आईना पूछे महिला से तेरी सूरत कहां है / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 08 मार्च 2021
हरिवंश राय बच्चन ने कहा था कि उनका सारा सृजन कार्य उनके भीतर बैठी महिला करती है। ग्वालियर के पवन करण के कविता संकलन का नाम है ‘स्त्री मेरे भीतर’। उन्होंने ‘स्त्री शतक’ में उपेक्षित, शोषित नारियों के दर्द का विवरण दिया है। मुगलकालीन उपेक्षित नारियों पर भी विवरण दिया है। हम यह आशा कर सकते हैं कि पवन करण महिला जीवन के अर्थशास्त्र पहलू पर कुछ लिखेंगे। हमारे दिन प्रतिदिन के जीवन और व्यवहार में भी नारी के कम शक्तिशाली होने की ओर बड़े मासूम से दिखने वाले संदेश छुपे होते हैं, जैसे शिष्टाचारवश यह कहा जाता है कि पहले आप। सिमॉन द ब्वॉ की किताब ‘सेकंड सेक्स’ में महिला के प्रति किए गए अत्याचार का विवरण दिया गया है। अनगिनत किताबें इस विषय पर लिखी गई हैं व फिल्में बनी हैं। महबूब खान की ‘मदर इंडिया’ विख्यात रही। मदर टेरेसा के महान सेवा कार्य के लिए उन्हें सम्मानित किया गया है। मीरा से महादेवी तक महिलाओं ने महान रचनाएं की हैं। प्रियंका चोपड़ा अभिनीत ‘मैरी कॉम’ को पसंद किया गया। ज्ञातव्य है कि ‘मैरी कॉम’ ने जुड़वां बच्चों को जन्म देने के बाद भी महान विजय दर्ज की है। इस फिल्म में मैरी कॉम का कोच कहता है कि दो बच्चों को जन्म देने के बाद मैरी कॉम की ताकत दोगुनी बढ़ गई है।
महारानी झांसी और अहिल्या बाई के जीवन संग्राम को भी सिनेमा और टेलीविजन पर प्रस्तुत किया गया है। पुरुष केंद्रित फिल्मों में भी महिला पात्र को प्रेरणा देने वाला बताया गया है। महान कवि जयशंकर प्रसाद ने लिखा है, ‘नारी! तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास-रजत-नग पगतल में पीयूष-स्रोत-सी बहा करो जीवन के सुंदर समतल में।’ सारे संसार की समग्र शक्तियों से मां दुर्गा ने अवतार लिया। शूजीत सरकार की विद्या बालन अभिनीत फिल्म ‘कहानी’ में नायिका एक आतंकवादी को उसके सुरक्षा किले से बाहर आने के लिए मजबूर करती है और उसकी हत्या कर देती है। पूरी फिल्म में वह गर्भवती स्त्री की तरह प्रस्तुत की गई है और अंतिम सीन में अपना पैड, पेट से निकाल कर ही आतंकवादी पर प्रहार करती है। वह गर्भवती स्त्री की तरह प्रस्तुत हुई ताकि उस पर कोई संदेह न हो। फिल्म के अंत में वह अपने ससुर से कहती है कि गर्भवती होने का अभिनय करते हुए आज उसे महसूस होता है मानो सचमुच में वह गर्भवती थी। अनुंकरित शिशु की भी व्यथा असहनीय होती है। मातृत्व की भावना इतनी प्रबल होती है कि पुत्र पर संकट आता है तो मां के मन में विचार उठता है कि वह उसे अपनी गोद में छुपा ले।
सआदत हसन मंटो की फिल्म ‘किसान कन्या’ अधूरी ही रही। किसान कन्याओं की पीड़ा उनकी प्रार्थना की तरह अनुत्तरित ही रह जाती है। यह सिलसिला आज भी जारी है।
मानव विकास के शिकार कालखंड में स्त्री-पुरुष समानता रही है, वरन अपने अचूक निशाने और शारीरिक चपलता के कारण वह पुरुष से अधिक सफल रही। कृषि कालखंड से ही उसे खदेड़ना प्रारंभ किया गया और यह प्रायोजित था। यह संभव है कि आईने की खोज के साथ ही महिला से यह कहा गया कि वह अपनी सुंदरता निहारे और उसी में खो जाए, जबकि सुंदरता सेहत और तर्क सम्मत विचार शैली में निहित रहती है। साहित्य और सिनेमा में तवायफों का पात्र भावना की लिजलिजी रूमानियत से रचा गया है, जबकि वहां मांस, कीमे की तरह कूटा जाता है। इसी रूमानियत से इतिहास भी लिखा गया है।
विवाह की रस्मों में भी दूल्हा, बारात लेकर ऐसे आता है मानो युद्ध में विजय प्राप्त करके लौटा हो। द्वार पर नारियल तोड़ना भी नारी गर्व को तोड़ने का प्रतीक माना जा सकता है। बाराती और घराती के व्यवहार में भी अंतर होता है। राजकुमार संतोषी की फिल्म ‘लज्जा’ में इसे प्रस्तु किया गया है सारे खेल रचे रचाए हैं। प्रचार तंत्र वर्तमान में शक्तिशाली है।