आई एम नाट ए मुस्लिम / शमशाद इलाही अंसारी

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उस बडे तिजारती वेयरहाउस में इन दिनों गर्मी के साथ साथ गहमा गहमी भी बढ़ गयी थी, सर्दियों की कारोबारी सुस्ती के बाद गर्मियों में कंपनी की जब व्यापारिक गतिविधियां बढ़ती, तब हर साल अल्पकालिक कामगारों की भर्ती होती। कंपनी के पूर्णकालिक कामगारों को नये नये चेहरे हर गर्मी में दिखाई देते और जब सर्दियां आती, कनैडा के कारोबार को ठण्डा करती तब नये चेहरे फ़िर कहीं खो जाते।

ऐसे कई नये चेहरों में वह नौजवान, गर्मियों की छुट्टी में काम करके अपनी यूनिवर्सिटी की पढ़ाई को जारी रखने का दृढ़ निश्चय रखता था। उसके पिता सरदार और माता भारतीय मूल की वेस्ट इण्डियन थी, स्प्ताह में दो दिन आठ घण्टे के काम के बाद वह लंबा सफ़र तय करके यूनिवर्सिटी जाता, वह कभी भारत नहीं गया था, न उसे हिंदी आती थी। उसकी अंग्रेज़ी भाषा पर कनैडियन उच्चारण की छाप भलिभांति पहचानी जा सकती थी, उसके छोटे छोटे बाल, हल्की हल्की रौयेंदार दाढ़ी जिसे करीने से उसने स्टाईल दिया हुआ है और दाहिने हाथ में चांदी का बारीक सा कड़ा। भारतीय समाज में कोई गहरी समझ वाला ही उसे पहचान सकता है कि वह मोना सरदार है। उसका यहां प्रचलित नाम जैश है हालांकि काग़ज़ी नाम जसविन्दर सिंह है।

लंच के वक्त सभी अपना अपना खाना माईक्रोवेव आवेन में गर्म करते और साथ बैठ कर खाना खाते, यही वह वक्त होता जब कामगारों की जिज्ञासा एक दूसरे को जानने-पहचानने के लिये कुलाँचें मारती। भारतीय मूल के वेस्ट इण्डियन्स, करेबियन देशों के काले समुदाय के लोग और यूरोपिय देशों से आये हुये गोरे व स्थानीय गोरे सभी एक साथ बैठ कर गलबजियां करते। किसी को संगीत सुनना होता तो वह छोटे छोटे स्पीकर आईपोड में लगाकर वातावरण को लयबद्ध कर देता, ३० मिनट का अधिकृत भोजनावकाश ४० मिनट तक किसी न किसी तरह सरक ही जाता।

माईक्रोवेव की घंटी जल्दी से बज जाये इसकी प्रतीक्षा उसे भी रहती जिसका खाना है और उसे भी जिसे उसके बाद अपना खाना गर्म करना होता। घंटी बजी, जैश तेज़ी से लपका और अपने गर्म खाने का बडा सा बर्तन उसने निकाला, जिस पर एण्डी की निगाह पड़ी, गर्म खाने की खुश्बु से एण्डी ही सबसे पहले तरबतर हुआ। एण्डी करेबियन देश जमैका का रहने वाला इस कंपनी का एक बुजुर्ग भी है। उससे रहा न गया, "वाव, नाईस फ़ूड", उसकी तजुर्बेगार निगाहों ने खाने को पहचानते हुये, उत्सुकता वश अपने खाने का बर्तन माईक्रोवेव में रखते हुये जैश से पूछा," यू ईट पोर्क ?"

जैश ने जवाब दिया, "ओह याह, आई ईट पोर्क… आई एम नाट ए मुस्लिम"। उसके जवाब में एक खास किस्म का तनाव था जो आखिरी लफ़्ज पर कुछ देर अटका रहा।

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रचनाकाल: २३ मई २०११