आओ पेपे घर चलें / प्रभा खेतान / पृष्ठ 4
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पित्ज़ा के एक टुकड़े को खूबसूरत दाँतों से काटते हुए उन्होंने फिर कहा,
पता नहीं मैं तुमसे इन सारी बातों को क्यों कह रही हूँ। तुम छोटी हो, बहुत-सी बातें नहीं समझोगी, स्त्री पुरुष का संबंध।
नहीं, मैं इतनी छोटी नहीं। सब समझती हूँ और आइलिन प्रायः आपके बारे में बातें किया करती थीं।
आइलिन मेरी माँ थी। मैं उसकी गोद में मुँह छिपाकर रो लिया करती थी. अब रोने के लिए भी हर सिटिंग में डेढ़ सौ डालर खर्च होंगे।
मैं समझी नहीं।
इन बातों को और मैं किससे कह सकती हूँ सिवाय इसके कि सप्ताह में एक दिन अपने साइकियाट्रिस्ट के पास जाऊँ और कोच पर लेटी-लेटी जो मन में आए, कहती रहूँ। और एक घंटे का सेशन पूरा होने पर घर लौट आऊँ। मन को समझा लूँ कि नहीं मैं इतनी अकेली नहीं। कोई और भी है जो मेरी बातों को सुनता है।
एलिज़ा आपकी कोई सहेली नहीं?
सब बिल्लियाँ हैं। खाली म्याऊँ-म्याऊँ करती रहेंगी।
आपके कोई पुरुष मित्र...?
वे हमदर्द होकर बात सुनते हैं और फिर शरीर पर आ जाते हैं। उनके पास एक ही जवाब... जार्ज तुमको ठगता है तुम उसको ठगो। मगर खुद यों टूटकर बदला लेना, वह भी किससे?
प्रभा! मैं अब और किसी से प्यार नहीं कर सकती। मैं बेहद थक गई हूँ।
आप एक बच्चा क्यों नहीं गोद ले लेतीं?
जार्ज को पसंद नहीं।
बस इसी तरह की पसंद-नापसंद की बातें होती रहीं। रात बारह बज गए थे। बुरी तरह नींद आ रही थी। मगर मेज़बान की बातों का सिलसिला चालू था।
दूसरे दिन वे शांत थीं। उठा हुआ तूफ़ान वापस लहरों में समा गया था। ब्रेकफास्ट टेबल पर डॉ. डी भी थे। रात को पता नहीं कब लौटे। बात मैंने ही उठाई,
मिसेज डी! आइलिन के बिना मेरा मन नहीं लगता। मरील के घर जैसा कि आप जानती हैं...
नहीं, तुम मेरे यहाँ रह जाओ। डॉ. डी महीने भर के लिए जापान जा रहे हैं।
नहीं, यह बात नहीं, मुझे अब यह शहर अच्छा नहीं लगता जबकि मजबूरी लगता। मरील के घर जैसा कि आप जानती हैं...
नहीं, तुम मेरे यहाँ रह जाओ। डॉ. डी महीने भर के लिए जापान जा रहे हैं।
नहीं, यह बात नहीं, मुझे अब यह शहर अच्छा नहीं लगता जबकि मजबूरी यह है कि प्रैक्टिकल ट्रेनिंग नहीं हुई।
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