अर्थ–परिवर्तन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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गांधीजी स्वर्ग से भ्रमण के लिए आए. चलते–चलते उन्होंने सोचा–" अपने आदर्श बन्दरों से मिलता चलूँ। सजीव रूप धारण करने पर कुछ तो परिवर्तन हो गया होगा।

गांधीजी उन्हें देखकर प्रफुल्लित हो उठे–"तुमने मेरी शिक्षा को जीवन में उतारा है?"

"हाँ बापू।" पहला बोला–"मैं आँखें बन्दकिए रहता हूँ इसीलिए मुझे न्याय कर भार सौंप दिया है। अब मुझे उचित–अनुचित का भेद मालूम ही नहीं पड़ता।"

बापू की शांत दृष्टि दूसरे बंदर की ओर उठी। वह फुसफुसाया–"आपके जाने के बाद सब कुछ सहा परन्तु विवशतावशचुप रहना पड़ता है। मैं आम आदमी हूँ।"

बिना प्रतीक्षा किए तीसरा बन्दर बोल पड़ा–"बापू, आपके आशीर्वाद से मजे में हूँ। कोई कुछ भी कहे, अपने राम को सुनता ही नहीं। इस वर्ष मुझे मंत्री बना दिया गया है।"

गांधीजी अपनी शिक्षाओं का बदला हुआ अर्थ सुनकर दंग रह गए.