अम्मी / अवधेश प्रीत
लड़की तब भी डरी हुई थी। लड़की अब भी डरी हुई है। इस स्पेशल ट्रेन की बोगी में, जिसे रेलवे ने ‘समर स्पेशल’ के रूप में चलाया था, वह जब दाखिल हुई तो इकलौती यात्री थी। अपने कूपे में, अपनी लोअर रिजर्व बर्थ पर अपना एअर बैग रखकर बैठने के साथ ही उसके दिमाग में जो पहला ख्याल कौंध था, वह यह कि उसके सामने और उफपर वाली बर्थों के यात्री कौन होंगे? अभी तक कोई आया क्यों नहीं ह? इन सवालों के बीच, अचानक उसे ख्याल आया कि वह ट्रेन के डिपार्चर शिड्यूल से काफी पहले आ गयी है, लिहाजा बोगी में दूसरे मुसाफिरों की आमद नहीं हुई है। धीरे-धीरे लोग जाऐंगे और यह खालीपन थोड़ी ही देर में शोर-ओ-गुल में बदल जाएगा। लड़की आश्वस्त हुई और एअर बैग की जिप खोलकर खुद तलाशने लगी। अगले ही पल उसने वह किताब निकाली, जिसे वह पहले से ही पढ़ रही थी और हॉस्टल में चलते वक्त उसने तय किया था कि इसे वह ट्रेन में पढ़ेगी। उसने किताब के पन्ने पलटने शुरू किये और फिर उस सोफे पर आकर रूक गयी, जहां से उसे पढ़ना था। सहसा उसे महसूस हुआ कि बोगी में एसी चालू नहीं है, इसलिए गर्मी लग रही है। उसने तत्काल अपना हैंडबैग खोला और रूमाल निकालकर माथे पर फिराया| माथे पर पसीना नहीं था, लेकिन उसने रूमाल को इस तरह फिराया, गोया पसीना सुखा रही है। इस प्रक्रिया के बावजूद, वह यह सावधनी बरत रही थी कि उसका मेकअप खराब न हो। हालांकि उसने कुछ खास गहरा मेकअप नहीं किया हुआ था, लेकिन चैबीस साल की लड़की अपने प्रति जितनी सतर्क होती है,
उतनी सर्तकता तो उसमें थी ही। इसी वजह से वह रूमाल फिराते हुए भी सावधनी बरत रही थी कि पसीने और रूमाल के बीच उसका सौंदर्य विद्रूप न हो। उसने रूमाल अपनी गर्दन पर फिराया और अपने टॉप को दोनों हाथों से ठीक किया। ऐन इसी वक्त उसके मोबाइल की घंटी बजी। स्क्रीन पर उसकी रूम पार्टनर दिया का नाम चमक रहा था। उसने झट से कॉल रिसीव किया और एक ही सांस में बोलती चली गयी, हां यार। ट्रेन में तो बैठ गयी हूं। बर्थ भी ठीक है। बट यू नो...एसी चल नहीं रहा। बोगी भी खाली-खाली है। कोई पैसेंजर ही नहीं नजर आ रहा । हां...हां... आई नो मैं बहुत पहले ही आ गयी। बट यार तू तो ट्रैफिक का हाल जानती ही है। थैक्स गॉड ट्रैफिक जाम नहीं मिला, इसलिए इतना बिफोर पहुंच गयी। चल कोई नहीं। टेक केयर। मैं फिर कॉल करती हूं। लड़की ने कॉल कट किया। हैंड बैग से ईअर फोन निकाला, कोड मोबाइल में खोंसा और एफ एम बैंड लगाकर गाने सुनने लगी। इसी दौरान एक बुजुर्ग डिब्बे में दाखिल हुए। ट्रॉली बैग को खींचते हुए वह क्षण भर को उसके सामने रूके। लड़की ने बुजुर्ग को ऊपर से नीचे तक देखा। टी शर्ट और जिंस के साथ स्पोर्ट्स शूज में वह वाकई स्मार्ट लग रहे थे, उत्साह से भरे हुए। उन्होंने बर्थ के नंबरों को पढ़ा और ट्रॉली बैग खींचते हुए आगे बढ़ गये। लड़की ने पलटकर देखा। बुजुर्ग बर्थों के नंबर पढ़ते हुए आगे बढ़ रहे थे। लड़की ने किताब खोली और पढ़ना शुरू कर दिया। गर्मी बढ़ती जा रही थी और लड़की समझ नहीं पा रही थी कि एसी चल क्यों नहीं रहा। उसकी समझ में यह भी नहीं आ रहा था कि इस बाबत उसे क्या करना चाहिए? बाहर-भीतर रेल का कोई मुलाजिम भी नजर नहीं आ रहा था, जिससे एसी चलाने के लिए कह सके। उसके चेहरे पर
तनाव साफ नजर आने लगा था। उसका दिमाग एसी में अटक गया था। उसने उचक कर बोगी में उस तरफ देखने की कोशिश की, जिधर वह बुजुर्ग ट्रॅाली बैग खींचते हुए गये थे। आखिरी छोर तक न बुजुर्ग नजर आये, न ही उनकी उपस्थिति की कोई सुगबुग मिल रही थी। बोगी का खालीपन खलने लगा। वह उचक-उचक कर प्लेटफार्म की तरफवाली खिड़की के बाहर देखने लगी। प्लेटफार्म पर भी इक्का- दुक्का लोग क्षण भर को ठिठकते, बोगी का नंबर देखते और आगे बढ़ लेते। लड़की की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। वह झटके से अपनी बर्थ से उठी और प्लेटफार्म की तरपफ पड़नेवाली साइड लोअर बर्थ पर जाकर बैठ गयी। खिड़की से झांकते हुई उसने प्लेटफार्म के दायें-बायें दूर-दूर तक नजर दौड़ाई। दाई ओर से नीली बर्दी में आता रेलवे का एक मुलाजिम दिखा। उसने उसपर नजर टिका दी। मुलाजिम के करीब आते ही उसने उसे टोका, भइया, एक्सक्यूज मी...। रेलवे का मुलाजिम ठिठका। उसे सवालिया निगाह से देखता खिड़की के पास आया। लड़की ने सीधे सवाल किया, भइया, इसका एसी क्यों नहीं चल रहा? उस आदमी के चेहरे से लग रहा था कि लड़की का सवाल नागवार गुजरा है। लड़की भीतर ही भीतर सकपकायी। वह आदमी उसकी आंखों में झांकते हुए मुस्कराया, मैडमजी यह स्पेशल है। इसका तो भगवान ही मालिक है। उस आदमी के आंखों में झांकने से या ट्रेन के बारे में किये गये उसके व्यंग्य से लड़की असहज हो गयी। साइड बर्थ से उठी और अपनी बर्थ पर जाकर यूं बैठ गयी, जैसे वह उसका ‘सेफ्टी जोन’ हो। खाली बोगी, बंद एसी, बढ़ती गर्मी और उस रेलवे मुलाजिम के व्यवहार ने लड़की की घबराहट को और बढ़ा दिया था। उसके जी में आया कि बैग उठाये और वापस लौट जाये, लेकिन अगले ही क्षण यह
