अलबेला सिम्योन या काली औरतें / लिअनीद अन्द्रयेइफ़ / अल्पना दाश
अचानक वहाँ मौन छा गया। छुरी-काँटों की खनखनाहट, कपड़ों की सरसराहट, दूर बैठे लोगों की बातचीत और वेटरों के फुरतीले क़दमों के तले चरमराते फ़र्श की आवाज़ों के बीच एक धीमी और नरम-सी आवाज़ सुनाई पड़ी :
— मुझे तो अफ़्रीकी लड़कियाँ बहुत पसन्द हैं !
यह सुनकर वोद्का का घूँट पीते-पीते अनतोन इवानअविच को ठसकी लग गई ; मेज़ पर से जूठे बर्तन उठाते हुए वेटर ने उस आदमी पर उत्सुकता भरी नज़र डाली और वहाँ मौजूद लोग भी मुड़कर उसकी दिशा में देखने लगे। उन्हें वहाँ छोटे चेहरे और रंगहीन छोटी आँखोंवाला सिम्योन कत्येलनिकफ़ बैठा हुआ दिखाई दिया, जिसकी मूँछों के किनारे वोद्का और सूप में भीगे हुए थे, लेकिन सर के बाल करीने से कढ़े हुए थे। सभी लोग पूरे पाँच साल से सिम्योन को जानते हैं; वे एक ही दफ़्तर में नौकरी करते हैं, हर दिन आते-जाते उनके बीच दुआ-सलाम और कुछ हलकी-फुलकी बातचीत भी होती है। हर महीने की बीस तारीख़ को तनख़्वाह मिलने पर आज ही की तरह सब एक साथ खाना खाने रेस्तराँ जाते हैं। लेकिन आज पहली बार इन लोगों का ध्यान सिम्योन पर गया है। आज उसकी बात सुनकर सब हैरान हैं। सिम्योन के साथियों को आज पता चला कि वह काफ़ी स्मार्ट है। बस, अगर उसके चेहरे की झाइयों को अनदेखा कर दिया जाए, तो उसके कपड़े भी सबसे अच्छे होते हैं और उसकी कमीज़ का ऊँचा झक-सफ़ेद कॉलर भी, भले ही वह बुकरम का क्यों न बना हो। बड़े बाबू अनतोन इवानअविच का चेहरा गले में लगी ठसकी की वजह से अभी भी लाल था। उन्होंने गला साफ़ करके शर्मिन्दा-से बैठे सिम्योन को अपनी कौतूहल भरी आँखों से देखा और ज़ोर से पूछा :
— यानी आपको, सिम्योन, क्या … माफ़ कीजिए, पूरा नाम क्या है आपका ?
— सिम्योन वसीलिविच — कत्येलनिकफ़ ने उनको याद दिलाया। सिम्योन ने अपने नाम में जुड़े पिता के नाम ‘वसीलिविच’ पर ख़ास ज़ोर दिया क्योंकि आमतौर पर लोग बोलते हुए इसका उच्चारण ‘वसीलिच’ कर देते हैं, जो अपेक्षाकृत कम आदरसूचक माना जाता है । सिम्योन की गरिमा और स्वाभिमान को प्रकट करती इस बात से सभी प्रभावित हुए।
— यानी सिम्योन वसीलिविच … आपको अफ़्रीका की लड़कियाँ पसन्द हैं ?
— जी हाँ, मुझे वे बेहद पसन्द हैं।
हालाँकि उसकी आवाज़ थोड़ी शान्त और मुरझाई-सी थी लेकिन सुनने में काफ़ी सुखद लग रही थी। अनतोन इवानअविच ने अपने नीचे के होंठ को इस तरह दबाया कि उनकी सफ़ेद मूँछें उनकी लाल नाक से चिपकी दिखाई देने लगीं। उन्होंने आँखें फैलाकर अपने सभी साथियों की ओर देखा और कुछ देर रुककर ठहाका लगाते हुए बोले :
— हा, हा, हा ! इनको काली लड़कियाँ पसन्द हैं ! हा, हा, हा !
उनके साथ-साथ सभी हँसने लगे। बल्कि वह मोटा और अक्सर उदास रहनेवाला पोल्ज़िकफ़ भी, जिसे हँसना ही नहीं आता था, एकदम खुलकर हँसने लगा :
— हा, हा, हा !
सिम्योन भी धीमे से हँस दिया। वह ख़ुशी और शरम से लाल हो रहा था। साथ ही उसे हलका-सा डर भी था कि उसकी इस बात से कहीं कोई समस्या न खड़ी हो जाए।
— क्या वाक़ई ? — अनतोन इवानअविच ने हँसते हुए पूछा।
— जी, बिलकुल ! उनमें, उन काली लड़कियों में, एक अजीब-सा जोशीलापन होता है। या, कैसे समझाऊँ आपको, उनमें एक अनोखा-सा आकर्षण होता है। कुछ एक्ज़ॉटिक होता है।
— एक्ज़ॉटिक ?
