आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत मांगे / जयप्रकाश चौकसे

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प्रकाशन तिथि : 31 जनवरी 2022


आर्थिक समानता, कभी न प्राप्त होने वाला आदर्श हमेशा से रहा है परंतु महामारी के कारण विगत वर्षों में यह खाई पहले से अधिक चौड़ी और गहरी हो गई है। दरअसल आर्थिक समानता के लिए प्रयास होना बंद नहीं हुए हैं और यही बात इस अंधकार में हमारे लिए जुगनू की तरह है।

कुछ बहुत अधिक धनवान लोगों ने कई देशों के सत्तासीन लोगों को पत्र लिखा है कि अमीरों पर अधिक आयकर लगाया जाए, जिससे प्राप्त धन से समाज में आर्थिक विषमता कम की जा सके। इस पत्र को ‘इन टैक्स वी ट्रस्ट’ कहा गया है। लेकिन यह भी सच है कि इस तरह के सद्प्रयास कमजोर और भ्रष्ट व्यवस्था के कारण परिणाम नहीं दे पाते। भारतीय अर्थशास्त्र विशेषज्ञ अमर्त्य सेन ने भी इस विषय पर लिखा था।

गौरतलब है कि 2018 में प्रदर्शित जापानी फिल्म ‘शॉप लिफ्टर’ में मात्र एक प्रसंग ऐसा है कि माता-पिता ही बच्चों को चोरी करने का परामर्श देते हैं। इससे चार्ली चैप्लिन की महान फिल्म ‘द किड’ का एक प्रसंग याद आता है कि पिता के कहने पर बच्चा, सड़क से पत्थर उठाकर एक मकान की शीशे की खिड़की पर मारता है। पिता-पुत्र भाग जाते हैं। थोड़ी देर बाद वे लौटते हैं और जिसकी खिड़की का शीशा टूटा है उसकी खिड़की पर शीशा लगाकर कुछ पैसा कमा लेते हैं। इस तरह बेरोजगारी सीधे अपराध से जोड़ देती है। एक पुरानी कहावत है ‘मनी बिगेस्ट पावर, पावर बिगेस्ट मनी’ यह एक दुष्चक्र है। एहसास होता है कि यह दुष्चक्र पृथ्वी की तरह ही घूमता रहता है।

इस सारे गोरखधंधे ने नए व्यवसाय को जन्म दिया है। शॉप और मॉल की सजावट इस ढंग से की जाती है कि यह ग्राहक का मन मोह ले। मॉल के प्रमुख द्वार के नजदीक रंग-बिरंगे खिलौने रखे होते हैं। बच्चे, मां- बाप से जिद करके खिलौने की दुकान की ओर उन्हें ले जाते हैं। एक दौर में किताब की दुकान में साहित्य की किताबें सजी होती थीं लेकिन अब अन्य किताबों ने वह स्थान ले लिया है।

दुकान की रोशनी में चीजें भड़कीली लगती हैं। जो साड़ी शॉप पर बहुत अच्छी लग रही थी, वही साड़ी घर पर लाने पर साधारण लगती है। दरअसल साड़ी थी ही साधारण। बाजार, कितने स्तर पर झूठ बोल रहा है। झूठ से लबरेज जीवन में सच को खोजना भी लोगों ने बंद कर दिया है।

फिल्मों के पोस्टर इत्यादि प्रचार सामग्री भी चतुराई से बनाई जाती है। ग्राहक मनोविज्ञान पर बहुत शोध किया गया है। फिल्म के लिए ट्रेलर बनाने वाले विशेषज्ञ हो गए हैं। कलाकार के शरीर के कुछ हिस्से आकर्षक दिखाने के लिए वस्त्र के नीचे कुछ पहना दिया जाता है। इसे पेडिंग कहते हैं। फिल्म उद्योग में निर्माता के लिए काम करने वाले लोग टिकट खिड़की से एडवांस बुकिंग के समय टिकट खरीद लेते हैं। कभी-कभी फिल्म के 25 सप्ताह पूरा करवाने के लिए भी हथकंडे आजमाए जाते हैं, जिसको फीडिंग कहा जाता है।

कुछ रिश्तो को बनाए रखने के लिए भी भावना की फीडिंग की जाती है। समाज की इमारत में ही दीमक लग गई है। परंतु इसे अभी भी बचाया जा सकता है। पूरे दिन में कम से कम कुछ पल तो हम सारे आडंबर और मुलम्मे हटाकर अपनी असली सूरत देखने का प्रयास करें। वरना किसी दिन आईना ही आदमी से उसकी पहचान मांगेगा। सीधे सरल रास्तों को खुद मनुष्य ने ठुकराया है। किसी शाम पल दो पल जले वो दीया मांगते हैं, तेरे हैं तुझसे मोहब्बत मांगते हैं।