अरस्तू की धरती पर / विनोद दास

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एथेंस !

इस शहर से जुड़े अनेक बिंब आंखों के सामने तैर रहे हैं। कोई एक समग्र बिंब नहीं जिसे पकड़कर किसी एक फ्रेम में जड़ा जा सके। बचपन से मेरे लिए एथेंस एक मायालोक रहा है। एक किताबी मायालोक । छात्र जीवन से लेकर आज तक के बहते, मिटते, बदलते प्रभावों का एक पुंज। कुछ-कुछ प्राचीन गंध से परिपूर्ण। हवाई अड्डे पर उतरते ही प्राचीन बोध सहसा शीशे की तरह चटक जाता है। एथेंस का हवाई अड्डा एकदम अत्याधुनिक । हमने कभी कल्पना नहीं की थी कि कभी एथेंस जाना होगा। वहां की जमीन,पहाड़ और मिट्टी को छूने-जानने का अवसर मिलेगा। यह सुयोग है कि आज हम वहां हैं।

आसमान खुला था। हवा में हल्की सुरसुरी थी।

निकास द्वार के बाहर ग्लोबस ट्रेवल एंजेसी के टैक्सी ड्राइवर पर नजर ठहर गई। मेरे नाम की पट्टी हाथ में लिए सावधान मुद्रा में खड़ा हुआ था। जितनी शानदार टैक्सी थी,उतना ही सुदर्शन ड्राइवर था। चुस्त और चपल। उसकी चाल में सैनिक सी दृढ़ता और दर्प था। विनीता और हम टैक्सी में पीछे बैठ गए। साहबजादे कातिर्केय ड्राइवर के साथ आगे।

कुछ ही क्षणों में ही लगा कि मुंबई से एथेंस का लैण्डस्केप एकदम अलग है। जमीन और आसमान की अपनी अलग धज है। पेड़-पौधौं की हरीतिमा चित्त को सुकून पहुँचा रही थीं। सड़कें वीरान थीं। इक्का-दुक्का कारें तेज गति से चल रही थीं। मुंबई की धका-पेल से थकी मेरी आंखों को पंख लग गए थे। रास्ते में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर टनल थे। टनल खासतौर से बनाए गए थे। इनका अपना निजी सौन्दर्य था। टनलों के ऊपर पेड़-पौधौं की हरीतिमा थी। वहां कुछ फूल मुस्कारा रहे थे। टनल की भीतरी छतें रोशनी से जगमग थीं। अपने देश में टनलों में प्रवेश करते ही डर लगता है मानो एक अजीब रहस्यमय और भयावह लोक में प्रवेश करने जा रहे हो। लेकिन यहां ऐसी कोई अनूभूति नहीं हो रही थी। इन टनलों में प्रवेश करते ही लगता जैसे हम किसी नाइट क्लब के कॉरीडोर में जा रहे हों।

दृश्यावलियां निरखते हुए पता ही नहीं चला कि हम कब होटल पहुंच गए। शनिवार था । सप्ताहांत। शायद इसी कारण शहर की सड़कें भी जनाकीर्ण थीं। मन में अजीब सी उथल-पुथल मची हुई थी कि हम यूनान की बौद्धिक धरती पर पहुंच चुके हैं। एक कवि सपरिवार प्लेटो के उस राज्य में पांव रख चुका है जहां कवि के लिए कोई जगह नहीं थी। जहां अरस्तू ने प्लेटो को बौद्धिक चुनौती दी थी। जहां अरस्तू के शिष्य सिकंदर ने विश्व विजय का सपना देखा था। जहां एसक्लीज,सोफोक्लीज,इयूरीपीडेस,एरिस्टोफेन के अनेकानेक लोकप्रिय दुखांत नाटक लिखे गए थे। वह धरती जहां लोकतंत्र का उदय हुआ था। इतिहास और संस्कृति के गौरव ऐसे मौकों पर और अधिक याद आते हैं। इन मीठे पलों में न जाने कितने युग गुजर गए।

मोबाइल में शाम के पांच बज रहे थे। यह समय भारत का था। यहां अभी दोपहर थी। भारत और एथेंस के समय में काफी अंतर था। आंखें नींद से भरी थीं। होटल के कमरे में पहुंचते ही हम बिस्तर पर लुढ़क गए। आंखें खुली तो तीन बज रहे थे। अलसभरी तंद्रा हम पर छायी हुई थी। तिरुवंतपुरमवासी हिंदी कवयित्री रति सक्सेना ने ऐथेंसवासी कवि हेत्तो का परिचय दिया था । मेरे ई -मेल का उत्तर देते हुए हेत्तो ने अफसोस जताया था कि यदि मैं दो दिन पहले वहां पहुंच जाता तो उनके यहां आयोजित राष्ट्रीय कविता दिवस के आयोजन में शिरकत कर सकता था। मेरे पास आज की शाम उनके लिए थी। उन्हें फोन करना चाहता था। इसके लिए ग्रीस का सिम-कार्ड लेना था ।

होटल के सामने ही एक छोटी सी दुकान थी। दुकानदार से हम अंग्रेजी में सिम के बारे में अटकलों की धुंध में गोता लगा रहे थे कि अचानक एक आदमी हिंदी में कुछ बताने लगा। पता चला कि वह बांग्लादेश का है। यूनान की आबोहवा और हिंदी। बातचीत में हम सबको आनंद आने लगा। परदेश में अपनी भाषा ज्यादा अपनी लगने लगती है। यहां देश की सीमा रेखा टूट गई और भाषायी भाईचारा पारे की तरह जगमगाने लगा। पश्चिम बंगाल के अनेक परिवारों के सगे संबंधी बांग्लादेश में रहते हैं। वहां की मधुर स्मृतियां उनकी धरोहर हैं।

बांग्लादेशी भाई के परामर्श से हमने छह यूरो का कार्ड खरीदा। अपनी भाषा के झिलमिल सम्मोहन में हम कुछ देर खोए रहे। जब तक वह बांग्लादेशी मित्र साथ था,एथेंस पराया शहर नहीं लग रहा था। आंखों से उसके ओझल होते ही एथेंस अजनबी लगने लगा। फिर यूनानी कवि हैत्तो से टेलीफोन से बात हुई। उन्होंने शाम सात बजे एवन होटल के रूफटॉप रेस्त्रां में मिलने के लिए आमंत्रित किया।

किसी शहर को गाइड की आंखों से देखकर नहीं समझा जा सकता। शहर की धड़कन सुनने के लिए शहर को अपनी तरह से टोहना होता है। एथेंस की नब्ज सुनने-समझने के लिए कार्तिकेय ने मोनास्त्राकी जाने का मन बनाया। मेट्रो से जाना था। होटल से मेट्रो स्टेशन दूर नहीं था। एथेंस का मेट्रो देखने की हमारी चाह भी थी। भटकते-पूछते हम विक्टोरिया मेट्रो स्टेशन पहुंचे। यहां की मेट्रो स्टेशन का नजारा ही कुछ अलग था। इसमें आधुनिकता और प्राचीनता का अद्भुत संगम था। एक ओर इसमें ग्रेनाइट,संगमरमर का प्रयोग किया गया है और आधुनिक प्रकाश व्यवस्था की गई है,वहीं मेट्रो के निर्माण कार्य के दौरान खुदाई में मिली वस्तुओं को भी लगाकर इसके कलात्मक सौष्ठव को उभारा गया है। एक्रोपोलिस मेट्रो स्टेशन पर सर्वाधिक लगभग एक सौ से अधिक ऐतिहासिक वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं। अपनी प्राचीन धरोहरों को कैसे जनप्रिय बनाया जाए,एथेंस की मेट्रो इसका खूबसूरत उदाहरण है।

मेट्रो का टिकट लिया। दूसरा स्टेशन ही मोनास्त्राकी था। सीढ़ियां चढ़कर जब हम बाहर निकले तो हमारी आंखें एक वृत्ताकार घेरे पर टिक गयीं । कुछ युवक-युवतियां नृत्य कर रहे थे। उनको घेरे हुए युवा दर्शक तालियां बजाकर और उत्साह से चीख-चीखकर उनका हौसला बढ़ा रहे थे। अपूर्व दृश्य था। पास में एक युवक गिटार बजा रहा था। अभी नृत्य खत्म हुआ ही था कि एक दूसरी टोली नाचकर अद्भुत करतब दिखाने लगी। उनके करतब हमारे यहां के नटों की तरह थे। कुछ लोग उनके पास यूरो रख रहे थे। यह उनके लिए एक तरह से पारतोषिक था। शायद इसी पारतोषिक से उनका गुजर-बसर चलता है।