फिर से सब हँसने लगे, लेकिन साथ ही साथ उनको यह समझ में आने लगा था कि सिम्योन वसीलिविच एक पढ़े-लिखे और होशियार आदमी हैं, जो एक्ज़ॉटिक जैसे ग़ैरमामूली लफ़्ज़ भी जानते हैं। इसके बाद सब लोग बड़ी गर्मजोशी से यह साबित करने में लग गए कि अफ्रीक़ा की लड़कियों को प्यार करना मुमकिन ही नहीं है क्योंकि अव्वल तो दिखने में वे बहुत काली होती हैं, उनका शरीर तिलहा होता है और उनके होंठ बहुत ही मोटे होते हैं। दूसरे उनकी अजीब-सी बू होती है।
— लेकिन मुझे तो वही लड़कियाँ पसन्द हैं ! — सिम्योन वसीलिविच ने अपनी बात पर डटे हुए विनम्रतापूर्वक कहा।
— चलो, जैसी इनकी मर्ज़ी — अनतोन इवानअविच ने सोचा। — मैं तो काली शक़लवाली से अच्छा किसी बकरी से प्यार करना पसन्द करूँगा।
अब तक सब समझ चुके थे कि उनके बीच उनके साथी के रूप में एक ऐसा निराला आदमी मौजूद है, जो पूरी संजीदगी से अफ़्रीका की काली लड़कियों को पसन्द करता है। ख़ुशी के इस मौक़े पर आधा दर्ज़न बियर और मँगवा ली गई। आस-पास वाली मेज़ों के लोगों को ज़रा उपेक्षा से देखा जाने लगा क्योंकि उनके बीच ऐसा निराला, एकदम अलग क़िस्म का आदमी मौजूद नहीं था। इस मेज़ पर सिम्योन के साथी ज़ोर-ज़ोर से और कुछ ढीठ ढंग से बातें करने लगे। सिम्योन वसीलिविच अब सिगरेट सुलगाने के लिए भी ख़ुद माचिस नहीं जला रहे थे, बल्कि इस काम के लिए भी हर बार वेटर का इंतज़ार करते थे। जब बियर ख़तम हो गई और कुछ और बियर मँगवाई जा चुकी, तो मोटे पोल्ज़िकफ़ ने शिकायत भरे अन्दाज़ में कहा :
— कत्येलनिकफ़ साहब, हम अभी तक आपके साथ ‘आप-आप’ क्यों कर रहे हैं। देखा जाए, तो हम एक ही दफ़्तर में कोल्हू के बैल बने हुए हैं। हमको तो कायदे से भाईचारे के तौर पर एक-दूसरे की बाँह में बाँह डालकर (ब्रूडरशाफ़्ट) एक बड़ा पैग पीना चाहिए।
— जी, ज़रूर। बड़ी ख़ुशी से। — सिम्योन ने सहमति जताई।
वह तो ख़ुशी से खिल उठा था। आख़िर उसके साथियों ने उसकी तरफ़ ध्यान दिया, उसकी अहमियत समझी। वह तो डर रहा था कि उसकी बात सुनकर लोग उसको मारने पर आमादा हो जाएँगे। इसलिए उसने अपना एक हाथ छाती पर रख लिया था, ताकि ज़रूरत पड़ने पर अपने चेहरे और ख़ूबसूरती से कढ़े हुए बालों का बचाव कर सके। लेकिन यहाँ तो मामला उल्टा हो गया था। पोल्ज़िकफ़ के बाद उसने एक-एक करके त्रोइत्स्की और नवअसेलफ़ तथा दूसरे सभी साथियों के साथ ब्रूडरशाफ़्ट पैग पिया जिसके बाद रिवाज के हिसाब से उनको चूमा भी। ख़ुशी के मारे उसने उन सभी को इतनी ज़ोर से चूमा कि उसके होंठ सूज गए।
अनतोन इवानअविच ने इस तरह का भाईचारा-पैग तो नहीं पिया, लेकिन उन्होंने बड़ी विनम्रता से कहा :
— आपका कभी हमारी तरफ़ आना हो तो हमारे घर भी पधारिए। भले ही आप अफ़्रीका की काली लड़कियों को पसन्द करते हों, लेकिन मेरी बेटियों को आपसे मिलकर अच्छा लगेगा। वैसे, क्या आप सचमुच … ?
