आइये ‘सरकार’ को हम बाँट लें / सुशील यादव
हम लोगो की खूबी है कि हम. मुद्दों को ,लोगों को ,सिद्धांतों को,सुविधाओं को जाति-धर्म,भाषा, समाज.या लोकतंत्र को अपनी सुविधानुसार, आपस में आपस में बाँट लेते हैं।
बिना बांटे हमें शर्म सी आती है
‘कोई क्या कहेगा’, वाली सोच से घिर जाते हैं।
नहीं बाटने वाली चीजे भी भगवान ने बनाई है वो है ‘उपर की आमदनी’|इस आद्रिश आमदनी को लोग सीधे –सीधे देख तो नहीं पाते,केवल अनुमान लगाते रहते हैं। रहन-सहन में एकाएक बदलाव ,हाव-भाव में रईसी झलक ,आस-पास के लोगो को चौकन्ना करने के लिए काफी होता है। लोग इंहे देख के बडबडाते रहते हैं , देखो अकेले-अकेले कैसे खा रहा है ,डकार ;लेने का नाम भी नही लेता है। क्या ज़माना है ?
बैसे ,हम खाने पीने के मामले में हेल्दी सीजन का इंतिजार करते हैं। इस मामले में’बसंत-बहार’ से बेहरत ऋतु हमें कोई दूसरा पसंद नहीं।
‘बहार’ हमारे तरफ जनवरी से दस्तक दे डालती है। हमने ‘बहार’ को बाँट लिया है। एक सप्ताह पिकनिक सैर सपाटे का ,अगले सप्ताह डागी-वागी शो ,फिर फूलो की प्रदर्शिनी बगैरह। आम जन के लिए बहार यहीं तक बहार-इफेक्ट देती है।
आफिस में ‘बहार’ के फुल फ्लेज्ड दिन, मार्च के अंतिम सप्ताह में आते हैं, पर्चेसिंग का मनमाना बुखार चढा रहता है। पर्चेसिंग का आफिसियल स्टाइल सब जगह प्राय: एक सा ही होता है।
प्राय:एक ही आदमी से तीन-तीन कोटेशन्स मंगवा कर, चाहे वो व्यवसायी गुड –तेल मूगफली बेचता हो, ,फ्रिज ,केलकुलेटर कागज ,पेसिल,फाईल कव्हर ,कंप्यूटर,फेक्स,फोटोकापी मशीन सब के आर्डर दे दिए जाते हैं।
खरीदी बाद आने वाले आडिट वालो की आखों के लिए, सुरमे का बंदोबस्त, फाईलो के चप्पे-चप्पे में किया जाता है।
बड़ा बाबू मातहत से पूछ लेता है ,फंस तो नहीं रहे ना ?कर दें दस्तखत ?
यही सवाल, अधिकारी, बड़े बाबू से औपचारिकतावश पूछ लेता है ?फंस तो नहीं रहे कहीं ?
कर दें आर्डर पास?
सबको ‘बहार’ आने का, और शुभ-शुभ बिदा हो जाने की बिदाई पार्टी, आर्डर पाने वाला , ‘मान –मनव्वल रेट’ तय हो जाने के बाद गदगद हो के देता है।
इस साल ‘बहार’ आने का जश्न फीका सा रहा।
सबके चहरे लटके हुए से थे।
आचार-संहिता के चलते बड़े-बड़े प्रोजेक्ट और पर्चेस-सेल के डिसीजन पेंडिंग रहे।
चलो कोई बात नहीं...... अब की बार जून-जुलाई की बरसात में ‘आनंदोत्सव’ मनेगा। कोई देखने वाला भी नही रहेगा ,सब नई-नई सरकार बनने –बनाने के फेर में लगे रहेंगे ?