कुछ आगे बढ़ने पर बाजार शुरू हो गया। एथेंस में हमारे कई शहरों की तरह कुछेक चीजों के लिए खास बाजार हैं मसलन एथिनास में हार्डवेयर के सामान जैसे स्क्रू और कीलें आदि ज्यादा हैं,एइलोन में कपड़ों की दुकानें। मोनास्त्राकी में ऐसा खासतौर से दिखा। यहां पहले लोहा सामान का बाजार था जिसे अब फ्ली मार्केट में बदल दिया गया है। वहां तरह-तरह की चीजें बिक रही थीं। सब्जियां,मसाले,जड़ी बूटियां,गर्म कपड़े,चमड़े के बैग,धूप के रंगबिरंगे चश्में,जूते चप्पलें। हम दुकानों में गए। भाव-ताव किया। हम मध्यवर्ग हमेशा मोल -तोल में लगे रहते हैं। हम अपने यहां की वस्तुओं की कीमतों से इनकी तुलना कर रहे थे। यूरो की तुलना में रुपया कमजोर था। यही कारण है कि हमें वहां की चीजें मंहगी लग रही थीं। आलू के ढेर पर भाव लिखा था। भाव याद रखने के लिए उसकी फोटो लेने के लिए कहा तो साहबजादे तुनक गए। आप भी किन-किन चीजों के फोटो लेने के लिए कहते रहते हैं। बाजार में कुछ दूर चलने पर मछलियों की गंध आने लगी। यही नहीं, वहां दुकानों पर मांस के बड़े-बड़े लोथड़े लटकते हुए दिखायी दिए। हम पीछे लौट आए। हमें होटल 6 बजे तक पहुंचना था। हम मेट्रो से वापस विक्टोरिया स्टेशन आए और खरामा -खरामा होटल पहुंच गए।

हमारी टूर गाइड क्रिस्तयाइना छह बजे से हमारे होटल के लाउंज में इंतजार कर रही थी। सुंदर और आकर्षक । उनके हाथ में एक बैग था और कुछ कागजात। उनके निकट बैठा एक विदेशी मुस्करा रहा था। हाथ मिलाकर परिचय हुआ। वह जिम था — एक अमेरिकी।

क्रिस्तयाइना ने ड्रिंक के लिए प्रस्ताव किया। हमने कोल्ड ड्रिंक ली। जिम ने अपनी पंसद की ड्रिंक का आर्डर दिया। फिर क्रिस्तयाइना ने हमारे पर्यटन की रूपरेखा विस्तार से बतायी। वह मंथर गति से रुक-रुककर बोलती थीं, बीच-बीच में घने सुनहरे बालों पर हाथ फेरते हुए पीछे ले जाती थीं। जिम एक उत्साही टूरिस्ट की तरह तमाम जानकरियां ले रहा थे। उसने पहले से यात्रा की तैयारी कर ली थी। उसके पास एथेंस का नक्शा भी था। क्रिस्तयाइना ने बताया कि कल ग्रीस के राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर परेड होगी जिसके चलते कल एथेंस में कई जगह यातायात बाधित होगा। ऐसे में निर्धारित कार्यक्रम में कुछ तब्दीली करनी पड़ रही है। मीठी स्मित बिखेरते हुए उसने कहा कि यह सौभाग्य की बात है कि आप सब ग्रीस के राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर आए हैं। हो सके तो कल परेड देखिए। उनकी इस खबर ने हम पुलकित हो गए।

कई बार अनजाने ही हमें कुछ चीजें सौगात में मिल जाती हैं। कुछ अरसा पहले हम सब गोवा गए थे। वहां भी अचानक पता चला था कि उस दिन झांकियों का प्रदर्शन होगा। गोवा में हमने भारतीय मिथकों और लोक कथाओं पर आधारित रंगारंग झांकियां देखी थीं। ऐसी चित्ताकर्षक झांकियां अनुशासित वातावरण में पहले कहीं कभी भी नहीं देखी थी। मेरे भीतर से यह आवाज आ रही थी कि हो न हो कल भी ऐसा ही कुछ सुखद घटने वाला है।

तीन क्रेजी कवि

मोबाइल में समय देखा तो होश उड़ गए । शाम के सात बजकर दस मिनट हो रहे थे । कवि हैत्तो ने सात बजे का समय दिया था। वह जगह हमारे होटल से कितनी दूर है,पता भी नहीं था। कवि गण से मिलना खटाई में पड़ने की आशंका बढ़ गई। सहसा विनीता ने सुझाव दिया कि हेत्तो से फोनकर पूछ लीजिए। यदि वह वहां अभी मिल सकते हो तो कोशिश की जा सकती है. फोन किया तो वह उमगते आवाज में बोले। आठ बजे तक पहुंच सके तो आ जाइए। दिलचस्प था कि वह मिलने की जगह मोनास्त्राकी ही थी जहां हम कुछ अरसा पहले घूमकर आ चुके थे। अंदाजा था कि हम वहां मेट्रो से पंद्रह मिनट में पहुंच जाएंगे। फिर जिज्ञासावश हैत्तो से पूछा कि हम आपको होटल में किस तरह पहचानेंगे। इस पर उन्होंने हंसते हुए कहा कि होटल के रूफटॉप पर क्रेजी तीन कवियों और एक कवयित्री को पहचानने में आपको कोई दिक्कत नहीं होगी।

उनका कहना सही साबित हुआ। होटल युवा कोलाहल से लबरेज था। तरह-तरह के ड्रिंक और सामिष खाने की चीजों की मिली-जुली सुगंध वातावरण में व्याप्त थी। रूफ टॉप पर एक मेज को वे घेरे हुए बैठे थे। परिचय हुआ। मराठीभाषी अंग्रेज़ी कवि हेमंत दिवटे भी संयोग से मौजूद थे। हेमंत के हावभाव से लगा कि उन्हें जल्दी है.सच भी था.उनके कुछ मित्र होटल के नीचे उनका इंतज़ार कर रहे थे. वे चले गये. उन कवियों से परिचय के थोड़ी देर बाद मैंने भारतीय भाषा द्वारा प्रकाशित अपनी कविताओं के अंग्रेज़ी अनुवादों का संकलन , 'द वर्ल्ड ऑन द हैंड कार्ट' की एक प्रति हैत्तो और दूसरी योरगोस छोलियारस को भेंट की। योरगोस छोलियारस यूनानी दूतावास में काम करते थे। उन्होंने कहा कि इस पर कुछ लिखकर दीजिए। मुझे यह अच्छा लगा। मेरे पास राजस्थान हस्तशिल्प के दो उपहार थे। एक उपहार हैत्तो को और दूसरा कवयित्री मारगेरिटा लीडीस को सादर अभ्यर्पित किया। लीडीस उपहार पाकर अवाक थी। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था। उन्हें उपहार अच्छा भी लगा।

कवि छोलियारस को जल्दी जाना था। उन्होंने कविता संग्रह पढ़कर अपनी राय बताने का वायदा किया । फिर विनम्रता से क्षमा मांग कर विदा ली। मराठी कवि के कुछ साथी भी बार-बार इशारे से उन्हें बुला रहे थे। वे भी मुंबई में मिलने का वायदा करके अपने दोस्तों के साथ हो लिए। हैत्तो दरअसल लीडीस की कविताओ की तारीफ कर रहे थे. वह संकोच में शरमा रही थी। ग्रीस की मंदी,बढ़ती बेरोजगारी और सरकारी कर्मचारियों की छंटनी पर कुछ देर चर्चा हुई। हेत्तो इन मुद्दों पर खासा चिंतित नजर आ रहे थे। कुछ देर बाद हेत्तो असहज दिखने लगे। दरअसल उन्हें अपने कुत्ते की याद सता रही थी। सुबह से वह घर में अकेला था। असहजता के बावजूद उन्होंने ड्रिंक का प्रस्ताव किया। रसपान की मेरी अपनी बंदिश यहां हर जगह आड़े आ रही थी। न पीने के लिए उन्होंने उलाहना भी दिया। उधर विनीता और कार्तिकेय बाहर इंतजार कर रहे थे। फिर मिलने का वायदा करके उनसे विदा ली।

बाहर विनीता और कार्तिकेय नदारद थे। इधर -उधर खोजा। कहीं नहीं दिखायी दिए। फिर मिले तो उमगते हुए कहा कि चलिए आपको यहां का कुछ दिलचस्प नजारा दिखाते हैं। वे मुझे मोनास्त्राकी मेट्रो स्टेशन के बगल की स्ट्रीट में ले गए। पूरी स्ट्रीट गुलजार थी। पटरियों के किनारे कुर्सी -मेजें सजी हुई थीं। दुकानों के सामने खाने-पीने के सामानों के इश्तहार लगे थे। ज्यादातर लोग जोड़ों में या टोलियों में थे। इक्का -दुक्का ही अकेले बोतल और गिलास रखे दिख रहे थे। यहां की मस्ती और रंगरेलियां देखकर कहीं से यह नहीं लग रहा था कि यह देश आर्थिक मंदी से ग्रस्त है। सब जगह मदहोशी का आलम था। एक बात अच्छी लग रही थी कि यहां कोई किसी की परवाह नहीं कर रहा था। सब अपनी दुनिया में मगन थे। रेस्त्रां के सामने लगे कुछ मेनू चार्ट के व्यंजनों को हमने बालसुलभ उत्सुकता से पढ़ा।

