आँख का तिल / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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कमला हाथ नचा–नचाकर अपनी बहू उमा को तानों से छीलने पर तुली थी–"बाप के घर से पोटली बगल में दबाकर चली आई. कंगाल के घर से भी कोई इस तरह नहीं आता। दहेज नहीं लाएगी तो तुझे यहाँ एक घड़ी भी नहीं टिकने दूँगी। तूने समझ क्या रखा है?"

उमा बुत की तरह चुपचाप खड़ी थी–भावहीन, होंठ सिले हुए. शर्माजी भीतर तक दहल गए. उसे इस तरह चुपचाप देखकर वे कमला के पास आकर ठिठके. वह फिर बके जा रही थी। शर्माजी ने दृढ़ स्वर में कहा–"इधर सुनो, तुम भी दहेज नहीं लाई थीं। फिर भी मेरे साथ पच्चीस साल से सम्मानपूर्वक इस घर में रह रही हो। उमा भी बिना दहेज लाए इस घर में पच्चीस बरस तो रही ही सकती है।"

कमला का चेहरा फक हो गया। फिर उससे कुछ भी बोलते न बना।

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