अलमस्त सलमान की दबंगई / जयप्रकाश चौकसे
अलमस्त सलमान की दबंगई
प्रकाशन तिथि : 22 अगस्त 2012
बॉक्स ऑफिस सिनेमा का भाग्य विधाता है। फिल्म निर्माण एक महंगी प्रक्रिया है और पूंजी निवेशक का धन मय ब्याज के वापस आना न्यूनतम आवश्यकता है। इस तथ्य के बावजूद गुजश्ता सदी में अनेक फिल्मकारों ने बॉक्स ऑफिस की परवाह किए बिना महान फिल्मों की रचना की है, परंतु श्रेष्ठतम उदाहरण तो भारत के सर्वकालिक महान फिल्मकार सत्यजीत राय हैं, जिनकी सभी फिल्मों ने अपनी लागत और आंशिक मुनाफा अर्जित किया है। अनेक बार गुणवत्ता एवं सामाजिक सोद्देश्यता वाली गंभीर फिल्में बॉक्स ऑफिस पर भी सफल रही हैं और हकीकत तो यह है कि सर्वकालिक अधिकतम आय अर्जित करने वाली फिल्मों की सूची में अधिकतम फिल्में लीक से हटकर हैं, जैसे 'आवारा', 'प्यासा', 'मधुमति', 'मुगल-ए-आजम', 'गंगा जमना', 'लगे रहो मुन्नाभाई', 'लगान' और '३ इडियट्स' इत्यादि। हालांकि इस सूची में 'हम आपके हैं कौन', 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' और 'शोले' जैसी कुछ फॉर्मूला फिल्में भी हैं।
आज फिल्म उद्योग में एक छोटा-सा तबका है, जिसका विचार है कि सलमान खान की फिल्मों की सफलता का आधार मुस्लिम दर्शक वर्ग है। यह विचार गलत है और इसमें गहरे सांप्रदायिक संकेत हैं। 'एक था टाइगर' का पहला दिन रमजान का महत्वपूर्ण रोजे का दिन था, परंतु फिल्म ने ३३ करोड़ रुपए कमाए और अमेरिका तथा कनाडा में २५ लाख डॉलर अर्जित किए। ज्ञातव्य है कि कुछ वर्ष पूर्व ईद के दिन ही सलमान खान की 'जानेमन' असफल रही थी और इतने वर्षों से शाहरुख खान की फिल्में दीपावली पर सफलता अर्जित करती रही हैं। सारांश यह कि बॉक्स ऑफिस पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष है। सलमान खान की 'मैंने प्यार किया', 'हम आपके हैं कौन', 'जुड़वा' इत्यादि फिल्में ईद पर नहीं प्रदर्शित होकर भी सफल रही हैं।
दरअसल उत्सवप्रिय भारत में फिल्म देखना त्योहार मनाने का ही एक हिस्सा है और इससे कलाकार या फिल्मकार का मजहब कहीं नहीं जुड़ा है। राजेश खन्ना के शिखर दिनों में ईद पर प्रदर्शित उनकी फिल्में खूब सफल रही हैं। दिलीप कुमार की फिल्मों के प्रदर्शन पर उनकी कामयाबी के लिए मुसलमानों ने दुआ की है, परंतु दिलीप साहब ने अपनी लगभग सारी फिल्मों में मुस्लिम नायक की भूमिका नहीं की। वह कभी राम बने, कभी श्याम तो कभी गोपी। केवल 'मुगल-ए-आजम' में वह शहजादा सलीम थे, परंतु टाइटिल रोल में उनके पिता अकबर की भूमिका में तो पृथ्वीराज कपूर थे, जिन्होंने अपनी पहली सफल फिल्म 'सीता' में राम की भूमिका की थी।
'एक था टाइगर' ने प्रदर्शन के पांचवें दिन अर्थात रोजे के आखिरी दिवस पर लगभग २४ करोड़ रुपए अर्जित किए, जबकि ईद के दिन २२ करोड़ कमाए। अत: दर्शकों को धर्म के आधार पर बांटने का प्रयास ही गलत है। 'एक था टाइगर' से मिलती-जुलती 'एजेंट विनोद' सैफ अली खान की विफलता थी, अत: यह नहीं कहा जा सकता मुस्लिम दर्शक मुसलमान सितारे की फिल्म देखने जाते हैं। 'राम तेरी गंगा मैली' इंदौर के मुस्लिम-बहुल क्षेत्र की एक टॉकीज में बाईस हफ्ते तक चली और प्राय: प्रांगण में बुर्कानशीं औरतें दिखाई देती थीं, क्योंकि वह नदी और नारी पर अत्याचार की फिल्म थी।
ज्ञातव्य है कि एक दौर में 'बुनियाद', 'रामायण' और 'महाभारत' के प्रसारण के समय भारत की तरह पाकिस्तान की सड़कों पर भी सन्नाटा होता था। मनोरंजन न तो धर्मप्रधान होता है और न ही सरहदों में बंधता है।
सलमान खान के टेलीविजन शो 'दस का दम' के बाद अवाम में उनकी छवि बेहतर हुई और बाद में उन्होंने पांच फिल्मों में एक किस्म के अलमस्त नायक की भूमिकाएं कीं। उनकी भाव-भंगिमा और चाल-ढाल में एक किस्म की दबंगई थी, जिसे अवाम ने पसंद किया क्योंकि आधुनिक जीवन के दबाव और तनाव में वैसा नायक उनकी दमित इच्छाओं का निर्वाह करता है, जैसे अमिताभ बच्चन सातवें-आठवें दशक में सामाजिक आक्रोश का प्रतिनिधित्व करते थे। आज सलमान सबसे अधिक लोकप्रिय सितारे हैं और इस लोकप्रियता को धार्मिक आधार देना गलत है। विगत सौ सालों से फिल्म उद्योग धर्मनिरपेक्ष ही रहा है और इसे तोडऩे के प्रयास कुछ स्वार्थी और सफलता को येन-केन-प्रकारेण हासिल करने वाले हाशिए पर अटके लोग करते हैं, क्योंकि उनका मुख्य उद्देश्य किसी भी संकरी गली से सफलता के दायरे में घुसने का है।