सिम्योन वसीलिविच ने विदा लेते हुए अपना सर झुकाया। हालाँकि बियर के असर से वे ज़रा लड़खड़ा रहे थे, लेकिन सभी ने इस बात पर ध्यान दिया कि वे कितने शिष्ट हैं। अनतोन इवानअविच के जाने के बाद भी वे लोग कुछ और देर तक पीते रहे। रेस्तराँ से निकलकर वे सभी शोर मचाते हुए नेवस्की प्रॉस्पेक्ट पर बड़ा-सा घेरा बनाकर चलते रहे। वे इस तरह से फैलकर चल रहे थे कि सामने से आनेवाले लोग ख़ुद उनको रास्ता देने पर मजबूर हो रहे थे।
सिम्योन वसीलिविच अपने एक सहकर्मी त्रोइत्स्की और दुखी-से नज़र आ रहे पोल्ज़िकफ़ के बीच, उनके हाथों में हाथ डाले चल रहे थे और उनको समझा रहे थे :
— नहीं, पोल्ज़िकफ़ भाई, तुम यह समझ नहीं पा रहे हो। अफ़्रीकन लड़कियों में कुछ बहुत ख़ास, यानी कुछ रोमांचक होता है।
— मैं समझना भी नहीं चाहता — पोल्ज़िकफ़ कह रहा था — काली लड़की तो, बस, काली होती है, और कुछ नहीं।
— नहीं, यह समझने के लिए आदमी का नज़रिया बिलकुल अलग होना चाहिए। देखो भाई, काली लड़कियाँ न, वे…
सिम्योन ने इससे पहले अफ़्रीकी लड़कियों के बारे में कभी सोचा भी नहीं था इसलिए वह यह नहीं बता पा रहा था कि आख़िर उनकी कौनसी बात उसे ज़्यादा पसन्द है। इसलिए उसने फिर वही दोहरा दिया :
— अरे मेरे भाई, उनमें आग होती है जो दूर से ही जलती नज़र आती है।
— अरे पोल्ज़िकफ़, तुम इतनी बहस क्यों कर रहे हो ! — त्रोइत्स्की ने नाराज़गी से कहा। वह अपने बड़े-बड़े गमबूट ठकठकाते हुए चल रहा था।
— बड़े अड़ियल हो तुम। फ़ालतू बहस कर रहे हो। तुमको कुछ पसन्द नहीं आता। अरे, वह जानता है कि उसे वे लड़कियाँ क्यों अच्छी लगती हैं। चलो सिम्योन, तुम अपने दिल की सुनो, किसी बेवक़ूफ़ की बात पर ध्यान मत दो। तुम एकदम बढ़िया आदमी हो, लेकिन लोग तुम्हारी बुराई करते फिरेंगे। भाड़ में जाएँ सब।
— काली लड़कियाँ, बस, काली होती हैं। यही तो कह रहा हूँ मैं। — पोल्ज़िकफ़ अपनी बात पर डटा रहा।
— नहीं, तुमको यह बात बिलकुल समझ में नहीं आ रही…— सिम्योन ने उसे धीरे से समझाया। वे ऐसे ही लड़खड़ाते, हल्ला मचाते, एक-दूसरे को धकियाते हुए और बहस करते हुए आगे चलते रहे। उस वक़्त वे सब बेहद ख़ुश नज़र आ रहे थे।
एक ही हफ़्ते में सिम्योन के पूरे विभाग में ख़बर फैल गई कि कत्येलनिकफ़ साहब को अफ़्रीकी लड़कियाँ बड़ीअच्छी लगती हैं और महीने भर में दूसरे विभागों के चपरासियों, क्लर्कों और वहाँ काम कराने के लिए आने-जानेवाले लोगों के बीच भी काना-फूसी होने लगी। दूसरे विभागों में काम करनेवाली लड़कियाँ भी चोर नज़रों से सिम्योन को देखने लगीं। सिम्योन शान्ति से बैठा रहता था मानो सोच रहा हो कि उसको देखने और उससे मिलने आनेवाले लोग उसकी तारीफ़ करेंगे या पिटाई ?
एक बार वह अनतोन इवानअविच के यहाँ बैठा था। मेज़ पर दमिश्क से आया हुआ ख़ूबसूरत मेज़पोश बिछा हुआ था। वह वहाँ चेरी के मुरब्बे के साथ चाय पी रहा था और बता रहा था कि अफ़्रीकन लड़कियों में कौनसी ऐसी ख़ास बात होती है, जिससे वे उसे इतनी लाजवाब लगती हैं। सिम्योन की बातें सुनकर वहाँ बैठी रूसी लड़कियाँ शरमा रही थीं।अनतोन इवानअविच की बेटी नास्तिनका भी वहाँ थी। उसको उपन्यास पढ़ने का बहुत शौक़ था। अपनी आँखें सिकोड़कर और अपने घुँघराले बालों को हाथों से सँवारते हुए हैरानी से मन ही मन उसने कहा : — आख़िर ऐसा क्यों ?