ख्याल बुलबुले की तरह बैठ गया कि उसका घर पहुंचना निहायत ही जरूरी था। तारीख किसी कीमत पर टल नहीं सकती थी। पापा ने साफ-साफ कह दिया था ‘बड़ी मुश्किल से लड़के को छुट्टी मिली है।’ लड़की होठों ही होठों में बुदबुदायी। उसकी मुश्किल मुश्किल, मेरी मुश्किल कुछ नहीं। कितनी मुश्किल हुई टिकट लेने में। सारी ट्रेनें फुल। मानों पूरा हिन्दुस्तान ट्रेन से सफर पर निकला हो। नो सम। वो तो भला हो ट्रेवलएजेंट का, जो उसने इस समर स्पेशल को खोज निकाला। पांच सौ रूपये एक्स्ट्रा लेते हुए उसने क्या एहसास जताया था- ‘मैडम, इसके फुल होने में देरी नहीं लगेगी।’ फुल तो क्या, पूरी की पूरी बोगी सांय-सांयकर रही थी। साला एजेण्ट...। लड़की ने टिकट एर्जेट को कोसा और अपनी बर्थ पर पांव फैलाते हुए अधलेटी-सी किताब पढ़ने का उपक्रम करने लगी। बोगी के गेट पर कुछ हलचल सी हुई। लड़की के कान उस हलचल पर जा टिके। सामान चढ़ाया जा रहा था। इसी बीच किसी महिला की आवाज उभरी, देख लो, कुछ छूटा तो नहीं। ‘नहीं... पांच ही तो थे... सब आ गये।’ यह किसी मर्द की आवाज थी। लड़की की उत्सुकता बढ़ गयी। बोगी में दाखिल कुछ लोगों की आमद ने उसे एक बार फिर आश्वस्त किया कि धीरे-धीरे लोग आएंगे और बोगी भर जाएगी। उसके कान अब भी उन आवाजों की ओर ही थे। किताब को पढ़ने के उपक्रम में भी उसकी आंखें आगन्तुकों के उधर ही देख रही थी, जिधर से वे आवाजे आ रही थीं। सामान घसीटने की आवाज लगातार उसी ओर की ओर बढ़ती आ रही थी। आगन्तुक मय सामान ठीक लड़की के पास वाली बर्थ के पास आकर रूके। लड़की ने देखा। सबसे आगे एक युवक था। लहीम-सहीम। बीस-बाइस साल का गोरा-चिट्टा चेहरा क्लीन शेब्ड। उसके पीछे बुरके
में एक औरत थी और उम्र-दराज थी। चेहरा खुला था। रंग बेहद गोरा। उम्र होने के बाबजूद खूबसूरत लग रही थी। लड़का बर्थों के नंबर तजबीज कर रहा था। इत्मीनान होने के साथ उसने अपने पीछे मुड़कर आवाज लगाई, भाई जान, यही है सोलह, सत्राह, अठारह। लड़के ने जिसे आवाज दी थी, उसने वहीं से कहा, ठीक है। अम्मी को बिठाओ। मैं सामान लेकर आता हूं। युवक ने हाथ में एक बड़ी-सी अटैची थी। उसने अटैची लड़की के सामने वाली लोअर बर्थ के नीचे ढकलते हुए बुजुर्ग औरत से कहा- अभी आप यहीं बैठ जाइए। मैं बांकी सामान लेके आता हूं। अम्मी आगे बढ़ी। एक बार अपने इर्द-गिर्द देखा, घूमती नजर लड़की की आंखों से टकराई। लड़की ने देखा, अम्मी के होंठों पर हल्की-सी-मुस्कुराहट है। इस मुस्कुराहट में अजीब-सी कशिश थी। दिल में उतरती हुई। लड़की एकटक अम्मी को देखती रह गयी। अम्मी सामने वाली बर्थ पर बैठ गयी थी। अपने कंधे से टंगा बैग निकालकर अपने बगल में रखकर उन्होंने एक बार फिर इर्द-गिर्द का मुआयना किया। लड़की को अपनी ओर देखते हुए पाकर वह फिर मुस्करायी। इस बार लड़की झेंप गयी। लगा उसकी चोरी पकड़ी गयी हो। उसने झट आंखें झुकाते हुए अपनी किताब के पन्ने पलटने शुरू कर दिये। युवक एक अटैची और एक एअरबैग लिये नमूदार हुआ। इस बार उसके पीछे एक और युवक था। उतना ही गोरा। उतना ही खूबसूरत, जितना पहला युवक था, लेकिन उसके चेहरे पर दाढ़ी थी। उसने पहले युवक की तरह टी शर्ट और जींस के बजाय पठान सूट पहन रखा था। वह पीछे से ही हिदायत दे रहा था। ‘आजम’ अटैची बर्थ के नीचे रख। एयरबैग ऊपर रख दे। ‘आजम’ लड़की ने मन ही मन दोहराया-इस लड़के नाम आजम है।
आजम सामान जमाने लगा था। दूसरा युवक भी करीब आ गया था। उसके पास दो बड़े-बड़े अटैचियां थीं। उन अटैचियों को खींचकर लाने में वह पसीने-पसीने हो रहा था। आजम ने उन अटैचियों को लड़की वाली बर्थ के नीचे ढकेलकर जमाना शुरू किया। लड़की असहज हो आयी। उसने सतर्क होते हुए अपनी सैण्डिलों को देखा। एक सैण्डिल उलटी पड़ी थी, जबकि दूसरी एक अटैची के कोने से दबी हुई थी। लड़की तिलमिलाकर कर रह गयी। जी में आया, आजम को कसकर झाड़ पिलाये, ‘अंधे हो, जो मेरी सैंडिल नजर नहीं आयी।’ लेकिन अम्मी पर नजर पड़ते ही उसकी कसमसाहट काफूर हो गयी। लड़की अपनी सैंडिल ठीक करने के लिए जैसे ही झुकी, अम्मी ने आजम को झिड़का-‘आजम नीचे सैंडिल है। तुम्हें देखकर आमान लगाना चाहिए था।’ आजम ने अम्मी को टोकना नागवार लगा। कोई जवाब देने के बजाय वह दूसरे युवक की ओर मुखातिब हो गया, ‘भाई जान, आप बैठिए। मैं पानी की बांटल लेकर आता हूं’। ‘क्यों ट्रेन में नहीं मिलेगा क्या?’ भाईजान ने पूछा। ‘ये स्पेशल ट्रेन है। इसका खुदा ही मालिक है। आजम बगैर रूके झटके से आगे बढ़ गया।’ अम्मी ने तेज आवाज में चेताया, जल्दी आना ट्रेन का टाइम हो गया है। पता नहीं आजम ने अम्मी की हिदायत सुनी या नहीं, लेकिन अम्मी को यकीन था कि आजम ने उनकी बात अनसुनी की है। उन्होंने दूसरे युवक से, जिसे आजम ने भाईजान कहकर संबोधित किया था, शिकायती लहजे में कहा, ‘इस लड़के का कोई भरोसा नहीं। अल्हा जाने कब अकल आयेगी।’
