आई लव इंडिया / उमेश मोहन धवन

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"बेटा तुम यहीं भारत में ही रहकर ही काम क्यों नहीं करते। आखिर यहां भी तो तुम्हें कई नौकरियों के आफर हैं फिर तुम उन्हें ठुकराकर विदेश में ही क्यों रहना चाहते हो। " " अरे डैड इंडिया में रखा ही क्या है। इंडिया चाहे कितना भी तरक्की कर ले पर वह विदेशों का मुकाबला तो कभी नहीं कर सकता। जो आधुनिक सुविधायें तथा वेतन वहां मिलता है वह यहां कोई सोच भी नहीं सकता। एक बार जो यहां से गया वह फिर कभी यहां वापस आना चाहता है क्या ? अब मैं चलता हूं । प्लेन का टाइम हो रहा है। " कबीर ने सामान टैक्सी में रख दिया। एक महीने बाद उस देश में खूनी सत्ता परिवर्तन हो गया। हजारों विदेशियों की जान को खतरा हो गया। भारत सरकार ने दो दिन में सभी फंसे भारतीयों को कई विशेष विमानों द्वारा सुरक्षित स्वदेश पहुंचा दिया। मुम्बई लौटने पत्रकारों नें सभी को घेर लिया। एक ने कबीर के मुँह के आगे माइक लगा दिया। कबीर बड़े जोश में बोल रहा था। " विदेशों में चाहे जितनी भी सुविधायें मिलें पर अपना वतन आखिर अपना ही होता है फिर चाहे वह जैसा भी हो। " वह हवा में मुट्ठी तानकर बोला "सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्तां हमारा। आई लव इंडिया। " टी वी पर कबीर का पिता भी वह इंटरव्यू देख रहा था। उसका मुँह कड़वा हो गया। उसने बुरा सा मुँह बनाकर खिड़की से बाहर थूका और रिमोट का बटन दबाकर टी वी बंद कर दिया।