अवाम खिजा में और मयखाने में वसंत / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :19 जनवरी 2019
महाराष्ट्र सरकार ने मयखानों में नृत्य को प्रतिबंधित कर दिया था। गीत गाने पर कोई प्रतिबंध नहीं था। रक्स करती महिला पुरुष के मन में इच्छाएं जगा सकती थी। कमोबेश यह प्रतिबंध अंग प्रदर्शन पर ही था। उच्चतम न्यायालय ने इस प्रतिबंध को खारिज कर दिया है गोयाकि मयखाने में फिर बहार आ जाएगी। अदालत ने रक्स करती महिला पर सिक्के उछालने या करेंसी नोट लुटाने पर पाबंदी लगाई है, जिसकी क्षतिपूर्ति बार का मालिक प्रवेश शुल्क लगाकर पूरी कर सकता है। प्रतिबंध लगने के बाद बेरोजगारी बढ़ गई थी। मुंबई के बाहर से आई बार बालाएं अपने शहर लौट गई थीं।
इस विषय पर मधुर भंडारकर ने 'चांदनी बार' नामक फिल्म बनाई थी। इस प्रकरण के साथ नैतिकता को जोड़ दिया गया था। अदालत का आदेश है कि नैतिकता के मानदंड तय करना सरकार का काम नहीं है। इसके साथ इंडियन पीनल कोड सेक्शन 292, 293, 294 (जैसा कि रतनलाल की पुस्तक के 29वें संस्करण में दिया गया है) के रूप में अभद्रता का मामला भी जुड़ गया था। आश्चर्य की बात है कि आईपीसी में अभद्रता को परिभाषित नहीं किया गया है। रतनलाल की टिप्पणी कहती है कि जज महोदय को लेखक के दृष्टिकोण का आकलन करना चाहिए गोयाकि जज स्वयं को लेखक के स्थान पर रखकर विचार करे कि विवरण किस तरह का है और विषय के लिए कितना आवश्यक है। वेबस्टर डिक्शनरी के पृष्ठ 1557 पर लिखा है कि अश्लीलता मनुष्य को असहनीय लगे और उसके तर्क पर भी सही नहीं लगे तब प्रतिबंध पर विचार किया जा सकता है। मूल बात लेखक या फिल्मकार की नीयत की है कि क्या वह ऐसा दिखाकर या लिखकर धन कमाना चाहता है या उसके द्वारा उठाए गए विषय की ही यह मांग है।
क्या लेखक का लिखा या फिल्मकार का दिखाया दृश्य मात्र व्यक्तिगत सनकीपन है या विषय की आवश्यकता है? कोई भी कलाकृति अभद्र नहीं होती। पुस्तक पढ़ने वाले या फिल्म देखने वाले की अपनी शिक्षा या संस्कार पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है। ज्ञातव्य है कि 1980 में राज कपूर की फिल्म 'सत्यम शिवम संुदरम' पर भी अश्लीलता का लगा आरोप खारिज कर दिया गया था। केतन मेहता की फिल्म 'रंगरसिया' भी इसी विषय पर बनी फिल्म थी। कलाकार या फिल्मकार की नीयत और रचना का समग्र प्रभाव महत्वपूर्ण है। फिल्म 'मेरा नाम जोकर' में सिम्मी का पैर फिसल जाता है अौर वह नदी में गिर जाती है। वह अपने भीगे वस्त्र बदलने के लिए झाड़ियों के पीछे जाती हैं और किशोरवय का उनका छात्र उन्हें कपड़े बदलते हुए देखता है। उसके लिए नारी देह देखने का यह पहला अनुभव है। फिल्म का यह भाग किशोरवय के अवचेतन का विवरण देता है। अत: यह दृश्य विषय की आवश्यकता अनुरूप रखा गया है। इसी फिल्म के तीसरे भाग में पद्मिनी का अंग प्रदर्शन कथावस्तु की आवश्यकता नहीं थी। अत: उसे अश्लील माना जा सकता है। इस तरह हम देखते हैं कि एक ही फिल्म के पहले भाग में नायिका का शरीर दिखाना अश्लील नहीं है परंतु तीसरे भाग में अंग प्रदर्शन अश्लील है। धारा 294 यह भी स्पष्ट करती है कि क्या कोई अंग प्रदर्शन युवा दर्शक के मन को भ्रष्ट करने के उद्देश्य से ही रचा गया है गोयाकि रचनाकार की नीयत भी महत्वपूर्ण है।
महेश भट्ट की फिल्म 'गैंगस्टर' की नायिका बार बाला है और एक दिन एक व्यक्ति पुलिस से बचता हुआ उसके कक्ष में आ जाता है। घटनाक्रम ऐसा है कि उन दोनों को हमेशा भागते रहना पड़ता है। वे दोनों एक-दूसरे से प्रेम करते हैं। परंतु पूरी फिल्म में वे एक-दूसरे को छूते भी नहीं है। फिल्म के आखिरी दृश्य में नायक को गोली मार दी गई है। उसके हाथ में सिंदूर की डिब्बी है। गौरतलब है कि एक अपराधी और बार बाला की प्रेम-कथा में भी शारीरिक संबंध नहीं है। उसका सिंदूर लाना स्पष्ट करता है कि अब वह विवाह करने जा रहा है। फिल्म के नाम के कारण अधिक दर्शक फिल्म देखने नहीं आए। कंगना रनोट ने विलक्षण अभिनय किया था। इस फिल्म का नायक शाइनी आहूजा थे।
रोम का चर्च समय-समय पर कुछ पुस्तकों की सूची जारी करके केवल सलाह देता है कि ये किताबें नहीं पढ़ें। यह सलाह है, कोई फतवा नहीं है। अश्लीलता का प्रकरण मनुष्य की इच्छा पर छोड़ दिया जाना चाहिए और सरकारों को इसे अपना अधिकार क्षेत्र नहीं समझना चाहिए। हमारी सरकार अवाम को रोजगार और रोटी देने में असफल रही है, अत: ध्यान हटाने के लिए अनावश्यक प्रतिबंध जारी करती है।