वह युवक जो बुरी तरह पसीने-पसीने हो आया था, अम्मी की बर्थ पर बैठकर रूमाल से मुंह पोछते हुए बोला, ‘अम्मी आजम की शादी कर दीजिए। अकल ठिकाने आ जाएगी।’ ‘इस बदमगज से कोई शादी ना करने वाली।’ अम्मी ने खिसयाये अंदाज में खिल्ली उड़ायी। क्यों? वो पाकिस्तानवाली तो राजी है? युवक ने दलील दी। लड़की चिहुंकी- पाकिस्तानवाली। तो इनका रिश्ता पाकिस्तान से जुड़ा है। लड़की सतर्क हो आयी। उसकी सारी चेतना कान बन गयी। खामख्वाह राजी है। आजम ही गले पड़ा है। अम्मी ने युवक की दलील को खारिज करने कोशिश की। ‘पहल तो आपने ही की थी।’ युवक हार मानने को तैयार नहीं था। अम्मी ने आंख तरेरते हुए युवक को देखा, लेकिन कमाल। उनके चेहरे पर गुस्से की बजाय चिकनी सी मुस्कुराहट थी, पहल मैंने तेरे लिए की थी, आजम के लिए नहीं। तेरे ना कहने पर आपा ने आजम की बात छेड़ी। लड़की का आंखें किताब पर टिकी थी, लेकिन वह जिस लाइन पर अटकी थी, वहीं अटकी हुई थी। उस युवक और अम्मी की दिलचस्प बातों के बावजूद, वह भीतर ही भीतर खुद को असहज पा रही थी। थोड़ी देर पहले वह खाली बोगी में अपने-आपको अकेला पाकर डरी हुई थी और अपने सहयात्रियों के आने की बेताबी से इंतजार कर रही थी, लेकिन अचानक इनकी मौजूदगी ने, कहीं ज्यादा दहशत पैदा कर दी थी। वह एक बागरी खुद को खतरनाक लोगों के बीच घिरी पा रही थी। खासकर अम्मी के साथ बैठा वह युवक कतई भरोसेमंद नहीं लग रहा था। उसकी दिलचस्प बातों के बावजूद उसका कहर मुसलमानी अंदाज ज्यादा खतरनाक था। लड़की ने मन ही मन
सोचा- इन मुसलमानों का कोई भरोसा नहीं। सबके सब खाएंगे हिन्दुस्तान का, गायेंगे पाकिस्तान का। ‘पता नहीं एसी कब चलाएंगे मरदुए।’ अम्मी ने अजिजी से कोसा। युवक उठा। रूमाल कॉलर के अंदर गर्दन में फंसाते हुए बोला ‘देखता हूं, माजरा क्या है?’ ‘आजम को भी देख। पता नहीं नीचे क्या कर रहा है?’ अम्मी ने चिन्ता व्यक्त की। युवक चलने को हुआ कि ट्रेन ने सीटी दी। युवक ठिठक गया। अममी ने टोका, ‘ट्रेन चलने वाली है। आजम को बुलाओ, बुलाओ।’ ‘आजम आ गया।’ युवक ने गेट की ओर देखते हुए अम्मी को आश्वस्त किया। युवक फिर अम्मी की बर्थ पर बैठ गया। आजम एक साथ पानी की तीन बोतलों के साथ नमूदार हुआ। इससे पहले कि कोई कुछ बोले, उसने खुद सफाई देनी शुरू कर दी, ‘इस प्लेटफार्म पर कोई स्टॉल नहीं है। बारह नंबर पर जाना पड़ा बड़ी मुश्किल से ठंडी बोतले मिली।’ अपनी बात खत्म करने के साथ ही, आजम बगैर किसी तकल्लुफ के लड़की की बर्थ पर धम्म से बैठ गया। लड़की कसमसाकर रह गयी। मन ही मन चीखी- इडियट! पता नहीं मुसलमानों को तमीज कब आयेगी। लड़की को ताजुब्ब हुआ कि इससे पहले उसने मुसलमानों के बारे में कभी उस तरह क्यों नहीं सोचा? उसके क्लासमेट मुसलमान रहे हैं। अभी उसके कई कलीग मुसलमान हैं। हंसी-मजाक अपनी जगह है, लेकिन उनपर कभी गुस्सा नहीं आया। कभी उनसे दहशत नहीं हुई। फिर आज अचानक ये क्या हो रहा है?
‘एसी नहीं चल रहा।’ अम्मी के बजाय इस बार उनकी बर्थ पर बैठे युवक ने कहा। ‘ये हिन्दुस्तान है, भाईजान। हिन्दुस्तान। यहां सबकुछ ऐसे ही चलता है।’ आजम ने तल्ख लहजे में व्यंग्य किया। लड़की के जी में आया, कहें- तो पाकिस्तान चले जाओ। किसने रोका है? ‘अल्ला मालिक है।’ भाईजान ने ठंडी आह भरी। इससे पहले कि कोई कुछ बोलता, ट्रेन एक घचक के साथ चल पड़ी। अम्मी छत की ओर मुंह उठाकर कहा, शुक्र है। लड़की अम्मी को देखने का मोह संवरण नहीं कर पायी। अम्मी के खूबसूरत चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट कायम थी। लड़की समझ नहीं पायी, ये मुस्कुराहट स्थायी तौर पर उनके चेहरे पर कैसे कायम रहती है? अम्मी अपना बैग खोल रही थी। बैग से उन्होंने एक छोटी-सी डिबिया बाहर निकाली। चांदी की चमकती डिबिया। लड़की के दिमाग में घंटी बजी, हे भगवान! इस डिबिया में बम तो नहीं है? अम्मी ने डिबिया खोली। उसमें पान की गिलौरियां थी। उन्होंने पान की एक गिलौरी निकाली। मुंह में डालने को हुई कि भाईजान ने टोका? अम्मी, दस मिनट बाद खाइए। नमाज का वक्त होने वाला है। ‘तो, ट्रेन में भी ये नमाज पढ़ेगें।’ लड़की के अंदर तीखी प्रतिक्रिया हुई। कहीं फंस गयी। पता नहीं सारे रास्ते अब ये क्या-क्या तमाशे करेगे। बड़ी देर से तलब दबा रखी थी। अम्मी की एक मुस्कुराहट कुछ ज्यादा गहरा गयी थी, बजू के टाइम मुंह धो लूंगी।
अम्मी ने मुंह में गिलौरी डाल ली। लड़की को याद आया, मम्मी भी पान खाने के लिए ऐसे ही दस बहाने बनाती है। अम्मी ने चांदी की डिबिया बंद करते हुए आजम से पूछा, अब्बू से बात हुई? ‘नहीं। उनका सेल नॉट रिचेबल बता रहा है। आजम ने अम्मी को छेड़ा, क्यों, याद आ रही है क्या? इस बार लड़की के होठों पर मुस्कान रोके नहीं रूकी। उसने आजम को देखा। आजम मुस्कुरा रहा था। अम्मी के चेहरे पर बनावटी गुस्सा आया। लड़की ने देखा अम्मी के चेहरे पर फिर भी मुस्कुराहट यथावत थी।
