आँसू और हँसी / खलील जिब्रान / सुकेश साहनी
Gadya Kosh से
(अनुवाद :सुकेश साहनी)
नील नदी के किनारे एक मगर और लकड़बग्घे की मुलाकात हो गई. दोनों ने परस्पर अभिवादन किया।
लकड़बग्घे ने पूछा, "कैसी कट रही है, भाई?"
मगर ने उत्तर दिया, "बहुत बुरा हाल है। जब कभी मैं मारे दर्द और दुख के रो पड़ता हूँ तो सारे जीव-जन्तु कहते हैं...उंह, ये तो घड़ियाली आँसू हैं। उनके ये शब्द मेरे दिल को कितना आहत करते हैं, बताना मुश्किल है।"
लकड़बग्घे ने कहा, "तुम तो अपना ही रोना ले बैठे हो, कभी एक क्षण के लिए मेरे बारे में सोचा है! जब मैं प्रकृति के सौन्दर्य को देखता हूँ, दुनिया के आश्चर्य और विचित्रताओं से खुश होकर हँस पड़ता हूँ। तब इसी जंगल में लोग कहते हैं, अरे...कुछ नहीं! यह तो लकड़बग्घे की हँसी है।" ,