अेक सजोरी पोथी : राजेराम रा दूहा / निशान्त / कथेसर
मुखपृष्ठ » | पत्रिकाओं की सूची » | पत्रिका: कथेसर » | अंक: अक्टूबर-दिसम्बर 2012 |
श्री राजेराम जी री दूहां री आ पैली पोथी है। आज घणकरी-सी कवितावां इत्ती अमूर्त हुवै कै कीं री समझ में नीं आवै। मूर्त हुवै तो बिना दीठ री। पढल्यो अर न पढल्यो अेक बरोबर लागै। बा कविता कविता कठै जकी आदमी नै हुंसलो देय’र दो पांवडा आगै नीं बधावै। आदमी रै भेजै में कीं हलचल नीं मचावै। राजेराम जी पोथ्यां पढ़-पढ़’र दिमाग सूं कविता लिखणिया कवि नीं है। बां तो जीवण री पोथी पढ’र दिल सूं कविता मांडी है।
सै सूं बढिया बात आ है कै बै आपणै लोक सूं भोत गै’रा जुड़्या है। जियां कोई बड़ी रचना मायड़भाषा में ई रची जा सकै बियां ई कोई बड़ी रचना आपणै लोक नै लेय’र ई हुय सकै। आं दूहां में भाजा दौड़ी करतै जीवण री अेक मनमोवणी रील-सी चालै।
ऊंचा-ऊंचा चूंडा हुंता, आंगी अर फतूई।
हाळी आगै सारै दिन, काट्या करती बूई॥
रोही जावां रोजगा, पकड़े फिरां सां’ड।
भेळी करां भांकड़ी, बांध-बांधगे पांड॥
राजेराम जी आपरै अतीत नै कविता रो विषय बणायो है। बणांवता भी क्यूं नीं? बां रो अतीत हो भी तो कित्तो सू’णो!
काकडिय़ां री लीरी करगे, लगाया करता लूण।
सारै दिन ठोक्या करता, रैया करता धूण॥
बां बुढापै में आय’र कविता लिखणी सरू करी तो बुढापै पर तो लिखणो ई हो। बुढापै पर इत्ती सांतरी कवितावां म्हैं आज तांई किणी भाषा में नीं पढी।
च्यार-च्यार रोट खांवतो, अेक थाळी खीर।
अब दो रोटड़ी भावै मसां, तीजी में ना सीर॥
चालूं जद चक्कर आवै, रैयी कोनी साच।
पांच कोस दीखतो, आज फिरग्यो काच॥
बुढापै में जोड़ायत बिना जीणो कोई जीणो नीं। लोक भी ईं बात री साख भरै।
जोड़ै बिना जिंदगी, होज्यै जमा निरास।
जीणो तो जरूरी है पण, मजो कोनी खास॥
बै जीण में मजो नीं हुंवतां भी जीण नै जरूरी मानै। बां री कविता बिच्यार कविता है। बै डूंगी सोच रा धणी है। चंद्रसिंह जी पर लिखेड़ो बां रो ओ दूहो बां पर भी बित्तो ई फिट्ट बैठै-
चंद्र चमक्यो चांद ज्यूं, मानै सो’ संसार।
धरती धोरां जलमियो, सोच समंदरां पार॥
बां री प्रगतिशील सोच भी कई दूहां में परतख देखीजै। गाम रै भोळै-ढाळै लोगां नै बै सावचेत करै। नसै सूं भी अर नेतावां सूं भी। गामां री गरीबी रो ईं सूं बड़ो चितराम और के होसी?
बूढियै री धोती पाटी, जोतियै री जूती।
बीनणी रो सूट पाटग्यो, मा पड़ी है सूती॥
ईं देस री ईं सूं बड़ी विडम्बना के हुयसी कै अेक कमेरण पाट्यै पैरण कारण बारै नीं निकळ सकै। आं री कविता में बारै सूं गाम में आवणिया कालबेलिया, भोपा-भोपी, लुहार-लुहारी, सींटी काटिया, कूचिया, गुवारण्यां आद लोग भी आया है। आं लोगां रै प्रति बै बड़ा संवेदनशील है, खासकर’र बां री लुगाई जात प्रति-
भोपो बोलै ढाई टप्पा, भोपी रै मंडै कांस।
बा खींचै फेर राग नै, चढै कुपाळी सांस॥
आम आदमी री नियति रा आं सूं बडा चितराम कांई हुयसी-
दुनिया देखूं रोजगो, दम लागै नीं खास।
चंद आदमी मजा करै, बाकी फिरै निरास॥
पुराणै जमानै रा आदमी होवता थकां भी बां नुवैं हालातां, नुवीं अबखायां, नुवैं संघर्ष माथै खूब लिख्यो है।
भोमी आगी पगां तळै, अब कठै काढां खूड।
जणसंख्या नै रोकण रो, बणायो कोनी मूड॥
गई बीनणी आपणी, सोनोग्राफी संग।
स्यात रैवांला साथिया, आपां तो बैरंग॥
नुंवै जमानै री नुंवी बातां सागै नुवां सबद भी आणा ही हा। जियां कै मूड, फुल्ल, माक्र्सवादी, बैरंग, घंटा, सोनोग्राफी, टैस्ट, टोप आद। नूंवी सोच अर नूंवा सबद बां नै जरूर भण्यै-गुण्यै लोगां खासकर’र बांरै कवि बेटै रामस्वरूप किसान रीसो’बत सूं मिल्या है। बां आपरै अेक दूहै में इसी सो’बत रो मैतब भी बतायो है। पण ईं बात सूं बां रो आप रो मै’तब जाबक ई कम नीं हुवै। आ तो बां री सामरथ ही है जको बां कीं लोगां सूं हासल कर्यो।
राजेराम जी सुंदरता पर रीझणिया कवि है-
पूरो कद सूणो चैरो, बोली बौत प्यारी।
बेमाता दया करदी, दे दी चीज सारी॥
इयां कर’र बां जीवण, समाज अर आपरै टेम रो कोई पख नीं छोड्यो। जे सै’ गिणन लागां तो ईं पोथी जिडी कई पोथ्यां बणज्यै। आखर में अेक दूहो और आप लोगां री निजर करूं जकै रो संकेत दूर तांई जावै-
बेटी बिद्या होयां पछै, फीको लागै घर।
आछा-माड़ा किस्याक है, ओ लागै डर॥
उम्मीद है आ पोथी गाम-गाम में पढी जासी।