अहसास / मनोज चौहान

Gadya Kosh से
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सुधीर की पत्नी मालती की डिलीवरी हुए आज पांच दिन हो गए थेl उसने एक बच्ची को जन्म दिया था और वह शहर के सिविल हॉस्पिटल में एडमिट थीl सुधीर और उसके घर वालों ने बहुत आस लगा रखी थी की उनके यहाँ लड़का ही पैदा होगाl सुधीर की माँ मालती का गर्भ ठहरने के बाद अब तक कितनी सेवा और देखभाल करती आई थीl मगर नियति के आगे किसका वश चलता हैl आखिर लड़की पैदा हुई और उनके खिले हुए चेहरे मायूस हो गएl सुधीर तो इतना निराश हो गया था कि डिलीवरी के दिन के बाद, वो दोबारा कभी अपनी पत्नी और बच्ची से मिलने हॉस्पिटल नहीं गया थाl

सुधीर आई.पी.एच. विभाग में सहायक अभियन्ता के पद पर कार्यरत थाl उस रोज वह दफ्तर में बैठा थाl उसके ऑफिस में काम करने वाला चपरासी रामदीन छुट्टी की अर्जी लेकर आयाl कारण पढ़ा तो देखा कि पत्नी बीमार है और देखभाल करने वाला कोई नहीं हैl डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया थाl इसीलिए रामदीन 15 दिन की छुट्टी ले रहा थाl सुधीर ने पूछा कि तुम्हारा बेटा और बहू तुम्हारी पत्नी की देखभाल नहीं करतेl यह सुनकर रामदीन खुद को रोक ना सका और फफक-2 कर रोने लग गयाl सुधीर ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया थाl उसकी आँखों से निकलने वाली अश्रुधारा ने सुधीर को एक पल के लिए बिचलित कर दियाl

रामदीन बोला, "साहब, अपने जीवन की सारी जमा पूंजी मैंने बेटे की पढाई पर खर्च कर दीl" सोचा था कि पढ़–लिख कर कुछ बन जाएगा तो बुढ़ापे की लाठी बनेगाl मगर शादी के छः महीने बाद ही वह अलग रहता हैl उसे तो यह भी नहीं मालूम की हम लोग जिन्दा हैं या मर गएl ऐसा तो कोई बेगाना भी नहीं करता, साहबl काश! मेरी लड़की पैदा हुई होती तो आज संकट की इस घड़ी में हमारा सहारा तो बनतीl इतना कहकर रामदीन चला गयाl सुधीर ने उसकी अर्जी तो मंजूर कर ली मगर उसके ये शब्द कि "काश! मेरी लड़की पैदा हुई होती", उसे अन्दर तक झकझोरते चले गएl एक वह था जो लड़की के पैदा होने पर खुश नहीं था और दूसरी ओर रामदीन लड़की के ना होने पर पछता रहा थाl

सुधीर सारा दिन इसी कशमकश में रहाl कब पांच बज गए उसे पता ही नहीं चलाl छुटी होते ही वह ऑफिस से बाहर निकला और उसके कदम अपनेआप ही सिविल हॉस्पिटल की तरफ बढ़ने लगेl

मैटरनिटी वार्ड में दाखिल होते ही उसने अपनी पांच दिन की नन्ही बच्ची को प्यार से पुचकारना और सहलाना शुरू कर दियाl मालती सुधीर में आये इस अचानक परिवर्तन से हैरान थीl अपनी बच्ची के लिए सुधीर के दिल में प्यार उमड़ आया थाl वह आत्ममंथित हो चुका था और उसे अहसास हो गया था कि एक लड़की जो माँ-बाप के लिए कर सकती है, एक लड़का वह कभी नहीं कर सकताl उसे रामदीन के वह शब्द अब भी याद आ रहे थे कि काश! मेरी लड़की ...l