आखिरी 'महाराजा' की बिदाई? / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 28 जून 2018
सरकार भरपूर प्रयास कर रही है कि सरकारी एअरलाइन को कोई व्यक्ति या कॉर्पोरेट खरीद ले परंतु अभी तक ग्राहक नहीं आया है। खबर है कि दशकों के घाटे के भार के साथ इसे कोई खरीदना नहीं चाहता। एअरलाइन का प्रतीक चिह्न 'महाराजा' है। इंदिरा गांधी ने सामंतवादियों से उनके विशेषाधिकार एवं प्रिवी पर्स निरस्त कर दिए थे। बहरहाल सरकारी हवाई सेवा में बड़ी चतुराई से सेंध मारी गई। प्रायवेट एअरलाइनों ने एटीएस से जुगाड़ करके सारे सुविधाजनक समय हथिया लिए थे। मसलन कुछ शहरों से 'महाराजा' अलसभोर में उड़ान भरता था और प्रायवेट एअरलाइनों को सुविधाजनक समय दिया गया था। प्रायवेट एअरलाइन पहले मुफ्त में नाश्ता एवं भोजन यात्रियों को देते थे। विगत कुछ वर्षों से दुगना धन वसूला जा रहा है। सरकारी विमानों में यात्रियों को मुफ्त में नाश्ता एवं भोजन आज भी दिया जाता है। दरअसल भ्रष्टाचार ने हर सरकारी संयंत्र, सेवा और पहल को दूषित कर दिया। वर्तमान में भ्रष्टाचार पहले से अधिक हो गया है। परिवार ही एकमात्र पाठशाला है, जिसमें नैतिक मूल्य एवं संस्कार दिए जा सकते हैं।
अगर 'महाराजा' खरीद लिया जाता है तो हवाई यात्रा के दाम उस ऊंचाई को छू लेंगे, जिस पर हवाई जहाज उड़ता है। विगत वर्षों में हवाई यात्रियों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। मध्यम वर्ग के पास यथेष्ठ धन है और कॉर्पोरेट के अधिकारी तथा सरकारी अफसर भी हवाई यात्राएं करते हैं। प्राय: हवाई जहाज विलम्ब से उड़ते हैं, क्योंकि हमारे अजीबोगरीब विकास में आधुनिकतम हवाई जहाज खरीदे गए हैं परंतु हवाई पट्टी को यथेष्ठ लंबाई और चौड़ाई नहीं दी गई है। अनेक बार हवाई जहाज गन्तव्य स्थान के ऊपर ही अनेक चक्कर काटता है, क्योंकि एटीएस से उसे सूचना मिलती है कि लैंडिंग पट्टी अभी खाली नहीं है। इस बदइंतजामी के कारण प्रतिवर्ष भारी मात्रा में हवाई ईंधन नष्ट होता है। हवाई जहाज को उच्चतम शुद्धि एवं गुणवत्ता वाला पेट्रोल लगता है।
याद आता है कि पहले हवाई जहाज में टाटा परिवार के सदस्य ने मुंबई से लाहौर तक उड़ान भरी थी। आज 'महाराजा' को पुन: टाटा प्रबंधन ही सिंहासन दिला सकता है। सरकार को अपने बेचने के प्रयासों में परिवर्तन करना होगा, क्योंकि आपके दशकों के घाटे के साथ कैसे कोई 'महाराजा' के निकट जा सकता है। यह एक बड़ा षड्यंत्र है कि सरकार द्वारा संचालित उपक्रमों को घाटे की खाई में झोंका गया है ताकि उद्योगपति उसे खरीद सकें। कॉर्पोरेट संसार अपने मोहरे चतुराई से चलता है।
बहरहाल, हमारे फिल्म उद्योग ने भी हवाई जहाज और एयरपोर्ट के गिर्द कई अफसाने रचे हैं। कुछ समय पूर्व ही अक्षय कुमार अभिनीत 'एअरलिफ्ट' सत्य घटना से प्रेरित सफल फिल्म सिद्ध हुई। दशकों पूर्व मेहबूब खान की 'रोटी' के प्रारंभिक दृश्य में नायक का विमान असम के चाय बागान के निकट दुर्घटनाग्रस्त होता है। जेपी दत्ता की 'बॉर्डर' में एक नायक फायटर पायलट, दूसरा नायक थल सेना से है और दोनों ही युद्ध में अपनी भूमिका को दूसरे से अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं परंतु इस दोस्ताना बहस के अंत में एकमत होते हैं कि सामूहिक प्रयास विजय दिलाते हैं जैसे एक बाग में एक ही तरह के फूल नहीं खिलाए जाते। चेतन आनंद की फिल्म 'हिन्दुस्तान की कसम' जिसे उन्होंने 'हकीकत' की सफलता के बाद बनाया था, में भी वायुसेना का शौर्य प्रस्तुत किया गया था।
राज कपूर की 'संगम' के प्रारंभिक दृश्य में अपने छोटे हवाई जहाज को उड़ाते हुए नायक जमीन पर चल रही नायिका के निकट अपने हवाई जहाज को लाकर उसके साथ छेड़छाड़ करता है। आम फिल्मों में सड़क पर लड़कियों से छेड़छाड़ होती है परंतु राज कपूर का भव्यता के प्रति आग्रह रहा है। इस फिल्म में एक भावना प्रधान दृश्य एयरपोर्ट पर लिया गया है जहां तीनों पात्र मौजूद हैं और युद्ध का प्रारंभ हो चुका है। फाइटर पायलट नायक कहता है कि वह लौटकर अवश्य आएगा। नायिका उसके प्रेम का भ्रम तोड़ने के लिए कहती है कि वह याद रखे की नायिका उससे प्रेम नहीं करती परंतु हवाई जहाज की आवाज में यह बात फाइटर पायलट सुन नहीं पाता।
इसी फिल्म के एक अन्य दृश्य में नायक के हवाई दुर्घटना के समाचार आने के बाद राजेन्द्र कुमार और वैजयंतीमाला उसकी तस्वीर के सामने खड़े होकर उसे आदरांजलि दे रहे हैं। फिल्म के पुन: ध्वनि मुद्रण के समय रिकॉर्डिस्ट अलाउद्दीन खान ने पार्श्व में फाइटर प्लेन की ध्वनि डालकर दृश्य का असर बढ़ा दिया था।
बहरहाल सरकार 'महाराजा' को बेचने का प्रयास कर रही है, जो उनकी संस्थाओं को नष्ट करने के कार्यक्रम का हिस्सा है। अगर इस क्षेत्र में प्रायवेट सेक्टर की मोनोपॉली हो गई तो हवाई यात्राएं अत्यंत महंगी हो जाएगी परंतु धर्म ध्वजा के रथयात्रियों को अवाम की सुविधा की चिंता कैसे हो सकती है।