इन सिम्योन साहब से मिलकर सभी बहुत प्रसन्न हुए। सभी बड़ी दिलचस्पी से उनकी बातें सुन रहे थे। लेकिन उनके जाते ही सब उनके प्रति सहानुभूति जताने लगे। नास्तिनका ने तो उनको विनाशकारी वासना से पीड़ित आदमी ही मान लिया था। वैसे तो सिम्योन को नास्तिनका बहुत अच्छी लगी थी, लेकिन चूँकि अब तक यह बात फैल चुकी थी कि उनको अफ़्रीकन लड़कियाँ पसन्द हैं, इसलिए उसके सामने वे अपने एहसास का खुलकर इज़हार नहीं कर पाए। वहाँ मौजूद महिलाओं के प्रति उनका व्यवहार विनम्र तो था लेकिन वे उनसे थोड़ी दूरी बनाए हुए थे। घर लौटते हुए रास्ते भर वे काली अफ़्रीकन लड़कियों के बारे में ही सोचते रहे। सोच रहे थे कि असल में वे कितनी काली, तिलही और बदसूरत होती हैं। जब उन्होंने कल्पना की कि वे एक अफ़्रीकन लड़की को चूम रहे हैं, तो अचानक उनके सीने में चुभन-सी होने लगी।
उनको रोना आ रहा था। अचानक उनको अपनी माँ की याद आने लगी। उनका मन हुआ कि माँ को ख़त लिखकर गाँव से बुला लें। लेकिन रात भर में उन्होंने अपनी इस बेहाली पर काबू पा लिया और सुबह जब वे दफ़्तर पहुँचे तो उनके रूप, उनकी लाल टाई और हाव-भाव से यह साफ़ ज़ाहिर हो रहा था कि यह आदमी अफ़्रीकन लड़कियों को बेहद पसन्द करता है।
उन्हीं दिनों कुछ ऐसा हुआ कि अनतोन इवानअविच की बदौलत सिम्योन की ज़िन्दगी में एक बड़ा बदलाव आया — उन्होंने सिम्योन को एक थिएटर-रिपोर्टर से मिलवाया। एक दिन थिएटर-रिपोर्टर उसे एक कैफ़े में ले गया, जहाँ आगंतुकों के लिए संगीतकार लाइव म्यूज़िक पेश करते थे। उसने सिम्योन को वहाँ के डायरेक्टर जैक दुकलो से मिलवाया। उसने सिम्योन का परिचय देते हुए कहा —
— इन साहब को — उसने संकोचपूर्वक ज़रा झुककर खड़े हुए सिम्योन को आगे किया — इनको अफ़्रीका की काली लड़कियाँ बहुत पसन्द हैं। बस, सिर्फ़ अफ़्रीकी लड़कियाँ। उनके अलावा कोई नहीं । बड़े निरालेआदमी हैं ये। एकदम अलग ही क़िस्म के। आप इनको ज़रूर प्रोत्साहित कीजिए, क्योंकि इन जैसे लोगों को ही हर काम में प्रोत्साहन मिलना चाहिए। — यह कहते हुए रिपोर्टर ने स्नेह से सिम्योन की पीठ थपथपाई।
कैफ़े का डायरेक्टर एक फ़्रांसीसी था, जिसकी मूँछें पहलवानों की तरह बड़ी-बड़ी थीं। उसने रिपोर्टर की बात सुनकर कुछ देर छत की ओर देखा, मानो उसे वहाँ कुछ दिख गया हो। फिर सिम्योन की ओर देखकर आँख मारते हुए बोला :
— वाह ! इनको अफ़्रीकी लड़कियाँ अच्छी लगती हैं, यह तो बहुत बढ़िया बात है। फ़िलहाल हमारे कैफ़े में तीन बेहद ख़ूबसूरत अफ़्रीकी लड़कियाँ काम कर रही हैं।
यह सुनकर पहले तो सिम्योन घबरा गया। लेकिन मिस्टर जैक अपने कैफ़े की तारीफ़ करने में इतने मगन थे कि उन्होंने उसपर ध्यान नहीं दिया। इसी बीच रिपोर्टर ने उनसे आग्रह किया :
— मिस्टर जैक, आप तो इन्हें इस पूरे सीज़न के लिए अपने कैफ़े-थिएटर का पास दे दीजिए।
बस, उसी शाम से सिम्योन ने मिस कोर्रेट नाम की एक अफ़्रीकी लड़की से मिलना-जुलना शुरू कर दिया। उसकी बड़ी-बड़ी आँखें दो प्यालियों की तरह लग रही थीं और उनमें पुतलियाँ ऐसे चमक रही थीं, मानों उन दोनों प्यालियों में एक-एक आलू-बुख़ारा रखा हुआ हो। जब वह उन गहरी आँखों से सिम्योन पर तीर चलाती थी तो उसके हाथ-पैर ठण्डे पड़ जाते थे। वह जल्दी से अपना चुपड़ा हुआ सर झुका लेता, जो कैफ़े की तेज़ रोशनी के नीचे और ज़्यादा चमकने लगता। वह इतना दुखी हो जाता कि उसको गाँव में रह रही अपनी माँ की याद आने लगती। मिस कोर्रेट को बिलकुल रूसी नहीं आती थी, लेकिन उन दोनों की ख़ुशनसीबी थी कि उनको अक्सर ऐसे लोग मिल जाते थे, जो बड़ी ख़ुशी से एक-दूसरे को समझने में इस जोड़े की मदद कर दिया करते थे। वे बड़े उत्साह से सिम्योन के लिए कोर्रेट की बातों का अनुवाद करते । कोर्रेट सिम्योन से कहती थी —
मैंने इतना सज्जन और इतना ख़ूबसूरत आदमी पहले कभी नहीं देखा। और फिर ख़ुशी से वह अपने काले सर को तेज़ी से हिलाने लगती। वह सिम्योन की ओर गहरी नज़र से देखती और पियानो की कुंजियों की तरह दिखनेवाले अपने चौड़े और सफ़ेद दाँत निपोर देती। सफ़ेद प्यालियों की तरह चमकने वाली उसकी आँखें सिम्योन के चहरे पर टिक जातीं।
यह सुनकर सिम्योन बेहोशी की-सी हालत में अपना सर खुजाते-खुजाते बुदबुदाता और दुभाषिए से कहता — क्या आप इनसे मेरी यह बात कह सकते हैं कि अफ़्रीकी लड़कियाँ बेहद रोमांचक होती हैं, आग के गोले की तरह गरम !
