अहिंसावादी / एस. मनोज
मंगला अपन संगीक संग ओकर सासुर गेल रहै। रातिमे बड़ नीक सँ खान पान भेलै, मुदा बिछौन तेहन न भेंटलै जे ओ राति के नीन आ चैन दूनू भोतिया देलकै। बिछैनमे सह-सह उड़ीस। ओ कखनहुँ बिछैन झाड़ै, कखनहुँ उड़ीसके मारै। अहि कराट सँ ओ कराट आ ओ कराट सँ अहि कराट करैत राति बीतलै।
भोरे मंगला कुटुम सँ पूछलकै—यौ कुटुम, अहाँ सभ अहि खाट पर कोना सूतै छियै? खाटमे सह-सह उड़ीस अछि, एकर कोनो निदान नहिं करै छियै? कुटुम जकर नाम दिनेश रहै, मंगलाक गप्प सुनि लजा गेलै आ सकुचैते बाजल—आय एकर निदान क' दै छियै आ ओ खाटकें उठाक बाहरमे घ' अइलै।
किछ कालक बाद जखन खाट पर रौद पड़ै लागलै त'दिनेश एकटा डंटा ल' क' खटियाक रस्सी झाड़ै लागल। खटिया सँ उड़ीस खसै त' दिनेश ओकरा मारै नहिं। इ देखि मंगला बाजल—यौ कुटुम उड़ीसकें मारने जैयौ।
दिनेश बाजल—नहिं, नहिं। जीव हत्या नहिं। हमसभ एकटा पंथके मानैत छियैक आ जीव हत्या नहिं करैत छियै।
मंगलाक उत्सुकता ओ अहिंसावादी पंथके बारेमे जानै ल' बढ़लै आ ओ पूछलक—ओ पंथके मानै बला कतेक लोक एतय होयबै? दिनेश बाजल—सम्पूर्ण टोल।
मंगला ओ पंथ सँ सम्बंधित आओर किछ किछ पूछैत रहल आ फेर बाजल—अच्छा त' अहाँ उड़ीस झाड़ने जैयौ आ हम मारने जैबै।
दिनेश मंगलाक रोकैत बाजल—नहिं, नहिं। हम सभ अपना सामने जीव हत्या नहिं हुअ दै छियैक आ ओ फेर उड़ीस झाड़ै लागल।
कनि कालक बाद चारिटा घुड़सवार गड़ामे रायफल टाँगने ओतय अयलै। सभक भेष अंगुलीमाल डाकू नहैत लागै रहै। ओमे सँ एगो दिनेश कें पूछलकै—इ के छथुन्ह दिनेश?
दिनेश निर्विकार भाव सँ बाजल—हमर बहनोइक संगी छथिन्ह। अहिना घूमै आयल छथिन्ह।
ओ फेर पूछलकै—कोनो विशेष गप्प नहिं न?
दिनेश—नै।
फेर ओ सभ दिनेशकें दोसर दिस ल'जा क' किछ किछ गप्प कयलकै आ चलि गेलै।
मंगला दिनेशकें पूछलकै—इ सभ गोटें के छलाह?
दिनेश बाजल—इ सभ हमरे गामक ओ टोलक लोक छथिन्ह। अपन गोतिया सँ जमीनी विवाद छेन्ह, तें स' मरै-मारै पर उतारू छलाह।
मंगला अपना मोनमे किछ गुन-धुन करैत सोचय लागल—ई सभ केहन अहिंसावादी पंथके पथिक छथि जे उड़ीस त'नहि मारैत छथि, मुदा मनुख मारै ल' उद्घत छथि?