अजीबोगरीब नाम थे। एक भी व्यंजन के नाम जबान पर नहीं चढ़े। चढ़ते भी कैसे। जबान पर उन्हीं व्यंजनों के नाम चढ़ते हैं जिनका स्वाद जिह्वा पर देर तक बना रहता है। हम निरामिषों के लिए वे सामिष व्यंजन अंगूर की तरह खट्टे थे। हमारे खानपान की सीमाओं के बावजूद उस स्ट्रीट के माहौल में एक अजीब सी कशिश थी। हम वहां काफी देर तक चहलकदमी करते रहे। वहां से जाने का मन नहीं कर रहा था। लेकिन परदेश में देर रात तक घूमने के खतरे और भाषा न जानने का कमी का बोध हमें था। थोड़ी थकान भी लग रही थी। अन्तत: हम होटल के लिए वापस चल दिए।

राष्ट्रीय ध्वज की छांह में

अगले दिन हम ग्रीस के राष्ट्रीय दिवस के एक दिन पहले की प्रात:कालीन परेड देखने के लिए निकल पड़े। जिम भी साथ थे। जिम के पास एथेंस का नक्शा भी था। एथेंस की संसद हमारे होटल से करीब ही था। परेड 11 बजे से शुरू होनी थी। अभी नौ बजे थे । हम लोग शहर में खोए हुए पथिकों की तरह जगहों को उत्सुक निगाहों से देख रहे थे। अचानक एक सुंदर कलात्मक भवन दिखायी दिया। पास में पेड़ों की कतार भी दिख रही थी। हमें लगा कि कोई महत्वपूर्ण इमारत होगी। यह सच भी था। यह एक संग्रहालय था। भूलवश हम इस रास्ते पर आ गए थे। संसद जाने का यह रास्ता लंबा था। कई बार गलत या लंबे रास्ते में भी भूल से कुछ अच्छी चीजें मिल जाती हैं। हमें इस समय कुछ ही ऐसा लगा। हम परेड पर समय से पहुंचना चाहते थे,लिहाजा वहां ज्यादा देर नहीं रुके। हम संसद मार्ग की ओर बढ़ रहे थे। एक दिशा में लोग जा रहे थे। सबकी आंखों में परेड ग्राउंड का वह हिस्सा चमक रहा था जहां उन्हें पहुंचना था। जगह-जगह पुलिस का बंदोबस्त था। कई रास्तों पर यातायात प्रतिबंधित था। पुलिसवाले मुस्तैदी से वाहनों को दिशानिर्देश दे रहे थे। लेकिन दिल्ली जैसी गहमागहमी और बेरहमी नहीं थी कि पूरा रास्ता ही बंद कर दिया जाए। सबके चेहरे पर एक मनोरम उल्लास था।

यूनानियों का आज उल्लसित होना स्वभाविक भी था। 1453 में बाइजेनटाइन साम्राज्य के पराभव के बाद यूनान 1821 तक आटोमैन साम्राज्य के अधीन रहा । 25मार्च 1821 को बिशप जर्मेनोस ने पेलोपोनेस स्थित एगिया लावरा मठ में पहली यूनान की आजादी के लिए झंड़ा फहराया था। इनका नारा था आजादी या मौत। शुरू में आजादी की लड़ाई में यूनानियों को सफलता मिली। लेकिन आटोमैन साम्राज्य ने मिश्र के इब्राहिम पाशा से समझौता करके उसे ग्रीस पर कब्जा करने को लिए भेजा। इब्राहिम पाशा ने मध्य ग्रीस स्थित एक शहर मेसोलांगी को घेर लिया। लगभग एक साल तक बाहर से रसद पानी को रोक दिया। ऐसे में वहां के निवासियों ने भागना शुरू कर दिया।

इस पराजय के बाद भी आजादी का संघर्ष चलता रहा। आखिरकार यूरोप के कई देशों की मदद से ग्रीस को आजादी मिली। यहां याद करना प्रीतिकर लगता है कि अंगे्रजी के महान कवि लार्ड बायरन ने भी ग्रीस की आजादी का पुरजोर समर्थन किया था। आजकल ग्रीस में संसदीय प्रणाली है। प्रधानमंत्री की तुलना में राष्ट्रपति की भूमिका यहां भी लगभग सजावटी है। संसद में बहुमत दल का नेता प्रधानमंत्री चुना जाता है। यहां मुख्यत: तीन राजनीतिक पार्टियां और कई छोटी पार्टियां हैं। कम्यूनिस्ट पार्टी का दबदबा ग्रामीण इलाकों में है। पासोक और न्यू डेमोक्रेसी सत्ता के प्रबल दावेदार रहते हैं। 2004 में न्यू डेमोक्रेसी के सत्ता में आने से यहां उदारीकरण की हवा चली। इसकी एवज में यूरोपीय देशों से इसे सहायता मिली। उसका खमियाजा आज ग्रीस भुगत रहा है। आर्थिक मंदी के चपेट में तो है ही,वहां का युवक बेराजगाी की मार भी झेल रहा है।

25 मार्च जहां राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है,वहीं दूसरी ओर इसका धार्मिक दृष्टि से भी महत्व है। इस दिन को वहां पवित्र भविष्यवाणी दिवस के रूप में मनाया जाता है। यूनान में ऐसी मान्यता है कि इस दिन सर्वोच्च देवदूत ग्रेबिएल ने प्रकट होकर मरियम मेरी से कहा था कि वह ईश्वर के पुत्र को जन्म देंगी। बहरहाल 25 मार्च को पूरे ग्रीस में स्कूल के विद्यार्थी हाथ में ग्रीस का राष्ट्रीय ध्वज लेकर परेड करते हैं। इसी दिन सैनिकों की भी परेड होती है।

खुला दिन था। हवा की ठंड़क अच्छी लग रही थी। जिम का नक्शा बहुत काम आ रहा था। हम लोग टहलते टहलते अपनी मंजिल के करीब आ गए। एक काफी चौड़ी सड़क के दोनों तरफ लोगों का हुजूम दिखायी दे रहा था। दोनों तरफ रस्सियों लगाकर आने जाने पर रोक लगी हुई थी। पुलिस के अधिकारी और कर्मचारी अपनी जगहों पर मुस्तैदी से तैनात थे। ग्रीस के नीले-सफेद झंडे हर जगह लहरा रहे थे। पूरे माहौल में खुशी का आलम छाया हुआ था। लोग सज-धजकर आ रहे थे। परेड शुरु होने में देर थी। कुछ खाने- पीने की दुकानें खुली हुई थी। एक रेस्त्रां ने कुछ अपनी कुछ कुर्सियां पटरी पर सजा दी थीं। कुछ लोग वहां बैठकर जग के मुजरे का नजारा देख रहे थे। हमारे सामने एक महिला पुलिसकर्मी थी। बेहद रूपवती और शारीरिक सौष्ठव से परिपूर्ण। इधर जिम और कार्तिकेय में गुफ्तगू चल रही थी। धूप में खड़े -खड़े हमें हल्की थकान लगने लगी थी। हम एक बंद दुकान के सामने बनी पटरी पर बैठ गए। कुछ लड़के लड़कियां ग्रीस का राष्ट्रीय ध्वज बेच रहे थे। हमारे पास भी आए। हमने विनम्रता से इंकार कर दिया। सहसा एक छोटी सी लड़की आई। उसने पहले मुझसे हाथ मिलाया। फिर अपना नाम बताया। मुझसे मेरा नाम पूछा। यही सिलसिला उसने विनीता के साथ दुहराया। उसका आत्मविश्वास बहुत रोचक लग रहा था। फिर उसने ग्रीस का एक राष्ट्रीय ध्वज खरीदने की मनुहार की। उसकी यह अदा हम सबको पसंद आयी । हमने सोचा कि इतनी कम उम्र में यह लड़की बेचने की कला में निष्णात है। भविष्य में जरूर सफल होगी। जिम को उसकी यह अदा इतनी भा गयी कि उसने उससे एक राष्ट्रीय ध्वज खरीद लिया। एक यूरो का एक राष्ट्रीय ध्वज। जिम को राष्ट्रीय ध्वज खरीदते देखकर एक लड़की और राष्ट्रीय ध्वज खरीदने के लिए चिरौरी करने लगी। जिम ने एक ध्वज और खरीद लिया और कार्तिकेय के हाथों में थमा दिया।

