अशांति और असंतोष / हिंद स्वराज / महात्मा गांधी
पाठक : तो आपने बंग-भंग को जागृति का कारण माना। उससे फैली हुई अशांति को ठीक समझा जाए या नहीं?
संपादक : इनसान नींद में से उठता है तो अंगड़ाई लेता है, इधर-उधर घूमता है और अशांत रहता है। उसे पूरा भान आने में कुछ वक्त लगता है। उसी तरह अगरचे बंग-भंग जागृति आई है, फिर भी बेहोशी नहीं गई है। अभी हम अंगड़ाई लेने की हालत में है। अभी अशांति की हालत है। जैसे नींद और जाग के बीच की हालत जरूरी मानी जानी चाहिए और इसलिए वह ठीक कही जाएगी, वैसे बंगाल में और उस कारण से हिंदुस्तान में जो अशांति फैली है वह भी ठीक है। अशांति है यह हम जानते हैं, इसलिए शांति का समय आने की शक्यता है। नींद से उठने के बाद हमेशा अंगड़ाई लेने की हालत में हम नहीं रहते, लेकिन देर-सबेर अपनी शक्ति के मुताबिक पूरे जागते ही हैं। इसी तरह इस अशांति में से हम जरूर छूटेंगे। अशांति किसी को नहीं भाती।
पाठक : अशांति का दूसरा रूप क्या है?
संपादक : अशांति असल में असंतोष है। उसे आजकल हम 'अनरेस्ट' कहते हैं। कांग्रेस के जमाने में वह 'डिस्कंटेंट' कहलाता था। मि. ह्यूम हमेशा कहते थे कि हिंदुस्तान में असंतोष फैलाने की जरूरत है। यह असंतोष बहुत उपयोगी चीज है। जब तक आदमी अपनी चालू हालत में खुश रहता है, तब तक उसमें से निकलने के लिए उसे समझाना मुश्किल है। इसलिए हर एक सुधार के पहले असंतोष होना ही चाहिए। चालू चीज से ऊब जाने पर ही उसे फेंक देने को मन करता है। ऐसा असंतोष हममें महान हिंदुस्तानियों की और अंग्रेजों की पुस्तकें पढ़कर पैदा हुआ है। उसे असंतोष से अशांति पैदा हुई; और उस अशांति में कई लोग मरे, कई बरबाद हुए, कई जेल गए, कई को देश निकाला हुआ। आगे भी ऐसा होगा; और होना चाहिए। ये सब लक्षण अच्छे माने जा सकते हैं। लेकिन इनका नतीजा बुरा भी आ सकता है।