अहिल्या / शोभना 'श्याम'
"वाह भाभी, क्या खाना बनाती हो गजब। अपना यार कितना लकी है, लाखों में एक बीबी मिली है।"
"सच भाभी, इनके मुँह से मैंने आज तक किसी महिला कि इतनी तारीफ नहीं सुनी जितनी आपकी, इनकी माँ की भी नहीं-सुगंधा भाभी जैस खाना तो कोई बना ही नहीं सकता, सुगंधा भाभी घर को कैसे चमका कर रखती है, क्या सजावट है, घर के हर चप्पे पर उनके कलात्मक व्यक्तित्व की मुहर है, सुगंधा भाभी के सजाये इकेबाना देखोगी तो देखती रह जाओगी दो फूलों को भी इतनी सुंदरता से सजाती है कि बस कमरे में बहार आ जाती है सुगंधा भाभी ये, सुगंधा भाभी वो..."
"...और गाना, गाने की तारीफ भूल गयीं...?"
"हाँ गाना भी, कोई एक दो बात हो तो कहूँ, सच भाभी जब तक आपसे मिली नहीं थी बहुत ईर्ष्या होती थी आपसे, लेकिन आपके मधुर व्यवहार ने ऐसे अपना बनाया कि ईर्ष्या कि जगह श्रद्धा ने ले ली है मुझे भी आपसे बहुत कुछ सीखना हैं ...लेकिन आज तो पहलेआपकी मीठी आवाज में एक गाना सुनना है भाभी, बहुत तारीफ़ सुनी है इनसे।"
"सुमिता डिअर, एक कमी भी है इस सर्वगुणसम्पन्न नारी में ... कितनी भी तारीफ़ कर लो, बदले में बस एक फीकी मुस्कान ...और अपने यार को देखो जैसे सांप सूंघ गया हो, अपनी ही बीबी की तारीफ से जलता है स्सा...ला...!"
"भाभी मुझे आपका बोन्साई का कलेक्शन देखना है ज़रा लॉन में चलो न।"
हाँ भाभी अब बताओ आखिर क्या बात है, अपनी तारीफ़ सुनते हुए हर स्त्री की आँख में गर्व और चेहरे पर चमक होती है लेकिन आप ...जैसे जैसे तारीफ होती जाती है, आपकी आँखों में गर्व की जगह दर्द ही घनीभूत होता जाता है। क्यों भाभी? "
" क्या बताऊँ सुमिता, मैंने आज तक किसी को नहीं बताया लेकिन आज न जाने क्यों मन खुद को तुम्हारे सामने खोलना चाहता है। सुमिता! मेरे गुणों की इतनी प्रशंसा करते हुए जिस पति को सब लोग बहुत किस्मत वाला कह देते हैं, उसे तो मेरे सांवले रंग के पार मेरा कोई गुण, कोई खूबी कभी दिखी ही नहीं। मेरी सारी कोमल भावनाएँ, सारे अरमान उसके मौन तिरस्कार की चट्टान से टकरा-टकरा कर खुद भी पथरा गए हैं। अब कोई राम मुझे मेरे गौतम के दिए श्राप से मुक्त नहीं कर सकता।