आखिरी इच्छा / अमित कुमार मल्ल

Gadya Kosh से
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गांव में, उस ज़माने मे, ताकत तीन तरह से आती थी, या तो ज़मीन हो या पहलवान हो या लोग पीछे हो यानी जनता पर पकड़ हो। खेलावन के पास न तो ज़मीन थी, न ही उसकी जनता पर पकड़ थी। इसलिये खेलावन ने पहलवान बनने को सोचा और गाँव के पूरब टोले वाले अखाड़े पर जाने लगा।

गांव के अखाड़े, केवल पहलवानी के ही नहीं वरन गाँव की राजनीति के केंद्र होते थे। हर अखाड़ा, गाँव के किसी न किसी बाहुबली या बड़े आदमी की छत्रछाया में चलता था। इस अखाड़े को चलाने में समय के साथ साथ धन भी ख़र्च होता था। दिन में अखाड़े को जानवरों से, गाँव वालों से बचाना भी पड़ता था। यह भी ध्यान रखना पड़ता था कि उसमें कंकड़, पत्थर,बजरी न जाये। अखाड़े की मिट्टी में पर्याप्त नमी भी रहनी चाहिए लेकिन गीली भी न हो। हर मंगलवार को प्रसाद का वितरण भी होता था।हर अखाड़े के एक बड़ा उस्ताद रहता था, जिसे उस अखाड़े से जोड़कर रखना पड़ना थ। बड़े उस्ताद के नीचे एक छोटा उस्ताद होता जो बड़े उस्ताद को पटकने के फिराक में हर समय रहता, लेकिन पटक नहीं पाता।इन तमाम दिककतो के बाद भी, अखाड़े गाँव के ताकत की राजनीति को बिना लड़े बैलेंस रखते। अखाड़े के चलने और उसके पहलवानो की ताकत को गाँव का समाज, बिना आज़मा ए तुरंत मान्यता दे देता, इसीलिए पहलवानी करते करते कई लोग, दिग्भ्रमित हो जाते।

इस राजनीति से अपने को बचाकर, खेलावन ने पहलवान बनने के लिये, अपना पूरा ध्यान लगा दिया।

गांव के पुराने पहलवान बदन काका, इस अखाड़े के बड़े उस्ताद थे। उस्ताद ने शुरुआती टिप्स दिया,

भीगे हुए कच्चे चने खाओ। रोज, सुबह शाम दो सौ दंड बैठक लगाओ। ढूध पियो।ताकि शरीर में ताकत आये।

उस्ताद की बात, सिर माथे पर, रखकर खेलावन ने जब पहले दिन सबकी शुरुआत किया, तो उसके अगले दिन उसका शरीर दर्द करने लगा। उस्ताद को बताने पर उन्होंने बताया,

केडा लगा है। यह सबके साथ होता है। न तो कसरत कम करना,न छोड़ना।तब ही केड़ा जाता है।

और उसने,केड़ा के बाद भी 200 दंड बैठक करता रहा।शरीर टूटता था। जांघो और बाजुओं में बहुत दर्द होता था लेकिन धीरे धीरे दर्द ख़त्म हो गया। दंड बैठक करता रहा।

बड़े उस्ताद ने अगला आदेश दिया,

अब बाजुओ की ताकत बढ़ाने के लिये, मुगदर 100 बार रोज़ भाजना है। दाहिने हाथ से और बाये हाँथ से, बारी बारी से भाजना है। खेलावन ने मुगदर भी रोज़ भाजना शुरू कर दिया।

इसके बाद खेलावन ने पहलवानो की कुश्ती देखकर, छोटे उस्ताद के दावँ को देखकर तथा बड़े उस्ताद से कुश्ती के दावँ पेंच सीखे। दांव पेंच सिख कर,वह अखाड़े के सबसे चहेते पहलवानऔर छोटे उस्ताद रामदौड़ से टक्कर लेने लगा। रामदौड़ भी खेलावन के साथ कुश्ती लड़ता और वह भी बीसो मिनट रामदौड़ से कुश्ती लड़ता और प्रयास करता कि पटके जाने पर भी, पीठ न लग पावे- पीठ लगने पर ही हार मानी जाती थी। रामदौड़ को पसीने आ जाते, तब खेलावन की पीठ लग पाती। अखाड़े के दूसरे पहलवानो के लिये, यह रोज़ की कुश्ती, ट्रेनिंग थी। अन्य पहलवान रामदौड़ से कहते,

हमसे कुश्ती लड़ो।

रामदौड़ कहते,

तुम लोगों से कुश्ती लड़ने में मेरा पसीना भी नहीं निकल पायेगा। तुम लोग पांच मिनट में चित हो जाओगे।

इस प्रकार रोज़ रामदौड़ व खेलावन के कुश्ती से ही, अखाड़े के कुश्ती का सेशन समाप्त होता। इस अंतिम कुश्ती को लड़ते लड़ते खेलावन को यह एहसास हो गया कि कुश्ती में सांस टीके रहना बहुत ज़रूरी है क्योकि उसकी पीठ तभी लगती है, जब उसकी सांस टूट जाती है।इसलिए स्टैमिना बढ़ाना ज़रूरी है।

बड़े उस्ताद ने खेलावन को सांस बढ़ाने के लिये बताया कि गाँव के दखिन में बह रही नदी के किनारे के, गीले देवारे में सुबह नंगे पांव एक घंटा तक दौड़ो। इससे सांस की ताकत बढ़ेगी, थकावट नहीं आयेगी। बड़े उस्ताद के सुबह का अर्थ था चार बजे। देवार का अर्थ हुआ नदी के किनारे का रेत ही रेत।यह रेत जब गीला होता है तो दौड़ने पर, अतिरिक्त ताकत लगती। खेलावन ने बड़े उस्ताद के निर्देश को पवित्र भाव से लिया और सुबह दौड़ना शुरू कर दिया। देवार पर दौड़ना बहुत कठिन था। गीले देवार में दौड़ते समय पैर धंस जाता था। जितना तेज दौड़ होगी उतना ही गहरा पैर धसेंग। जितना अधिक पैर धसता था,उतना ही अधिक ताकत लगानी पड़ेती थी।धुनी खेलावन ने ऐसी दौड़ जारी रखी, जिससे उसकी स्टैमिना, ताकत और सांस में बेहिसाब वृद्धि हुई। जिसका प्रयोग कर वह, अखाड़े का सबसे अच्छा पहलवान बनाऔर कभी कभार रामदौड़ को पटकने भी लगा।

