असिस्टेंट / मधु संधु

Gadya Kosh से
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कुर्सी पर बैठते ही रीढ़ तन गई। साहब-साहब के अनवरत सम्बोधन से चेहरे पर रुआब आ गया घंटी पर हल्के स्पर्श से ही अलादीन के चिराग के जिन्न-सा चपरासी हाजिर हो गया। वे सचमुच संतुष्ट थे। आकाश की ऊँचाइयाँ छू लेने का आत्मगौरव उन्हें बांध रहा था। असिस्टेंट नित्य फाइलों का ढेर लाता, अनेकों पत्र लाता। अदब से खड़ा होकर एक-एक पृष्ठ पलटता। किसी सुलझे हुये गाइड की तरह बोलता जाता-

सर! इस पर नोटिस बोर्ड लिख दें।

यह मुझे मार्क कर दें।

इसे फाइल कर दें।

यह सर्क्युलेट करवा दें।

यहाँ स्टेनो का नाम लिख दें।

यह आपके काम का है, फुर्सत से देख लें।

उनकी गर्दन इतने सम्मान से तनती जाती। भले ही वह जानते थे कि साहबी की वर्णमाला के पहले पाठ वे असिस्टेंट की पाठशाला से ही पढ़ रहे हैं।