अवसर आए न आए हम करेंगे इंतजार / जयप्रकाश चौकसे

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अवसर आए न आए हम करेंगे इंतजार
प्रकाशन तिथि :11 नवम्बर 2017


तापसी पन्नूको शिकायत है कि कुछ सफल फिल्मों में अभिनय करने के बाद भी उन्हें प्रथम श्रेणी की सितारा नहीं माना जाता। ज्ञातव्य है कि 'मेरा नाम शबाना' के क्लाइमेक्स पर वे खलनायक से लड़ती हैं। उसे पराजित करने के बाद ही नायक अक्षय कुमार आते हैं ताकि वे दोनों पुलिस आने से पहले वहां से चले जाएं। पूरे क्लाइमेक्स में अक्षय कुमार परदे के पीछे से द्वंद्व देख रहे थे। कोई और नायक इस तरह से क्लाइमेक्स नायिका के खाते में नहीं जाने देता। तापसी सुंदर भी हैं और भाव व्यक्त करने में सक्षम हैं। उनका कहना है कि दीपिका पादुकोण अपनी सितारा हैसियत का लाभ लेते हुए सामाजिक सौद्‌देश्यता के बयान भी देती हैं। इस तरह वे नागरिक होने का दायित्व भी निभा रही हैं। तापसी भी वैसा ही करना चाहती हैं।

तापसी पन्नू पहली कलाकार नहीं हैं, जिनकी छवि उनकी योग्यता के अनुरूप नहीं बन पाई। राजेश खन्ना की सफलता 'आराधना' से शुरू हुई, जिसमें उनकी दोहरी भूमिका थींऔर दो नायिकाएं थीं शर्मिला टैगोर एवं फरीदा जलाल। परंतु शर्मिला टैगोर शिखर पर पहुंचीं और फरीदा जलाल छोटी बहन की भूमिका ही करती रहीं, जबकि वे प्रतिभाशली थीं। 'आराधना' की विराट सफलता का आधार सचिन देव बर्मन का संगीत था। तनुजा प्रतिभाशाली थीं परंतु अपनी सगी बहन नूतन के समकक्ष कभी नहीं हो पाईं। योग्यता होना और उसका दोहन करना दो अलग-अलग बातें हैं। लालकृष्ण आडवाणी आज भी हाशिये पर पड़े हैं। कुछ औद्योगिक घराने उच्च गुणवत्ता का माल दशकों से बना रहे हैं परंतु तथाकथित आध्यात्मिक क्षेत्र में एक व्यक्ति ने अपना माल कुछ इस ढंग से प्रचारित किया कि आज वे पैदाइशी उद्योगपतियों से अधिक धन कूट रहे हैं।

अवसर को भुनाना कभी-कभी इत्तेफाक होता है परंतु इस दौर में बेचने का हुनर और विज्ञापन इतना शक्तिशाली हो चुका है कि अगर प्रचार का मुर्गा बांग नहीं देगा तो सत्य का सूरज भी उदित नहीं होगा। सभी क्षेत्रों में डोनाल्ड ट्रम्प जैसे लोग ही सफल हो रहे हैं। अवसर बनाए जाते हैं जैसे गेंदबाज कुछ कमतर गति की गेंदें जानबूझकर डालता है, क्योंकि वह बल्लेबाज इतमिनान दिलाते हुए एक सटीक गेंद डालकर विकेट झटक लेता है। इतमिनान जैसा भाव भी झांसेबाजी में काम आता है।

निर्माता जीपी सिप्पी की कंपनी में नरेंद्र बेदी माहवारी वेतन पर काम करते थे। उन्होंने सिताराविहीन 'खोटे सिक्के' बनाई, जो सफल भी रही। इसी कहानी को भव्य पैमाने पर रमेश सिप्पी ने 'शोले' के नाम से बनाया और इतिहास रच दिया। 'शोले' में प्रमुख पात्रों का अभिनय धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन, अमजद खान, संजीव कुमार, ने निभाए। संजीव कुमार ने अपनी अपेक्षाकृत छोटी भूमिका में अविस्मरणीय अभिनय किया है परंतु उन्हें उतना श्रेय नहीं मिला। संजीव कुमार उस महान परम्परा के कलाकार थे, जो मोतीलाल से प्रारंभ होकर ओमपुरी तक जाती है। 'शोले' की सफलता का श्रेय कई लोगों को दिया जाता है परंतु द्वारका दिवेचा का जिक्र नहीं होता। याद कीजिए कि बस्ती में एक-एक घर की बत्ती बुझ रही है परंतु एक रोशन खिड़की में सफेद साड़ी पहनी विधवा खड़ी है मानो खिड़की की फ्रेम में करुणा जड़ी हो और दूर अमिताभ बच्चन माउथ आर्गन बजा रहे हैं। पूरा दृश्य लियोनार्डो दा विंची की पेंटिंग की तरह लगता है। यह भी गौरतलब है कि 'शोले' के बाद 'शान' की शूटिंग के पहले दौर के बाद ही द्वारका दिवेचा की मृत्यु हो गई और फिर रमेश सिप्पी 'शोले' सी सफलता नहीं गढ़ पाए। यह बात सिप्पी को कमतर आंकने की नहीं वरन् कैमरामैन के महत्व की बात है।

'आवारा' से 'राम तेरी गंगा मैली' तक राधू करमाकर राज कपूर के कैमरामैन रहे। राधू करमाकर ने सोहन लाल कंवर की फिल्में भी की हैं परंतु जादू तो उनके और राज कपूर के साथ काम करने में निहित था। 'मुगल-ए-आजम' का श्रेय कैमरामैन आरडी माथुर को भी है।

तापसी पन्नू की शिकायत जायज है परंतु यही बात अन्य लोगों के साथ भी हो रही हो रही है। अभी तापसी के पास बचत खाते में उम्र की अच्छी खासी रकम है, अत: अवसर मिल सकते हैं। उनकी मौजूदा छवि की अन्यतम फिल्म हो सकती है मॉडेस्टी ब्लैज और अक्षय ही हो सकते हैं विली गारविन। अफसोस कि प्रेम कहानियों पर अधिक फिल्में नहीं बन रही हैं परंतु जीवन से भी तो प्रेम का लोप होरहा है।