‘अच्छा ज्यादा मजाक सूझ रहा है। चल घर तो बताती हूं।’ अम्मी की खनकती आवाज कानों में बजने लगी। भाईजान कुछ कहने के लिए मुंह खोल ही रहे थे कि कंबल, तकिये, चादरों के पैकेट लिए एक कर्मचारी आ खड़ा हुआ। उसने सारा सामान ऊपर की बर्थ पर रखने के साथ ही तस्दीक की, ‘पन्द्रह, सोलह, सत्रह, अठारह।’ ‘एसी क्यों नहीं चल रहा?’ जवाब के बजाय आजम ने सवाल दागा - ‘इसका कोई भाई-बाप नहीं है क्या?’ ‘इसमें एसी बैट्री से चलता है। ट्रेन चली है। थोड़ी देर में एसी चालू हो जाएगा।’ कर्मचारी बगैर रूके आगे बढ़ गया। ‘एसी ट्रेन की तो ऐसी-जैसी।’ आजम ने लानत भेजी। लड़की को आजम की हरकते कतई अच्छी नहीं लग रही थीं। वह जिस बेतकल्लुफी से उसकी बर्थ पा बैठा था, उससे तो उसे और कोफ्त हो रही थी। मन तो कर रहा था कि सारा लिहाज छोड़कर उठे और किसी दूसरी बर्थ पर चली जाए, लेकिन मन मसोसकर रह गयी।
‘कहां जा रही हो?’ जैसे अम्मी को अचानक याद आया हो। उन्होंने उससे मुखातिब होते हुए पहली बार बात की। क्या कहे? सच बताये या झूठ? मुस्कुराती हुई इस औरत में अजीब-सा जादू है। कहीं बातों-बातों में उसे उलझा न लें। इनका क्या भरोसा? मुसलमान भरोसे के काबिल होते कहां हैं? ‘जी, पटना!’ लड़की से झूठ नहीं बोला गया। ‘पढ़ती हो?’ अम्मी ने फिर सवाल किया। ‘नहीं जॉब करती हूं।’ लड़की समझ नहीं पा रही थी कि चाहकर भी वह अम्मी के सवालों का जवाब डाल क्यों नहीं पा रही? ‘आजम देख! इस लड़की को देख, जॉब करती है। एक तू है। तेरे को कोई जांच ही नहीं मिलती।’ अम्मी ने आजम को उलहना दिया। मेरे को हिन्दुस्तान में दो कौड़ी की जॉब नहीं करनी। आजम ने जिस हिकारत से जवाब दिया, लड़की का खून खौल उठा। उसने पहली बार आजम को खा जाने वालीसे नजर से देखा और मोबाइल का ईयरफोन कान में ठूंस लिया। ‘स्साले! तेरे को जॉब की जरूरत ही क्या है। टेरेरिस्ट बनके पाकिस्तान से पैसे खाएगा।’ लड़की के भीतर चिनगारियाँ चटख रही थी। भाईजान, जो अब तक चुप था, अम्मी से बोला, बजू करके आइए। नमाज का टाइम हो गया। अम्मी उठी। बाथरूम की ओर बढ़ गयी। भाईजान ने एयरबैग में से चादरें निकाली और दोनों बर्थों के बीच खाली जगह में एक चादर फैला दी। दूसरी चादर अम्मी की खाली हुई बर्थ पर बिछायी। फिर खुद भी बजू करने चला गया।
लड़की का दिल धड़क गया। अब वह और आजम ही वहां थे। कहीं आजम ने कोई बदतमीजी की तो? लड़की सजग हो गयी, स्साले को तो सबक सिखाऊँगी कि जिन्दगी भर याद रखेगा। ‘हैलो! क्या हुआ?’ आजम किसी से बात करने लगा। पता नहीं दूसरी ओर से क्या जवाब मिला कि आजम एकदम भड़क उठा, जी मैं तो आता है कि सब स्सालों को लाइन से खड़ा करके गोली मार दें। समझा ले। ना समझे तो बता। कोई उपाय करते हैं। लड़की के भीतर सिहरन सी दौड़ गयी। ये दिखने में जितना मासूम है, भीतर से उतना ही खतरनाक है। कहीं किसी टेरेरिस्ट ग्रुप से तो नहीं जुड़ा? इसकी बातों से तो लग रहा है कि यह जरूर किसी ग्रुप का लीडर है। हो भी सकता है। जहां देखो, वहीं कोई मुसलमान टेरेरिस्ट निकलता है। लड़की अपनी सोच के भीतर ही उभ-चूभ हो रही थी। दहशत अपनी गिरफ्त कसती जा रही थी। अम्मी, भाईजान दोनों आ चुके थे। आजम सेल पर बात करते हुए उठा और बोगी में टहलता हुआ आगे बढ़ गया। भाईजान नीचे और अम्मी बर्थ पर नमाज की मुद्रा में बैठ गये थे। लड़की का डर उसके भीतर इस कदर घर कर चुका था कि वह अपने आप में सिकुड़ी जा रही थी। किताब के पन्ने पर नजर गड़ाते हुए उसने सचमुच पढ़ने की कोशिश की, लेकिन तभी सेल की घंटी बजने लगी। पापा थे। उसने काल रिसीव करने के लिए हाथ बढ़ाया ही था, कि अम्मी की नमाज में खलल पड़ेगा। उसने फोन काट दिया। फोन काटने का पछतावा भी हुआ। इनकी नमाज से मुझे क्या लेना- देना? जहां देखो, वहीं शुरू हो जाते हैं मुसलमान कितना भी हाई-फाई दिखे, रहेगा मुल्ला का मुल्ला ही।
सेल पर फिर पापा का रिंग बजा। उसने झट से कॉल रिसीव किया,‘हां पापा! ट्रेन चल चुकी है। सब ठीक है। हां, जगह भी ठीक है।’ पापा से झूठ बोलती रही। पापा ने आश्वस्त होकर फोन काट दिया। अम्मी चादर समेटनी शुरू कर दी। भाईजान की नमाज भी पूरी हो गयी थी। उन्होंने अम्मी से कहा- ‘नमाज में लगते ही कितने मिनट हैं। हद से हद दस मिनट।’ ‘हां, लेकिन ये दस मिनट भी देने में आजम की जान निकलती है।’ अम्मी ने फिर उलहना दिया। ‘कोई बात नहीं...आज नहीं तो कल समझ जाएगा।’ भाईजान ने दिलासा दिया। ‘खाक समझ जाएगा। मुझे तो इसके लच्छन ठीक नहीं लगते। इसका खुदा ही मालिक है। अभी बर्थ पर आलथी-पालथी मारकर बैठ गयी थी। भाईजान भी उसी बर्थ पर पीठ टिकाकर आराम की मुद्रा में बैठ चुके थे। लड़की उठी। पैकेट से चादर निकाली। झक्क सफेद चादर बर्थ पर फैलाने लगी कि आजम उसके बिल्कुल बगल में आ खड़ा हुआ। अम्मी ने आजम को टोका-‘आ, यहां मेरे पास बैठ जा।’ आजम तिनक गया, यही बैठता हूं कि बर्थ दो लोगों के बैठने के लिए है। किसी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा के बगैर आजम सफेद बिछी चादर पर धम्म से बैठ गया। लड़की अंदर ही अंदर तरपकर रह गयी। लड़की अपनी जगह पर बैठकर फिर किताब पढ़ने लगी।