बसंत पंचमी के दिन, गाँव में, शिव भगवान जी के मंदिर के पास के पोखरे के किनारे अखाड़े पर, आठ पहलवानो की जोड़ियों का मुकाबला होता है।यह आठो पहलवान केवल उसके गाँव के नहीं थे बल्कि उनमे से कुछ आस पास के गाँव के भी होते थे। यह चैलेंज कुश्ती भी होती है अर्थात जो जिससे कुश्ती लड़ना चाहे, चैलेंज कर सकता था। इस कुश्ती को देखने के लिये, गाँव के ही लोग नहीं बल्कि अगल बगल गाँव के लोग भी आते थे। जो यह कुश्ती जीतता उसका नाम कई गाँव में फैल जाता। खेलावन ने यह भी कुश्ती लड़ा और जीता।इससे आस पास के गाँव में उसकी पहलवानी की धाक जम गई।लोग कहने लगे कि खेलावन धुन का पक्का है, मेहनती है।तभी तो कुछ वर्षों में जवार का सबसे बड़ा पहलवान बन गया।

अब खेलावन चलता,तो सीना अधिक तन जाता। जान बूझ कर वह बुशर्ट के ऊपरी दो बटन खुला रखता ताकि चौड़ा सीना लोगों को दिखाई दे। जब वह चलता तो कंधे दोनों ओर लहरा कर चलता, मानो कंधे से ही ज़मीन छू लेगा।खेलावन युवा था। हष्ट पुष्ट था। घर वालो ने कहा,

कही काम देखो,नौकरी करो कुछ रुपये घर में आएँगे।घर बढिया से चलेगा।

खेलावन ने नौकरी के लिये भाग दौड़ शुरु किया और छ सात माह बाद गाँव से सात मील दूर की चीनी मिल में टेम्पररी चौकीदार की नौकरी, पहलवानी शरीर, देखकर मिल गयी।

यह ड्यूटी उसके पहले के दिनचर्या से बिल्कुल अलग थी लेकिन खेलावन जानता था कि यही से कुछ आगे बढ़ने का रास्ता मिल सकता है।गांव जवार का वह सबसे बड़ा पहलवान बन चुका था। अब आगे कुछ करना गाँव सम्भव नहीं था।

पहले माह की ड्यूटी में ही उसे मालूम हो गया कि चौकीदारी की ड्यूटी में भी बहुत भिन्नता थी। मेन गेट पर, जी एम साहब के बंगले पर, चीफ इंजीनियर साहब के बंगले पर, स्टोर के बाहर, मिल के बाहर चारदीवारी के बाहर। उसने एक एक माह सभी जगहों पर चौकीदारी करके देख ली। मेन गेट की ड्यूटी बहुत सख्त थी।न आप सो सकते थे, न ग़ायब हो सकते थे। इण्टरकॉम पर अधिकारी कभी भी कॉल कर सकते थे। मिल के चहारदीवारी के बाहर की ड्यूटी में आराम यह था कि कोई पूछ ताछ नहीं था।लेकिन बहुत सन्नाटा था, चलना बहूत पड़ता था और रिस्क की संभावना बहुत थी। चीफ इंजीनियर साहब के यहाँ नौकरी में काम के घंटे तो बढ़ जाते लेकिन पूछ बढ़ जाती। ठेकेदार और अन्य लोग, जब चीफ इंजीनियर से मिलने आते तो कुछ रुपये टिप में दे जाते। जनरल मैनेजर साहब के यहाँ की बात तो पूरी तरंह से अलग थी।

दूसरे महीने तक उसे यह मालूम हो गया कि उसे मिल के भीतर ही चौकीदारी करनी है नहीं तो वह मिल की भीतरी माहौल से बिल्कुल कट जाएगा और ज़िन्दगी भर चौकीदार ही रहेगा।

मिल के भीतर दो बंगलो पर डयूटी लगती थी।ड्यूटी बाबू से निवेदन किया लेकिन बहुत हाथ पांव जोड़ने और ड्यूटी बाबू की सेवा करने के बाद भी वह उसे जनरल मैनेजर साहब के बंगले पर नहीं लगवा पाए। फिर चीफ इंजीनियर साहब का बंगला बचा। मुश्किल से वहाँ डयूटी लग गयी वह भी इसलिये कि बंगले पर ड्यूटी करने वाला चौकीदार अपनी बेटी की शादी के लिये, दो महीने के लिए, अपने गाँव गया था। इसलिये चीफ साहब के बंगले पर टिके रहने का जुगाड़ दो माह में ही करना था।

खेलावन ने अपने मन में यह तय किया कि उसे इस दो माह में बढ़िया काम करके व बढ़िया व्यवहार रखकर चीफ साहब के परिवार का विश्वास जीतना है ताकि पुराना चौकीदार छुट्टी के बाद यहाँ ड्यूटी न लगवा सके। उसे पहलवानी का दांव याद आया। वह अपनी ड्यूटी मुस्तैदी से करने के अतिरिक्त चीफ साहब, मेम साहब, उनके बच्चों के आने जाने पर विशेष ध्यान देता।उनके आने जाने के समय सम्मानपूर्वक उन्हें नमस्कार करता। विश्वास जीतने में बच्चों की भूमिका को ध्यान में रखते हुए,वह बच्चों से घुलने मिलने व उनके साथ क्रिकेट खेलने का प्रयास करने लगा। खेल में उसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। चीफ साहब के दोनों बच्चों में से एक बैटिंग करता और एक बॉलिंग करता। बाल को दौड़कर पकड़ने तथा वहाँ से लाकर बॉलर को देने की जिम्मेदारी, खेलावन की थी। धीरे धीरे शाम के इस खेल में, खेलावन बैट बाल विकेट की तरह अनिवार्य हो गया, खेल के समय, यदि चीफ साहब की पत्नी कोई सामान मंगाने हेतु, खेलावन को बाज़ार भेजना चाहती तो बच्चे उधम मचा देते, मजबूरन चीफ साहब की पत्नी, बच्चों के ज़िद के आगे झुक जाती। यह खेलावन की जीत थी। बच्चों के निकटता ने, खेलावन को चीफ मैनेजर साहब की पत्नी की निगाह में उपयोगी बना दिया।

खेलावन का अगला लक्ष्य था, चीफ मैनेजर गौरव साहब की पत्नी अनिता मैडम का विश्वास जीतना ताकि पुराना चौकीदार बंगले पर, फिर डयूटी नहीं पा सके।बंगले के घरेलू कार्यो को करने में, खेलावन पूरी रुचि लेने लगा।यदि कोई ना पसंद घरेलू कार्य भी कहा जाता तो खेलावन न तो ना कहता और न अनिच्छुक ढंग से करता। दो आदमी का काम,खेलावन अकेले कर लेता। अनिता मैडम को धीरे धीरे यह विश्वास हो गया कि चाहे जो काम कह दो,खेलावन ना न करेगा। वह अपनी पाली की ड्यूटी समाप्त होने के बाद भी,देर से ही बंगले से निकलता।पाली की ड्यूटी पर, समय से पहले आ जाता। दो माह बाद, जब पुराना गार्ड आना चाहा, अनिता मैडम ने मना कर दिया। खेलावन का मिशन पूरा हुआ।