इन दोनों के चारों तरफ़ मौजूद सभी लोग उन दोनों की बातें सुनकर ख़ुश हो जाते। जब सिम्योन ने पहली बार उस काली लड़की का हाथ चूमा तो उनको देखने के लिए बहुत-से दर्शक जमा हो गए। उनके बीच एक बूढ़ा रूसी व्यापारी भी था जो यह देखकर इतना भावुक हो उठा कि उसकी आँखें नम हो गईं। इसके बाद शैम्पेन खोली गई।
इस दिन के बाद सिम्योन का दिल लगातार कई दिन तक धड़कता रहा। उसके लिए यह मौक़ा इतना तकलीफ़देह था कि वह दो दिन तक दफ़्तर नहीं जा पाया। उसे बार-बार अपनी माँ की याद आ रही थी। वह अपनी माँ को कोर्रेट के बारे में बताना चाहता था। उसने माँ को चिट्ठी लिखनी चाही, लेकिन वह इतना विकल था कि चिट्ठी में “प्रिय माँ” के आगे कुछ न लिख पाता था । आकुलता के मारे वह अपनी माँ को चिट्ठी लिखकर कोर्रेट के बारे में नहीं बता पाया। दो दिन बाद अपने मन पर काबू पाकर जब सिम्योन अपने दफ़्तर गया तो उसके अफ़सर ने उसे अपने केबिन में तलब किया । अफ़सर के पास जाने से पहले सिम्योन ने अपने बालों में कंघी फिराई । पिछले दो दिनों से उसने अपने बाल नहीं काढ़े थे। इसलिए बाल बिगड़कर खड़े हुए थे। फिर उसने अपनी मूँछों के दोनों सिरे सँवारे, ताकि बोलने में कोई दिक्कत न हो और डरते-डरते बॉस के केबिन में घुस गया। अफ़सर ने उसे देखकर कहा — मैंने सुना है कि आप…. यह कहते हुए अफ़सर रुक गया। फिर अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला — क्या यह सच है कि आपको अफ़्रीकी लड़कियाँ बहुत भाती हैं ?
— जी, जनरल साहब !
जनरल साहब की नज़रें सिम्योन के सर के बालों पर टिकी हुई थीं। उसके बालों की दो लटें सर पर खड़ी हो गई थीं। साहब ने ज़रा हैरानी से तारीफ़ भरे लहजे में पूछा — अरे, लेकिन ऐसा क्यों है ? आपको सिर्फ़ अफ़्रीकी लड़कियाँ ही क्यों पसन्द हैं ?
— मुझे नहीं मालूम, जनरल साहब ! — सिम्योन ने शरमाते हुए जवाब दिया । असल में वह घबरा गया था।
— अरे, ऐसा कैसे ? अगर आप ही को नहीं पता तो भला किसको पता होगा ? भई देखिए, आप बिलकुल भी शरमाइए मत। मुझे तो अपने मातहतों में हर तरह की पहल करने की बात अच्छी लगती है, बशर्ते कि उससे कोई कानून न टूट रहा हो। आप मुझे सच-सच बताइए, अगर आपके बाबूजी आपसे पूछते कि आपको अफ़्रीका की काली लड़कियाँ क्यों पसन्द हैं तो आप उनको क्या जवाब देते ?