वैसे बताए हुए , ‘बहार’ को बांटने का तजुर्बा हमारा कुछ ज्यादा हो गया है। मजा नही आता। या यूँ कहे बहार वाले खेल में अब दम नहीं रहा,सा लगता है।
वही टुटपूंजियागिरी अठ्ठनी लो, चव्वनी आगे खिसका दो। कुछ बड़ा खेला हो जावे तो मजा भी आवे।
हमने ठेके में पुल, सड़क,बाँध बिल्डिंग्स ,सब तो बनाए हैं। सरकार ने कहा तो ,आदिवासियों से ,महीने भर में फटाफट तेंदूपत्ते बिनवा दिये। जंगल में जब जैसा कहा गया,वैसी साफ –सफाई में लगे रहे। खदानों में से सारा माल निकाल के रख दिया।
यहाँ भी बात वही,.... अठन्नी वाली .......|यानी चवन्नी रखो चवन्नी फेको।
सामने वाला, चवन्नी ले के जो आखे ततेरता है, उससे बडी कोफ्त होती है जनाब।
इनको साइड-लाइन करना हमें लगता है ,’टपोरी दुनिया के लोकतंत्र’ के लिए बेहद जरूरी है। समय-समय पे सब को उनकी औकात दिखाते रहने से लेंन-देंन वाली दुनिया के पहिये घूमते रहते हैं वरना .......?
हमें इंतिजार है कि कब वोटिग मशीन्स में बंद परिणाम खुले?
दो-चार लोग जो हमारे पे-रोल में हैं अगर जीत गए तो हम सरकार बनने –बनाने में, पर्दे के पीछे वाला रोल निभा सकते हैं।
आप सब को मालुम है ,कटपुतली सी एम, आजकल जगह-जगह पाए जाते हैं।
एक, अपने इधर भी बनते ,चलते-फिरते, देखने की बरसो की ख्वाहिश है।
इसी ख्वाहिश के चलते हमने पैसा पानी की तरह, अपने’घोडो-गदहों’ पे लगाया-बहाया है।
चुनाव जीते हुए लोग तो, नर-नारायण केटीगरी के हो जाते हैं|हाथ लगाने नही देते।
उनका भाव आसमान छूता है। उनके खरीदे-बेचे जाने तक तो, कोई शपथ ले के राजभवन से वापिस आते मिलता है।
अपनी योजना है कि, कठपुतली सी एम् के भरोसे हम ठेके की दुनिया के बेताज बादशाह हो जायें।
यहा का गणित ही दूसरा है। समझो ,ग्यारह कमाओ ,एक रखो दस पास आन करो।
इस गणित में भी अलग, अपना मजा है|लेने वाले के ‘दस’ में चूना लगाने की गुंजाइश बनी रहती है ,क्यों कि उनको हजार हाथो का परसा खाने को मिलता है। वो परवाह नहीं करते किसने कितना दिया,....?कितना कम दिया ?
मुझे लगता है अच्छे दिन आने वाले हैं।
इस स्टेज में अगर सरकार एक की बन गई तो खूब मनमानी होगी|यहाँ दो ‘कमिया’ लगाओ। सरकार को बाटो,यही राजनीति है।
अपने गनपत राव या रामखिलावन दोनों में से किसी एक को, सी एम, दूसरे को डेपुटी सी एम बना देगे| काम चल जाएगा .......?
ये क्या......?
लोग मेरी कालर पकड़ कर जुतिया रहे हैं ,लात –घूसो से बचने के लिए मैने हाथ –पैर जो मारे तो पत्नी की पीठ में धमा-धम पड़ा गया। वो हडबडा के उठ बैठी ,मुझे झिझोड के जगाया।
बोली; आपको ये आजकल क्या हो गया है। दिन-रात ,सोते –जागते पालिटिक्स,,,,?
ज्यादा टी.वी तो मत देखा करो ...
मैंने चादर खीच के मुह ढक लिया ...
मेरे देखे सपने का ज्योतिषफल,आप में से अगर कोई बता सके तो मेहरबानी होगी।