अब खेलावन का जीवन स्थिर हुआ।साहब के बंगले पर सुबह 8 से रात 8 की ड्यूटी। दोपहर में घर से लाई हुई रोटियाँ और सब्जी का खाना। शाम को बच्चों के साथ खेलना, अनिता मैडम के कहने पर बाज़ार से सब्जी आदि लाना, घर के घरेलू कार्य करना।और सायकल घर पहुँचकर रात में दस बजे तक सो जाना।सुबह चार बजे उठकर दो सौ दंड बैठक करना, तैयार होना और फिर आठ बजे बंगले पहुँच जाना।

जिन ठेकेदारों या मशीन और उसके पुर्जे सप्लाई करने वालो का काम गौरव साहब से पड़ता, वे गौरव साहब से सुबह या शाम मिलने आते,तो जाते हुए बख्शीश दे जाते। हर महीने तीन चार लोग ऐसे आ ही जाते। यह अतिरिक्त आय से घर में समृद्धि तो आई ही, बड़े लोगों से नमस्कार दुआ भी शुरू हो गयी। गौरव साहब के पास इलाके के मशहूर नेता जी भी किसी न किसी काम से यदा कदा आते थे। लोकल अधिकारी लोगों को भी सार्वजनिक कार्यो के लिये, गौरव साहब से कहते।

खेलावन घरेलू कार्य करने के लिये, घर के भीतर जाता, तब उसे दिखाई पड़ता कि बड़े लोग कैसे रहते, क्या खाते है, कैसे समय गुज़ारते है। अब उसे लगने लगा कि नौकरी के अलावा,रहन सहन, आचार विचार बहुत ज़रूरी है। दुनिया में बहुत लोग हैं, बहुत सोच है, लेकिन कमाई का ज़रिया भी बहुत है, दुनिया बहुत बड़ी है, सबके लिये जगह हैं। योग्यता होनी चाहिये, हुनर होना चाहिये, पढ़ाई होनी चाहिये। पहली बार उसे अपने कम पढ़ने पर पश्चाताप हुआ।

अगले दिन जब वह बंगले पर पहुँचा तो उसके हाथ में जंगली करेली का झोला था।करेली देते हुए, अनिता मैडम से बोला,

मैम साहब, यह छोटी करेली है। डायबिटीज कि लिये रामबाण है। अपने कियारे (खेत के टुकड़े) का है,साहब के डायबिटीज में बहुत फायदा करेगा।

करेला तो यहाँ बाज़ार में भी मिलता हैं, क्यो परेशान हुए।

अनीता मैडम बोली।

बाज़ार में जो करेला बिकता है, उसमे सत्त (शुद्धता) कहाँ। उसमे अंग्रेज़ी खाद पड़ा होता है, कीटनाशक दवाइयाँ पड़ी होती हैं। हम जो करेली लाये है, गोबर की खाद पड़ी है। शुद्ध है। इसको बाज़ार का करेला,कही पायेगा ?, नही, मेम साहब।

खेलावन बोला।

ठीक है।

कहकर अनिता मेम साहब ने करेली ले ली।

इसी पैट्रन पर खेलावन, कभी अमरूद, कभी लौकी, कभी तोरई, कभी ताजी मछली, कभी कच्चा आम लाता रहा। धीरे धीरे वह बंगले पर शाम की चाय पीने लगा, बाद में दोपहर में भी उसे बची हुई सब्जी मिलने लगी। धीरे धीरे गौरव साहब को इतना विश्वास हो गया कि वे खेलावन के साथ,अनिता मैडम के साथ बच्चों को, बाहर भी, गाड़ी से भेज देते। खेलावन गौरव साहब के परिवार का अघोषित लेकिन उपयोगी सदस्य बन गया। उसे गौरव साहब के सभी रिश्तेदार भी जानने लगे।

करीब एक- डेढ़ साल से अधिक का समय ऐसे ही गुजर गया। एक दिन गौतम साहब मिल में, खड़े होकर बॉयलर ठीक करवा रहे थे, न जाने क्या हुआ। बवयलर फट गया। जिससे काफ़ी नुक़सान हुआ। दो मजदूर, एक जूनियर इंजीनियर, तुरंत मर गए। गौरव साहब और एक सहायक इंजीनियर बुरी तरह घायल हुए। सभी को स्थानीय अस्पताल में भर्ती किया गया।अनिता मैडम व बच्चों का बुरा हाल हो गया। खेलावन गौरव साहब की देखभाल में दिन रात लग गया। वह अपने गाँव नहीं गया - साहब के बंगले से अस्पताल और अस्पताल से साहब का बंगला - इसी बीच रहता। स्थानीय अस्पताल में, जब डॉक्टर ने इलाज करने में असमर्थता व्यक्त कर दी तो गौरव साहब को दूर के बड़े शहर के बहुत बड़े अस्पताल में भर्ती किया गया। बच्चों को लेकर, अनिता मैडम जब बड़े अस्पताल के लिये, घर से निकलने लगी तो,वहाँ मौजूद पड़ोसी, कलीग, अधीनस्थ लोगों में से केवल, खेलावन ने गौरव साहब के साथ चलने का अनुरोध किया, जिसे अनिता मैडम ने स्वीकार किया। मैडम ने बड़े अस्पताल के पास होटल का एक कमरा ले लिया। ड्राइवर और खेलावन गाड़ी में सोते, फुटपाथ पर खा लेते। सहायक इंजीनियर तो इस अस्पताल में आने के बाद ही मर गए, लेकिन गौरव साहब की खराब हालत स्थिर बनी रही। सुधार नहीं हो रहा था।

एक सप्ताह बाद, ड्राइवर के घर में उसके बच्चे बीमार पड़े।ड्राइवर ने घर जाने की अनुमति मांगी। अनिता मैडम बहुत हिम्मती महिला थी उन्होंने उसे छोड़ दिया और ख़ुद कार चलाने लगी। फैक्ट्री के लोग यदा कदा आते, गौरव साहब का हाल पूछकर, शहर में अपना लम्बित कार्य निपटाते हुए फैक्ट्री वापस चले जाते।अब इस कठिन काल मे, अनिता मैडम का साथ देने के लिये, केवल खेलावन बचा।

गौरव साहब की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा था, लेकिन अनिता मैडम बढ़िया से बढ़िया डॉक्टर बुलाकर दिखवा रही थी। अच्छी से अच्छी दवाई चल रही थी। एक एक दिन बीत रहा था। ड्राइवर और फैक्ट्री के लोगों के साथ साथ मैडम अनिता के रिश्तेदारो का आना जाना लगा रहा, अनिता मैडम डटी रही, खेलावन लगा रहा लेकिन गौरव साहब के स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ। वे अभी भी, आई-सी यू में,कृतिम उपकरणों के जरिये जी रहे थे। महीना दिन बीतते बीतते अनिता मैडम का धैर्य टूटने लगा। अब खेलावन को कई बार, उनके आँख में आंसू दिखने लगे। बच्चों के सामने तो नही, लेकिन कार में, अस्पताल के लॉबी में कई बार रोते दिख जाती। हर बार खेलावन ढाढ़स देता,

मैडम, अच्छा ही होगा। ऊपर वाले पर भरोसा रखिये।

इन्हीं के साथ,ऐसा क्यों हुआ ?