— साहब, उनमें मुझे एक तरह का अनोखापन नज़र आता है।
उसी शाम इंग्लिश क्लब में दूसरे जनरलों के साथ ताश खेलते हुए और अपने मोटे गोरे हाथों से पत्ते बाँटते हुए उन्होंने बड़ी सहजता से कहा :
— मेरे दफ़्तर में एक क्लर्क है, जिसे काली अफ़्रीकी लड़कियाँ बहुत भाती हैं। ज़रा सोचिए, एक आम क्लर्क काली बीवी के साथ घूम रहा है…।
उनकी बात सुनकर उनके साथ ताश खेल रहे बाक़ी तीन जनरलों को उनसे ईर्ष्या होने लगी। उनमें से हरेक के दफ़्तर में अलग-अलग ओहदों पर बहुत सारे लोग थे, लेकिन उनमें कोई ख़ासियत नहीं थी। उनमें कोई निरालापन या अनोखापन नहीं था और उनमें से कोई सिम्योन की तरह नामी-गिरामी भी नहीं था। उनमें कोई ऐसी ख़ास बात नहीं थी कि उनके बारे में चार जनरल बात करें । जनरल अनअतोली कुछ देर तक सोचते रहे और फिर अपनी चाल चलकर बोले — हमारे मेजर को ही लीजिए। उसकी दाढ़ी आधी काली और आधी लाल है।
जनरल अनअतोली की बात सबने सुन ली और चुप रहे। इस मेजर को सभी लोग देख चुके थे और यह कोई बड़ी बात नहीं थी कि उसकी आधी दाढ़ी लाल और आधी काली है। वह बूढ़ा हो रहा है तो अपनी सफ़ेद दाढ़ी पर मेहंदी लगा लेता होगा। न जाने कितने लोग अपने बाल रँगते हैं। लेकिन सिम्योन जैसा ख़ास आदमी तो रूस में शायद ही कोई होगा, जिसे ख़ुद गोरा होने के बावजूद काली अफ़्रीकी लड़कियाँ पसन्द हैं। और उसका यह रुझान, बेशक, उसके निरालेपन को साबित करता है। सिम्योन के अफ़सर आगे बताने लगे — उसका कहना है कि अफ़्रीकी लड़कियों में कुछ एक्ज़ॉटिक होता है।
विभाग नम्बर दो के एक ऐसे अनोखे क्लर्क की ख़बर ने सिम्योन को राजधानी के सरकारी हलकों में काफ़ी लोकप्रिय बना दिया। और जैसा कि अक्सर होता है, इस ख़बर से मशहूर होने की तमन्ना रखनेवाले कई नाकामयाब और निकम्मे नकलची पैदा हो गए। उनमें विभाग नम्बर छह का एक सफ़ेद बालोंवाला क्लर्क भी था, जो इस विभाग में पिछले अट्ठाइस साल से काम कर रहा था। उसने भी सार्वजनिक रूप से यह घोषणा कर दी कि वह कुत्ते की तरह भौंक सकता है। उसकी इस बात पर बहुत हँसी उड़ाई जाने लगी और हर विभाग केलोग उसे देखकर न सिर्फ़ कुत्ते की तरह भौंकने, बल्कि सुअर की तरह घुरघुराने और घोड़े की तरह हिनहिनाने भी लगे। जब इस छेड़-छाड़ से वह परेशान हो गया तो इतना शर्मिन्दा हुआ कि हताशा में वह दो हफ़्ते तक शराब के नशे में डूबा रहा। वह इतना बेहाल हो गया था कि इस दौरान छुट्टी की अरज़ी देना भी भूल गया, जबकि पिछले अट्ठाइस सालों में उसने एक बार भी नागा नहीं किया था।
दफ़्तर के एक दूसरे नौजवान अधिकारी ने चारों तरफ़ यह बात फैला दी कि आजकल एक चीनी डिप्लोमैट की बीवी से उसका इश्क़ चल रहा है। इस तरह कुछ समय के लिए वह लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने में कामयाब हो गया। लेकिन तजुर्बेकार लोग तो उड़ती चिड़िया पहचानते हैं। उन्होंने आसानी से पहचान लिया कि वह बेवक़ूफ़ बना रहा है। इस तरह क़िस्मत का मारा वह नौजवान अधिकारी भी सिम्योन के सामने चारों खाने चित्त हो गया।
