अर्जुन कपूर और आलिया भट्ट की प्रेम कहानी / जयप्रकाश चौकसे

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अर्जुन कपूर और आलिया भट्ट की प्रेम कहानी
प्रकाशन तिथि : 05 मार्च 2014


आजकल फिल्म उद्योग में एक युवा प्रेम-कथा चर्चित हो रही है। कहा जा रहा है कि महेश भट्ट की सुपुत्री आलिया और बोनी कपूर के सुपुत्र अर्जुन के बीच मधुर संबंध बन रहे हैं। आलिया ने भी स्वीकार किया है कि उन्हें अर्जुन के साथ वक्त बिताना अच्छा लगता है परंतु वह मेरा प्रेमी या पति नहीं है और हम प्राय: लड़ते रहते हैं। इसे प्यार की नोकझोंक भी कहा जा सकता है। अर्जुन कपूर और आलिया भट्ट 'टू स्टेट्स' नामक फिल्म में अभिनय कर रहे हैं जो एक पंजाबी युवा और तमिल भाषा बोलने वाली लड़की के बीच की प्रेम-कथा है जिसके लिए आलिया ने तमिल सीखी है परंतु फिल्म में तमिल का प्रयोग चेन्नई एक्सप्रेस की भांति ही इस ढंग से किया गया है कि अखिल भारतीय दर्शक को उसके कारण आशय समझने में कोई कष्ट नहीं होगा। प्राय: फिल्मों वाली भाषा शास्त्रीय मानदंड पर शुद्ध भाषा नहीं होती, वह एक लोकप्रिय संस्करण होता है। फिल्म की मिक्सी में पिसकर भाषाओं का रूप ही बदल जाता है। दरअसल आज कल अखबारों और पत्रिकाओं में भाषा की शुद्धता कोई मुद्दा ही नहीं रह गया, सभी जगह एक लोकप्रिय परोसी जा रही है। जब खाने वालों को एतराज नहीं तो अन्य लोगों को अपनी पंडिताई झाडऩे का अधिकार भी नहीं है। इसी तरह अपसंस्कृति अपने पैर पसारती है।

अर्जुन कपूर तो पंजाबी हैं, इसलिए उन्हें आलिया से कम कठिनाई होगी। ज्ञातव्य है कि अर्जुन बोनी और उनकी पहली पत्नी मोना का सुपुत्र है और माता-पिता दोनों पक्षों से पंजाबी उसकी विरासत हुई। यह बात अलग है कि उसकी सौतेली मां श्रीदेवी दक्षिण भारत की है। आजकल युवा वर्ग किसी भी प्रदेश व क्षेत्र के रहने वाले हों परंतु उनकी विचार शैली और भाषा में आधुनिकता का पुट उनके टेक्नोलॉजी के प्रेम के कारण है। उन्हें बर्गर और पिज्जा ही खाना है अत: पंजाबी नायक का छोले भटूरे पसंद करना या नायिका का इडली डोसा खाना आवश्यक नहीं है। दोनों ही युवा जींस पहनते है, अत: कपड़ों को लेकर भी द्वन्द्व नहीं रह गया है।

कोई चार दशक पूर्व कमल हसन और रति अग्निहोत्री की फिल्म 'एक दूजे के लिए' अत्यंत सफल रही थी और उसमें आनंद बक्षी के गीत तथा लक्ष्मी-प्यारे का मधुर संगीत था। 'टू स्टेट्स' उस सफल फिल्म का नया संस्करण नहीं है वरन् यह अलग कथा है। प्रेम कथाओं में प्राय: बाधा आर्थिक स्थितियों के अंतर या धर्म अलग होने के कारण आती है परंतु उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच संस्कृति का अंतर भी है परंतु प्रेम-कथा इस तरह की बाधाओं को आसानी से पार कर जाती है और भाषा तो अब कोई मुद्दा ही नहीं रहा क्योंकि युवा वर्ग अंग्रेजी बोलना पसंद करता है। 'विकी डोनर' में पंजाबी मुंडा और बंगला कन्या के बीच प्रेम की कथा थी।

दरअसल यह विषय पहाड़ों से भी पुराना है परंतु सब कुछ प्रस्तुतीकरण की ताजगी पर निर्भर करता है। इस तरह की प्रेम कथाओं में धर्म के अंतर पर फिल्म बनाना आज के असहिष्णु समाज में कठिन है परंतु धन्य है। 'रांझना' का फिल्मकार जो इस तरह की कथा का निर्वाह सफलता के साथ कर गया। 'रांझना' दर्शक के हृदय को ऐसे बांध लेती है कि उसे अपनी धार्मिक कट्टरता पर जाने का अवसर ही नहीं मिलता। फिल्म में एक लहर होती है जिसमें सारे पूर्वग्रह और जिद डूब जाते है परंतु इस तरह की लहर रचना हर फिल्मकार के बस का नहीं है।

आज देश में प्रादेशिकता अपने कट्टरतम स्वरूप में सामने आ रही है क्योंकि देश में अखिल भारतीय कद के नेताओं की कमी है और बौने नेताओं ने देश पर अपना बौनापन लादने का काम किया है। भारतवर्ष की विविधत और विविधता में एकता एक असाधारण राष्ट्रीय सफलता रही है। सत्यजीत राय ने भी स्वीकार किया था कि विविधता वाले देश में ऐसी फिल्में बनाना जो सभी प्रदेशों के दर्शकों को पसंद आए, यह आसान काम नहीं है। हिन्दुस्तानी सिनेमा की अखिल भारतीयता को समाजशास्त्र के विद्वानों ने कभी गंभीरता से नहीं लिया परंतु सारे सामाजिक और राजनैतिक परिवर्तनों के बाद यह कायम रही है। मनोरंजन के मामले में देश में जबरदस्त एकमत है क्योंकि इसमें सता का कोई खेल नहीं है। मनोरंजन जगत में हमेशा धर्म निरपेक्षता रही है और कथाएं भी समाजवादी रही है। इस चुनाव में पहली बार पूंजीवादी खेल पूरी मजबूती से उभरकर सामने आ रहा है