अनिता मैडम बोली।

मैडम, कोई खराब ग्रह था, अचानक साहब के ऊपर आ गया। धैर्य रखें मैडम, सर् जी, ठीक होकर फैक्ट्री में, काम पर जाएँगे।

खेलावन ने पुनः हिम्मत बढ़ाई।

मालूम न जाने, इन्हीं के साथ ऐसा क्यों हुआ ? इन्होंने किसी का क्या बिगाड़ा था ? इनकी ऐसी तबीयत है और मैं कुछ कर भी नहीं पा रही हूँ ?

अनिता मैडम ने आँख में आंसू भर कर, फिर पूछा।

खेलावन ने पुनः ही हिम्मत बढ़ाई,

मैडम, आपने इतनी हिम्मत से साहब का बढ़िया से बढ़िया इलाज करा रही है साहब के ठीक होने के लिये,आप पैसा पानी की तरह ख़र्च कर रही है, एक माह से दिन रात एक की है। इससे अधिक तो कोई कर नहीं सकता। रही बात साहब के स्वास्थ्य की, यह सही है कि ठीक नहीं हो रहा है लेकिन स्थिति खराब भी नहीं हो रही है। इतना आसरा तो है।

ऊपर वाले से प्रार्थना कि यह जल्दी अच्छा होकर घर चले।

अनिता मैडम ने उम्मीद जताई।

एक सप्ताह और बीता। अनिता मैडम थोड़ी और कमजोर पड़ रही थी। उनकी उम्मीद कम हो रही थी और हताशा बढ़ रही थी।केवल खेलावन अभी पूर्ण रूप से उम्मीद किये था कि साहब ठीक होकर फैक्ट्री में काम करेंगे। खेलावन को यह भी लग रहा था कि साहब,उसको परमानेंट लगवा देंगे। यह मेहनत और सेवा - फल भी देगी।

बड़े अस्पताल में भर्ती होने के 57 वे दिन, मशीने, दवाई, उपचार, दुवाये काम नहीं आई,गौरव साहब की सांस बंद हो गयी। अनिता मैडम पर तो वज्रपात हो गया, 42 साल की उम्र में इतने बड़े पद पर पहुचने वाले गौरव साहब न जाने कहाँ तक आगे बढ़ते। बच्चे कैसे पढ़ेंगे ? उसकी देख भाल कौन करेगा? उनका जीवन कैसे चलेगा?

कलियुग इसे ही कहते हैं। जैसे ही चीफ मैनेजर गौरव साहब की आँखे बंद हुई, मिल मैनेजमेंट ने गौरव साहब के परिवार से आंखे फेर ली। अनीता मेम साहब उस ज़माने में स्नातक पढ़ी थी, उन्होंने मृतक आश्रित कोटे में ओ एस डी, बनने के लिये, प्रार्थना पत्र दिया। मिल मैनेजमेंट ने उसे ठुकरा कर, कनिष्ठ लिपिक के पद पर, अनुबंध पर रखने का आफर दिया। ड्यूटी पर यह एक्सीडेंट हुआ था, अनिता मैम मुआवजा मांग रही थी और मिल मैनेजमेंट कह रहा था कि कुछ अनुग्रह राशि ले लो या कनिष्ठ लिपिक की नौकरी। मकान छोड़ने की भी नोटिस दे दिया।

अनीता मैम ने अपने को सम्हाला और हाइकोर्ट में रिट कर दी। मैम के रिट करते ही मिल मैनेजमेंट बिल्कुल नाराज हो गया। ऐसी परिस्थिति में, अब मिल की एक दो महिलाएँ यदा कदा, वह भी छुप छुपाके, रात या भोरे मिलने आती। केवल खेलावन दिन में आता, रोज़ आता। अनिता मैडम जानती थी सारी बाते। वह यह भी जानती थी कि यहाँ आने के कारण, किसी न किसी दिन खेलावन की यह टेम्पररी नौकरी चली जायेगी। लेकिन वह मना भी नहीं कर पाती क्योंकि खेलावन के अलावा उसके पास कोई नहीं था।

जिस मिल मेंउसके पति और उसका इतना जलवा था, वही नमक, तेल, अनाज - जाकर खरीदने,रोज दूध लाने आदि कामो के लिये, खेलावन का सहारा लेना पड़ता। जब उसे हइकोर्ट के काम से बाहर जाना पड़ता तब, वह खेलावन के भरोसे बच्चों को छोड़ जाती। मिल मैनेजमेंट, बड़े वकीलों को खड़ाकर अनिता मैम की रिट खारिज कराने के लिये बार बार डेट लगवा रहा था। अगली बार जब, बच्चों को खेलावन के भरोसे छोड़कर, अनिता मैडम हाईकोर्ट गयी तो उन्हें एक दिन के बजाय दो दिन लग गए। जब मिल लौटी तो पता चला कि रमाकांत को टेम्पररी नौकरी से हटा दिया गया है।

अनिता मैडम ने पूछा,

ऐसा क्या हुआ, खेलावन। तुमने तो छुट्ठी लिया था न।

जी, मैडम। मैंने एक दिन का अवकाश लिया था,जब आप नहीं लौटी तो मुझे तो यहाँ रुकना ही था। यह बात मिल वालो को शायद पता थी कि मैं एक दिन और ड्यूटी पर, इसके कारण, नहीं आ पाऊँगा। मैंने एक और दिन का ऑफ मांगा। मिल वालो छुट्ठी देने से मन करते हुए यह धमकी दी कि यदि ड्यूटी पर नहीं लौटे तो फिर टेम्पररी नौकरी नहीं रहेगी।

जा कर मिलकर बता देते।

मैं बच्चों को अकेले छोड़कर कैसे जाता ? फिर आपने तो बच्चों को मेरे भरोसे छोड़ा था

नौकरी चली गई न। अब क्या करोगे।

मैं बच्चों को अकेले छोड़ देता तो क्या आपका भरोसा न टूटता, कही बच्चों को कुछ हो जाता तो। रही बात ड्यूटी की,कही न कही, कुछ न कुछ काम मिल ही जायेगा।

खेलावन बोला।

मैडम चुप चाप उसे देखते हुए कुछ सोचने लगी। थोड़ी देर बाद, खेलावन ने पूछा,

मैडम, घर जाऊँ ?