ग्रीस का राष्ट्रीय ध्वज आधुनिक ग्रीस का प्रतीक है। इसमें नौ सफेद पंक्तियां हैं जो आटोमैन सामा्रज्य के खिलाफ ग्रीस के क्रांतिकारी नारे आजादी या मौत के ग्रीक नारे के अक्षरों की संख्या को दर्शाती हैं। ग्रीस समुद्र तट से घिरा हुआ है। यही कारण है कि ध्वज का सफेद और नीले रंग का पैटर्न समुद्र की लहरों से मिलता है । हवा के थपेड़ों के बीच जिस तरह सफेद और नीले वर्ण में इजियन समुद्र दिखता है, यूनानी ध्वज भी उसी तरह लहराते हुए दिखायी देता है। ध्वज के बायीं ओर वर्गाकार क्रास का निशान ईसाइयत के प्रति निष्ठा का द्योतक है। यह माना जाता रहा है कि आटोमैन के शासन के दौरान यूनान के परपंरावादी चर्च ने गुलाम ग्रीकवासियों को अपनी सांस्क़ृतिक पहचान बचाए रखने में मदद की थी। यही कारण है कि इसे ग्रीस के ध्वज में प्रमुख स्थान दिया गया है। ईसाइयत का वर्चस्व अभी भी ग्रीस में है। यहां यह उल्लेख करना अप्रासांगिक न होगा कि ग्रीस के राष्ट्रीय गान का अंग्रेजी अनुवाद अंग्रेजी के प्रख्यात कवि जॉन कीटस ने किया था।

परेड का सबको बेसब्री से इंतजार था। अचानक एक महिला जोर आवाज में बोली। उसके समर्थन में कुछ और आवाजें आने लगी। मुझे लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ है। भाषा से अपरिचित होने की वजह से कुछ समझ में नहीं आ रहा था। सभी एक युवा पुलिसकर्मी को इशारा करके कुछ गुस्से में कह रहे थे। दरअसल वह पुलिसकर्मी सिगरेट पी रहा था। राष्ट्रीय समारोह के अवसर पर ऐसा करना उस महिला और तमाम लोगों को नागवार लगा। उन्होंने उनके अधिकारी को ध्यान दिलाया। अधिकारी ने उसे डपटा। उस पुलिसकर्मी का गोरा चेहरा शर्म से आरक्त हो गया था। वह शर्म से आंखें झुकाए खड़ा था जबकि लोगों की निगाहें उसे घूर-घूर कर घायल कर रही थीं।

वहां चिप्स और फूल बिक रहे थे। जिम ने एक गुलाब खरीदा। कुछ देर अपने हाथ में लेकर खड़ा रहा। फिर धीरे से विनीता को भेंट कर दिया। इस दृश्य को साहबजादे ने मोबाइल कैमरे में कैद कर लिया। मुझे जहां उसका इस तरह भेंट करना अच्छा लगा,वहीं थोड़ी सी मन में जलन भी हुई। शायद भारतीय पुरुष उतना उदार नहीं होते। मैं भी उनमें से हूं। मुझे लगा कि जो फूल मुझे भेंट करना चाहिए था,उसे दूसरा कोई कर रहा है। झेंपकर मैंने विनीता के हाथ से गुलाब का फूल लेकर नाटकीय लहजे में उसे भेंट किया। लेकिन यह प्रसंग प्रहसन बन गया। कहते हैं कि पहली बार जो इतिहास होता है,वही दूसरी बार प्रहसन बन जाता है। बैंड की धुन सुनायी देने लगी। परेड शुरू हो चुकी थी। स्कूली बच्चे अपनी यूनीफार्म में सजकर मार्चपास्ट कर रहे थे। भीड़ थी लेकिन इतनी नहीं कि उसे संभालने की जरूरत हो। अधिकांशत: बच्चों के माता -पिता,उनके भाई-बहन या दादा-दादी अथवा नाना-नानी थे। बुर्जगों की अच्छी तादाद देखकर अच्छा लगा। यह महसूस हुआ कि परिवार नामक संस्था की जड़ें वहां अभी वहां मौजूद हैं। यह देखना और सुखद था कि कुछ दंपती अपने बच्चों में राष्ट्रीय बोध की भावना जागृत करने की दृष्टि से यहां आए हुए थे। मुझे भी अपने बचपन की उन दिनों की याद आई जब बाबूजी मुझे दिल्ली में पंद्रह अगस्त को लाल किला और 26 जनवरी को इंडिया गेट ले गए थे। साथ में मां थी और छोटा भाई मनोज। तब कितनी कम सुविधाएं थीं। कितने तड़के तैयार होकर आर के पुरम सेक्टर तीन से बस से हम जाते थे,यह सोचकर जहां मैं आज रोमांच से भर जाता हूं,वहीं बाबूजी के राष्ट्र प्रेम और पुत्र प्रेम के प्रति भी मन आदर भाव से भर जाता है। हम सबके लिए वह सचमुच उत्सव का दिन होता था,आजकल जबकि इसे सिर्फ छुट्टी का दिन माना जाता है। मां रात को ही पकवान बना लेती थी। समारोह के बाद इंडियागेट स्थित चिल्ड्रेन पार्क में हम सब बैठकर खाते थे। फिर हम दोनों भाई झूला झूलते थे। स्मृति भी अजीब शै है। जिन चीजों को मैं अरसे से भूला हुआ था,वे सब मौका पाते ही अपने फड़फड़ाते पंखों के साथ मेरी स्मृति के कंधों पर आकर बैठ गई थीं।

परेड में एक टोली असामान्य बच्चों की बच्चों की थी। उनमें गजब आत्मविश्वास था। दर्शकों ने तालियां बजाकर उनकी हौसला आफजायी की। अपने बच्चों को देखकर उनके प्रियजन खूब तालियां बजाते थे। फोटो खींचते थे। हवा में हाथ लहराते थे। फिर एक टुकड़ी नेत्रहीन बच्चों की आयी। पूरा वातावरण सजल हो गया। इस तरह एक -एक करके टुकड़ियां आती रहीं। तालियों-सीाटियों से लोग उनका उत्साह बढ़ाते रहे। कुछ देर बाद मुझे लगा कि धीरे -धीरे पूरी भीड़ छंट चुकी है। हमारे पांव भी धीरे-धीरे सरकने लगे। नाश्ता पच गया था। भूख से नसें मरोड़ने लगी थी। कुछ दूर चलने पर मैकडोन्लड का साइनबोर्ड दिखायी दिया। साहबजादे को यह जगह मुफीद लगी। दिक्कत सिर्फ मेरी थी। मेरे सरीखे कटट्र और खडूस के लिए फिंगर चिप्स के अलावा ऐसी कोई खाद्य सामग्री नहीं थी जिसमें प्याज न हो। फिर उसी से गुजारा करना पड़ा।

एथेंस के संसद को देखकर यूनान के महान चिंतकों के समाज,नागरिक और लोकतंत्र संबधी विचार दिमाग में गश्त लगाने लगे। सुकरात के अच्छे आदमी की परिकल्पना याद आयी। उनके अनुसार समाज में नागरिक का अच्छा होना आवश्यक ही नहीं,अनिवार्य है। उनकी मान्यता रही है कि बौद्धिक स्तर पर तर्क पद्वति से मनुष्य के जीवन सभी क्षेत्रों के मानदंड़ों एवं मर्यादाओं को निर्धारित किया जा सकता है। प्लेटो राज्य की व्यवस्था को चलाने का दायित्व बौद्धिक और नैतिक रूप से समृद्ध व्यक्तियों का मानते हैं जो अध्ययन और मनन से समाज की परिकल्पना करने में सक्षम हैं। उनके यहां व्यक्ति पूरी तरह से राज्य के अनुशासन में दिखायी देता है। इसी प्रकार एथेनी लोकतंत्र के प्रमुख प्रवक्ता पेरेक्लीज ने राज्य के नागरिक का जो आदर्श सामने रखा है,वह संभ्रंात,सुशिक्षित वर्ग का सदस्य है। इस लोकतंत्र के राज्य के हर नागरिक का दायित्व राज्य के प्रति है जिसको उसे अपने श्रम से सैनिक रूप में शासन में भाग लेकर निभाना है। प्लेटो वैचारिक स्तर पर एथेंनी लोकतंत्र को अस्वीकार करते हैं और स्पार्टा के एक विशेष वर्ग के राजतंत्र को वरीयता देते हैं। र्स्पाटा का यह कुशल वर्ग सैनिकांे का है।