लेकिन क्रोध में उफनता मन किताब में नहीं रमा। उसने ईयरफोन कान में ठूंस लिया-इनकी बातों पर ध्यान नहीं देना। भाईजान आजम से कुछ कह रहे थे, लेकिन मोबाइल के फुल वाल्यूम में लड़की को कुछ सुनाई नहीं पड़ा। लड़की ने सोचा-इस तरह तो वे कोई साजिश भी करेंगे तो कुछ नहीं जान पाएगी। इस ख्याल के साथ ही उसने वाल्यूम कम कर लिया। अचानक लड़की ने टीटीई को सामने देखकर राहत महसूस की। चलो, ट्रेन में टीटीई तो है। कोई मुसीबत आयी तो वह उससे मदद ले सकती है। टीटीई टिकट मांग रहा था। लड़की बैग से अपना टिकट निकालकर बढ़ा दिया। उसने टिकट को पारखी नजर से देखा और टिक लगाकर लौटा दिया। भाईजान ने जैसे ही टिकट बढ़ाया, टीटीई ने कहा, ‘आई कार्ड दिखाइए।’ लड़की सन्न रह गयी। भाईजान ने अपना आईकार्ड दिखाया। टीटीई ने आईकार्ड पढ़ते हुए पूछा-‘मोहम्मद आलम! दुबई। इंण्डिया का आईकार्ड नहीं है क्या?’ भाईजान कुछ कहते, इससे पहले ही आजम टपक पड़ा। ‘क्यों, इस कार्ड में क्या प्रॉब्लम है?’ ‘कुछ नहीं... बस यूं ही पूछ लिया।’ टीटीई आजम की तुर्शी से झेंप गया था। टिकट पर टिक लगाकर आगे बढ़ गया। लड़की टीटीई के इस तरह झेंपकर जाने से निराश हुई। ‘तुझे इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी।’ भाईजान आजम को समझा रहे थे।
‘क्यों? क्या गलत कहा मैंने? भाईजान? आप नहीं जानते, इनकी मंशा क्या होती है? डिमोरलाइज करना चाहता था। इन स्सालों को ऐसे ही जवाब देना पड़ता है।’ आजम का चेहरा लाल हो आया था। उसकी आवाज में कंपकंपी थी। ‘ले, पानी पी। गुस्से पर काबू रख।’ अम्मी ने पानी की बोतल आजम की ओर बढ़ायी। बगैर किसी हुज्जत के आजम ने अम्मी के हाथ से बोतल ली और ढक्कन खेलकर पानी पीने लगा। अचानक पानी गले से सरका और उसे तेज खांसी उठी। उसके मुंह से पानी के छींटे निकले और भाईजान के चेहरे पर जा छिटके। भाईजान ने गर्दन में फंसा रूमाल निकाला और अपना चेहरा पोंछते हुए कहा, लगता है, कोई तुझे याद कर रहा है? ‘हां, इसके नामुराद दोस्त सब याद कर रहे होंगे।’ अम्मी के चेहरे पर मुस्कुराहट कायम थी, ‘पता जो चल गया होगा कि जनाबेआली कल तशरीफ ला रहे हैं।’ ‘अम्मी प्लीज, मेरे दोस्तों को कुछ मत कहिए।’ आजम ने तीखे स्वर में विरोध् किया। अम्मी चुप लगा गयी। आजम ने भी चुप्पी साध् ली। भाईजान तो यूं भी चुप्पे ही लग रहे थे। हालांकि उनकी शख्सियत में उनकी चुप्पी उन्हें कहीं ज्यादा रहस्यमय बना रही थी। लड़की ने घड़ी देखी। रात के नौ बज रहे थे। बाथरूम जाने की तलब महसूस हुई। हालांकि एकबार मन किया कि टाल दे, लेकिन यह सोचकर कि अब सोने का वक्त हो गया है, उसने टालना उचित नहीं समझा। अनमने ढंग से उठी। पैरों में सेण्डिल डाली और बाथरूम के लिए चल पड़ी। अचानक उसने पाया कि आजम उसके पीछे आ रहा है। उसका दिल जोरों से
धड़क उठा। इस लड़के के इरादे ठीक नहीं जान पड़ते। मन किया कि उल्टे पांव जाए, लेकिन यह सोचकर कि उसका डर जाहिर हो जाएगा। वह आगे बढ़ती रही। पता नहीं क्यों पांवों की गति मद्धिम पड़ गयी थी। घसीटते कदमों से वह बाथरूम में दाखिल हुई। बाथरूम से लौटकर लड़की अपनी बर्थ तक पहुंची तो देखा, अम्मी ने टिफिन खोल रखा है। कई डिब्बे, उन डिब्बों में चपातियां, चिकनचिली और न जाने क्या-क्या? सबकुछ कनखियों से देखते हुए लड़की के मुंह में पानी भर आया। चिकनचिली पर जान छिड़कने वाली लड़की मन मसोसकर रह गयी। उसके बर्थ पर बैठते न बैठते अम्मी ने पूछा, ‘आओ खाना खाते हैं।’ ‘नो थैंक्स।’ लड़की ने पता नहीं किस प्रेरणा से सख्ती से मना कर दिया, ‘भूख नहीं है।’ अम्मी ने कागज के एक प्लेट में चिकनचिली और चपातियां रखकर आजम की ओर बढ़ाया। भाईजान तो बकायदे पालथी मारकर बर्थ पर बैठ गये थे। अम्मी ने कागज की प्लेट में चिकनचिली निकालना चाहा तो उन्होंने टोक दिया, ‘मत निकालिए। मैं आपके साथ टिफिन में ही खा लूंगा।’ अम्मी रूक गयी। उनकी मुस्कुराहट कुछ और गहरी हो गयी-‘हां, अभी अम्मी के साथ खा लो। निकाह के बाद तो अम्मी को पूछेगा भी नहीं।’ ‘अम्मी... आप भी न!’ भाईजान की दाढ़ी की गुदगदाती हंसी चुहल कर रही थी, लेकिन जो झूठ बोल चुकी थी।
लड़की मन ही मन मुस्कुरायी। भूख उसको भी लगी थी, लेकिन जो झूठ बोल चुकी थी, उसे छिपाये रखने के लिए भूख मारना मजबूरी हो गयी थी। आजम खा चुका था। वह खाली प्लेट लिये हुए उठा और बेसिन की ओर बढ़ गया। लड़की ने फटाक से कंबल खोला और पैरों पर डालते हुए पूरे बर्थ पर टांगें फैलाकर लेट गयी। अब देखते हैं आजम क्या करता है? आजम के लौटने से पहले लड़की ने आंखे मूंदकर सोने का उपक्रम शुरू कर दिया। हालांकि उसका दिल तेजी से धड़क रहा था और अधमून्दी आंखों से आजम के लौटने का इंतजार करती वह अपने आप को आजम की किसी भी हरकत का सामना करने के लिए तैयार करने लगी। आजम लौटा। पलभर लड़की को ऊपर से नीचे तक देखा, फिर ऊपर की बर्थ पर चादर फैलाते हुए बोला, मैं सोने जा रहा हूं। लड़की ने राहत की सांस ली। अम्मी, भाईजान भी खाना खा चुके थे। दोनों उठे और बेसिन की बढ़ लिये। आजम अपनी बर्थ पर जाने को हुआ कि ट्रेन रूक गयी। वह झुककर साइड बर्थ के काले शीशे के पार देखने लगा। शायद स्टेशन का नाम जानना चाह रहा था। ‘कानपुर है।’ बेसिन से लौटे भाईजान ने सूचना दी। गेट पर शोर हुआ। शायद कुछ लोग ट्रेन में चढ़ रहे थे। लड़की अधमुंदी आंखों से सारी हलचलों का जायजा ले रही थी। बायीं ओर वाले गेट से घुसा एक दम्पती सामान लिये-दिये सीधे लोअर बर्थ के पास आकर रूका। मर्द और औरत की उम्र में कोई खास फर्क नहीं था। दोनों तकरीबन पचास के थे। मर्द ने बरमूडा और