अब तो नौकरी भी नहीं है। यही रहो।

मैडम मुस्कराते हुए बोली।

अब अपने नौकरी के साथ साथ तुम्हारे ड्यूटी के लिये भी लड़ना पड़ेगा। तुम यह भी जानते हो कि तुम्हारे बिना यहाँ का काम नहीं चल पाएगा।

उस समय खेलावन को लगा कि ड्यूटी तो छूटी, साथ ही साथ मैडम के इर्द गिर्द, उसके लिये, खड़ी दीवार भी टूट गयी।

खेलावन अब परमानेंट रूप से, मैडम अनिता के बंगले के सर्वेंट रूम में रहकर, बच्चों की देखभाल, घर के काम करने लगा। मिल मैनेजमेंट ने हार नहीं मानी, जब उन्हें लगा कि अनिता मैडम का पक्ष मज़बूत है तो उन्होंने लंबी लंबी डेट लेनी शुरू कर दी।

गौरव साहब के मरने के बाद,अब अन्य विपत्तियों ने आक्रमण किया। पेंशन के अलावा, बाक़ी ग्रचुअति, एनकेशमेंट आदि का भुगतान मिल ने नहीं किया। उलझाए रहे। कोर्ट से स्टे लेकर मिल के बंगले में अनिता मैडम रह तो रही थी, लेकिन मिल मैनेजमेंट के विरोध के कारण,मैडम अनिता के साथ साथ बच्चों के लिये,यह माहौल तनावपूर्ण हो गया। मैडम ने एफ डी तुड़ाकर पास के बड़े शहर में, बच्चों को होस्टल में डाल दिया।

बच्चों के जाने के बाद, मैडम अनिता बिल्कुल अकेली हो गयी। आर्थिक ख़र्च का दबाव उनके ऊपर चढ़ने लगा।अक्सर वह कमरे में चुपचाप पड़ी रहती, कभी बाहर निकलती तो खेलावन को झिड़क देती, कभी उसे उलाहना देती की तुम्हने अपने को यहाँ क्यो फंसा लिया, कभी कहती कि केवल तुमने नामक का हक़ अदा किया,,कभी डांटती। लेकिन खेलावन यह तो समझ गया कि मैडम के ऊपर निराशा बढ़ रही है, लेकिन उन्हें मेरी ज़रूरत है उन्हें मेरे ऊपर भरोसा है।

कहते हैं, जब रात काली होती है, तो सुबह पास होती है। ऐसे में,एक दिन मैडम अनिता के एक रिश्तेदार का तार आया कि तुरन्त राजधानी पहुँचो,। मैडम राजधानी गयी और वहाँ से लौटी तो उन्होंने कहा,

खेलावन ! तू जानता है कि मिल वाले कुछ भला होने नहीं देंगे, कानूनी पचड़े में फसाये रखेंगे। लेकिन ,एक काम आया है। काम थोड़ा खराब है।

कौन-सा काम ?

खेलावन ने पूछा।

अंग्रेज़ी शराब की दुकान खोलने का। मेरे ममेरे जीजा जी को कई जिलों का,अंग्रेजी शराब के थोक सप्लाई का काम मिला है। वह कह रहे थे, कोई एक विश्वासी आदमी ढूँढ लो, लाइसेंस मैं दिलवा दूंगा। शराब की पेटियाँ भी एडवांस करा दूंगा। थोड़े पैसे लगाने होंगे। यदि काम चल निकला तो और दुकानों के लाइसेंस ले लेना।

विश्वासी आदमी तुम हो और पूंजी मेरे ज़ेवर तुम कहो तो हाँ करूँ। लेकिन ध्यान रखना करना सब तुम्हे ही है दुकान भी तुम्हे ही चलाना है स्थानीय स्तर पर तुझे ही सब संभालना है तुम्हे ही मेरे व अपने लिये कमाना है और यदि दुकान बैठ्ठ गयी तो मैं सड़क पर आ जाऊँगी।

खेलावन पहले चौका। फिर लगा,कि एक के बाद एक कितनी विपत्तियाँ झेलनी पड़ रही है। यदि गौरव साहब चीफ मैनेजर साहब होते, मैडम आराम से बैठकर हुक्म चला रही होती। उन्हें पैसा कमाने की चिंता तो न करनी पड़ती। उसने इन विचारों को झटककर कहा,

मैडम, मैं अपने पूरी मेहनत, दिमाग़ के साथ,आपके साथ हूँ।

जानती हूँ, तुम हर तरह से साथ हो।, लेकिन इससे अंग्रेज़ी शराब की दुकान तो नहीं चलेगी। कई लोगों से तुम्हारा पाला पड़ेगा, तुम्हारा नेचर भी बिल्कुल सीधा साधा है तुम कर लोगे न ?

आप भरोसा रखिये। ईश्वर चाहेगा तो अच्छा होगा।

खेलावन बोला।

तुम्हारे नियत साफ़ है और मेरे भले के लिए है इतना तो मैं जानती हूँ।

अनिता मैडम बोलते हुए बात समाप्त की।

अगले दिन, खेलावन ने, कस्बे में, अपने गारंटी पर दुकान ले ली। मैडम अनिता ने ज़ेवर बेचकर धन इकट्ठा किया। अनिता मैडम के ममेरे जीजाजी ने बिना प्रतिभूति के अंग्रेज़ी शराब की दुकान का लाइसेंस दिलवा दिया और बिना एडवांस के पहली सप्लाई भी दिला दी। बिना उद्घाटन के दुकान तो शुरू हो गया लेकिन जिस दिन दुकान शुरू हुई उस दिन खेलावन ने पुराने अखाड़े के नए व पुराने पहलवानो को पेड़ा समोसा चाय खिलाया।

अनिता मैम खेलावन को जितना सीधा समझ रही थी, उतना सीधा तो था, लेकिन बुध्धू नहीं था। खेलावन जान रहा था कि समोसा खिलाना कितना ज़रूरी था। इतने पहलवानो को एक साथ देखकर, दुकान के आस पास के लोग, गुंडे मवाली छिछोरे के मन यह भय पैदा हुआ कि दुकान वाला पावर फूल है।लेकिन

सिस्टम के लोगों से, बेहिचक, खेलावन ने तालमेल कर लिया। खेलावन जानता था कि सांप अपनी बिल में सीधा ही जाता है। उसे पता था कि बिना सिस्टम के उसकी दुकान नहीं चल पाएगी और सिस्टम ख़ुश रहेगा, तो और बेहतर होगा।

दुकान ठीक चल पड़ी। अनिता मैडम के बंगले से,रोटी खा के 10 बजे दुकान पहुँचता,फिर रात 10 बजे दुकान बंद कर कैश लेकर घर आता। अनिता मैम अपना खाना खाने के बाद टी वी देखती। रमाकांत, सबसे पहले कैश मैडम के हाथ में देता। फिर दिन भर की, दुकान की सारी बाते बताता। फिर हाथ मुह धोकर खाना ख़ाकर सो जाता।

दुकान जैसे जैसे चलने लगी, बुरा समय कटने लगा, वैसे वैसे खेलावन की सामाजिक स्थिति बंगले में, ठीक होने लगी। अब उसका खाना, सोना, बगलें के पीछे के बरामदे से हटकर, बंगले के गेस्ट रूम में होने लगा। मैडम भी, ड्राइंग रूम में उसे, बराबर के सोफे पर बिठाने लगी।

एक दिन ड्राइंग रूम में खेलावन ने मैडम से कहा,

दुकान ठीक चल रही है। इस साल दो तीन दुकाने,अगल बगल के बाज़ार ों में और ले लिया जाय।

पैसा?

