अमेरिकन 'गुड-वाइफ' भारतीय फिल्मी अदालत में / जयप्रकाश चौकसे

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अमेरिकन 'गुड-वाइफ' भारतीय फिल्मी अदालत में
प्रकाशन तिथि : 23 जून 2018


एक दौर में मल्लिका शेरावत ने साहसी भूमिकाएं अभिनीत कीं और विवादास्पद बयान भी दिए। वे लंबे समय से अमेरिका में रह रही हैं परंतु उन्हें प्रियंका चोपड़ा की तरह वहां अभिनय के अवसर नहीं मिले। उस डॉलर देश में लंबे समय तक वह कैसे रोजी-रोटी और मकान का प्रबंध करती रहीं - यह एक रहस्य ही है। अफवाह यह है कि वे अपने धनाढ्य भारतीय मित्र के साथ वहां रहीं। बहरहाल, वे दोबारा सुर्खियों में हैं क्योंकि वहां एक लोकप्रिय टेलीविजन कार्यक्रम 'द गुड वाइफ' के अधिकार खरीदकर लौटी हैं, जिसे थोड़े फेरबदल से वे भारत में बनाना चाहती हैं। हमारा उद्योग पश्चिम के कार्यक्रम का 'भारतीयकरण' या दक्षिण भारतीय फिल्मों का 'अखिल भारतीयकरण' करता रहा है। विगत वर्षों में ईरान और कोरिया की फिल्मों से भी हम प्रेरणा लेते रहे हैं। 'द गुड वाइफ' में एक पत्नी उस समय वकालत करती है, जब उनके पति को घोटाले में खींचा जाता है। ज्ञातव्य है कि इसी तरह फिल्म 'ऐतराज' में करीना कपूर पति अक्षय कुमार की पैरवी करती हैं। उसमें प्रियंका चोपड़ा भी थीं और उन्होंने नकारात्मक भूमिका का निर्वाह किया था।

बहरहाल, मल्लिका शेरावत अपनी पहली पारी में कान फिल्म समारोह में भाग लेने गई थीं और वापसी पर उन्होंने दो गुना पारिश्रमिक मांगना शुरू कर दिया, जिस कारण निर्माताओं ने उनसे किनारा कर लिया। यह कम प्रचारित है कि कान फिल्म समारोह में कोई भी निर्माता धन देकर सुबह के शो में अपनी फिल्म दिखा सकता है। अदालत केन्द्रित फिल्में हर दौर में बनी हैं और बलदेवराज चोपड़ा की 'कानून' में तो जज ही अपराधी भी बताए गए परंतु आखिरी रील में उनके जुड़वां हमशक्ल को प्रस्तुत करके पतली गली खोजी गई, जिस कारण उस फिल्म का प्रभाव कुछ ऐसा रहा मानो पहाड़ खोदने पर मात्र एक चूहा मिला हो। अगाथा क्रिस्टी के एक उपन्यास पर आधारित नाटक इंग्लैंड में तीस वर्ष तक दिखाया गया और कलाकारों की कई पीढ़ियों ने उसमें अभिनय किया। उस उपन्यास का नाम था 'विटनेस फॉर प्रॉसीक्यूशन'। अदालत आधारित 'जॉली एलएलबी' अत्यंत सफल फिल्म रही। नानावटी कांड पर आरके नैयर ने अत्यंत सफल फिल्म बनाई थी जिसका नाम था 'ये रास्ते हैं प्यार के'। इसी विषय पर अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म में राष्ट्रप्रेम की भावना ठूस दी गई थी। इस तरह 'क्राइम ऑफ पैशन' को छद्‌म राष्ट्रप्रेम की फिल्म बना दिया गया था।

