरपाहा खोली केॅ तरबल्ली में लटकैलकै आरो मूढ़ै तरफोॅ सें गाड़ी पर बैठी केॅ बैलोॅ केॅ हाँकी देलकै।

बालू में बैल चली रहलोॅ छेलै आरो जैवा के मन-माथा में महेन्द्र गोप आरो ओकरोॅ सुराजी साथी। को रंग छैल-छवीला गठलोॅ देह छेलै सबके. सब रो उमर तीस बरसोॅ सें नीचै होतियै। सब हमरै भतीजा चकरधरे, गजाधरोॅ नांकी। की उमर होलोॅ छै, सभ्भे हमरा सें उमरोॅ में छोटे होतियै। हाय रे चौपटाहा, सत्यानासी अंगरेज, कथी लेॅ ई बेचारा बुतरू सब के पीछू भूखलोॅ भेड़िया नांकी पड़लोॅ छै। करी दहीं ई देशोॅ केॅ आजाद, चल्लोॅ जोॅ बोरिया-बधना समेटी केॅ आपनोॅ देश। ऐकरा सब केॅ मांग नाजायज तेॅ नै छै। 'लहूलुहान छै देश' महेन्द्र गोपोॅ के कहवोॅ जैवा के हिरदय में तीर नांकी गथ्थी गेलोॅ छेलै। साढ़े चार हाथोॅ रो लंबा, गठलोॅ, गोरोॅ बरियों देहोॅ रो गोपजी रोॅ चेहरा दया भाव सें हुनका मन-माथा में घूमी रेल्होॅ छेलै। गाड़ी के पिछलका परदा हटाय केॅ जैवा दी देखलकै। सभ्भें बालू पर गमछी बिछाय केॅ खाय रहलोॅ छेलै। सबके बीचोॅ में जीतनगर जेठौर पहाड़ से लैकेॅ सिमरतला पहाड़, जंगल के बब्बर शेर महेन्द्र गोपें सबकेॅ खिलाय रहलोॅ छेलै आरो खुद भी खाय रहलोॅ छेलै। भागलपुर-बांका के यै बब्बर केॅ यै रूपोॅ में देखी केॅ जैवा रोॅ माथोॅ सरधा सें झुकी गेलै। हुनका लागलै कि ऐकरा सें बेशी दुख की हुअेॅ पारै छै। हुनका सबके सामना में ओकरोॅ दुख बहुते कम छै।

गाड़ी चानन नदी पार होयकेॅ चिलकौर, मझौनी, बाराटीकर गाँव के सड़कोॅ पर सरपट दौड़ी रहलोॅ छेलै।