दुकान लेने की जिम्मेदारी मेरी,थोड़ी पूँजी जुटाने की जिम्मेदारी मेरी। बस अंग्रेज़ी शराब के एडवांस पेमेंट की जिम्मेदारी आपकी और आपके ममेरे जीजा जी की।

मुफ्त में दुकान,कोई क्यो देगा। शुरुआती पूंजी, कोई क्यो देगा। कर्जा लोगे?

नही। दुकान की बिक्री देखकर,आस पास के कई बड़े लोग लोग दुकान खोलना चाहते हैं, लेकिन वे सामने नहीं आना चाहते। अपना नाम नहीं दिखाना चाहते, लेकिन शराब की दुकान से,पार्टनरशिप करके, मुनाफा चाहता है। ऐसे तीन लोगों से बात हो गयी है, मुनाफे में 40 % के हिस्सेदारी पर,अपनी दुकान और शुरुआती पूंजी लगाने को तैयार है। बस, नाम हम लोगों का होगा।चलाएँगे हम लोग।

जीजा जी से कितनी बार कहूँगी।

बस एक बार और अंतिम बार। आगे से आप ख़ुद इतना सक्षम हो जाएँगी कि किसी रिश्तेदार की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।

तुम ही सब कुछ कर रहे हो, तुमने अपने लिये तो कुछ बताया ही नही।

मैडम, जब पूरे जिले में, ऐसी पचासों दुकाने चलने लगेगी, तब, जो उचित लगे, दे दीजियेगा।

क्या कहा ? पचास दुकाने !!

हाँ, मैडम। ऊपरवाले पर भरोसा रखिये, जल्दी ही यह दिन आएगा।

यह कहकर खेलावन दुकान पर चला गया। उस दिन, अनीता मैडम को लगा कि खेलावन में जबरजस्त परिवर्तन आया है। सफलता ने खेलावन के अंदर आत्मविश्वास बढ़ा दिया।

खेलावन ने जैसा सोचा था, वैसा ही हुआ। अब चार दुकाने हो गयी। चारो पर उसने स्थानीय पहलवान सेल्समैन के रूप में रख दिये। अब वह चारो दुकान का मैनेजर बन गया।दुकाने अच्छी चलने लगी। आर्थिक समृद्धि और सामाजिक मान्यता में वृद्धि दिखने लगी।

लगा वक़्त पलट रहा था। कोर्ट से अनिता मैडम की जीत हो गयी। कोर्ट ने ऑन ड्यूटी मृत्यु स्वीकार कर, शेष दिनों का वेतन,एक मुश्त देने का आदेश दिया। यह रक़म कई लाखो में थी। खेलावन के सलाह पर,देसी शराब के ठेके के लिए बोली लगाई और जिले की आधी दुकाने का ठेका ले लिया। इस पूरी प्रक्रिया पूरा साल लग गया लेकिन इस ठेके से अनिता मैडम जिले की सबसे बड़ी दो ठेकेदारों में से एक हो गयी। इन देसी विदेशी सभी दुकानों का व्यवस्थापन और देख रेख खेलावन ही करता। खेलावन के नीचे चार लोग तैनात किए गए जो दुकान के सेल्समैन व खेलावन के बीच कड़ी का काम करते। लेकिन खेलावन में कोई बदलाव नहीं आया।

एकाध महीने बाद, मैडम अनिता ने कहा,

खेलावन ! अब तू बहुत बड़ा मैनेजर हो गया है। अब तुम शर्ट पेंट पहना करो। अच्छे से रहा करो। एक जीप ले लो। उससे सुविधा रहेगी। दुकानों को देखने मे। और अपना नाम खेलावन की जगह के कुमार लिखा करो

मैडम, मैं ऐसे ठीक हूँ।

अब तक जो तुमने कहा, मैंने माना।अब मेरी बात सुनो। रहन - सहन से भी व्यापार और बढ़ता है।

ठीक है। जैसा आप कहे। यदि इससे व्यापार बढ़ता है, मज़बूत होता है तो अपने को बदल लूंगा।

खेलावन बोला।

खेलावन ने अपना पहनावा और रहन सहन बदल लिया तथा नाम भी इससे, उसके दृष्टि में व्यापार में तो बहुत वृद्धि नहीं हुई, लेकिन समाज में उसकी स्वीकार्यता बढ़ी, उसे लोग एक सफल व दबंग व्यवसायी के रूप देखने लगे। खेलावन में यह परिवर्तन, अनिता मैडम का बढ़ता व्यवसाय व बढ़ती समृद्धि,कई लोगों को रास नहीं आया और वे अनिता मैडम व खेलावन के रिश्ते को लेकर, दुष्प्रचार करने लगे कि दोनों के अंतरंग सम्बंध है।

अफवाह बिना पैर की होती है, इसीलिये इसे अनिता या खेलावन तक पहुँचने में समय लगा। सबसे पहले यह अफवाह खेलावन तक पहुँची, उसके पुराने समय के दोस्तो ने उसे इशारे में बताया, जिसे उसने झूठा बताते हुए, इग्नोर कर दिया।

खेलावन ने दोस्तों से कहा,

लोग, अनिता मैडम के साहस, हिम्मत से डरते हैं। उन्हें लगता है कि कैसे एक विधवा स्त्री, पति के मरने के बाद, मिल मनगमेंट से मुकदमा लड़ कर हराने के बाद भी, दया का पात्र बनने के स्थान पर, सिर उठाकर,सम्मान के साथ अपना और अपने परिवार को आगे ले जा रही है। अब इन्हें कुछ नहीं मिला तो मुझे जोड़ कर, अनर्गल आरोप लगा रहे हैं।सब झूठ है।

इसके एक सप्ताह बाद, रात में जब वह लौटा तो अनिता मैडम पूर्व की भांति ड्राइंग रूम में मिली। वह गेस्ट रूम जा कर कपड़े बदलने के बाद, खाना खाने के लिये, ड्राइंग रूम में रखे,डाइनिंग टेबल पर बैठा। खाना खाते हुए,वह सभी दुकानों की जनरल रिपोर्ट बताने लगा। थोड़ी देर बाद, उसे लगा कि अनिता मैडम उसकी बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रही हैं, न ही हा हूँ कर रही है।

खेलावन ने चिंतित होते हुए पूछा,

क्या मिल वालों ने कोई नोटिस भेजी है ?

