असली सितारा अभिनेता या निर्देशक? / जयप्रकाश चौकसे

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असली सितारा अभिनेता या निर्देशक?
प्रकाशन तिथि :18 दिसम्बर 2015


छोटे शहर की कंगना रनोट अपने परिवार से विद्रोह करके मुंबई आईं और अपने संघर्ष के दिनों में कई दिन उन्हें फुटपाथ पर सोना पड़ा। महेश भट्‌ट ने अनुराग बसु के निर्देशन में 'मर्डर' में उन्हें अवसर दिया। आनंद राय 'तनु वेड्स मनु' के लिए सितारा पाने में असफल होने पर कंगना रनोट के पास पहुंचे और इस सफल फिल्म ने कंगना को सितारा बना दिया और 'क्वीन' की सफलता से वे सुपर सितारा बन गईं। अपनी सफलता से प्रेरित कंगना ने अपने विकास के लिए अमेरिका में पटकथा लेखन का कोर्स किया। वे आनंद राय का बहुत आदर करती हैं और 'तनु वेड्स मनु' भाग दो में हरियाणा की कन्या की भूमिका के लिए कंगना ने अपने व्यक्तित्व व पोशाक में परिवर्तन करके एक विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। इसी प्रयास का नतीजा है कि 'तनु वेड्स मनु' भाग दो में हरियाणवी स्वरूप में कंगना को बहुत सराहा गया।

कंगना ने अब नई अनुबंधित फिल्मों की पटकथा में अपने सुझाव देना प्रारंभ किया और कुछ निर्माताअों से यह भी कहा कि पटकथा उनकी निगरानी में पुन: लिखी जाए। यह शर्त आनंद राय को स्वीकार नहीं थी। उन्होंने तीसरी फिल्म 'रांझणा' बिना कंगना के बनाकर सफलता प्राप्त की। उनका पटकथा लेखक अत्यंत प्रतिभाशाली है और उसका लेखन ही अानंद राय की कंपनी की रीढ़ की हड्‌डी है। अानंद राय की एक बौने पात्र के जीवन पर केंद्रित भूमिका वाली पटकथा सलमान खान को अच्छी लगी परंतु उनसे अनुबंध करने के पूर्व ही आनंद राय ने यह खबर मीडिया को दे दी, जिससे नाराज होकर सलमान खान ने फिल्म करने का इरादा छोड़ दिया। आनंद राय ने वही पटकथा शाहरुख खान को सुनाई और उन्हें भी पसंद आई। अत: फिल्म की निर्माण पूर्व की तैयारियां प्रारंभ हो चुकी है। ज्ञातव्य है कि प्रदर्शन पूर्व की ठोस योजना बनाने से ही फिल्म की शूटिंग के समय किसी के मन में कोई दुविधा नहीं रहती। कंगना रनोट ने परोक्ष रूप से अानंद राय को संकेत भेजा कि वह इस फिल्म में काम करना चाहती है। अभी तक कंगना का कॅरिअर कुछ इस तरह से चला है कि उसने किसी सुपर सितारे के साथ काम ही नहीं किया, जिसका नतीजा यह होता रहा कि फिल्म की सफलता का सारा श्रेय उन्हें मिलता रहा परंतु अब उन्हें अहसास हो रहा है कि सुपर सितारे के साथ अर्जित सफलता से विज्ञापन फिल्मों के बेहतर प्रस्ताव उन्हें आएंगे और वे खूब धन कमा सकेंगी। वे यह भलीभांति जानती हैं कि आनंद राय अपने पटकथा लेखक पर संपूर्ण भरोसा करते हैं और अब तक कि उनकी सफलता का मेरूदंड भी लेखक ही रहा है। सारांश यह है कि इस फिल्म के लिए वे अपनी यह जिद छोड़ने को तैयार है कि पटकथा उनकी मर्जी से लिखी जाए।

यह प्रकरण दो बातें सिद्ध करता है। एक यह कि कंगना रनोट लोकप्रियता के गाफिल कर देने वाले नशे से उबरना चाहती हैं। दूसरी बात यह प्रकरण फिल्म में लेखक के महत्व को पुन: रेखांकित करता है। दरअसल, फिल्म निर्देशक का माध्यम है और वह अपने लेखक के साथ पटकथा लेखन में शामिल होता है। हमारे सारे मीडिया तंत्र विशेषकर टेलीविजन सितारों की किवदंती को मजबूत बनाने का काम करते हैं और निर्देशक तथा लेखक को नज़रअंदाज करते हैं। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद फ्रांस के फिल्म में जुड़े लोगों ने 'ऑतर थ्योरी' दी थी, जिसके अनुसार जैसे एक किताब का श्रेय केवल लेखक को मिलता है, वैसे ही फिल्म भी एक किताब है, जिसका श्रेय निर्देशक को मिलना चाहिए। ज्ञातव्य है कि महान अभिनेता दिलीप कुमार का सर्वश्रेष्ठ अमिय चक्रवर्ती, बिमल राय, नितिन बोस, महबूब खान जैसे निर्देशकों के साथ काम में उजागर हुआ और 'दिल दिया, दर्द दिया' के साथ जब वे निर्देशक के निर्देशक बने, उनके सिर पर सुर्खाब के नए पर नहीं लगे। इसी तरह प्रतिभाशाली विजय आनंद की फिल्मों में देव आनंद ने अभिनय के गंभीर प्रयास किए। जब विजय आनंद ने क्रोनिन की 'सिटाडेल' से प्रेरित 'तेरे मेरे सपने' बनाई और उसमें विजय आनंद को चरित्र भूमिका में खूब प्रशंसा मिली तो देव निर्देशक बने और विजय ने नायक बनने का प्रयास किया। दोनों ही असफलता के भंवर में डूब गए।