आंशिक जिया गया जीवन / ओशो
प्रवचनमाला
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मौत से डरने का मतलब आंशिक रुप से जिया गया जीवन अक्सर मौत का भय, तीव्रता और मजबूती से उभरता है, और इस सुंदरता, दोस्ती और प्रेम को छोड़ने का भय होता है। मौत की इस निश्चितता का सहज स्वीकार कैसे संभव है?
पहले, यह सहज स्वीकार केवल तभी संभव है जब मौत निश्चितता है। सहज स्वीकार मुश्किल है जब चीजें अनिश्चित हैं। यदि तुम जानते हो कि आज तुम मरने जा रहे हो, मृत्यु का पूरा डर गायब हो जाएगा। समय बर्बाद करने का क्या फायदा ? तुम्हारे पास जीने के लिए एक दिन है: जितना संभव है उतनी गहनता से जियो, जितना संभव है उतनी संपूर्णता से जियो।
हो सकता है मृत्यु न आए। मृत्यु उन लोगों को नहीं आती जो बहुत तीव्रता और बहुत संपूर्णता से जीते है।
और अगर यह आती भी है, वे लोग जो संपूर्णता से जिये हैं, इसका स्वागत करेंगे क्योंकि यह बहुत बडी राहत है। वे जिंदगी से थक गए हैं, वे इतनी गहनता और संपूर्णता से जिये हैं, कि मृत्यु एक दोस्त की तरह आती है। जैसे कि सारा दिन कठिन परिश्रम करने के बाद रात गहन विश्राम के रूप में आती है, एक सुंदर नींद के रूप में, इसी तरह मृत्यु जीवन के बाद आती है। मृत्यु के बारे में कुछ भी बदसूरत नहीं है; इससे अधिक निर्मल तुम कुछ नहीं पा सकते।
यदि मृत्यु का भय प्रवेश करता है, तो इसका मतलब है कि कुछ कमियां हैं जो जीने के द्वारा पूरी नहीं हुई हैं। तो मृत्यु के भय बहुत ही सांकेतिक और मददगार हैं। वे दिखाते हैं कि तुम्हारा नाच थोडा तेज चले, कि तुम अपने जीवन की मशाल को दोनों छोरों से एक साथ जलाओ। इतनी तेजी से नाचो कि नाचने वाला गायब हो जाये और बस नाच ही रह जाये। तब मृत्यु के किसी डर को तुम्हारे पास आने की संभावना नहीं है।
“और इस खूबसूरती, दोस्ती और प्रेम को छोडने का भय”। यदि तुम पूरी तरह यहां वर्तमान में हो, तो कल की परवाह किसे है? कल खुद अपना ख्याल रखेगा। जीसस सही है जब वे ईश्वर से प्रार्थना करते हैं, ‘हे ईश्वर, मुझे रोज का खाना दो’।
वे कल के लिए भी नहीं पूछ रहे हैं, सिर्फ आज ही अपने में पर्याप्त है।तुम्हें सीखना होगा कि हर पल अपने आप में पूर्ण है।इस सब को छोडने का डर तभी आता है क्योंकि तुमने तुम हर पल को पूर्णतया नहीं जी रहे हो; अन्यथा कोई समय नहीं है, और न कोई मन है, और न कोई स्थान है।
एक बार एक व्यापारी से पूछा गया, “तुम्हारी क्या उम्र है”?
उसने कहा, “तीन सौ साठ साल”।
वह व्यक्ति इसका विश्वास नहीं कर सका। उसने कहा, “कृपया, इसे दोबारा बतायें। शायद मैने ठीक से नहीं सुना”।
व्यापारी ने चीखते हुए कहा, “तीन सौ साठ साल!”व्
यक्ति ने कहा, “मुझे क्षमा करें लेकिन मैं इसका विश्वास नहीं कर सकता। तुम साठ साल से ज्यादा के नहीं दिखते!”
व्यापारी ने कहा, “तुम भी सही हो। जहां तक कलेंडर के बारे में बात है मैं साठ साल का हूं। लेकिन जहां तक मेरे जीवन का संबंध है मैं किसी से भी छ गुना ज्यादा जिया हूं। इन साठ सालों में मैं तीन सौ साठ साल जी चुका हूं।
यह तीव्रता पर निर्भर करता है।जीने के दो तरीके हैं। एक भैंस का तरीका है। यह समानांतर जीती है, एक रेखा में। दूसरा तरीका बुद्ध का है। वे ऊर्ध्वगामी, ऊंचाई और गहराई में रहते हैं। तब हर पल अनंतकाल बन सकता है।
मामूली बातों में अपना समय बर्बाद न करो, लेकिन जियो, गाओ, नाचो, प्यार करो पूर्णता और अधिकाधिक छलकते हुए जितना कि तुम सक्षम हो। कोई डर हस्तक्षेप नहीं करेगा और तुम चिंतित नहीं होगे कि कल क्या होगा। आज अपने आप में पर्याप्त है। उसे जीया जाए तो यह इतना भरपूर है; किसी और चीज के बारे में सोचने के लिये जगह नहीं बचती। न जीयी गयी जिंदगी में, परेशानियां आती हैं और डर आते हैं।सिर्फ जीओ, प्यार करो, और हर पल को परमानंद बनाओ। सभी डर गायब हो सकते हैं।
(सौजन्य से - ओशो न्यूज लेटर)
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