अर्चना की थाली में सजे रोली-अक्षत / सुधा गुप्ता
श्री रमेश कुमार सोनी, सहायक शिक्षक, शासकीय आदर्श उच्चतर मा. शाला, बसना, जिला-महासमुन्द (छत्तीसगढ़) के प्रथम हाइकु-संग्रह 'रोली-अक्षत' की प्रस्तावित पाण्डुलिपि पढ़ने को मिली। एक आदर्श शिक्षक के रूप में श्री सोनी ने प्रशंसनीय मानक स्थापित किए हैं। उनके उत्कृष्ट शैक्षिक कैरियर में एकाधिक बार 'रा. से. यो.शिविर सम्मान' एवं जिला स्तर पर 'सर्वश्रेष्ठ शिक्षक' सम्मान जहाँ कर्त्तव्य के प्रति समर्पित एक उत्तरदायित्व से भरपूर, उत्साही, देशभक्त शिक्षक एवं सचेत नागरिक की सुन्दर छवि प्रस्तुत करता है, वहीं, 'सृजन-शिक्षक सम्मान' तथा 'छत्तीसगढ़ स्तरीय नवोदित' रचनाकार सम्मान'माँ शारदा के पावन मन्दिर की देहरी पर पूजा कि थाली में' रोली-अक्षत'लिये अर्चना-दीप आलोकित किये एक उदग्र, उत्कण्ठित साहित्य साधक की' भावी यश-संभावनाओं का संकेत देते हैं। श्री सोनी ने 'रोली-अक्षत' हाइकु-संग्रह में हिन्दी में तीन-सौ हाइकु प्रथम बार पुस्तकाकार प्रकाशनार्थ सजाए हैं। पर्याप्त परिश्रम किया है। हाइकुकार ने अपने मनोभावों को ईमानदारी के साथ, अकृत्रिम, सहज रूप में, बिना विशेष अलंकरण के, प्रस्तुत किया है।
भीतर कई शीर्षक हैं। 'रोली-अक्षत' के अन्तर्गत अनेक हाइकु सार-गर्भित एवं प्रभावी हैं जो पारम्परिक भारतीय पारिवारिक रिश्तों एवं प्रतीकों की सुगन्ध बिखेरते हैं। 'अन्धेर नगरी' तथा 'सियासत का खेल' शीर्षक से दिये गये हाइकुओं में व्यंग्य की अच्छी फुहार है। 'आकाश गंगा' में संजोये गये हाइकु प्रकृति का मनोरम दृश्य उपस्थित करते हैं:
मुक्त गगन / तारों की राजकन्या / खिलखिलाए (पृष्ठ-28)
नीली छतरी / हरी है वसुन्धरा / आकाश गंगा (पृष्ठ 25)
हाइकुकार को अपने ग्राम्यांचल से, प्राकृतिक परिवेश से सहज, अटूट लगाव है:
ये रोटी-साग / कुएँ का मीठा जल / अमृतमय (पृष्ठ 30)
हैं अनमोल / मीठे इमली आम / पीपल छाँव (पृष्ठ 29)
परिन्दे लौटे / घोंसले की तरफ़ / शाम हो गई (पृष्ठ 31)
'एक भारती' के अन्तर्गत रखे गये हाइकु, अखण्ड भारत के प्रति एकनिष्ठ आस्था एवं प्रेम का अंकन करने में पूरी-पूरी तरह समर्थ हैं:
विविध रंग / बोलियाँ, धर्म, जाति / एक भारती (पृष्ठ 34)
एक निशान / हल और बन्दूक / हिन्द की शाम (वही)
रंगोत्सव में / लाल, हरा, सफ़ेद / तिरंगा प्यारा (वही)
रखना लाज / दूध और चूड़ी की / हिन्दी के वीर (पृष्ठ 36)
'काजल की कोठरी' शीर्षक के अन्तर्गत प्रस्तुत जो हाइकु हैं, उनमें जीवन दर्शन भरपूर है:
आया है खाली / किराए का मकान / जाएगा खाली (पृष्ठ 56)
लकड़ी कथा / झूला, पालकी, लाठी / जीवन संगी (पृष्ठ 57)
उपर्युक्त हाइकु की जितनी प्रशंसा कि जाए, कम है। 'झूला, पालकी और लाठी' क्रमानुसार शैशव, यौवन, वार्धक्य का संकेत करके अर्थ-चमत्कार उत्पन्न करता है। सभी हाइकु वर्ण-क्रम की दृष्टि से निर्दोष हैं। विश्वास है कि श्री सोनी हिन्दी हाइकुकार के रूप में भविष्य में माँ भारती की अधिकाधिक सेवा करेंगे।