अर्जुन कपूर का टैटू 'मां' एक बयान है / जयप्रकाश चौकसे

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अर्जुन कपूर का टैटू 'मां' एक बयान है
प्रकाशन तिथि : 12 अप्रैल 2014


उदय चोपड़ा और नरगिस फखरी की प्रेम कथा में नरगिस के हॉलीवुड स्वप्न के कारण बाधा आ गई है परंतु अर्जुन कपूर और आलिया भट्ट की प्रेम कथा मंथर गति से चल रही है। रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण की प्रेम कथा में खिलंदड़ दीपिका का हिडन एजेंडा तो केवल अपने प्रथम प्रेमी रणबीर कपूर के मन में ईष्र्या जगाना है। सारी फिल्मी प्रेम कथाएं एकतरफा होती है क्योंकि फिल्मों में रमा आदमी परदे पर प्रेम का अभिनय करते-करते प्रेम करने की एकाग्रता और जुनून से अनभिज्ञ हो जाते हैं। उनका असली प्रेम उनकी परदे पर प्रस्तुत छवियां हैं। अर्जुन कपूर अपनी 'इश्कजादे' की नायिका परिणीती चोपड़ा से एक पेंच लड़ा चुके हैं परंतु यह चोपड़ा छोकरी मांजे से सुती पतंग को भी कच्ची डोर वाले क्षेत्र से काट देती है।

बहरहाल अर्जुन कपूर ने अपने शरीर पर 'मां' का गुदना (टैटू) करा लिया है। सैफ ने करीना का गुदना किया था और युवा वर्ग प्राय: प्रेमिकाओं के नाम ही का टैटू कराते हैं। गुलशेर शानी के बस्तर जीवन पर प्रकाश डालने वाले उपन्यास 'सांप-सीढ़ी' या बाद में 'कस्तूरी' के नाम से प्रकाशित पुस्तक में एक मां को अपनी कमसिन बेटी के विवाहित हो जाने की इच्छा का ज्ञान उस समय होता है जब वह मेले में अपनी जांघ पर गुदना कराकर आती है क्योंकि उस क्षेत्र की कन्याओं का यह विश्वास है कि गुदना प्रेम का मार्ग खोल देता है। वे अच्छे पति के लिए सोलह सावन के उपवास नहीं करतीं और इस बात का प्रयोग शैलेन्द्र ने 'संगम' के गीत में किया जब नायिका का अंतरा वे इस तरह लिखते है 'करते-करते कितने सावन बीत गए, जाने कब इन आंखों का शर्माना जायेगा, हर दिल जो प्यार करेगा, गाना गायेगा'। बहरहाल आदिवासी जीवन का 'गुदना' अब महानगरों के युवा वर्ग ने अपना लिया है। इस तरह मनुष्य नहीं परम्पराओं का भी अपहरण होता है, अब 'गुदना' का तो बलात्कार ही हो रहा है।

अर्जुन कपूर द्वारा अपने शरीर पर 'मां' गुदवाना उनका एक पारिवारिक बयान भी है। ज्ञातव्य है कि बोनी कपूर और मोना का सुपुत्र है अर्जुन और उसके पिता की दूसरी पत्नी श्री देवी है जिनकी बेटियों से अधिक अर्जुन की मित्रता अपने चाचा अनिल कपूर की सुपुत्री सोनम से है। मोना की कैंसर से मृत्यु कुछ समय पूर्व हुई है और वह अपने 'इश्कजादे' की फिल्म देख नहीं पाई। दो शादियों वाले परिवारों में इस तरह की समस्याएं होती है। सनी देवल कहां हेमा की पुत्रियों को अपनी सगी बहन की तरह प्यार कर पाये।

यह मातृ-प्रेम कई तरह से अभिव्यक्त होता है। मसलन मध्यम साइज के शहरों और कस्बों में अनेक मकानों के नाम मातृछाया या इसी आशय के शब्दों द्वारा होता है। माता का रिश्ता अम्लिकल कॉर्ड के कटने के बाद भी बना रहता है। इसी सामाजिक तथ्य को सिनेमाई अमरता सलीम-जावेद ने फिल्म 'दीवार' के संवाद द्वारा स्थापित की है जब अपनी समृद्धि के बखान करने वाले बड़े भाई के पूछने पर कि छोटे तेरा पास क्या है और जवाब मिलता है 'मां'। संभवत: यह लघुतम संवाद है जो सबसे अधिक लोकप्रिय है और संगीतकार एआर रहमान ने ऑस्कर ग्रहण करते समय भी कहा था 'मेरे पास मां है'। आजकल खूब दिखाई जा रही एक विज्ञापन फिल्म में मकान मालिक चोर से उसका मोबाइल लेकर कहता है कि पुलिस को नहीं तेरी मां को फोन कर रहा हूं कि बेटा कितना बड़ा चोर हो गया है। इस तरह जब बहुत बीमार होते हैं और दर्द की सेज पर किसी करवट चैन नहीं आता तब नीम बेहोशी में भी आपके मुंह से मां निकलता है। हम कभी सघन पीड़ा के क्षणों में पिता का स्मरण नहीं करते।

आज के दौर में माताओं के दायित्व बढ़ गए हैं। जाने किन देशों की शिक्षा प्रणाली को अपना कर हमने भारी-भरकम पाठ्यक्रम बनाए हैं और अपने वजन के बराबर वजन का बस्ता लाद बच्चे स्कूल जाते हैं। आज शिक्षा के अतिरिक्त चारित्रिक गुण बच्चों में विकसित करना बहुत अहमियत रखता है। आज समाज के वातावरण में बच्चे उपभोगवाद की ओर खिंचे जा रहे हैं और मां को ही उन्हें बाजार, विज्ञापन और जीवन शैली का आदी होने से बचाना है। इस जीवन शैली का अंतिम लक्ष्य तो मनुष्य को मन से सामंतवादी और अय्याश बनाता है, यह निर्भय बनाता है और मां सिर्फ टैटू तथा मकान तक सिमट जाती है।