टी शर्ट पहन रखा था, जबकि औरत सलवार में थी। उनके पास महज एक अटैची और एअरबैग था। दोनों सामान बर्थ के नीचे जमाने के बाद मर्द बोला, मैं ऊपर लेटता हूँ। नींद आ रही है। ‘पटना कितने बजे पहुंचेंगे?’ औरत ने पूछा। ‘समर स्पेशल है। कहना मुश्किल है कि कब पहुंचेंगे। वैसे आरा आने पर मुझे जगा देना।’ मर्द एक ही सांस में बोल बोल गया। आजम अपनी बर्थ पकड़े खड़ा था। भाईजान भी ऊपरी बर्थ पर चादर बिछा चुके थे। अम्मी टिफिन धोकर लौट चुकी थी और डिब्बे एअर बैग में समेट रही थी। लड़की इस पूरे दृश्य में स्वयं को बेतरह फंसी पा रही थी। उसने बर्थ के बायीं ओर लगा रीडिंग लैम्प जलाया और किताब पढ़ने लगी, जिसे वह कब से पढ़ना चाह रही थी। वांछित पन्ना खोजते हुए, जब तक वहां पहुंची, बोगी में फिर हलचल हुई। लड़की ने किताब हटाकर हलचल का जायजा लेना चाहा कि ठीक सामने एक बेहद चुस्त, लेकिन कहीं ज्यादा खतरनाक कुत्ता अपनी जीभ लपलपाता नजर आया। उसके गले में काला पट्टा था और उसे एक मजबूत जंजीर से एक सिपाही ने थाम रखा था। सिपाही के पीछे दो पुलिसवाले और थे। कुत्ते को देखते ही लड़की के शरीर में सिहरन-सी दौड़ गयी। दहशत के मारे वह अपने-आप में सिकुड़ गयी थी। उसका कलेजा धड़- ताड़ बजने लगा। उसने कनखियों से देखा, अम्मी चेहरे पर कायम रहने वाली मुस्कान इस वक्त गायब थी। भाईजान भी पालथी मारकर अम्मी के बर्थ पर बैठ गये थे। आजम उफपरी बर्थ पकड़े सिपाहियों की बगल में खड़ा था। वे दम्पती, जो अभी थोड़ी देर पहले ही, बोगी में दाखिल हुए थे, उनमें से मर्द अपने बर्थ पर लेटा हुआ बिटर-बिटर
ताक रहा था, जबकि औरत दोनों आंगें मोड़े कुछ अघटित होने की प्रतिक्षा में डरी हुई थी। लड़की भी डरी हुई थी। उसने अपनी चीख अंदर ही दबा रखी थी। उसकी दहशत में ढेरों सवाल गश्त लगा रहे थे। ऐसी सख्त चैकिंग क्यों? कहीं बोगी में बम, आरडीएक्स तो नहीं? कहीं आजम और उसके भाईजान आतंकवादी तो नहीं? पुलिस किसी गुप्त सूचना के आधर पर तो नहीं इस बोगी में आयी है। सवाल ही सवाल थे और लड़की को लग रहा था कि ये बेहद खतरनाक कुत्ता किसी भी क्षण बर्थों के नीचे रखा विस्फोटक खोज निकालेगा। वाकई कुत्ता लपलपाती जीभ से बर्थ के नीचे रखे एक-एक समान को सूंघ रहा था। जिस सिपाही के हाथ में उसकी जंजीर थी, वह उसे ढीला छोड़ हुए भी चैकन्ना था। आखिरकार कुत्ता मुड़ा और उसके साथ ही वह सिपाही उसके पीछे चल पड़ा। कुत्ता दृश्य से बाहर जा चुका था, लेकिन खौफ जारी था। बोगी में एक अटूट सन्नाटा छाया हुआ था, गोया हर कोई उसकी गिरफ्त में हो। आजम उचककर अपनी बर्थ पर जा चड़ा। भाईजान अब भी वैसे ही बैठे थे। उसके चेहरे पर एक नामालूम सी उदासी चस्पां थी। अम्मी के चेहरे की मुस्कान भी अभी तक नहीं लौटी थी। लड़की ने देखा, साइड बर्थ वाले दम्पती में, जो मर्द था, नीचे झांकता हुआ, औरत से मुखातिब हुआ, ‘सिक्योरिटी बहुत टाइट हो गई थी। देखा कुतवा कैसे एक‘एक चीज सूंघ रहा था?’ ‘कुतवा के सूंघे से क्या होता है। आतंकवादी सब तो जहां चाहता है, वहां अपना काम करिये देता है। औरत के स्वर में इस सिक्योरिटी चैकिंग से उपजे भय की गहरी प्रतिक्रिया थी। उसने पुलिस और कुत्ते के इस ढोंग को एकदम से खारिज कर दिया था। अब तक भाईजान
भी उठ चुके थे। बगैर कुछ बोले अपनी बर्थ पर चढ़कर लेट गये। अम्मी ने भी उपने पांव फैला लिए थे। लड़की ने अम्मी को देखा, उनके चेहरे की मुस्कान गायब थी। उनकी खुली आंखें ऊपर टिकी थीं, जैसे कुछ खोज रही हों। क्या? लड़की के जेहन में यह सवाल उठा और वह साइड लैम्प का स्विच ऑफ कर जवाब ढूंढ़ने की कोशिश करने लगी। लड़की की आंख उनींदी हो गयी थी। वह नींद में जाने वाली ही थी कि ऊपर से आजम की फुसफुसाती आवाज सुनाई दी, ‘भाईजान, मुझे दुबई चलना है।’ ‘क्यों? भाईजान, देख नहीं रहे आप। कितनी जलालत झेलनी पड़ती है यहां।’ आजम की आवाज में खीझ थी। लड़की की नींद उचट गयी थी। अभी मुतवातिर शून्य में ताक रही थी। भाईजान कह रहे थे, भागने से नहीं, लड़ने से बदलते हैं हालात। लड़की चिहुंकी। उसे पक्का यकीन हो गया कि भाईजान सचमुच खतरनाक हैं। अपने भाई को लड़ने के लिए उकसा रहा है। ऐसे में उकसावे से तो लोग आतंकवादी बनते हैं। उसने हांठ भींचे और जी को कड़ा किया- हे भगवान रक्षा करना। बोगी में फिर सन्नाटा छा गया था। ट्रेन ने रफ्तार पकड़ ली थी। कसमसाती हुई लड़की ने करवट बदलकर आंखें मूंद लीं। लड़की आंख कब लग गयी, उसे पता ही नहीं चला। आंख तब खुलीं, जब एक झटके से ट्रेन किसी स्टेशन पर रूकी। बोगी में किसी बिलाव के गुर्राने-सी खर्राटें की आवाज गूंज रही थी। खर्राटा वह मर्द ले रहा था, जो पिछले स्टेशन पर एक औरत के साथ
