आंटियो / नीरज दइया

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बै दोनूं बाथम-बाथ हुया। सेवट दोनू आपो-आप रा गाभा पैर लिया तो बा जोर जोर सूं हंसण लागी। उण नै इण ढाळै गैली दांई हंसती देख’र उण बरजियो- बावळी इत्ती जोर-जोर सूं क्यूं हांसै?

बा बोली– आज थारी करड भांग दी.. इण खातर मोदीजू....

- करड ... क्यां री करड ?

- आ ई कै थे जात-पांत अर ऊंच-नीच नै पोखण वाळा आज अठै पोखीजग्या। आज कठै गयो थांरो भींटीजणो .... आज तो ऐडी सूं चोटी तांई भींटीजग्या !

- गैली है कांई.. देखो ओ आंटियो कर राख्यो हो। उण बीं नै आपरो हाथ ऊंचो कर दिखायो जिण में बीचली आंगळी माथै बीजी आंगळी चढा राखी ही।

बा उण रै हाथ रै लमूटगी अर छेकड़ खासी खेचळ पछै आंटियै नै तोड़ा दियो। भळै गुमान करती हंसण लागी अर उण री आंख्यां में सवाल हो- अबै ?

– गैली सदा गैली रैसी.. अठीनै देख ओ कांई है.. उण दूजो हाथ दिखायो जिण मांय आंटियो कर राख्यो हो। आंटियो देखतां ई उण री हंसी रै ब्रेक लागग्यो।