आंकी बांकी इठलाती हुईं रेखा / जयप्रकाश चौकसे

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आंकी बांकी इठलाती हुईं रेखा
प्रकाशन तिथि : 11 जुलाई 2018

कुछ दिन पूर्व विदेश में आयोजित एक पुरस्कार समारोह में रेखा ने जमकर नृत्य प्रस्तुत किया। उनके कार्यक्रम में नृत्य उन्हीं गीतों पर प्रस्तुत किया गया, जो अमिताभ बच्चन एवं रेखा अभिनीत फिल्मों में थे। इस तरह वह प्रस्तुति एक तरह से पैगाम की तरह थी या कहें कि प्रेम-पत्र की तरह थी। कुछ प्रेम प्रकरण स्मृति कक्ष में ही जमे नहीं रहते, वे शिराओं में रक्त के साथ बहते रहते हैं। सबसे बड़ी बात यह कि उम्रदराज होते हुए भी वे युवा की तरह नाचीं। ज्ञातव्य है कि रेखा की पहली फिल्म 'सावन भादो' 1969 में प्रदर्शित हुई थी और उस समय उनकी उम्र चौदह वर्ष प्रचारित की गई थी। इस तरह वे आज 63 वर्ष की हुईं, परंतु कुछ लोगों का कहना है कि उस समय वे सत्रह वर्ष की थीं। उसी वर्ष अमिताभ बच्चन भी अब्बास साहेब की 'सात हिन्दुस्तानी' में प्रस्तुत हुए थे।

बहरहाल, उम्र के आंकड़ों से क्या लेना-देना? वे जमकर नाचीं। रेखा हेमा मालिनी, वैजयंतीमाला या श्रीदेवी की तरह शास्त्रीय नृत्य में प्रशिक्षित नहीं हैं। हेमा मालिनी तो आज भी रियाज करती हैं और एक नृत्य पाठशाला भी चलाती हैं। वह प्रस्तुति एक प्रेम-पत्र की तरह ही थी। याद आते हैं निदा फाज़ली जिनकी कविता की पंक्ति है 'यह खत है कि बदलती हुई ऋतु या नींबू की क्यारी में खिले हुए चांदी के कई कंगन'। उस समय वे दर्द की पायल बांधकर नाचीं। रेखा और अमिताभ बच्चन के जन्मदिन में भी एक दिन का अंतर है। रेखा अपनी पहली फिल्म से लेकर 1977 तक एक फूहड़ अभिनेत्री मानी जाती थीं और विवादों की गिज़ा पर लोकप्रिय बनी हुई थीं। फिल्मकार दुलाल गुहा की फिल्म 'दो अनजाने' में अमिताभ बच्चन के साथ काम करते हुए उन्होंने स्वयं को बदलना प्रारंभ किया गोयाकि अमिताभ बच्चन उनके लिए प्रोफेसर हिगिन्स बनकर आए। बर्नाड शॉ के नाटक 'पिगमेलियन' के पात्र प्रोफेसर हिगिन्स एक अशिक्षित लड़की को श्रेष्ठि समाज के तौर-तरीके सिखाकर एक गरिमामय लेडी की तरह प्रस्तुत करते हैं। प्रोफेसर हिगिन्स सिखाते-सिखाते शिष्या से प्रेम करने लगते हैं। कन्या अनुग्रहित है और कभी-कभी इस अहसास की भावना को प्रेम भी समझ लिया जाता है। प्रोफेसर हिगिन्स ने अपने एक मित्र से शर्त लगाई थी कि वे किसी भी अनगढ़ कन्या को प्रशिक्षित करके 'लेडी' बनाकर प्रस्तुत कर सकते हैं। जब कन्या को शर्त की बात मालूम होती है तब उसे मानसिक आघात लगता है कि सामाजिक व्यवहार की प्रयोगशाला में वह महज एक गिनी पिग थी। इस नाटक से प्रेरित फिल्म 'माय फेयर लेडी' सफल रही और अनेक ऑस्कर से भी नवाजी गई। 'माय फेयर लेडी' का एक गीत था 'व्हाय कान्ट ए वुमन बी लाइक ए मैन'। इसी फिल्म की प्रेरणा से अमित खन्ना ने देव आनंद और टीना मुनीम अभिनीत फिल्म 'मनपसंद' बनाई जिसका गीत-संगीत अत्यंत लोकप्रिय हुआ था। अमित खन्ना ने विशुद्ध हिन्दी में गीत लिखे और राजेश रोशन ने माधुर्य रचा था।

