अळोच / सत्यनारायण सोनी

Gadya Kosh से
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21 अप्रैल, 2002 परलीका बापड़ां रो है नीं, छोरो गमग्यो। पांच ई साल रो है ओऽ! आपड़लै भालै जिडोÓक। बापड़ी माऊ में के बीतती होसी! नां ओऽ, मेरो तो भोत पेट बळै। हैं ओऽ, थारी जाण में छोरो इयां गयो किन्नै है? आपी तो कोनी गयो, कर्यो तो कण ई ऊकचूक ही है। जमानो भोत माड़ो आÓग्यो ओऽ! ...आपणै तो आप भालै री ख्यांत राख्या करो। ढूंढण खातर फिरै तो घणा ई है, हे भगवान! लाधज्या तो क्यां नै।ÓÓ भालियै री मां दो घंटा सूं अळोच करै। भगवान भली करसी।ÓÓ म्हैं कैऊं। थूं जीव तो टिका।ÓÓ पण बीं रो जीव कोनी टिकै। किरसन रो छोरो काÓल आथण पांच बजे गम्यो हो, अजे लाध्यो कोनी। अण तो आखी रात ईं अळोच में ई काढ दी।

22 अप्रैल, 2002 दिनूंगै पैली सूरतगढ़ जावणो हो। म्हैं त्यार होवै हो। पण ईं रै तो ओ ई अळोच। बाकी तो म्हारै में ई कोनी ही। पण अळोच कर्यां बंटै ई कांईं? सूरतगढ़ जावणो हो, गयो। पण व्हीर हुयां सूं पैली उण भोळावण दीन्ही, आथण मोड़ो-बेगो होंवतो दीसै नीं, तो फोन कर देइयो। ...हैं ओऽऽ! थे ई आंवता-जांवता निगै कर लेइयो, के बेरो बापड़ां रो टाबर कठै ई लाधज्या तो!ÓÓ सूरतगढ़ सगळो दिन लागग्यो। मोड़ो खासा हुयग्यो। बस अड्डै पर पूछ्यो, नोहर-भादरा जावण-वाळी तो कोई बस कोनी। विष्णु मिलग्यो। बोल्यो, केई ताळ गप्पां-शप्पां करां। साढे सात बजे गाडी आÓसी, बीं में हनुमानगढ़ जाÓर बस पकड़ लेइयो।ÓÓ ठीक भाई!ÓÓ

हनुमानगढ़ जंक्शन रेलवे स्टेशन उतर्यो। सारलै डब्बै सूं अेक लुगाई उतरी। रोंवती-रोंवती। गोदी बरसेÓक रो टाबर। अेक टाबर बरस छह-सात रो, पगां। अेक जवान रै मोढै दस-ग्यारह बरस रो टाबर। म्हैं सोच्यो, बीमार हुसी। बस पकडऩै री तावळ ही, पण पग जगां ई रुपग्या, लुगाई रोवै क्यूं है? बै चाल पड़्या। म्हैं ई लारै-लारै स्टेशन रै गैट सूं बारै निकळ्यो। लुगाई तो बियां ई रोयां जावै ही। म्हारी निजर जवान रै गोदी जिको छोरो हो बीं पर पड़ी। म्हारो तो काळजो फड़कै चढग्यो। छोरै रा हाथ-पग जियां लटकै हा, देखतां ई सैÓकारो-सो निकळग्यो। ...छोरो तो मरेड़ो हो। हे भगवान! आ तो भोत माड़ी होयी। म्हैं बस अड्डै आऊं। बै लोग भी आ ज्यावै। बस आवण में देर है। पूछ्यां ठा पड़ै, अै लोग बीकानेर सूं डबवाळी जावै हा। छोरो बीमार हो, अेक देसी डॉक्टर री दवाई चालै ही। दवाई लेवण जावै हा। छोरै तो मारग मांय ई पिराण छोड़ दिया। बो जवान कोई जीप री पड़ताल करै हो, जिकी मांय पाछा बीकानेर जा सकै। छोरै नै अेक बैंच पर लिटा राख्यो हो। साÓरै बैठी बा लुगाई ले-धे रोयां जावै ही। म्हारो काळजो बारै निकळ-निकळ पड़ै हो। साची, म्हारै सूं उणरो दु:ख देख्यो नीं जावै हो। बस आवण में तो अबार ई दस-पन्दरा मिनट पड़ी है। चलो, घरे फोन तो करद्यां। म्हैं सोच्यो। साम्हीं पीसीओ है। फोन मिलाऊं। बा आप ई उठावै, हैलो!ÓÓ हां, म्हैं हनुमानगढ़ सूं बोलूं, बस में आऊं, दो घंटा में पूग ज्याऊंगो।ÓÓ म्हारी बात पूरी ई कोनी होयी ही, बीं सूं पैलां ई उण कैयो- हैं ओऽ! बो छोरो लाधग्यो ओऽऽ!ÓÓकियां?ÓÓ अखबार में खबर भेजी पत्रकार, अठै सूं। बिन्नै रावतसर सूं ई भेजी पत्रकार, सणैं फोटू। दोनूं मिलगी, अर छोरो मिलग्यो। ...चोखो होयो ओऽ, बापड़ां रो छोरो लाधग्यो।ÓÓ म्हैं फोन छोड़ दियो। कियां बताऊं कै म्हारै साम्हीं बैंच पर अेक लुगाई रो छोरो गम्यो पड़्यो है!

(2002)