अहसास / गरिमा संजय दुबे
Gadya Kosh से
"अरे बिटिया पूरे पंद्रह दिन हो गए तुम्हे देखे, आ जाय करो माँ बाप हैं हम मन करता है अपने बच्चों से मिलने का"। उधर से भी ख़ुशी से भरी आवाज़ आई "हाँ पापा कल आ जाऊँगी" , "अच्छा बेटा कल मिलते हैं" फ़ोन रख उन्होंने अपनी पत्नी को कहा-"कल आ रहें हैं मुन्नी और कंवर साहब, देख लो क्या-क्या बनवाना है इस बार तो पूरे पंद्रह दिन में आ रही है ऐसा लग रहा है मानो महीनों हो गए हों।" तभी बहू चाय का कप टेबल पर रख बोली-"पापाजी चाय" , बहू ने कहा तो कुछ भी नहीं किन्तु न जाने क्यों उसकी आंखें कुछ बोलती-सी लगी। वे अचकचा गए सहसा अहसास हुआ कि उनकी बहू भी तो किसी की बेटी है, और इस परिवार की ज़िम्मेदारी निभाते-निभाते महीनों से वह अपने माता पिता से मिलने नहीं जा पाई है।