आओ पूछ विकसित करें / कुबेर
पूंछ के ऊपर की बिन्दी हटा लेने से पूछ बन जाता है। पूछ विकसित करने कायह सबसे बढ़िया, आसान और फूलप्रूफ तरीका है। आजकल वे सब, जिनके पूंछ उग आएहैं, इसे छिपाने और पूछ विकसित करने के लिए इसी तरीके का इस्तेमाल कर रहेहैं। पूंछ पशुता की निशानी जो ठहरी।
जिस प्रकार बिना पूंछ का कुत्ता, कुत्ता नहीं उसी प्रकार बिना पूछ काआदमी आदमी नहीं। आजकल पूछ का होना निहायत जरूरी है, कुत्ते के लिए भी औरआदमी के लिए भी। पूछ हो तो नाक की जरूरत नहीं पड़ती। जैसे-जैसे पूछ विकसितहोती है, नाक कटती जाती है। पहले सबके पास नाक हुआ करती थी, आजकल यहदुर्लभ होती जा रही है। भविष्य में केवल इसके जीवाश्म ही मिलेंगे। तबसाहित्य और विज्ञान के स्नातक इस पर शोध करके पी. एच. डी. की उपाधिप्राप्त कर रहे होंगे।लोग अब नाक की चिंता कम और पूछ की चिंता ज्यादा करने लगे हैं। हमारेपूर्वज पूछ की चिंता कम और नाक की चिंता अधिक करते थे। जमाना नाक का था,मजाल है कि नाक पर एक मक्खी भी बैठ जाए। नाक की वजह से ही राम को रावण सेलड़ाई लड़नी पड़ी थी। अब नाक के दिन लद गए हैं। जमाना पूछ का है। नाक वालाकुत्ता भले ही मिल जाए, नाक वाला आदमी ढ़ूँढ़ कर तो बताओ!
पूंछ और पूछ, दोनों में असीमित और अक्षय ऊर्जा नीहित होती है। इसी कारण जहाँ कुत्तों अपनी पूंछ को संभालने में लगे रहते हैं वहीं आदमी अपने पूछ कीचिंता में रात-दिन घुलते रहता है।
कुत्तों की पूंछ का ऐतिहासिक महत्व है। इसका हिलना परम आनंद-दायी होता है।हिलती हुई पूंछ कहती है, - “तलवे चाटूँगी, लात खाऊँगी, तिरस्कार सहूँगी,पर नमक हरामी कभी नहीं करूँगी।”
पूछ विकसित करता हुआ आदमी भी यही कहता है।
कुत्तों की पूंछ की ऐतिहासिकता पर अभी अमरिकी पेटेंट वालों की नजर शायद नहीं पड़ी है वरना नीम और हल्दी के समान इसके भी पेटेंट का लफड़ा शुरू हो चुकाहोता।
राज हठ, बाल हठ और त्रिया हठ की तरह पूंछ और पूछ की भी अपनी हठ होती है -ये सीधी कभी नहीं होतीं।पूंछ और पूछ का रिस्ता अटूट है। पूछ वालों में उनकी ही गिनती होती हैजिसके आसपास हमेशा दो-चार पूंछ वाले पूंछ हिलाते हुए पाए जाते हैं।
कुत्तों की तुलना आदमी से करने की भला है किसी में हिम्मत? पर आदमी की तुलना कुत्तों से करने में किसी को हिचक नहीं होती। आदमी झगड़ते हुए एक दूसरे कोकुत्तों की औलाद ही कहता है। अब तो अपने आप को कुत्ता कहलवा कर आदमी गर्वितभी होने लगा है। कुत्ते आपस में झगड़ते वक्त कदाचित ही एक दूसरे को आदमीकी औलाद कहते होंगे। वे इतने गए गुजरे नहीं हैं। कोई आदमी किसी कुत्ते कोआदमी की औलाद कह दे तो कुत्ता शायद उसे कांट ले। नाक के मामले में कुत्तेनिश्चित ही आदमी पर भारी हैं। इतनी ऐतिहासिक पूंछ पाकर भी उन्होंने अपनीनाक का महत्व कम नहीं होने दिया।डार्विन अपने प्रसिद्ध विकासवाद के सिद्धांत को आज लिख रहा होता, तो यहकभी नहीं लिखता कि विकास-क्रम में आदमी की पूंछ लुप्त हो गई है।
जैसे कुत्ते की पहचान उसकी पूंछ से होती है, उसी प्रकार आदमी की पहचानपूछ से होती है। दफ्तर में जिस आदमी की पूछ सबसे ज्यादा होती है, वह बड़ाबाबू होता है। समाज में जिसकी पूछ अधिक होती है वह नेता होता है औरनेताओं में सर्वाधिक पूछ वाला व्यक्ति प्रधान नेता होता है।
समझ-समझ का फेर है। पूछ और पूंछ में बहुत ज्यादा बुनियादी अंतर नहींसमझना चहिये। केवल बिंदी ही का तो अंतर है। इसी तरह पूछ वालों और पूंछवालों में भी अंतर नहीं समझना चहिये।
पूछ विकसित करना बड़ा सरल कार्य है। शायद इसीलिए आज पूछ वालों की कोई कमीनहीं है। हर गली-नुक्कड़ पर अपनी पूछों का प्रदर्शन करते सैकड़ों लोग मिलजएँगे; पूंछ हिलाते हुए जैसे कुत्ते मिल जाते हैं। चाहें तो आप भी अपनीपूछ विकसित कर सकते हैं। विधि बड़ी सरल है, आपको अपनी नाक थोड़ी सी कटवानीपड़ेगी, बस। कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ता ही है। फिर आजकल नाक कटवानेसे कोई फर्क भी तो पड़ने वाला नहीं है न। विश्व के सारे सुदर्शन लोग आजनकटे ही हैं। रैंप पर थिरकने वाली सुंदरियों की नाक आपने देखी है? फिर भीयदि आप अपनी नाक न कटवाना चाहें तो कोई बात नहीं, चूने से भी काम चल सकताहै। जैसे कोई चंदन लगाता है, आप थोड़ा सा चूना अपनी नाक पर लगवा लें। बसफिर क्या, आपकी भी पूछ विकसित होनी शुरू हो जाएगी। बीच-बीच में धो-रि-भ्रनामक उर्वरक का छिड़काव करते रहें। घो-रि-भ्र अर्थात घोटाला, रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार। यह हर जगह मुफ्तमें मिलता है। यदि जान-पहचान वालों को चूना लगाना आ जाय तो सोने परसुहागा समझो।
पूछ विकसित करना हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है। आओ पूछ विकसित करें।