प्लेटो के शिष्य अरस्तू भी राज्य (नगर राज्य) को सबसे महत्वपूर्ण व्यवस्था मानते हैं। उसे वह इस तरह व्यवस्थित और संयोजित करने पर बल देते हैं जिसमें नागरिक का समुचित विकास हो सके। वह मानते हैं कि व्यक्ति का संपूर्ण हित राज्य के कल्याण के साथ जुड़ा है। मनुष्य एक राजनीतिक प्राणी है। दूसरे शब्दों में,बिना राजतंत्र मनुष्य का जीवन व्यवस्थित,सभ्य तथा विकसित नहीं हो सकता।

मंदी की लहर और नवजवान का गुस्सा

अब शहर को अपनी तरह से देखने का मौका आ गया था। जिम के पास नक्शा था। वह एक गिरजाघर देखने चाहते थे। हम उसी तरफ निकल पड़े। नक्शा देखकर पूछते हुए हम उस छोटे से खूबसूरत चर्च के पास पहंुचे। चर्च के भीतर कोमल ठंड थी और नरम झुटपुटा था। वहां एक पवित्र शांति व्याप्त थी। कई बार पवित्रता वातावरण से सृजित होती है। वहां से निकलने का मन ही नहीं कर रहा था। बाहर आकर हम पत्थर की रेलिंग पर बैठ गए। यहां से ऊपर एक्रोपोलिस दिखायी दे रहा था। करीब ही था। हम वहां जा सकते थे लेकिन उसे हम गाइड के साथ देखना तय था।

करीब ही एक अधेड़ महिला मेजपोश बेच रही थी। जिम शायद उसे एक अच्छा खरीददार लगा। वह मेजपेश खरीदने के लिए जिम से आग्रह करने लगी। जिम ने उसे शालीनता से मना कर दिया।

जिम एक और गिरजाघर देखना चाहते थे। पास में ही वह गिरजाघर था। हम लोग उस तरफ मुड़ चले। रास्ते में पर्यटकों को रिझाने की अनेक दुकानें थीं। जिम ने अपने लिए एक टी शर्ट और अपने परिजनों के लिए कुछ उपहार खरीदे। साहबजादे को भी एक टी शर्ट पसंद आयी। पहनकर देखी तो काफी बड़ी निकली। हम लोग गिरजाघर की तरफ जा ही रहे थे कि अचानक लगा कि आगे रास्ता बंद है। एक रेस्त्रां खाली सा था। वहां जा कर पूछना चाह रहे थे कि कोने पर खड़े दो -तीन युवकों में एक जोर से गुस्से में कुछ बड़बड़ाता हुआ आया। वह ग्रीक में बोल रहा था। उसकी भाषा समझ में नहीं आ रही थी। रेस्त्रां के भीतर से एक वृद्ध महिला निकली। हम हतप्रभ थे। पता नहीं जिम को क्या सूझा,उसने उस महिला पूछा कि क्या उसे ड्रिंक मिल सकता है। बहरहाल जिम ने ड्रिंक का आर्डर दिया। हम भी साथ बैठ गए। जिम से इस आर्डर का कारण पूछा तो उसने कहा कि यहां मंदी चल रही है। सुबह से कोई ग्राहक न मिलने से शायद उस युवक को गुस्सा आ गया हो।

दरअसल जनवरी 1981 में ग्रीस यूरोपीय संघ में शामिल हुआ। तभी से उनके यहां नई आर्थिक राजनीतिक और संास्कृतिक बयार चली। वहां हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ गई। पहले ाऎृषि,पर्यटन,सांस्कृतिक विरासत,छोटे और मझौले उद्योग जैसे क्षेत्रों में ग्रीस अग्रणी था। जब तक यूरोपीय देशों से सहायता मिलती रही,इसकी अर्थव्यवस्था सुदृढ़ से सुदृढ़तर होती गई। एक तरह से यह कुछ सालों के लिए दक्षिण पूर्वी यूरोप का आर्थिक केन्द्र बन गया। उस दौर में ग्रीस से पलायन थम गया था । 2004 में विश्व ओलंपिक खेलों के आयोजन के कारण बहुत नई परियोजनाएं शुरू हुइंर्। ग्रीसवासियों की आमदनी में काफी इजाफा हुआ। विश्व में आय के मामले में इनका स्थान 25 से 29 के बीच पहुंच गया। ओलपिंक खेलों के आयोजन के बाद परियोजनाएं पूरी हो गईं,तो उन परियोजनाओं के लिए गए ऋृण से उनकी अर्थव्यवस्था चरमरा गई। आर्थिक दशा ठीक न होने पर आदमी चिड़चिड़ा हो जाता है। उस युवक की चिड़चिड़ाहट शायद इसी का नतीजा थी। जिम ने शायद इसे भांप लिया था।

बिल के भुगतान के दौरान भी उस नाराज युवक के गुस्से में कोई कमी नहीं दिख रही थी। वह एक उजड्ड नवजवान लग रहा था। गिरजाघर पास में ही था। काफी पुराना। उसकी वास्तुकला आंखों को भा रही थी। हम एक ऐसी स्ट्रीट पर पहुंच गए थे जहां स्थानीय हस्तकला की चीजें बिक रही थीं। हमने कुछ कलात्मक कांच के गिलास खरीदे। वहां जमीन पर एक युवक कुछ अजीबोगरीब किस्म के खिलौने बेच रहा था। साहबजादे को ये खेल नए और रोचक लग रहे थे। वह उससे बतियाने लगे। वह बांग्लादेशी था। साहबजादे बांग्ला में बात करने लगे। कोलकाता में बचपन बिताने का उन्हे यह बोनस मिला था। भाषा का जादू ाअ---रीवाले के वसर चढ़ कर बोलने लगा। उसने बताया कि बड़ी संख्या में बांग्लाभाषी यहां रहते हैं । उसने हमें न्योता दिया कि आप कल शाम मेरे इलाके में आइए। यहां जिस दाम पर जो चीजें मिल रही हैं,उनसे लगभग आधे दाम पर चीजें मिल जाएंगी। साहबजादे ने हामी भरी। मोबाइल नंबर लिया। फिर अपनी दीदी अंतरा के लिए एक खिलौना खरीदा। उस बांग्लादेशी ने एक खिलौना अपनी तरफ से तोहफे में दे दिया। परदेश में एक अजनबी से भाषा ने किस तरह से हमें जोड़ दिया। फिर सहसा याद आया कि एक ही धर्म के होने के होने के बावजूद भाषा के चलते बांग्लादेश किस तरह पाकिस्तान से अलग हो गया था।

हम सब शहर में भटक रहे थे। जिम नक्शे को देखकर बोले कि हम ओमेनिया स्कावयर से होते हुए मोनास्त्राकी टहलते हुए चलेंगे। हमने यहां से एक पगडंडी पकड़ी। जिम को एक महिला फिर टेबिल क्लाथ खरीदने के लिए अनुनय करने लगी। जिम मेजपोश प्रसंग को लेकर काफी परेशान हो चुके थे। वह कह रहे थे कि मेरे पास इतनी बड़ी डाइनिंग टेबिल नहीं है। मैं इसे लेकर क्या करूंगा। उन्हें हंसी आ रही थी और विस्मय भी हो रहा था कि बार -बार उन्हीं के पास मेजपोश बेचने वाले क्यों आते हैं। मैंने कहा कि आप ही संपन्न दिखते हैं,लिहाजा वह आपके पास आते हैं। एक मायने में यह सही भी था।

एथेंस में पटरियों और पगडंडियांे पर चलने का अपना अलग आनंद है। पटरियां साफ सुथरी हैं। कोई कागज का टुकड़ा भी वहां देखने को नहीं मिलता है। हर थोड़ी दूर पर डस्टबिन रखा होता है। उसी में लोग कूड़ा कर्कट फेंकते हैं। हमारे यहां जो कुछ खाता है वहीं उगल देता है चाहे पान की पीक हो या छिलके ।

दरअसल 1834 में ग्रीस की आजादी के बाद ऐथेंस को इसकी राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया। नगर के योजनाकारों ने टूटे-फूटे शहर में बड़े स्तर पर निर्माण प्रक्रिया शुरू की। कहना न होगा कि यूनान की आजादी की लड़ाई के दौरान तमाम प्राचीन इमारतों का ढांचा बिगड़ गया था। कई मीनारें ढहा दी गई थीं। एथेंस को एक राजधानी के रूप में फिर से बसाने के लिए एक्रोपोलिस के आसपास के अनेक रिहायशी मकानों को ढहा दिया गया था। हां ! इसके उत्तर में कुछ मकानों को छोड़ दिया गया था। यहां से विस्थापित परिवारों को सेंटोगेना स्क्ावयर के पास बसाया गया। प्राचीन स्मारकों को खुलापन देने की दृष्टि से बेहिसाब गिरजाघर और मकान ढहा दिए गए। अजीब लगता है, जब हमारे यहां सड़कों -रास्तों पर मंदिर-मस्जिद बना लिए जाते हैं और रास्ते रोक दिए जाते हैं। उन्हें हटाने की कौन कहे,उन्हें कोई छूने की भी हिम्मत शासन नहीं कर पाता। एथेंस के योजनाकारों ने एथेंस की भव्य और दुर्लभ विरासत के साथ ज्यादा छेड़छाड़ किए बिना इसका सौन्दर्य अविकल रखा जाए। शायद यही कारण है कि एथेंस में आधुनिकता और प्राचीनता की अनोखी झलक मिलती है।

