अशुभ / पद्मजा शर्मा
'दीदी, मैंने स्कूल बैग, जूते, यूनीफॉर्म सब ठिकाने रख दिए हैं। आपको तंग नहीं करता ना? जो देते हो खा लेता हूँ। जिद्द नहीं करता। खिलौनों के लिए भी नहीं।'
वह कभी कहेगा-'मैं नीचे खेलकर आता हूँ दीदी। आपको तंग नहीं करूंगा।'
मैं कहती हूँ-'ला, बटन बंद कर दूँ'
कहता है-'नहीं, मैं कर लूंगा।'
माँ पर गया है छोटा। वह मरने को मर गयी पर आखिर तक हार नहीं मानी। उसे कैंसर था। उसी दौरान घर पर मेहमान आ गए तो बिस्तर से उठकर उनको खाना खिलाने लगी। सब हिम्मत की दाद देते थे। कहते आराम करो तो कहती मुझे कमजोर मत समझो।
इलाज के लिए कहाँ-कहाँ नहीं गयी। जीवन बचाने के लिए जो भी जतन करने पड़े, किए. डॉक्टर, ओझा, पीर, ओलिया, जड़ी-बूटी, नीम-तुलसी सब किया। कहती थी मौत के मुंह से निकल आऊँगी। आखिरी सांस तक हँसती रही। इसलिए कि हम न रो पड़ें कि घर का वातावरण उदास न हो।
माँ के जाने के बाद छोटा देर तक सोता नहीं। पूछता है-'ये कुत्ते रात को इतना रेाते क्यों हैं? मुझे रोने की आवाज बुरी लगती है। इसी से मैं नहीं रोता और कभी रोऊँगा भी नहीं।'
फिर सुबकते हुए कहता है-'मम्मी कहती थी रोना अशुभ होता है।'
'फिर रो क्यों रहा है?' कहते तो आँसू पौंछ लेता।
उसे नहीं पता कि माँ की मौत से ज़्यादा अशुभ एक सात साल के मासूम बच्चे के लिए कुछ नहीं हो सकता है, इस जीवन में।