अहंकार / खलील जिब्रान / सुकेश साहनी

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(अनुवाद :सुकेश साहनी)

बूढ़े मछुआरे ने मुझसे कहा, "तीस साल पहले की बात है, एक नाविक मेरी बेटी को भगा कर ले गया था। मैंने उन दोनों को बहुत बददुआएँ दीं, बहुत कोसा। मैं अपनी बेटी को बहुत प्यार करता था। मेरे शाप का असर हुआ और वह युवा नागरिक जहाज सहित समुद्र तल में पहुँच गया। उसी के साथ मेरी प्यारी बेटी भी खत्म हो गई. मुझे ही उन दोनों का हत्यारा माना जाना चाहिए. ये मेरा शाप ही था जिसने उन्हें खत्म कर दिया। मेरे जीवन के दिन ही कितने बचे हैं! मैं ईश्वर से क्षमा मांगता हूँ।"

कहकर बूढ़ा खामोश हो गया। उसके शब्दों से शेखी मारने जैसे भाव टपक रहे थे और ऐसा लग रहा था मानो उसे अब भी अपनी शाप देने की शक्ति पर बहुत गर्व है।