आई.पी.एल. के मौसम में हॉकी की बात / जयप्रकाश चौकसे

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आई.पी.एल. के मौसम में हॉकी की बात
प्रकाशन तिथि :03 मई 2017


विगत लंबे समय से पूजा एवं आरती शेट्‌टी हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के बायोपिक की तैयारी कर रही हैं। उन्होंने ध्यानचंद परिवार के सारे सदस्यों से भी अनुमति ली थी। उन्होंने जर्मनी जाकर उन स्थानों की जानकारी ली, जहां ध्यानचंद रहे और खेले थे। उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि बर्लिन में जिस स्टेडियम में ध्यानचंद ने जर्मन टीम को परास्त किया था, वह स्टेडियम नियमित देखभाल के साथ जस का तस रखा गया है। हम अपनी ऐतिहासिक धरोहरों के प्रति उदासीन रहे हैं। मान्यता है कि आर्य दो समूह में विभाजित हुए, एक भारत आया, दूसरा जर्मनी गया। जर्मनी में बसे आर्य अपनी परम्पराओं और विरासत के प्रति सजग और समर्पित हैं परन्तु भारतीय शाखा लापरवाह है। भारत की सांस्कृतिक धरोहर और प्राचीन ग्रन्थों को जर्मनी की मैक्समुलर संस्था ने सहेज कर रखा है। मुगल राजकुमार दारा शिकोह ने संस्कृत ग्रंथों का फारसी में अनुवाद कराया था, जिनसे प्रेरित हैं जर्मन और अंग्रेजी अनुवाद।

मेजर ध्यानचंद बायोपिक की पटकथा महान लेखक राजिन्दर सिंह बेदी की पोती ने अपने सहयोगी मित्र के साथ मिलकर लिखी और उनकी शर्त यह रही है कि वे ही फिल्म का निर्देशन भी करेंगे। कोई सितारा अनुभवहीन निर्देशक के साथ काम करना नहीं चाहता। मेजर ध्यानचंद झांसी में जन्मे थे और गरीब परिवार से थे इसलिए उन्हें साधन और अवसर बड़े संघर्ष के बाद मिले। जर्मनी में ओलिम्पिक के दरमियान उन्हें एक जर्मन कन्या से प्रेम भी हुआ। उन दिनों हिटलर विश्व विजय की महत्वकांक्षा के घोड़े पर सवार थे और उन्होंने मेजर ध्यानचंद को जर्मनी के पक्ष से खेलने के लिए भारी प्रलोभन दिए, परन्तु मेजर ध्यानचंद ने अस्वीकार कर दिया। यह तानाशाह प्रवृत्ति है कि जिस पर विजय नहीं पा सकते, उसे प्रलोभन देकर अपने दल में शामिल कर लो। इस तरह का दल-बदल आजकल भारत में जोरशोर से चल रहा है।

इस महत्वपूर्ण बायोपिक के निर्माण में भारी लागत लगेगी, क्योंकि शूटिंग के लिए कई देशों की टीम के सहयोग की आवश्यकता पड़ेगी। मेजर ध्यानचंद की भूमिका करने वाले सितारे को इस फिल्म के लिए उतना समय देना होगा, जिसमें वह तीन फिल्में पूरी कर खून धन कमा सकता है। आज इस तरह की महान फिल्म रचने का जोश कलाकारों में नहीं है। मिल्खा सिंह बायोपिक फिल्मकार के जुनून और फरहान अख्तर के समर्पण के कारण संभव हुआ। आज समाज और सिनेमा में अल्पतम परिश्रम से अधिकतम धन कमाने की होड़ है। भारत ने केवल हॉकी में ही अधिकतम गोल्ड मैडल जीते हैं। ऑस्ट्रेलिया व यूरोपियन देशों ने हॉकी से कलात्मकता को खारिज करके उसे दमखम और गति का खेल बना दिया है। उन्होंने जीत के लिए खेल के नियम ही बदल दिए हैं। हर राजा अपनी सुविधानुसार शतरंज की बिसात बिछाता है। मसलन मौजूदा सरकार ने ग्रोथ रेट आकलन के मानदंड सत्तासीन होते ही बदल दिए थे। उनके सोच में कभी कोई दुविधा नहीं थी। उनका लक्ष्य स्पष्ट था कि विकास का भरम रचकर अपने कट्‌टरता के एजेन्डा पर लगातार काम करते रहना। इस कार्य के लिए उन्हें अवाम की सहमति भी मिल गई है। वैचारिक क्षेत्र में इन्जीनियरिंग के नए कीर्तिमान रच दिए गए हैं।

इस बायोपिक के लिए शेट्‌टी बहनों ने अपने मित्र करण जौहर का सहयोग लेने का प्रयास भी किया। करण जौहर तो दूल्हा नहीं बनते, परन्तु सफलता की हर बारात में शामिल हो जाते हैं। अभी तक इस बायोपिक के निर्माण में कोई गति नहीं आई है। यह भी एक अनुमान मात्र है कि महेंन्द्रसिंह धोनी इसमें पूंजी निवेश करना चाहते हैं, क्योंकि शेट्‌टी बहनों के पास इस तरह का कोई प्रस्ताव नहीं आया है और इस बायोपिक के अधिकार उनके ही पास हैं।

भारत के हॉकी फेडरेशन को इस फिल्म के निर्माण में पूंजी निवेश करना चाहिए, परन्तु क्रिकेट बोर्ड ही एकमात्र धनाढ्य संस्था है। उसके संलाचन में अनेक नेता भी रुचि रखते हैं क्योंकि उसमें बहुत लाभ होता है। गावस्कर, विश्वनाथ, बिशनसिंह बेदी, सचिन तेंडुलकर जैसे महान खिलाड़ियों के पास क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के संचालन के कोई अधिकार नहीं हैं। सारी लाभ कमाने वाली संस्थानों पर अधिकार जमाने के पैंतरे तो नेता लोग ही जानते हैं। उनसे बड़ा घुसपैठिया कोई नहीं है।

क्रिकेट को पारम्परिक रूप से भद्र लोगों का खेल माना जाता है, परन्तु आजकल खिलाड़ी अभद्रता दिखाने की प्रतियोगिता में जुटे हैं। फुटबॉल गरीबों का खेल है। क्रिकेट दर्शक और फुटबॉल दर्शक में भी अतर है। क्रिकेट प्रेमी बियर बीते हैं, फुटबॉल प्रेमी रम पीते हैं। प्राय: फुटबॉल मैच के बाद उन्मादी दर्शक एक-दूसरे के सिर को फुटबॉल बना देते हैं। हॉकी के दर्शक न तो फुटबॉल दर्शक की तरह उन्मादी हैं और न ही क्रिकेट प्रेमी की तरह शालीनता का पाखंड रचते हैं। हॉकी में कला, गति और दमखम तीनों की आवश्यकता होती है।

भारत की भौगोलिक परिस्थितियां और आबोहवा हॉकी व कबड्‌डी जैसे खेलों के लिए अनुकूल है परन्तु आई.पी.एल. तमाशा ग्रीष्म ऋतु में रचा जाता है, क्योंकि प्रायोजक शीतल पेय बनाते हैं। क्रिकेट संगठन को ध्यानचंद बायोपिक में पूंजी निवेश करके अपने फिक्सिंग पर सार्थक सृजनात्मक पश्चाताप का अवसर मिलेगा।