अवरुद्ध प्रथम आलिंगन का विस्फोट / जयप्रकाश चौकसे

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अवरुद्ध प्रथम आलिंगन का विस्फोट
प्रकाशन तिथि :25 जनवरी 2018


एक युवा दम्पती अपने पहले आलिंगन के समय महसूस करते हैं कि कोई तीसरा व्यक्ति उन्हें चोरी छिपे देख रहा है। उनका खिन्न होना स्वाभाविक है, क्योंकि यह प्रथम आलिंगन आजीवन याद का स्वर्णिम क्षण है। वह पीपिंग टॉम, वह ताका-झांकी करने वाला पकड़ा जाता है। दरवाजों में चाभी के लिए बने छोटे से छेद से ताकाझांकी करने वाले को पीपिंग टॉम कहते हैं। वे चित्तौड़ राज परिवार के दम्पती हैं। अत: अगले दिन आम दरबार में राजा उसे उम्रभर की सजा सुनाते हैं तो रहमदिल रानी उनसे आग्रह करती है कि ताकाझांकी करने वाला व्यक्ति राज पुरोहित है, अत: उसे केवल देश निकाला दिया जाए। इस तरह वह ताकाझांकी करने वाले राज पुरोहित के प्राण बचा लेती है परंतु देश निकाले से आहत राज पुरोहित शपथ लेता है कि वह प्रतिशोध लेगा और चित्तौड़ के किले की अभेद्य समझी जाने वाली दीवारों को ध्वस्त कर देगा।

निष्कासित राज पुरोहित दिल्ली के सुल्तान अलाउद्‌दीन खिलजी के दरबार में शरण लेता है और अपने ज्ञान से खिलजी को प्रभावित करता है। इस्लाम में भविष्य बताने वालों से दूर रहने की हिदायत इसलिए दी गई है कि ज्ञान के इस क्षेत्र में पाखंडियों की संख्या अधिक है, क्योंकि मनुष्य भविष्य जानने की आकांक्षा रखता है, जो उसे अकर्मण्य बना सकती है। आने वाले कल और बीते हुए के बीच फंसा व्यक्ति आने वाले कल को जानना चाहता है। हर राज्याध्यक्ष डरा हुआ, टोटके पसंद व्यक्ति होता है और नजूमी ( भविष्य बताने वाला) की चांदी हो जाती है।

निष्कासित राज पुरोहित खिलजी को बताता है कि रानी प‌द्‌मावती अत्यंत सुंदर है। मलिक मोहम्मद जायसी के पद्‌मावत में यह सौंदर्य विवरण एक तोता करता है। भंसाली अपनी फिल्म को तोता-मैना लोक-कथा होने से बचाने के लिए राज पुरोहित का पात्र रचते हैं। भंसाली ने अपने खिलजी पात्र को निर्मम व्यक्ति की तरह प्रस्तुत किया है, जो अपनी सनक के चलते किसी भी व्यक्ति को मार देता है। हत्याएं उसे खुशी देती हैं और नशे-सी सनसनी प्रदान करती हैं। फिल्मकार एक चतुर व्यापारी है और उसने देश में व्याप्त नकली नफरत को बॉक्स ऑफिस पर भुनाने के लिए खिलजी को एक सोडोमिस्ट स्वरूप दिया है। वह स्वयं से गले मिलने आए भतीजे को गला दबाकर मार देता है। यह पात्र कमोबेश वैसा ही है जैसा फिल्मकार शिवम नायर की फिल्म 'नाम शबाना' का खलनायक है।

बहरहाल, भंसाली के राजा रत्नसेन और खिलजी रणक्षेत्र में आपसी द्वंद्व से फैसला करना चाहते हैं ताकि सेनाओं को खून-खराबे से बचाया जा सके। काश! मौजूदा दौर के नेता भी इसी आदिम प्रथा को अपना लें और प्रतिदिन सरहदों के सुलगते रहने की झूठी-सच्ची घटनाओं के प्रचार से अवाम को उन्मादी होने से बचाया जा सके। सर्जिकल स्ट्राइक की पटकथा को प्रचारित करने से बचा जा सके। रानी पद्‌मावती अपने पति को परामर्श देती है कि इस तरह के द्वंद्व से बचना चाहिए। बहरहाल इस द्वंद्व में राजा रत्नसेन को भारी पड़ते देख छल करके मार दिया जाता है। वह एक अवसर था कि रत्नसेन का कोई योद्धा निहत्थे खिलजी को भी मार सकता था परंतु भंसाली की रुचि अस्सी मिनट की फिल्म बनाने में नहीं है। वे एक सौ चौंसठ मिनट की फिल्म बनाने के लिए स्वयं को शपथबद्ध किए हुए हैं। भारतीय दर्शक भी छोटी फिल्म में 'पैसा वसूल' भावना से वंचित रह जाता है।

बहरहाल, युद्ध के पहले रानी पद्‌मावती खिलजी द्वारा कैद किए गए अपने पति को बचाने के लिए वह खेल रचती है, जो शिवाजी कर चुके हैं। पद्‌मावती सूझबूझ से अपने कैद किए गए पति को छुड़ा लाती है। इस तरह का प्रसंग किसी और राजा-रानी की कथा है परंतु भंसाली को सुविधाजनक खेल खेलने के लिए पूरा विश्व इतिहास उपलब्ध है।

बहरहाल, फिल्म के आखिरी बीस मिनट बहुत प्रभावोत्पादक हैं और जौहर का दृश्य बकमाल ढंग से फिल्माया गया है। फिल्म का केवल एक गीत बोलचाल में प्रयुक्त हिंदी भाषा में है। अन्य गीत राजस्थानी एवं अवधी भाषा की खिचड़ी की तरह हैं। फिल्म के तमाम तकनीकी पक्ष बहुत परिश्रम, प्रतिभा और विपुल साधनों से गढ़े गए हैं। भंसाली की माध्यम पर मजबूत पकड़ है। दीपिका को किसी भी भूमिका में नापसंद नहीं किया जा सकता अौर रनवीर सिंह का मरदानगी का स्वांग काबू नहीं किया जा सकता। कुछ समय पूर्व राजनीतिक स्वार्थवश एक जाट आंदोलन रचा गया था और उसी आंदोलन की भूमिगत तरंगे इस फिल्म के बहाने सतह पर उभर आई हैं। फिल्म का विरोध महज दिखावा है, असल कारण तो वोट बैंक साधना है।