मशहूर होने की ख़्वाहिश रखनेवाले ऐसे ही कुछ और लोगों ने भी कुछ और नाक़ामयाब कोशिशें कीं । वैसे इस तरह की कोशिशें करनेवाले ज़्यादातर लोग नौजवान ही थे। लेकिन सिम्योन से होड़ करने की कोशिश सभी मामलों में नाकामयाब रही। एक जवान क्लर्क ने तो इस दौड़ में अपने विभाग की आला अफ़सरानी से ही गुस्ताख़ी कर डाली। लेकिन अपनी बदतमीज़ी की वजह से वह नौकरी से हाथ धो बैठा।
लेकिन कुछ ऐसे लोग भी सामने आए, जो सिम्योन का विरोध भी करने लगे। उनका कहना था कि सिम्योन को अफ़्रीकी लड़कियों के बारे में कुछ पता ही नहीं है।
इस बात पर सिम्योन ने अपने वरिष्ठ अफ़सरों से अनुमति लेकर एक अख़बार में अपना इंटरव्यू छपवा दिया, जिसमें उसने ज़ोर-शोर से यह बताया था कि काली लड़कियाँ गोरी लड़कियों की मुकाबले क्यों अनोखी और मनमोहक होती हैं। इस इंटरव्यू के बाद सिम्योन का दिपदिपाता हुआ सितारा एक नई रोशनी से चमक उठा।
अब वह अपने अफ़सर अनतोन इवानअविच के यहाँ होनेवाली दावतों में सबसे चहेता मेहमान हो गया था । अनतोन इवानअविच की बेटी नास्तिनका, जो सिम्योन पर फ़िदा हो गई थी, अब इस बात को लेकर परेशान हो रही थी कि सिम्योन उससे शादी कैसे करेगा क्योंकि वह तो अफ़्रीकी लड़कियों को पसंद करता है और सब इस बात को जानते हैं। इस बीच सिम्योन ख़ुद को अहम आदमी मानने लगा था। दूसरों को देखकर उसके मन में यह एहसास तारी हो जाता था कि वह समाज में अब नामी-गिरामी हो चुका है। सिम्योन ख़ुद भी इस बात को समझता था कि अब नास्तिनका जैसी ख़ूबसूरत और तहज़ीबदार लड़की उसके नसीब में नहीं है, हालाँकि वह उसे बेहद चाहता है। उस मनहूस मिस कोर्रेट से तो वह बेहद नफ़रत करने लगा था ।
मौसम बदल रहा था। वसन्त आ गया था। अचानक ईस्टर से पहले यह ख़बर फैल गई कि सिम्योन मिस कोर्रेट से शादी कर रहा है। लेकिन शादी करने से पहले कैथोलिक मिस कोर्रेट अपना सम्प्रदाय बदलकर ऑर्थोडॉक्स ईसाई धर्म अपनाने जा रही है। शादी के बाद वह जैक दुकलो की नौकरी छोड़ देगी। यह भी पता चला कि शादी में सिम्योन के पिता की सारी रस्में ख़ुद जनरल साहब निभाएँगे।
सिम्योन की शादी की बात सुनकर उसके सहयोगियों और सहकर्मियों ने उसे बधाई देनी शुरू कर दी। इसके जवाब में सिम्योन लोगों के सामने विनम्रता से झुक जाता था। लेकिन अब तक उसका अहम् पहले की बनिस्बत काफ़ी बढ़ गया था।
इस बार अनतोन इवानअविच के घर में जो पार्टी रखी गई थी, वह सिम्योन की शादी से पहले आख़िरी पार्टी थी। सभी मेहमान उससे ऐसे पेश आ रहे थे मानो वह कोई हीरो हो । बस, एक नास्तिनका ही थी, जो पार्टी के दौरान थोड़ी-थोड़ी देर में अपने मन का बोझ हलका करने के लिए कमरे में जाकर रो लेती थी। हालाँकि रोने से उसका मेकअप ख़राब हो जाता था और उसे अपने चेहरे पर पाउडर लगाकर उसे सँवारना पड़ता था ।
बातचीत करते-करते खाना खाने का समय हो गया। जब सब भोजन करने बैठे तो लोगों ने दूल्हे की भूमिका में आ चुके सिम्योन को शुभकामनाएँ देनी शुरू कर दीं और उसकी सेहत के लिए जाम पर जाम पिए। इस बीच अनतोन इवानअविच का मूड कुछ मज़ाकिया हो गया था। इसलिए उन्होंने सिम्योन से पूछा :
— भाई, मेरी समझ में एक बात नहीं आई, तुम्हारे बच्चे आख़िर किस रंग के होंगे ?