चढ़ा था। उसके खर्राटें में इस कदर शोर था कि लड़की भीतर ही भीतर बुरी तरह तंग आ गयी। उसने कनखियों से देखा, अम्मी अपनी बर्थ पर पीठ के बल अधलेटी तस्बीह के दाने फेर रही थी, यानी अब तक वह सोई नहीं थी। शायद उन्हें नींद नहीं आ रही थी। शायद उन्हें कोई परेशानी हो। इस उम्र में अक्सर नींद नहीं आती लोगों को, लेकिन क्या परेशानी हो सकती है उन्हें? उसकी बला से! लड़की खुद पर झुंझलायी। घड़ी देखी। रात के दो बज रहे थे। उसने तय किया, जो हो, अब सो जाना है। ऊपर की बर्थों पर आजम और भाईजान की कोई सुगबुग नहीं मिल रही थी। क्या कर रहे होंगे दोनों? जागे होंगे तो जरूर कोई खुराफात सोच रहे होंगे। इनका कोई भरोसा नहीं। ऊपर से चाहे लाख शरीफ दिखें, उनके अंदर से सबक सब एक जैसे होते हैं। षडयन्त्रकारी| उनके दिमागों में कोई खतरनाक साजिश जरूर चल रही होगी। अभी नहीं, तो कभी नहीं, ये कहीं न कहीं जरूर पकड़े जाएंगे। तब पता चलेगा कि उनके तार कहां से जुड़े हैं। आई.एस.आई से, लश्कर तैयबा से या सीधे अलकायदा से। लड़की ने आंख मूंदे-मूंदे फिर करवट बदली। उसकी नींद उड़ चुकी थी और वह तेज खर्राटों के बीच खुद को और बेचैन महसूस करने लगी। शुक्र था कि ट्रेन ने पूरी रफ्तार पकड़ ली थी और उम्मीद थी कि टाइम से पटना पहुंच जाएगी। पटना स्टेशन पर उसे लेने पापा आएंगे। हो सकता है मम्मी भी आएं। हालांकि उसने मम्मी को मना किया था कि आपको गठिया है। सीढ़ियां चढ़ने में दिक्कत होगी, लेकिन उनका कोई भरोसा नहीं। सारा दर्द दरकिनार कर वह आ भी सकती हैं। बाद में भले ही आह-उह करती घंटों पीड़ा से छटपटाती रहे, या खुदा। ठंडी सांसों के बीच अम्मी की आवाज सुन लड़की ने आंखे
खोलकर उन्हें देखा। वह अपनी टांगे फैलाती बर्थ पर आराम की मुद्रा में लेटने की कोशिश कर रही थीं। लड़की को लगा- जरूर इन्हें भी गठिया होगा। उसके दर्द से परेशान सो नहीं पा रही। ये उम्र ही ऐसी होती है। कोई न कोई बीमारी लगी ही रहती है। लड़की सेाचती रही और ट्रेन चलती रही। दोनों की रफ्तार के बीच उसे कब नींद आयी नहीं पता। वो तो निचली बर्थ पर लेटी औरत की आवाज से जागी, तो पता चला ट्रेन आरा स्टेशन पर रूकी है। लड़की ने सबसे पहले अम्मी की ओर देखा। वह उठकर बैठ गयी थी। उनकी आंखें मुंदी थीं, लेकिन हाथ में लिये तस्बीह के दाने मुतवातिर फेर रही थीं। उनके चेहरे पर मुस्कान लौट आई थी। इबादत की आभा में उनकी खूबसूरती दप-दप दमक रही थी। ‘सुनते हैं जी! उठिए आरा आ गया।’ साइडबर्थ वाली औरत बार- बार मर्द को आवाज दे रही थी, लेकिन उसके खर्राटों में औरत की आवाज गुम हो जा रही थी। लड़की ने घड़ी देखी। सुबह के पांच बज रहे थे, यानि अधिक से अधिक एक घंटा। छः बजे तक। इस अहसास के साथ ही उसके भीतर गुदगुदी सी हुई। घर पहुंचने की या उस लड़के से मिलने की, जिससे उसकी एंगेजमेंट होने वाली है? वह साफ-साफ तो कुछ तय नहीं कर पायी, लेकिन मिलीजुली यह खुशी उसके होंठो पर गहराती गयी। उसने महसूस किया कि उसकी नींद गायब हो चुकी है और वह इस सफर की तल्खी से उबरने लगी है। उसने कम्बल सिर तक खींचा और खुद को बेफिक्र छोड़ दिया। उठेगी आराम से।
ट्रेन चल चुकी थी। अम्मी जो अब तक चुप थी, उठी और आजम और भाईजान को आवाज लगाने लगी, उठो। पटना आनेवाला है। दोनों भाइयों की कोई आवाज नहीं सुनाई दी। अम्मी फिर अपनी बर्थ पर बैठ गयी थीं। उन्होंने सारी रात जागते काटी थी। लड़की को पूरा यकीन है कि उन्होंने पलक तक नहीं झपकाई थी। उसने जब भी देखा था, अम्मी जागती मिली थी। शून्य में निहारती। तस्बीर फेरती। खुदा को याद करती। लड़की को अम्मी के चेहरे पर कायम रहने वाली मुस्कान में जादू-सा दिखा था, लेकिन जब वह मुस्कान गायब हुई थी, तब अम्मी किस कदर बेनूर नजर आ रही थी, लेकिन उनकी मुस्कान लौट आई थी। धीरे-धीरे वह मुस्कान गाढ़ी होती जा रही थी। आजम-भाईजान ऊपर की बर्थों से नीचे आ गये थं। बेगी में हलचल शुरू हो गयी थी। साइडबर्थ वाला मर्द भी औरत की बर्थ पर बैठकर आंखें भींच रहा था। उसे अपने खर्राटों की याद तक नहीं थी। औरत अपनी चप्पलें पहनकर उतरने की तैयारी में चौकस बैठ गयी थी। अम्मी ने सिराहने रखा बुर्का पहन लिया था। भाईजान बाथरूम जा रहे थे। आजम मोबाइल पर बात करने के लिए उठा और भाईजान के पीछे-पीछे चल पड़ा। उसने कम्बल को पीछे की ओर फेंका। अम्मी की तरफ देखा। अम्मी ने मुस्कुराते हुए कहा, उठो, पटना आने वाला है। लड़की मुस्करायी। उठकर बैठ गयी। अम्मी एकटक उसे ही देख रही थी। वह झेंप गयी। ‘नींद नहीं आयी न रातभर?’ अम्मी ने पूछा।
