अवचेतन को प्रभावित करते टेलीविजन सीरियल / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 28 जनवरी 2021
आजकल एक निजी टेलीविजन चैनल पर ‘क्यों उत्थे दिल छोड़ आए’ नामक सीरियल रात 9 बजे दिखाया जा रहा है। कालखंड देश के विभाजन के 1 वर्ष पूर्व का है। एक प्रेम कहानी प्रस्तुत की गई है। इस सीरियल को देखते समय रमेश सिप्पी और मनोहर श्याम जोशी के सीरियल ‘बुनियाद’ की याद ताजा हो जाती है। ‘बुनियाद’ के पहले मनोहर श्याम जोशी ‘हम लोग’ नामक लोकप्रिय सीरियल लिख चुके थे। दरअसल दूरदर्शन ने मनोहर श्याम जोशी को लैटिन अमेरिका में प्रदर्शित ‘सोप ऑपेरा’ का अध्ययन करने के लिए भेजा था। उस क्षेत्र में दोपहर के समय महिलाओं के मनोरंजन के लिए लिजलिजे कार्यक्रम रचे जाते थे, जिनको बनाने में साबुन बनाने वाली कंपनी पूंजी निवेश करती थी। इसीलिए इस तरह के कार्यक्रमों को सोप ओपेरा कहा गया।
मनोहर श्याम जोशी ने इसका अध्ययन किया और ‘हम लोग’ टीवी सीरियल की सफलता के बाद उन्होंने ‘बुनियाद’ लिखा जिसमें अनीता कंवर ने विलक्षण अभिनय किया था। अनीता ने अभिनेता अमोल पालेकर के साथ फिल्म ‘थोड़ा सा रूमानी हो जाए’ में भी यादगार अभिनय किया था। फिल्म पद्य में लिखी गई थी। चेतन आनंद की ‘हीर रांझा’ भी कैफी आजमी ने पद्य में लिखी थी। अनीता कंवर को अनेक प्रस्ताव आए परंतु उन्होंने सीरियल करने से इंकार कर दिया। ज्ञातव्य है कि उन्हें यह पसंद नहीं था कि कार्यक्रम देखते समय परिवार के सदस्य आपसी चुहलबाजी करें। टीवी से अधिक ध्यान उनका कचोरी-समोसा खाने में और चटखारे लेने में रहे। गौरतलब है कि प्रतिभावान अदाकारा अनीता कंवर की अपार प्रतिभा का दोहन नहीं हो पाया। अभिनेता जितेंद्र की पुत्री एकता कपूर ने टीवी के लिए सीरियल बनाना प्रारंभ किया। उनकी छद्म भावना की चाशनी में डुबाए रखे कार्यक्रम आम जनमानस के बीच अत्यंत लोकप्रिय हुए। परिवार में सदस्यों के आपसी छल-कपट को प्रस्तुत करने वाले सीरियल दर्शकों के बीच अफीम के नशे की तरह साबित हुए। इनमें रमे हुए दर्शक का यथार्थ से संपर्क ही टूट जाता था और व्यवस्था ने इसे प्रोत्साहित किया, क्योंकि उन्हें नशे में गाफिल अवाम, अपने सत्ता में बने रहने में मदद करता है। अवाम भी एक वैकल्पिक संसार में जीना चाहता है। सीरियल की कथा को रबर की तरह खींचा जाता है। बस इतना ध्यान रखते हैं कि रबर टूट न जाए। कुछ लोग सीरियल से इतने प्रभावित होते हैं कि उनके व्यवहार में पात्रों की अदाएं शामिल हो जाती हैं। बात अदा तक सीमित रहती तो कोई बात नहीं थी परंतु अवचेतन भी प्रभावित होने लगा। एकता कपूर के सीरियल डब करके दक्षिण भारत में भी प्रदर्शित किए गए और मॉरिशस में भी दिखाए गए। एकता कपूर के लंबे समय तक चलने वाले सीरियल की नायिका केंद्र के मंत्री मंडल में भी शामिल की गईं। व्यवस्थाएं भी सोप ओपेरा की तरह आचरण करने लगी हैं। एकता कपूर की सफलता से प्रेरित कुछ अन्य निर्माताओं ने भी इस क्षेत्र में पैसा कमाया।
बलदेव राज चोपड़ा ने ‘महाभारत’ सीरियल बनाया और रामानंद सागर ने ‘रामायण’ नामक धारावाहिक बनाया। कुछ वर्ष पश्चात सिद्धार्थ ने भी ‘महाभारत’ सीरियल बनाया। दरअसल रामायण हमारा आदर्श और महाभारत हमारा यथार्थ रहा है। हर ह्रदय में कुरुक्षेत्र स्थिति है परंतु सारथी श्री कृष्ण कहीं दिखाई नहीं देते। यादव लोग ग्वाले रहे हैं और कृषि क्षेत्र का ही हिस्सा हैं। वर्तमान में किसान आंदोलन में घुसपैठिए शरारत कर रहे हैं। हर क्षेत्र में व्यवस्था इसी तरह घुसपैठ करवा देती है। यह कितनी अजीब बात है कि लाल किले पर कुछ किसान या घुसपैठिए वहां पहुंचे। आजकल पर्यटक उस स्थान पर जा रहे हैं। कुमार अंबुज विध्वंस के तमाशे पर लिख चुके हैं। देश के विभाजन का शूल हमें हमेशा दर्द देता रहेगा। इस विषय पर बार-बार कार्यक्रम रचे जाएंगे। कभी-कभी गोविंद निहलानी की ‘तमस’ एक अपवाद है। वह हमारे सामूहिक अवचेतन की अंधेरी गुफा पर उजास डालता है।