गृहस्थी की गरमाई

वैसे तो हम ओमेनिया जाने का कार्यक्रम बना चुके थे लेकिन सही मायनों में हम शहर की नाड़ियों में बहते रक्त को महसूस करना चाहते थे। मौसम भी खुशगवार था। इस दौरान कार्तिकेय और जिम की पटरी बैठने लगी थी। वे दोनों साथ चल रहे थे। कुछ ही देर चलने पर सीढ़ियां दिखायी दीं। सीढ़ियों के अगल बगल रेस्त्रां थे। कुछ रेस्त्रां की कुर्सियां और मेंजें पटरियों पर सजीं थीं। मय और काफी के दौर चल रहे थे। युवक युवतियों का शोरगुल फिजा को रंगीन बना रहा था। हम सब पर भी इसका कुछ नशा तार हो रहा था। मन हो रहा था कि हम भी इसका हिस्सा बन जाएं। छुट्टी का दिन था,शायद इसलिए भीड़ भी काफी थी। लेकिन हम वहां ज्यादा देर नहीं रुके । जिम के मन में यह जगह बस गई । एथेंस छोड़ने के पहले उसने यहां एक बार शाम को आने का मन बना लिया।

हम ओमेनिया के रास्ते पर थे। आंखें उठती हैं। अचानक हमें बहुत बड़े क्षेत्र में खुदाई में निकला हुआ एक अधबना ढांचा दिखायी देता है। इसका इतिहास हमें पता नहीं चल पाया। इसके किनारे पटरियों पर खाने-पीने के लिए कुर्सियां और मेजें सजी हुई थीं। वेटर पर्यटकों को आदर से बुला रहा था। जिम रुक गए। हमने एक मेज छेंक ली। हमने कोल्ड ड्रिंक का आर्डर दिया। जिम ने वहां की स्थानीय ड्रिंक ओजो का। उजली धूप में भग्न अवशेषों को निरखना और उसके अतीत के बारे में कल्पना करना अच्छा लग रहा था। मुंंबई की भाग दौड़ में इतनी शांति से बैठने के कुछ पल भी नहीं मिलते। हम यहां घरेलू घेरे में आ गए थे। हमारी बातचीत निकल पड़ी। जिम ने हमारी शादी के बारे में पूछा। हमने प्रेम विवाह नहीं किया है। यही नहीं,अरेंजन्ड मैरिज होने के बावजूद 30 साल से साथ रह रहे हैं,यह जानकर उसकी आंखें कुछ विस्मय से फैल गइंर्। उसने कहा कि काश! मैंने भी अरेंन्जेड मैरिज की होती। उसने मुझसे कहा कि आप बहुत भाग्यशाली हैं कि आपको ऐसी सुंदर पत्नी मिली है जो तीस साल से आपके साथ है। बाद में पता चला कि जिम का अपनी पत्नी से तलाक हो चुका है। वह बारह वर्ष तक अपनी पत्नी के साथ रहे थे। पहली बार उनकी आंखों में अजीब सी व्यथा दिखायी पड़ी। व्यथा की पोटली खुल गयी थी जिसमें रिश्तों के पुराने चीथड़े बाहर झांक रहे थे। जिम इस समय दूसरे व्यक्ति लग रहे थे। उनका चुहूल करनेवाला रूप गायब हो गया था। कुछ क्षण बाद उनके चेहरे पर एक गरमाई सी दिखायी दी। गृहस्थी चाहे दूसरे की हो,गरमाई पहुंचाती है। ओमेनिया पहुंचने के बाद का रास्ता थोड़ा हमें पता था। गुलाब की भीनी-भीनी खुशबू और ग्रीस के राष्ट्रीय ध्वज के साथ हम होटल पहुंच गए।

रोशनी की रासलीला

शाम की स्याही फैलते ही एथेंस के एक महत्वपूर्ण स्थल लाइकाबेटस गए। एक्रोपोलिस की दुगनी ऊंचाई पर स्थित चीड़ के वृक्षों से घिरी यह एक शंक्वाकार पहाड़ी है। वैसे तो यहां जाने का रास्ता सांइटेगमा स्क्वायर के उत्तर दिशा से शुरू हो जाता है। हमारे होटल से यह स्थान करीब भी था किंतु देर हो चुकी थी। हम वहां से वापस आकर आराम भी करना चाहते थे। अत: पैदल न जाकर टैक्सी से गए। वहां ऊपर जाने के दो रास्ते थे। एक पैदल का रास्ता था और दूसरा रोप वे का। हमें लगा कि रोप वे वाले मार्ग से जाने पर शहर का नजारा एक अलग तरह से देखने को मिलेगा। अत: टैक्सीवाले को रोप वे वाले मार्ग से जाने को कहा। उसने रोप वे के मुहाने पहुंचा दिया। रोप वे के कैरियर के पास जाकर हम बेहद निराश हो गए। यह रोप वे खुला नहीं बंद था। तीन पारदर्शी कूपे थे जिनमें बैठने की कुर्सियां थी। सोते हुए जैसे किसी की नाक की घरघराहट होती है उसी तरह की आवाज निकालता हुआ रोप वे का इंजन चला। हम ऊपर गए।

वहां से रात में एथेंस एक जगमग करता हुआ जादुई नगर लग रहा था। मुझे सिर्फ एक ही शब्द बार -बार सूझ रहा था - रोशनी की रास लीला। तेज और ठंड़ी हवा के हिलोरों से शरीर कांप रहा था। हम लोग सीढ़ियां चढ़कर पहाड़ी की चोटी पर पहुंच गए। हमारे सामने रोशनी की नदी बह रही थी। सहसा जिम कुछ बेचैन नजर आए। साहबजादे को बताया कि उन्हें ऊंचाई से डर लगता है। साहबजादे ने चुटकी ली कि आप रिस्क मैनैजमेंट के विशेषज्ञ हैं लेकिन खुद रिस्क लेने से डरते हैं। उत्तर दिए बिना वह मंद-मंद मुस्कराते रहे। वहां एक छोटा सा रेस्त्रां भी था जहां कुछ गाना-बजाना चल रहा था। वहां बैठने का मन नहीं बना। हम फिर सीढ़िया चढ़कर ऊपर गए और एथेंस की खूबसूरती का मुजाहिरा करने लगे। दूर से चीजें संुदर लगती हैं लेकिन इतनी भी सुंदर लग सकती हैं,इसका अनुमान हमें कतई नहीं था। सचाई यह थी कि यहां से एथेंस विराट,मायावी और अलभ्य लग रहा था।

लौटते हुए हम रोप वे के कैरियर के सबसे आगे के कूपे में बैठे। इसमें केवल हम और विनीता थे। कैरियर चलने को ही था कि उसमें एक युगल आ गया। मुश्किल तीन या चार मिनट का सफर था। लेकिन इस युगल ने इस अल्पावधि में चुंबन लेने का इतिहास रच दिया। संकेाचवश हम उनकी ओर देख नहीं रहे थे। हालांकि उनके चुंबन लेने की आवाज इतनी तेज थी कि उसे अनसुना करना आसान नहीं था। हम असहज थे। सार्वजनिक रूप से इतनी अकुंठित रासलीला से हमारा परिचय नहीं था। सच तो यह है कि रात में नांहद में भी इन चुंबनों की आवाज मुझे सुनायी देती रही।

अलविदा एथेंस

आज यूनान में हमारा अंतिम दिन है। अगली सुबह हमें मुंबई लौटना है। एथेंस के दर्शनीय स्थलों को आज हमें देखना है । सुबह जल्दी नाश्ता करके हम अपनी टूर बस और गाइड का इंतजार कर रहे हैं। क्रिस्तआइना आती हैं और एक महिला से परिचय कराती हैं। वह हमारी आज की गाइड हैं। युवा और बेहद खूबसूरत। तराशी हुई देहयष्टि। कोमल पतले होठ। गुलाब की तरह दमकता हुआ गुलाबी चेहरा।

सबसे पहले हम संसद की ओर बढ़ते हैं। ग्रीस की संसद हम पहले देख चुके थे लेकिन उस दिन सिर्फ दूर से देखा था। ग्रीस की संसद। वहां सबसे पहले हमारी नजर अंगरक्षकों पर पड़ती है। संसद भवन के नीचे सैटगोना चौक पर अज्ञात सैनिक की मजार पर राष्ट्रपति के ये अंगरक्षक पहरा देते रहते हैं। इन संतरियों को इवजोन्स कहते हैं। ग्रीक की सशस्त्र सेना के ये एक तरह से आभिजात्य सैनिक होते हैं। अपने पारंपरिक परिधान में इवजोन्स सैनिक के स्मारक पर अहर्निश पहरा देते रहते हैं।