अदालत में साहित्य और सिनेमा पर अश्लीलता के आरोप वाले मुकदमे दिलचस्प होते हैं। आज तक कोई भी कृति पर प्रतिबंध नहीं लगा है। कई सौ वर्ष पूर्व अमेरिका के जज जॉन एम. वूल्ज़े की अदालत में जेम्स जॉयस के उपन्यास 'यूलिसिस' पर अश्लीलता का मुकदमा चला था और अपने ऐतिहासिक फैसले में जज वूल्ज़े ने लिखा था कि साहित्य की किसी भी किताब के किसी छोटे से अंश के आधार पर उसे अश्लील नहीं कह सकते। किताब का समग्र प्रभाव महत्वपूर्ण है।

महान विद्वान नीरद चौधरी की किताब 'हिन्दुइज़्म' में उन्होंने कृष्ण भक्ति में राधा का प्रवेश कब हुआ इसका पूरा विवरण दिया है। ब्रह्मवैवर्त पुराण पहला ग्रन्थ है जिसमें राधा का प्रवेश कृष्ण भक्ति में होता है। गौरतलब है कि राधा-कृष्ण मंदिरों की संख्या बहुत बड़ी है, जबकि किसी पत्नी का नाम जोड़कर कोई मंदिर नहीं बनाया गया। नीरद चौधरी की किताब में राधा और कृष्ण के प्रेम पर कुछ पंक्तियां अत्यंत साहसी हैं। जयदेव के 'गीत गोविंद' को तत्कालीन राजा के अनुमोदन के बाद अवाम ने सराहा। रचना लोकप्रिय हुई। खजुराहो, एलोरा, अजंता इत्यादि हमारी उदात्त संस्कृति का हिस्सा हैं। हमारी संस्थाओं की कार्यप्रणाली भी विचित्र है। हाल ही में सेन्सर बोर्ड को 'लवरात्रि' नामक फिल्म में कुछ भी अभद्र नहीं लगा परंतु उन्होंने फिल्म के नाम पर यह कहकर आपत्ति लगाई कि यह 'नवरात्रि' की तरह ध्वनित हो रहा है, जबकि 'लव इन टोक्यो' इत्यादि पर कोई आपत्ति नहीं उठाई गई।

बहरहाल, मल्लिका शेरावत और लिओनी की तरह छठे दशक में बेगमपारा को उम्फ गर्ल कहा जाता था। भव्य फिल्मों की नायिका नलिनी जयवंत ने 'संग्राम', नूतन ने 'दिल्ली का ठग' में बिकनी पहनी थी गोयाकि मल्लिका शेरावत, लिओनी और बेगमपारा ही नहीं, शिखर नायिकाओं ने भी साहसिक दृश्य अभिनीत किए हैं। भारतीय सिनेमा में दर्शक के आग्रह के अनुरूप पुरुष नायकों ने भी शरीर का प्रदर्शन किया है। अमरीश पुरी को कई फिल्मों में कम वस्त्रों में दिखाया गया है। आमिर खान ने 'गजनी' और 'दंगल' में पटकथा की आवश्यकता के अनुरूप शरीर का प्रदर्शन किया है। पश्चिम में पैरी मैसन शृंखला में गतिविधियों का केन्द्र अदालत रही है। जैफरी आर्चर ने भी इस तरह की कुछ किताबें लिखी हैं। भारत में इब्ने सफी के विनोद व हमीद पात्र लोकप्रिय हुए हैं। इनके पुन: प्रकाशन को आशातीत सफलता नहीं मिली।

मल्लिका शेरावत के इस प्रयास में भी घटनाक्रम अदालत में ही होगा। कुछ स्टूडियो में अदालत का स्थायी सेट लगा रहता है। वकील के कमरे में चारों ओर कानून की मोटी किताबें रखी होती हैं। दरअसल इन किताबों के कवर के बीच में कोरे पन्ने रखे होते हैं। छोटे परदे पर 'अदालत' और 'सीआईडी' वर्षों से दिखाए जा रहे हैं। भारत में इस समय अदालत ही सरकार पर अंकुश लगाने का काम कर रही है।