नही।

क्या,बच्चो के हॉस्टल से कोई ख़बर आई है ?

नही।

क्या तबीयत खराब है ?

नही।

फिर, अनमनी-सी क्यो दिख रही हैं ?

ऐसी तो बात नहीं है।

ऐसा कहकर,अनिता मैडम अपने कमरे में चली गयी।

सुबह नाश्ते पर, रोज़ की तरह दोनों की मुलाकात हुई। अनिता मैडम ने कुछ बताया नहीं लेकिन चिंतित दिखी।

उस दिन रात में, डाइनिंग टेबल परअनिता मैडम ने कहा,

कल देर से जाना। कुछ बात करनी है।

खेलावन सोच में पड़ गया कि क्या बात है कि मैडम देरी से जाने के लिये, कह रही है। सामान्यतः वह 9 - 9:30 तक नाश्ता कर दुकानों के लिये निकल जाता। लेकिन उस दिन नाशत करने के बाद, ड्राइंग रूम में बैठकर अख़बार पढ़ने लगा।करीब 11 बजे मैडम अनिता ड्राईंग में आई।

क्या बात है, मैडम !

चुप

कुछ तो बताइए ?

आपने कुछ सुना ?

अनिता मैडम बोली।

क्या ?

लोगों की बाते

किसके बारे में?

आप के बारे में मेरे बारे में मेरे भी बारे में

खेलावन का माथा खनका। लगता है कही से मैडम अनिता तक यह अफवाह पहुँच गयी। चिढ़ते हुए बोले,

मैडम, लोगों के दिमाग़ में गंदगी भरी है लोग देख नहीं पाते कि कोई चैन से कैसे रोज़ी रोटी चला रहा है ?

मैं तो सुनकर शॉक्ड हूँ। कितने गंदे लोग है कल कही से कामवाली को पता चला तो उसने मुझे बताया तब से मैं समझ ही नहीं पा रही हूँ कि क्या कहूँ ?

यह सब मिल वालो की चाल है। परेशान करके जब आपको नहीं झुका पाए,उल्टे केस हार गए तो अब दुष्प्रचार पर उतर गए। अनाप शनाप अफवाह फैलाने पर उतर गए। उन्हें लगता था कि साहब के न रहने पर,आप अपने वाजिब हक़ के लिये कैसे लड़ कर जीत गयी। इसलिये अफवाह फैलाने पर उतर आए।

किसको किसको समझाएँगे?

खेलावन चुप।

कैसे समझाएँगे ?

आप बताइए, मैडम।

एक तरीक़ा है, मैडम।

क्या ?

मैं इस बंगले को छोड़कर बाहर रहने लगूं।

उससे क्या होगा ? लोग तो कहेंगे कि देखो, उन अफवाहों में सत्यता थी, नहीं तो रमाकांत बंगला छोडर दूसरी जगह क्यो रहते?

फिर

तुम्हारा बंगला छोड़ना कोई हल नहीं है। तुम्हारे यहाँ रहने से काम में सहूलियत है। फिर सेफ्टी भी रहती है। काम बहुत बढ़ गया है दुकाने अब अच्छी तरह चल रही है रोज़ दुकानों से इतना कैस आता है उनकी सुरक्षा की बात है ऐसे में तुम्हारे बंगला छोड़ने से यह समस्या हल होगी या नही, लेकिन दूसरी समस्याएँ बढ़ जाएँगी।

मैडम, मुझे यह उपाय सही लग रहा है।

नही, यह सही उपाय नहीं है।

मैडम, आपके बेटे को यहाँ लाकर, रखे और वह यही पढ़े ?

यहाँ की स्कूलिंग बहुत खराब है। इतने अच्छे स्कूल से उसे निकालकर,उसे यहाँ के स्कूल में डालना - उसकी ज़िन्दगी से खेलना है।

फिर ?

कुछ समझ में नहीं आ रहा है ?

कैसा ज़माना आ गया है, मैडम, मैंने तो देखा है आपने साहब के ठीक होने के लिये सती मैया की तरह प्रयास किया। आपके मन में साहब ही हरदम थे और हैं और रहेंगे। मैंने पहले सुना था, उसे इग्नोर कर दिया था।आप इतने बड़े व्यापार की मालकिन है। ज़रूर कोई न कोई हल निकलेंगी लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता है, हम लोगों को इसे अनसुना कर अपना काम करना चाहिये।

ठीक है। कुछ सोचती हूँ लेकिन तुम्हारा यह कहना ग़लत है कि सब मैंने किया है। इन सब में तुम्हारे मेहनत, निष्ठा, वफादारी, त्याग का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। तुमने इस व्यापार को ही नही, मुझे, इस परिवार को खड़ा कर दिया। उनके मरने के बाद,मैं, मेरे बच्चे, मेरी आर्थिक हालात कैसे थे मिल ने प्रताड़ित किया एक दो रिश्तेदार को छोड़कर कोई दिखता नहीं था कि मैं मदद मांग लुंगी ? और आज की स्थिति देखो। मिल को हरा दिया अपना निजी घर बन रहा है जिले की आधी देसी विदेशी शराब की दुकानें अपनी है रिश्तेदारों पुराने परिचितों का आना जाना बढ़ गया। नौकरिया मांग रहे हैं, आर्थिक सहयोग मांग रहे हैं खेलावन मुझे सब याद है

मैडम, मैं भी तो गॉर्ड से मैनेजर बन गया

नहीं खेलावन तुम्हारी मेहनत, वफादारी, निष्ठा, ईमानदारी, काम के प्रति जूनून तुम्हे और ऊपर ले जाएगी। ठीक है तुम ऑफिस चलो। देखती हूँ।

अनिता मैडम ने सोचा था कि शराब के व्यापार की जो समीक्षा घर पर करती हूँ, अब ऑफिस में करू। आफिस के लोगों के सामने बाते होंगी तो,यह अफवाह भी ख़त्म हो जाएगी।दूसरे यह कि क्यो न मैं ख़ुद सीधे बिसिनेस देखूं - न जाने कल कौन नहीं बात हो जाय घर पर तो बैठी ही रहती हूँ। अब तो व्यापार बहुत जम गया कोई ऐरा गेरा डिस्टर्ब नहीं कर सकता है फिर वह पड़ी लिखी भी है। वह व्यापार सम्हाल सकती है। उस रात खेलावन को यह बात दिया।

खेलावनने मैडम के लिये आफिस में, अपना कमरा चिन्हित कर उसका डेकोरेशन कराया कि वह मैडम में मन सम्मान के अनुरूप बैठने लायक बन सके। बगल का कमरा अपने लिए, रखा और उसमें भी आवश्यक सज सज्जा कराई गई। चैंबर तैयार होने के अगले दिन से अनिता मैडम ऑफिस जाने लगी। वहाँ बैठकर व्यापार की मॉनिटरिंग करने लगी।हर पॉइंट को समझने के लिये, उन्हें खेलावन को बार बार बुलाना पड़ता। इस स्थिति ने अफवाहों को और गति दे दी कि अनिता मैडम व खेलावन में, अंतरंग सम्बंध है।