कार्तिकेय उन इवजोन्स सैनिकों को देखकर उनके पास चले गए। उन्होंने उनके साथ फोटो खिंचवाया। अंग्रेजी में ईवजोन्स का अर्थ है — पूर्ण रूप से सशस्त्र से सुसज्जित । इस शब्द का प्रयोग यूनान के महान कवि होमर युद्ध कौशल में निष्णात सैनिक के लिए किया है। यूनान की आजादी की लड़ाई के दौरान 1824 में ईवजोन्स सैनिकों की टुकड़ी बनायी गई थी। 1864 में यह यूनानी फौज की आभिजात्य टुकड़ी बन गई। आजकल ईवजोन्स फौजी क्रियाकलापों में हिस्सा नहीं लेते है। इनकी भूमिका केवल शोभामात्र के लिए है।

इवजोन्स की डयूटी हर घंटे पर बदलती है। डयूटी बदलने की औपचारिकता को देखने के लिए लोग उत्सुक रहते हैं। यह रोचक ढंग से होता है। इवजोन्स के पांवों को जमीन पर पटकना,फिर दूसरे को राइफल सौंपना आदि जैसी क्रियाएं बहुत दिलचस्प लगती हैं। इवजोन्स कढ़ाईदार छोटे वेस्ट कोट,चुन्नटदार चोगा,झब्बेदार टोपी,लंबी पतली पैंट और बूट पहने दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। दरअसल इनकी पोशाक यह सोचकर बनायी गई थी ताकि सैनिक पहाड़ों में आसानी से दौड़-भाग सके। ये इवजोन्स बिना हिले-डुले तनी मुद्रा में खड़े रहते हैं। कई बार बच्चे उनका ध्यान भंग करना चाहते हैं। पर्यटक भी उनके ध्यान की परीक्षा लेने के लिए उकसाते रहते हैं। कई बार बच्चे उन्हें चिढ़ाने के लिए भांति- भांति के मुंह बनाते हैं ताकि उनका ध्यान भंग किया जा सके। लेकिन शायद ही वे कभी सफल हो पाते हों। उन्हें दूर देखने और चेहरा सीधा रखने का का प्रशिक्षण मिला होता है। यह प्रशिक्षण छह महीने का होता है। एक घंटे स्थिर खड़े रहने के प्रशिक्षण के साथ ही अपने दूसरे साथी के साथ तालमेल रखने का कठोर प्रशिक्षण उन्हें दिया जाता है। इनकी उम्र 25 वर्ष के आसपास होती है। इनका कद काफी ऊंचा होता है। परेडों के अलावा स्वतंत्रता दिवस जैसे कई अन्य समारोहों में भी इन्हें देखा जाता है।

यहीं पास में एक लांग कोट पहने अधपकी दाढ़ीवाले के पास कबूतरों का जमघट लगा हुआ था। कबूतर मित्र हमारे पास आए। उनके संग- संग उनके कबूतर भी। उनके कंधों,सिर,बांहों पर कबूतर ऐसे डेरा डाले हुए थे गोया वह एक वृक्ष हो। कबूतर मित्र ने कुछ दाने हमारी ओर फेकें। कबूतर मेरी बांह-सिर पर बैठ गए। उनके गुदगुदे पंजों की हल्क्ी चुभन से पूरे शरीर में एक अजीब सी सुरसुराहट हो रही थी। मैं असहज हो रहा था। फिर कबूतरमित्र विनीता के पास आ गए। विनीता मना करती रहीं,लेकिन वह नहीं माने । ठंड से बचने के लिए विनीता ने काला शॉल ओढ़ रखा था। कबूतर मित्र के इशारे पर हालांकि जब कबूतरों ने उन पर धावा बोला तो वह कुछ घबड़ा गइंर्। उनके चेहरे पर अजीब तरह के भाव-रंग चढ़ने -उतरने लगे। साहबजादे ने उसे फोटो में उतार लिया। खाने का लालच अजनबी को भी किस तरह अपना बना लेता है,कबूतर इसका साक्षात प्रमाण थे। कबूतरों की छायाएं चारों तरफ फड़फड़ा रही थी। चारों तरफ खड़ी भीड़ इस रोमांच का आनंद उठा रही थी। वहां से हम अपनी बस में आकर बैठ गए।

बस द्वारा हम शहर से लगभग 50 फीट ऊंची जगह पर पहंुच गए। यहां पहाड़ी पर एक किला सा दिखायी दे रहा था। एथेंस का यह एक्रोपोलिस था। एक्रोपोलिस का अर्थ शहर की सबसे ऊंची जगह पर स्थित देव स्थान। यहां भी देवी एथेंना का मंदिर था। इस जगह का पार्थेनान कहा जाता था। हम अपनी टोली के साथ चढ़ने लगे। वहां तक जाने का रास्ता भी रमणीय था। सामने एक बड़ा द्वार था। वहां तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां थी। द्वार इतना भव्य था कि सब यहां फोटो खीच रहे थे। हमारी सुदर्शना गाइड बड़े विस्तार से इस ऐतिहिाास्क जगह के बारे में अत्यंत उत्साह से बता रही थीं। 13वी शताब्दी बीसी में माइसेनियनो ने इसकी 8 मीटर ऊंची दीवाल से किलाबंदी की। इस दीवाल को साअकलोपीयन दीवाल के नाम से जाना जाता है। उस दौर में शासक किले मे रहते थे और किले के आसपास छोटे नगर बसते थे। शासक अपने किले के आसपास के इलाके को अपने नियंत्रण में रखते थे। 580 बीसी में फारसवासियों ने इसे तहस-नहस कर डाला। तब एथेंसवासियो ने शपथ ली कि वे अब इसका पुर्नर्निमाण नहीं करेंगे लेकिन 33 वर्ष बाद महान शासक पेरीक्लीज ने एथेंस की गरिमा के अनुसार इसे फिर से बनवाया। एथेना का मंदिर 5वी शताब्दी बीसी में बनना शुरू हुआ।

किसी दौर में एक बार भूकंप आने से एक्रोपोलिस के उत्तरपूर्वी कोने में दरार आ गई। इस दरार में एक कुआं खोदा गया। सीढ़ियां बनायी गइंर्। जब शत्रुओं द्वारा किले को घेर लिया जाता था तो इस कुएं के पानी का उपयोग किया जाता था। इस तरह यह कुआं अंतरिक जल व्यवस्था की दृष्टि से बहुत लाभदायक था। मोरियन युद्ध के दौरान इस किले को काफी नुकसान हुआ। पार्थेनान में बारूद का भंड़ार था। वहां तोप के एक गोले के गिरने से इसका बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया था। 1975 से इसकी मरम्मत का काम अनेक वास्तुविदों की देखरेख में हो रहा है। माऊट पेंटली से लाए गए नए संंगमरमर का प्रयोग किया जा रहा है। इसके कई स्तंभों की मरम्मत हो चुकी है। एथेंना मंदिर का पुर्नर्निर्माण भी हो चुका है। यूनानी सभ्यता भारतीय मुख्यत: व्यक्तिगत पहचान,सभ्य व्यवस्था और राजनीतिक न्याय पर केन्द्रित रही है। संपूर्ण पश्चिम सभ्यता यूनानी सभ्यता का अनुकरण करती रही है जिसमें यह मान्यता रही है कि सृष्टि ईश्वर द्वारा नहीं बल्कि प्रकृति के निर्वैयक्तिक नियमों द्वारा संचालित होती है। यूनानी सभ्यता केवल नगर-राज्य अथवा पोलिस से जुड़ी रही है। उनकी पक्की भूगोलिक सीमाएं होती है जो राज्य द्वारा शासित होता है। इसी कारण यूनान सभ्यता में नगर संस्कृति का बड़ा महत्व है।

हमारी गाइड अपने पर्यटन दौरे के अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल पर ले आयीं। यह ओलम्पिक स्टेडियम था। इसकी भव्यता देखते बनती थी।ओलम्पिक के बारे में उन्होंने संक्षेप में बताया।

