अस्तित्व / ख़लील जिब्रान / सुकेश साहनी
Gadya Kosh से
[ अनुवाद : सुकेश साहनी]
लम्बे समय से मैं मिस्र की धूल में जिंदगी से बेखबर निष्क्रिय पड़ा था।
तब, सूर्य ने अपने स्पर्श से मुझे जन्म दिया, मैं उठा और जिंदगी के गीत गाते हुए नील नदी के तट पर घूमने लगा।
और अब वही सूर्य झुलसा देने वाली किरणों से मुझे रौंदता है ।ताकि मैं फिर मिट्टी में मिल जाऊँ। पर ये कैसी आश्चर्य भरी बात है! जिस सूर्य ने मुझे जन्म दिया, वही मुझे मिटा पाने में असमर्थ है।
मैं आज भी दृढ़ कदमों से नील के तटों पर घूम रहा हूँ।
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