अय्यार+रोबोट = काल / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 26 अक्तूबर 2013
गर्दिश में डूबा अभिनेता विवेक ओबेरॉय राकेश रोशन की 'कृष' में मुख्य खलनायक के रूप में प्रस्तुत हो रहे हैं और अपने लाइलाज बड़बोलेपन को कायम रखते हुए फरमा रहे हैं कि खलनायक काल भारतीय सिनेमा में प्रस्तुत सारे खलनायकों का बाप है। हमारे सिनेमा में परदे पर बड़बोलेपन पर तालियां पड़ती हैं परंतु जीवन में इस हरकत पर गालियां खाना पड़ती हैं। खलनायक के चरित्र-चित्रण में उसे लाऊड और बड़बोला बनाया जाता है क्योंकि निरर्थक संवादों पर सिनेमाघर में न केवल तालियां पड़ती हैं वरन् ताउम्र विभिन्न मंचों पर उसे दोहराकर फिर तालियां बटोरी जाती हैं।
मसलन अमिताभ बच्चन जैसा महान कलाकार से बार-बार शहंशाह के संवाद की मांग की जाती है, 'रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप लगते हैं, नाम है शहंशाह' या शाहरुख दोहराते रहे हैं 'हारी बाजी को पलटने वाले को बाजीगर कहते हैं'। जबकि बाजियां साहस से पलटी जाती हैं और बाजीगर केवल ट्रिक्स द्वारा अजूबे प्रस्तुत करते हैं। अब इसी तर्ज पर चीख रहे हैं विवेक कि 'काल की दुनिया में आपका स्वागत है'। विवेक के बड़बोलेपन का राकेश रोशन से कोई संबंध नहीं है, वह तो केवल समग्र मनोरंजन रचना चाहते हंै।
विवेक की बात कि यह खलनायक सबका बाप है, हमें खलनायकों के संक्षिप्त इतिहास पर दृष्टि डालकर तय करना होगा कि यह बाप है या पाप है और इसकी हैसियत खलनायकों की गैलरी में क्या है? सच तो यह है कि हमारे सिनेमा में जितने विविध रंग खलनायक के पात्रों में भरे गए हैं उतने रंग नायक में नहीं हैं। आप राम को रंगीन नहीं बना सकते परंतु रावण की भयावहता को खूब रंगा जा सकता है। खलनायकों के गोरखधंधे से हमें समाज में हो रहे बदलाव की झलक भी मिलती है। मसलन, पहले के दशकों में गांव का सूदखोर महाजन खलनायक रहा, फिर डाकुओं का नंबर आया तो आज़ादी के बाद तस्कर खलनायक बना तथा टूटती व्यवस्था के दौर में भ्रष्ट नेता व अफसरों को खलनायकों की तरह प्रस्तुत किया गया। संगठित अपराध सरगना लंबे समय तक छाया रहा जिसकी जगह ली सरहद की दूसरी ओर से आने वाले आतंकवादी ने। राकेश रोशन की विज्ञान फंतासी के लिए उसने सत्तालोलुप वैज्ञानिक और टेक्नोक्रेट को खलनायक बनाया।
आज बच्चे आधुनिक यंत्रों पर विज्ञान फंतासी के खेल खेलते हैं और चार-पांच वर्ष के बालक भी इन नए 'खिलौनों' से खेलना जानते हैं। टेलीविजन पर बच्चों के लिए बनाई गई चैनलों पर अजीबोगरीब मशीनी खलनायकों की रचना हुई है और इन्हीं बच्चों की रुचियों के अनुरूप फिल्में गढऩा स्टीवन स्पिलबर्ग ने शुरू किया जिसका अनुसरण राकेश रोशन कर रहे हैं। परंतु राकेश रोशन इस विदेशी ढांचे में भारतीयता के तत्वों, विशेषकर हमारे धार्मिक आख्यानों का तड़का अवश्य लगाते हैं। मसलन, 'कोई मिल गया' का भारतीय वैज्ञानिक ओम की ध्वनि को संकेत बनाकर अंतरिक्ष में भेजता है और उसके एलियन की शक्ति का स्रोत सूर्यदेवता हैं। इसी धारा में उन्होंने काल अर्थात मृत्यु को खलनायक बनाया है अपनी ताजा फिल्म मेंं।
सलीम-जावेद की 'शोले' का गब्बर किवदंती बन गया तो उन्होंने 'शान' में खलनायक कुलभूषण को बटन दबाकर अजूबे रचनेवाला खलनायक बनाया जो सन् 80 में अस्वीकृत हुआ क्योंकि तब तक बच्चे पारंपरिक खिलौनों से खेलते थे। परंतु आज के बच्चे स्वयं टेक्नोके्रट हैंं। पांचवे दशक के खलनायक आज मासूम लगते हैं। 'कृष 3' के खलनायक का मूल बीज देवकीनंदन खत्री की किताबों का अय्यार है जो मनचाहा रूप ग्रहण कर सकता है परंतु राकेश रोशन ने उस अय्यार को वैज्ञानिक और टेक्नोलॉजी का स्पर्श दे दिया है।