अशुभ बहू / सेवा सदन प्रसाद

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पूनम जब से विधवा हुई, तब से ही पूरे परिवार की उपेक्षाओं का शिकार होने लगी थी। सास उसे अशुभ समझती थी, जेठ एक बोझ एवं ननद एक अभागिन। पति की मौत का सबसे ज़्यादा दुःख तो पूनम को ही था पर वास्तविकता पर सब पर्दा डाल रहे थे। सतीश को शराब पीकर मोटर सायकिल चलाने से कितनी बार रोका था उसने। जिस बात से सदा रोका, उस पर कभी ध्यान नहीं दिया सतीश ने। शराब पीकर तेज गति से मोटर सायकिल चलाने से ही हुआ ऐक्सीडेंट। अपनी मौत का जिम्मेदार तो वह खुद ही था। पर परिवार वाले तो पूनम को ही जिम्मेदार मानते थे। सोचते थे - 'अवश्य' ही पति-पत्नी में कुछ कहा-सुनी हुई होगी, कुछ डिमांड रख दी होगी इसने, उलाहना दिया होगा किसी बात का। विचलित मन से ड्राइविंग करना तो खतरनाक होता ही है।

एक दिन अचानक ही परिवार का पूनम के प्रति व्यवहार बदल गया। अब उसे अशुभ नहीं माना जा रहा था, बोझ नहीं समझा जा रहा था। अकस्मात अपने प्रति परिवार को विनम्र हुआ देख, हैरान थी पूनम। अब उसका बहुत ध्यान भी रखा जा रहा था। पता चला कि सतीश का दस लाख रूपये का जीवन-बीमा हुआ था। यह बीमा-राशि पूनम को मिलने वाली थी।