अश्लीलता / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
रामलाल की अगुआई में नग्न मूर्ति को तोड़ने के लिए जुड़ आई भीड़ पुलिस ने किसी तरह खदेड़ दी थी, देवमणि की दुश्चिन्ता व खिन्नता कम न हो सकी थी। क्या करे वह? क्या पार्क से इस खूबसूरत मूर्ति को हटवा दे? रात–रात भर जागकर उसने अपनी आत्मा का सारा सौन्दर्य, अपनी कल्पनाओं की एक–एक तराश इस मूर्ति के गढ़ने में लगा दिए।
चाँद कब का निकल आया था। चाँदनी में नहाई मूर्ति को वह मुग्ध भाव से निहार रहा था। एक–एक करके सभी लोग जा चुके थे। उसका मन उठने को न हुआ। आज का सन्नाटा उसे और दिनों की तरह नहीं खल रहा था। वह अपने हाथों को अविश्वास से देखने लगा–क्या इन्हीं हाथों ने इतनी मोहक मूर्ति गढ़ी है।
उसे लगा जैसे मूर्ति उसकी ओर देखकर आत्मीय भाव से मुस्करा रही है।
सामने वाली सड़क भी सुनसान हो चुकी थी। वह भारी मन से उठने को हुआ कि सामने से एक व्यक्ति आता दिखाई दिया। देवमणि वहाँ से हटकर एक पेड़ की ओट में बैठ गया।
निकट आने पर पता चला–वह व्यक्ति रामलाल था। देवमणि आशंकित हो उठा–लगता है यह इस समय मूर्ति तोड़ने आया है, लेकिन....यह तो खाली हाथ है!
वह मूर्ति के पास आ चुका था। देवमणि के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। रामलाल मूर्ति से पूरी तरह गुँथ चुका था और उसके हाथ....मूर्ति के सुडौल अंगों पर केंचुए की तरह रेंगने लगे थे।