प्राचीन कथाओं के अनुसार ओलम्पिस ग्रीक देवताओं के पिता जेयस के सम्मान में आयोजित किया जाता था जिनका मुख्य उपासना स्थल प्राचीन ओलम्पिया था और उनका घर उत्तरी ग्रीस में स्थित अेालम्पस पहाड़ के शिखर पर स्थित था। कहते हैं कि पहली स्पर्धा प्रागतैहिासिक काल में पेलोप नामक हीरो द्वारा शुरू हुई थी जिनके नाम पर ग्रीस का दक्षिण हिस्सा रखा गया है। यह स्पर्धा रथ दौड़ की थी। इसमें पेलोप और पीसा के राजा ने प्राचीन ओलम्पिया के निकट भाग लिया था। दौड़ में जीतनेवाले को पुरस्कार के रूप में राजा की पुत्री हिप्पोडिया से विवाह करना था। पेलोप और हिप्पोडिया एक दूसरे से प्रेम करते थे। उन्होंने मिलकर एक षडयंत्र के तहत पीसा के राजा के रथ के पहिए की कीली ढीली कर दी ताकि दौड़ के बीच में रथ का पहिया निकल जाए। कहते हैं कि ऐसा ही घटित हुआ।

रथ की बात चली है तो यहां यह याद आना स्वभाविक है कि रथ का निर्माण और प्रयोग हमारे यहां से सुमेर से होता हुआ यूनान पहुंचा है। हालांकि इस संबंध में इतिहासकारों में विवाद रहा है। सामरिक रथ का जन्म सुमेर में हुआ।

ओलम्पिक खेलों का इतिहास 776 बीसी से शुरू माना जाता था। रोमन शासक थिशोडियस ने 396 ए डी में इस खेल के आयोजन पर प्रतिबंध लगाया था। एथेंस स्थित स्टेडियम का निर्माण चौथी शताब्दी में हुआ था। बाद में रोमन शासक हैडरियन ने इसका पुनर्निमाण कराया। यह एक कथा है जिसे मैंने बचपन में अपनी पाठ्य पुस्तक में पढ़ा था। मैराथन दौड़ की। एक संदेश वाहक के सम्मान में ओलम्पिक में 42 किमी की दौड़ शुरू की गई। कथा कुछ इस प्रकार हैं। 490 बीसी का बात है। फारस के साथ एथेंसवासियों का युद्ध चल रहा था। युद्ध में एथेंस की विजय मिल गयी थी। युद्ध क्षेत्र से एथेंस की दूरी बहुत अधिक थी। इसकी खबर संदेश वाहक को देनी थी ताकि निराशा में एथेंसवासी कोई गलत निर्णय न ले लें। संदेशवाहक ने नगर के द्वार पर पहुंचकर सबसे पहले मिलने वाले व्यक्ति का खबर दी कि हम जीत गए। दौड़कर आने के कारण उस संदेशवाहक की वहीं मृत्यु हो गई। उन्हीं की स्मृति में मैराथन दौड़ स्पर्धा शुरू की गई।

आधुनिक ओलम्पिक की शुरुआत 1896 में हुई। इसमें 13 देशों के 311 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। विश्व के सभी देशों में शांति और बंधुत्व को बढ़ावा देने के लिए इसे आयोजित किया जाता है। फ्रांस के खिलाड़ी बैरन पियरे डी कॉबरटिन और ग्रीक के दो बड़े व्यापारी इवेंजिलोस जापास और जार्ज एवेरोफ ने इस खेल को आयोजित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इनमें से एक की मूर्ति स्टेडियम का सामने लगी है। इनमें से सर्वाधिक आर्थिक सहायता जार्ज एवेरोफ ने दी। इस आयोजन का आनंद लगभग एक लाख लोगों ने उठाया था। उन दिनों ओलम्पिक में महिलाओं के लिए कोई स्पर्धा नहीं थी। फिर तैराकी से महिलाओं की भागीदारी की शुरुआत हुई।

यहां हमारी गाइड ने हमसे विदा ली। हमने एक्रोपोलिस संग्रहालय देखने का निर्णय किया।

एक्रोपोलिस की ढलान पर 14000 वर्ग मीटर में फैले एक्रोपोलिस संग्रहालय आम आदमी के लिए जून 2009 से खोला गया। इसमें उत्खनन के दौरान पायी गइंर् लगभग 4000 वस्तुएं प्रदर्शन के लिए रखी हुई हैं। यहां मेट्रो द्वारा भी पहंुचा जा सकता है। पैराथिनॉन से पैदल भी आया जा सकता है। संग्रहालय में चार तल हैं। प्रवेश द्वार वाले तल पर आडिटोयिम और प्रदर्शन के लिए जगह बनी हुई थी। यहां कुछ बच्चे फिल्म देख रहे थे। म्यूजियम के पहले तल पर एक्रोपोलिस की ढलान पर मिली वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं। इस बड़े तल आयताकार हॉल का फर्श ढलुवां बना है जो चट्टान पर चढ़ाई की याद दिलाता है। पहले तीन तलों पर प्राचीन वस्तुएं प्रदर्शन के लिए रखी हैं। दूसरे तल पर अन्य एक्रोपोलिस,एथेना नाइक टेंपल और प्राचीन एथेस में पायी गई वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं। चौथे तल पर संग्रहालय का बिक्री केन्द्र ,काफे और कार्यालय स्थित हैं। ऊंचे खंभों पर स्थित हॉल की भव्यता देखते बनती थी। सबसे आकर्षक पारदर्शी शीशे का फर्श लगता था जहां भूतल में स्थित उत्खनन में मिली वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं। पारदर्शी शीशे से तहखाने में प्राचीन वस्तुओं को देखना एक अनोखा अनुभव था। साहबजादे मोबइल से संगहालय की तस्वीरें उतारना चाहते थे लेकिन इसकी अनुमति नहीं थी।

संग्रहालय से निकलकर हम घूमने -फिरने की तरंग में आ गए। कुछ दूर चले तो पटरियों पर कुछ ब्लैक युवक बैग चश्में जींस आदि बेच रहे थे। हमने उन्हें उलट-पुलट कर देखा। सब चीन में बनी वस्तुएं थीं। कुछ बैग सुंदर थे। तभी देखा कि वे दुकानदार भाग रहे है जैसे मुंबई में पुलिस को देखकर पटरीवाले भागते हैं। एक पुलिसवाला पीछा कर रहा था। एक ब्लैक को उसने पकड़ लिया। मुझे लगा कि हाशिए पर रहनेवालों की हालत हर जगह खराब रहती है चाहे वह भारत हो या एथेंस । कुछ आगे बढ़े तो मैकडोनल्ड दिखायी दिया। कुछ खाने -पीने का मन हो रहा था। हम कोल्ड ड्रिंक़ पी रहे थे कि एक लड़की मांगने आ गई। वह ग्रीक में मदद मांग रही थी। पास में बैठे एक ग्रीक बुजुर्ग को बुरा लगा। उन्होंने उसे डपटा। उसने उससे कहा कि हम उनके मेहमान हैं। उनसे बातचीत शुरू हो गई। भारतीय बताने पर बातचीत का सिलसिला चल पड़ा। उन्होंने अत्यंत उत्साह से बताया कि भारत की योग विद्या सेहत के लिए कितनी मुफीद है। वह प्रतिदिन योग करते हैं। भारत की इस उपलब्धि पर हमें खुशी हुई। वहां से आगे बढ़े तो एक मॉल मिला। हम यहां किसी मॉल में नहीं गए थे। दूसरे, कुछ ग्रीक रचनाकारों की किताबें अंग्रेजी में चाहता था। मॉल में पुस्तकों का एक विशाल खंड था। लेकिन वहां लगभग सभी किताबें ग्रीक में थीं। एक शेल्फ में अंग्रेजी की किताबें थीं जिनमें अधिकांश पेग्विन से प्रकाशित थीं । इनमें कुछ किताबें हमारे पास थीं। हमने वाल्टर बैंजामिन के बचपन के संस्मरणों पर एक किताब खरीदी। ग्रीस के आधुनिक कवियों के कविता संग्रह खोज रहा था। लेकिन कोई मिला नहीं। खासतौर से ग्रीक के महान कवि यानिस रित्सोस का काव्य संग्रह खोज रहा था। ग्रीक भाषा में वे उपलब्ध थे लेकिन अंग्रेजी में नहीं।

दिन का आलोक कम हो रहा था। हम होटल की ओर पैदल चल दिए। रास्ते में संतरे के पेड़ थे। संतरों को देखकर लालच आ रहा था। लेकिन क्रिस्तयाइना ने बताया था कि ये संतरे कड़वे होते हैं। इस बीच लेडीज बैग की कई दुकानें देखीं। कपड़े देखे। विनीता ने कुछ कपड़े और बैग खरीदे। सभी जगह चीन का माल अटा पड़ा था। हम चकित थे कि चीन ने किस तरह सस्ती और खूबसूरत वस्तुएं बनाकर विश्व बाजार में अपना दबदबा बना रखा है। हम होटल पहुंचते हैं। बिखरा सामान ठीक करते हैं।

सुबह क्रूज़ से ग्रीस के द्वीपों के सफ़र के लिए ज़ल्दी निकलना है।