— धारीदार — पोल्ज़िकफ़ ने बड़े ही उदासी भरे लहजे में कहा।
— अरे, भला धारीदार कैसे होंगे ? — सब मेहमान हैरानी से खुसुर-पुसुर करने लगे।
— बस ऐसे — एक पट्टी काली और एक पट्टी सफ़ेद, फिर एक पट्टी काली और एक पट्टी सफ़ेद — पोल्ज़िकफ़ ने कुछ उदास-सा होते हुए सबको अपनी बात समझाई। असल में उसे अपने दोस्त पर बेहद तरस आ रहा था।
— नहीं, ऐसा नहीं हो सकता — सिम्योन नाराज़गी से बोला। उसका चेहरा इस बेइज़्ज़ती की वजह से पीला पड़ गया ।
यह हँसी-मज़ाक सुनकर नास्तिनका का चेहरा भी सफ़ेद हो गया था। सुबकते हुए वह फिर अपने कमरे में भाग गई । उसकी इस हरकत ने सबका ध्यान अपनी और खींचा और वहाँ फिर से खुसुर-पुसुर शुरू हो गई।
आख़िर सिम्योन और कोर्रेट की शादी हो गई। शादी के बाद कोई दो साल तक नवदम्पति का जीवन काफ़ी सुख से बीता। उन दोनों से मिलकर उनके सभी परिचित बेहद ख़ुश होते थे। शादी के बाद उन दोनों को एक बार जनरल साहब ने भी अपने घर दावत पर बुलाया। जब सिम्योन के पहले बच्चे का जन्म हुआ तो लोगों ने उसे बधाइयों से लाद दिया। दफ्तर से उसे उपहार के रूप में एक बड़ी राशि दी गई और उसका तुरंत प्रमोशन करके उसे तीन इंक्रीमेण्ट भी दे दिए गए। अब वह अपने विभाग नम्बर चार में हेड क्लर्क बन गया था ।
उसका बच्चा साँवले रंग का था और काफ़ी खूबसूरत भी था, लेकिन सिम्योन को अब अपने परिवार से ज़्यादा लगाव नहीं रह गया था, हालाँकि सभी के सामने वह यह गाता फिरता था कि अपनी बीवी और बच्चे के बिना वह एक पल भी नहीं रह पाता है। उनके बिना उसका जीवन नीरस-सा हो जाता है। मगर असलियत यह थी कि उसको दफ़्तर से घर लौटने की कोई जल्दी नहीं रहती थी। यहाँ तक कि घर पहुँचकर दरवाज़े की घण्टी भी वह काफ़ी समय लेकर बड़े आराम से बजाता था। और जब दरवाज़े पर अपनी काली बीवी को देखता तो उसके मन में कुढ़न पैदा हो जाती। उसका जी उदास हो जाता। ख़ासकर जब वह अपने साथियों और दोस्तों की गोरी बीवियों और गोरे बच्चों को देखता तो उसे लगता कि वे लोग कितने खुशनसीब हैं। उसके मन में एक चिढ़-सी पैदा हो गई थी। और वह ख़ुद नहीं समझ पाता था कि ऐसा क्यों है।
दिखावे के लिए वह अभी भी अपनी बीवी को बड़े जानलेवा अन्दाज़ में — मेरी जान — कहकर बुलाता था और कभी-कभी बच्चे के साथ खेलता था। अक्सर बीवी के आग्रह पर वह अपने मोठे होंठवाले साँवले बच्चे की देख-रेख भी करता था। कभी-कभी जब बच्चा उसकी गोद में होता और वह उसे अपनी बाहों में झुला रहा होता तो पता नहीं क्यों अचानक उसके मन में यह बात आती कि बच्चा बेध्यानी में उसके हाथ से छूट भी तो सकता है !
बच्चा दो साल का हो चुका था। अचानक एक दिन सिम्योन को ठण्ड लग गई। उसे पहले बुखार आया और फिर पता नहीं कैसे टाइफ़ाइड हो गया। डाक्टरों ने तो यही बताया कि सिम्योन का टाइफ़ाइड अपनी लास्ट स्टेज पर पहुँच चुका है और उसके बचने की कोई सम्भावना नहीं है। यह मालूम होने पर सिम्योन ने अपने गिरजे के प्रमुख पादरी को अपने यहाँ बुलवा भेजा । पादरी ने उसके घर पहुँचकर मिस कोर्रेट से मुलाक़ात की और बड़ी जिज्ञासा से उसे देखते हुए अपनी सफ़ेद दाढ़ी पर हाथ फेरा। फिर हुँकार-सी भरते हुए बोले :
— हम्म, अच्छा।
कोर्रेट यह नहीं समझ पाई कि पादरी साहब क्या कहना चाहते हैं।
ज़ाहिर है कि पादरी भी सिम्योन की काफ़ी इज़्ज़त करते थे और वे जानते थे कि सिम्योन समाज में इतना नामी-गिरामी क्यों है । हालाँकि वे सिम्योन के नाम कमाने के इस ढंग को बड़ा पाप मानते थे । पादरी ने सिम्योन को देखकर प्रार्थना की और अपने सीने पर सलीब का निशान बनाया। सिम्योन ने पादरी से कुछ कहना चाहा तो पादरी साहब उसकी ओर झुक गए। सिम्योन कुछ बुदबुदाया। पादरी को ऐसा लगा जैसे उसने कहा हो — मैं इन काले लोगों से नफ़रत करता हूँ ! पादरी ने उससे पूछा — क्या कहना चाहते हो ? ज़रा ज़ोर से कहो !
उसने पास बैठी बीवी के आँसुओं से भीगे काले चेहरे पर एक नज़र डाली और फिर धीरे से कहा :
— फ़ादर, मैं काली औरतों को बेहद पसन्द करता हूँ। उनमें कुछ बेहद एक्ज़ॉटिक होता है।
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अल्पना दाश
भाषा एवं पाठ सम्पादन : अनिल जनविजय
मूल रूसी भाषा में इस कहानी का नाम है —’अरिगिनालनि चिलाव्येक’ (Леонид Андреев — Оригинальный человек)