बहरहाल, अपने 'हिगिन्स' की प्रेरणा और मार्गदर्शन से वे ऐसी बदलीं कि उमराव जान अदा हो गई और दर्शक उनके दीवाने हो गए। दर्शक की दीवानगी ही मनोरंजन उद्योग की मशीन का तेल है, जिसे नहीं डालने पर मशीन जाम हो जाती है। पवन करण ने बताया कि महाभारत काल खंड में रथ के पहियों में डाले जाने वाले तेल को 'ओनन' कहते थे। अपने काव्य संग्रह 'स्त्री शतक' के लिए उन्होंने अनेक पुरातन आख्यानों का अध्ययन किया है। इस प्रयास में वे आख्यानों के माध्यम से वर्तमान के संकट को समझने का प्रयास कर रहे हैं। टीएस एलियट की पंक्ति है 'टाइम प्रेजेन्ट एन्ड टाइम पास्ट, आर बोथ परहेप्स प्रेजेन्ट इन टाइम फ्यूचर'। समय का चक्र धरती की तरह ही घूमता है। समय की नदी में अभिनव को तलाश करता व्यक्ति पारम्परिकता के भंवर में फंसकर डूबने भी लगता है तो उसकी सतह के ऊपर दिखती उंगलियां इतिहास लिखती हैं। रेखा जितनी बेबाक हैं, उनका प्रेम उतना ही अपने में सिमटा हुआ है।

रेखा की सखा फरजाना ही उसके सारे काम देखती हैं। केवल फराजना ही रेखा को समझती हैं और उन पर विश्वसनीय पुस्तक लिख सकती हैं। उन्हें मालूम है कि कब रेखा की इडली में गिरा एक कॉकरोच एक प्रेम कथा का रुख बदल देता है। रेखा ने दिल्ली के एक धनाढ्य व्यक्ति से विवाह किया था परंतु उसने आत्महत्या कर ली। कई लोगों ने इसके लिए रेखा को दोषी ठहराया परंतु बाद में सघन जांच हुई और रेखा का कोई दोष नहीं पाया गया। ज्ञातव्य है कि गोवा के एक धनाढ्य व्यक्ति ने लीना चंदावरकर से विवाह किया था परंतु उसने भी आत्महत्या कर ली। कोई व्यक्ति क्यों आत्महत्या करता है, यह कभी मालूम नहीं पड़ता। सितारों की छवियां अवचेतन पर ऐसी छाई रहती हैं कि उसे पाने का जुनून बन जाता है परंतु पाते ही अंतरंगता के क्षणों में छवि के कारण हाथ-पैर कांपने लगते हैं। यह कमजोरी ही आत्महत्या का कारण बन जाती है। एक सैंतीस वर्षीय महिला केन्द्रित विषय पर रसूखदार निर्माता विजयपत सिंघानिया ने फिल्मकार रमेश तलवार और खाकसार को पटकथा सुनाने रेखा के दफ्तर भेजा। फरजाना ने ही व्यवस्था की थी। कमरे में रेखा मौजूद नहीं थीं और बताया गया कि वे साथ वाले कक्ष में बैठकर पटकथा सुनेंगी। रमेश तलवार के साथ वे 'बसेरा' नामक फिल्म अभिनीत कर चुकी थीं। लंबे समय तक रमेश तलवार यश चोपड़ा के सहायक रहे थे, अत: रेखा के साथ काम कर चुके थे। इस तथ्य के बावजूद यह परदेदारी क्यों की गई? संभवत: अब वे 'उमराव जान अदा' हो चुकी थीं। बहरहाल पटकथा सुनने के बाद उनका फरमान बजरिये फरजाना के आया कि वे इस फिल्म के कलाकार व तकनीशियन खुद चुनेंगी गोयाकि फिल्म उनकी उंगली पर नाचेगी। उनके इस रवैये के कारण फिल्म रद्‌द कर दी गई। फिल्म के बनने में जाने कितने पेंच होते हैं और 'ओनन' की कीमिया मालूम होना जरूरी है।