जी! लड़की ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा, ‘आप भी तो सारी रात जागती रहीं।’ ‘हां!’ अम्मी मुस्कुरायी, नींद आई ही नहीं? ‘मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन सो नहीं पाई।’ लड़की के स्वर में बेबसी थी। ‘डरी हुई थी न?’ अम्मी ने अप्रत्याशित अजीब सा सवाल कर दिया था। लड़की समझ नहीं पायी -क्या जवाब दे। सच तो यही है, लेकिन कैसे कहे कि वह किससे डरी हुई थी? क्यों डरी हुई थी? लेकिन वह क्यों नहीं सो पाई? इस ख्याल के साथ ही उनके सवाल से बचने की जैसे राह सूझ गयी। लड़की ने झट से पूछ डाला ‘आप क्यों नहीं सोयी?’ पता नहीं लड़की की चतुराई से या उसके मासूम सवाल से अम्मी के चेहरे पर दमक कहीं ज्यादा तेज हो आई थी। उन्होंने ने लड़की के ही अंदाज में जवाब दिया, बच्चे जब डरे हुए हों, तो मां को नींद नहीं आती। अचानक एक तेज झटके से बोगी लहरायी। लड़की ने जिस्म हिलाया, उसने बड़ी मुस्किल से खुद को संभाला। ट्रेन धड़-धड़ करती पटरियां बदल रही थी। यह दानापुर यार्ड था। लड़की का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, अम्मी के शब्द उसके कानों में उतनी ही जोर-जोर से बज रहे थे। उसने अम्मी को गौर से देखा। उसके चेहरे पर सुबह की उल्लास फैली हुई थी। लड़की के भीतर तक सराबोर हो गयी। पहली बार वह खुलकर मुस्कुरायी। उसे लगा उसके अंदर का सारा डर काफूर हो गया है उसके होंठ कांपें। लफ्जों ने साथ छोड़ दिया। वह उठी और पांवों में सेण्डिल डालकर बाथरूम की ओर चल पड़ी।
बोगी में कई यात्री अलसाये-अनमने उतरने की तैयारी में दिखे। उसे आश्चर्य हुआ कि रात के सफर में कब कहां से इतने यात्री इस बोगी में सवार हो गये। रास्ते में आजम लौटता दिखा। लड़की ने देखा, आजम फोन पर बात करने में मशगूल था। उसने लड़की की तरफ देखा तक नहीं। लड़की को गुस्सा आया। जी में आया रास्ता रोककर पूछे-समझता क्या है अपने आपको? लेकिन आजम उससे कटकर बर्थ की ओर बढ़ गया। जींस की जेब में रखा मोबाइल बजा। लड़की ने मोबाइल निकालकर देखा, पापा का कॉल था। झट से कॉल रिसीव किया, ‘हैलो, पापा। हां, आप कहां है? अच्छा ठीक है। दस मिनट में ट्रेन पहुंचने वाली है। ओके।’ लड़की ने मोबाइल जेब में रखा और बाथरूम में दाखिल हो गयी। लड़की जब उपनी बर्थ पर लौटी, आजम, भाईजान अपना सामान लोअर बर्थो पर रखकर खड़े थे। अम्मी जैसे उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। देखते ही बोली, ‘बेटा अपना सामान देख लो। कुछ छूट तो नहीं रहा।’ लड़की अपना सामान पहले ही समेट चुकी थी, फिर भी अम्मी की बात टाल नहीं पायी। एक बार बर्थ पर फैली चादर को खींचकर आश्वस्त हुई। कहीं कुछ नहीं था। उसने बर्थ के नीचे से अपना एअरबैग निकाला और बर्थ पर रखकर खड़ी हो गयी थी। लड़की ने अम्मी को देखा। अम्मी मुस्कुराकर उसके सिर पर हाथ फेरा। अम्मी के इस स्पर्श से लड़की का रोम-रोम पुलक से भर गया। उसने बेहद विनम्रता से सिर झुका लिया। ट्रेन के प्लेटफॉर्म पर रूकते ही बोगी में हड़बड़ सी मच गयी। उतरने वालों का उतावलापन ऐसा कि रास्ते में लोगों की लाइन लग
गयी। लड़की लाइन में आजम के पीछे लग गयी थी। भाईजान आजम के आगे थे। अम्मी लड़की के पीछे। भीड़ धीरे-धीरे खिसक रही थी। लड़की इस धीमी चाल पर मन ही मन भुनभुना रही थी। गेट से पहले भाईजान उतरे, फिर आजम। सामान प्लेटफार्म पर रखकर आजम पलटा। बगैर कुछ बोले लड़की का एयरबैग ले लिया। लड़की मना नहीं कर पायी। शायद वह कुछ सोच भी नहीं पायी। सबकुछ इतनी तेजी से हुआ कि लड़की को कुछ भी अन्यथा-असहज नहीं जान पड़ा। वह ट्रेन से कूदकर प्लेटफार्म पर आयी और पलटकर देखा अम्मी हैण्डिल पकड़कर उतरने की कोशिश कर रही हैं। लड़की पता नहीं किस प्रेरणा के वशीभूत लपककर अम्मी के पास आयी और अपना हाथ बढ़ाकर उन्हें उतरने में मदद करने लगी। बढ़ाकर उसका हाथ थामे-थामे अम्मी प्लेटफार्म पर रखे सामान के पास खड़ी हुई। फिर इधर-उधर देखते हुए पूछा, ‘कोई तुम्हें लेने आया है।’ ‘हां! पापा आये हैं।’ लड़की ने प्लेटफार्म पर नजरें दौड़ाते हुए देखा। पापा-मम्मी लपकते हुए उनकी ओर चले आ रहे हैं। लड़की खुद को रोक नहीं पायी। वह तेजी से बढ़ी और बाहें फैलाकर मम्मी से लिपट गयी। पापा ने भी सिर पर हाथ फेरा। मम्मी ने पूछा, तुम्हारा सामान। लड़की पलटी। उसका एयरबैग प्लेटफार्म पर पड़ा था। अम्मी, भाईजान, आजम अपना सामान लेकर भीड़ के बीच जाते हुए दिखे। लड़की का चेहरा उतर गया। वह क्षण भर को ठिठकी। अम्मी के साये को गेट के बाहर गुम होते देख उसका दिल गहरी उदासी से भर गया। पापा उसका एयरबैग लेकर चलने को तैयार थे। मम्मी ने लड़की को टोका, क्या हुआ?
‘अम्मी’। लड़की के होंठ हिले। मम्मी को देखा मम्मी उसे ही घूर रही थी। लड़की ने झेंप छिपाते हुए पूछा -‘क्यों, तुम रात-भर सोई नहीं क्या?’ ‘तू आ गयी। अब सुकून से सोऊँगी।’ लड़की को महसूस हुआ, यह मम्मी नहीं अम्मी बोल रही हैं।