आँगन में गौरैया:डॉ.कुँवर दिनेश सिंह / सुधा गुप्ता

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कविता के संसार में रहने वालों को विभिन्न अनुभवों से गुज़रना पड़ता है-कोई संग्रह पढ़ने को मिलता है-कविता अच्छी होती है, किन्तु प्रस्तुतीकरण की त्रुटियों और कमियों के कारण अच्छी-भली कविता 'बेचारगी' का शिकार हो जाती है, कभी प्रस्तुतीकरण आकर्षक होता है; किन्तु सामग्री के नाम पर निराशा हाथ लगती है।

जहाँ प्रस्तुतीकरण और सामग्री का अभूतपूर्व सन्तुलन हो। बल्कि प्रतिस्पर्धा हो कि कौन श्रेयस्कर है, ऐसे ही काव्य को 'मणि-कांचन' संयोग कहा जाता है! डॉ.कुँवर दिनेश सिंह का हाइकु-संग्रह 'आँगन में गौरैया' एक ऐसा ही 'मणि-कांचन' संयोग है। प्रस्तुति नयनाभिराम, सौन्दर्यबोध एकदम परितृप्त! हाइकु इतने खूबसूरत कि जिनकी प्रशंसा को शब्दकोश की शरण में जाकर भी मन-माफ़िक शब्द न मिलें!

हाइकु आज हिन्दी में पर्याप्त लोकप्रिय विधा है, तथापि 'हाइकु' की आत्मा के साथ सख्य भाव स्थापित करने वाले नाम अँगुली पर गिनाए जा सकते हैं।

डॉ.कुँवर दिनेश सिंह अंग्रेज़ी भाषा के निष्णात विद्वान्, सहृदय कवि, समर्थ समालोचक: एक स्थापित व्यक्त्वि। वहीं हिन्दी के भी ख्यातनामा कवि और हाइकुकार हैं, यह हाइकु-जगत् का सौभाग्य है। अपने प्रथम हाइकु-संग्रह 'आँगन में गौरैया' के बलबूते पर आप प्रथम पंक्ति के हाइकुकार की गरिमा के अधिकारी बन गए हैं। आपके द्वारा रचित हाइकु कसौटी पर खरे उतरे हैं, प्राणवान् हैं: सारांश यह कि कल्पना-वैशिष्ट्य और अभिव्यक्ति-कौशल का सुन्दर संगम है इन हाइकु में! प्रथम और तीसरी पंक्ति में अन्त्यानुप्रास ने विशेष लय और गीतात्मकता कि निर्मिति की है। कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं-

फूले बादाम / हरे तोतों के दल / भूले आराम।

सरसों फूली / हरी बाहों पर पीली / पँखुरी झूली।

छैल चिनार / रंग बदल रहा / ऋतु-विचार।

पिंक बुराँश / सदा-सदा के लिए / ठहरे काश!

ऐसे सामर्थ्यवान्, जीवन्त, वास्तविकता से ओतप्रोत हाइकु वही लिख सकता है, जिसे प्रकृति से अटूट, गहरा लगाव हो और जिसमें सूक्ष्मपर्यवेक्षण की क्षमता हो।

शीर्षक हाइकु की बात किए बिना प्रसंग अधूरा रहेगा-

आकुल आए / आँगन में गौरैया / आस लगाए।

कुँवर दिनेश सिंह ने गौरैया कि फुदकन में छिपी आतुरता, दाना-दुनका पाने की प्रत्याशा सम्बन्धी प्रत्येक भंगिमा को अपने छवि-चित्र में क़ैद कर लिया है! सन्ध्या-समय चिड़ियों की चहचहाहट और झुण्डों में उड़ना कितना सहज हैः

शाम की बेला / चिड़ियों के झुण्ड की / रेलमपेला।

दो अनूठी-अछूती कल्पना-छवियों की कुशल अभिव्यंजना दर्शनीय हैः

काले बादल / चाँद निकला आज / ओढ़े कम्बल।

व्योम हवेली / शाम की दुल्हन / नई नवेली।

एक पृष्ठ पर एक हाइकु की सज्जा के साथ हाइकु के अनुरूप सर्वजीत सिंह के रेखांकन बहुत प्रभावशाली बन पड़े हैं। हिन्दी हाइकु-संसार को डॉ.कुँवर दिनेश सिंह की समर्थ लेखनी से बहुत आशाएँ हैं।

आँगन में गौरैया (हाइकु-संग्रह) : कुँवर दिनेश, मूल्यः225 रुपये (पृष्ठ-64, संस्करण-2013, प्रकाशक,अभिनव प्रकाशन, 4424, नई सड़क, दिल्ली-110006 -0-