मैडम ने जो सोचा, उसका बिल्कुल उलट हो गया। यह कथित अफवाहें मैडम के रिश्तेदारो तक पहुँच गई। मैडम के मायका वालो ने सीधे तो कुछ नहीं कहा लेकिन ज़ोर दिया कि

अपने समकक्ष कोई देखकर, शादी कर लो।बहुत उमर पड़ी है। बच्चे भी होस्टल में हैं।

मैं दिनभर तो व्यापार में उलझी रहती हूँ। सारी दुकानों पर हर तीसरे शराब पहुचना, रोज़ बिक्री का कलेक्शन करना, दुकानों के सेल्स मैन पर निगाह रखना न जाने क्या क्या।समय कहाँ शादी करने का।

तुम्हारा व्यापार तो बढ़िया चल रहा है। केवल मोनिटरिंग की ज़रूरत है। तुम्हारे आफिस न जाने पर भी, तुम्हरा व्यापार तीन दुकान से बढ़कर 150 दुकान तक पहुँच गया था। इसलिए इसकी आड़ में शादी मत टालो।

सोचती हूँ

निर्णय ले लो

बच्चों से तो बात कर लूं।

तुम बात करती रहना। हम लोग कुछ रिश्ते बताते हैं।

मायकेवालों ने कई रिश्ते बताये। जिनमे से आधे विधुर थे और उनके अपने बच्चे थे। कुछ विधुर थे, जिनके बच्चे नहीं थे, कुछ अधिक उम्र के अविवाहित थे, कुछ कम उम्र के बेरोजगार थे। उसने महसूस किया कि पहले श्रेणी के लोगों में विवाह करने पर बच्चों का आपसी एडजेस्ट मेन्ट मुश्किल है। दूसरी श्रेणी के लोग चाहते थे कि मैं उनके घर पर रहूँ, व्यापार छोड़कर। तीसरे श्रेणी के लोगों की समस्या उनकी regidity लगी।फिर क्या कारण था कि उनकी अभी तक शादी नहीं हुई। चौथी श्रेणी के लोग आश्रित थे। शादी होने के बाद, समृद्धि मिलने के बाद उनकी मेंटेलिटी बदल सकती थी।

अनिता मैडम को यह भी लगा कि गौरव साहब के मरने के बाद, स्वतंत्र रूप से सभी से लड़ने और इतना बड़ा व्यापार ज़माने के बाद, अब उसकी सोच, रहन सहन सब स्वतंत है। अब वह किसी के टोकने रोकने पर, सामंजस्य बिठाने मुश्किल होगा। फिर उसे लगा कि वह शादी ही क्यो करे? आख़िर इतने दिन उसने बिना शादी के अपने व्यापार को बढ़ाया। लेकिन अब वह न तो नौकरी पेशा की पत्नी है जिसकी दुनिया मात्र उसके पति का आंगन है।

अब उसकी सामाजिक छवि है। उसे जिले के सभी महत्त्वपूर्ण नौकरशाह, नेता, प्रभावशाली लोग जानते हैं।ऐसे में यह अफवाह उसकी छवि को नुक़सान पहुचायेगी, जो अन्ततः व्यापार को नुक़सान पहुचायेगा। दूसरे, खेलावन इस व्यापार को और कई जिलों में फ़ैलाना चाह रहा है, जिसमे असामाजिक तत्वों से वास्ता पड़ना ही पड़ना है इसमे उसे अग्रिम पंक्ति में अनजाने लोगों से डील करने के लिए कोई अपना विश्वसनीय पुरुष होना चाहिये। इस स्टेज पर यदि सामाजिक और व्यापारिक क्षेत्र में आगे बढ़ना है तो विवाह ज़रूरी हो गया है।

अनिता मैडम ने अपनी सोच को आगे बढ़ाया की जब विवाह करना ही तो इसके लिये सर्वोत्तम चॉयस खेलावन है। जाना समझा है।लिमिट में रहता है।वफादार है। महत्त्वकांशा नहीं है, खराब समय में टेस्टेड है, undue लाभ लेने या नज़दीक आने की कोशिश नहीं करता लेकिन उसके साथ सोशल स्टेटस की समस्या है। यह तो दूर हो जाएगी 10 % हिस्सा देकर। लेकिन उसके साथ एक बिस्तर पर सोना यह तो संभव नहीं है फिर वह शादी ही क्यो करेगा ? 10 % हिस्से के लिये। बिना साथ में सोये शादी का मतलब क्या ?,, मेरे लिये सामाजिक सुरक्षा एक वफादार निष्ठावान मेहनती व्यापार सम्हालने वाला हैंड और उसके लिये 10% हिस्सा और चीफ मैनेजर का पद और मेरे नज़दीक रहने का सुख।

अनिता मैडम का द्वंद ख़त्म हुआ। उन्होंने डायनिंग टेबल पर पूछा,

मेरे मायके वाले कह रहे हैं कि मैं शादी कर लूं।

हूँ

क्यो ? तुम नहीं चाहते।

मैं बस यही चाहता हूँ कि आप ख़ुश रहे।

तुमने तो देखा ही किस तरह के अनर्गल अफवाहें फैलाई गई मायके वालों ने सीधा तो नहीं कहा लेकिन कह दिया शादी कर लूं।अब समाज में रहना है तो समाज की सुननी ही पड़ती है।मुझे लगता है कि मुझे शादी कर लेनी चाहिए। लेकिन तुम भी जानते हो और मैं भी कि मेरे दिल में साहब ही है? इसलिये मैं वह स्थान किसी को नहीं दे पाऊँगी।

फिर

यदि तुम चाहो तो, एक उपाय संभव है।

क्या

मैं तुमसे शादी कर लूं

मेरे लिये यह सोचना भी पाप हैं

मैं बहुत सोच समझ कर कह रही हूँ। लेकिन हम लोग वैसे ही रहेंगे जैसे इस समय रह रहे हैं। तुम अपने कमरे में मैं अपने कमरे में व्यापार में तुम्हारी हिस्सेदारी 10 % रहेगी।

ऐसे ही चलने दीजिये

तुम्हारी देखभाल व निजी ज़रूरतों के लिये,किसी को तनख्वाह पर रख दिया जाएगा।

खेलावन ने सिर झुका लिया। उसने आज त कभी मैडम अनिता की बात कभी नहीं टाली।दोनो की शादी हो गयी।लोगो और रिश्तेदारों को आश्चर्य लगा, लेकिन अफवाहें ख़त्म हो गयी।खेलावन की व्यक्तिगत देख भाल के लिये के लिये, बसमतिया आ गयी, जो अन्य आधा दर्जन नॉकरो के साथ बंगले पर रहने लगी।

फिर यही व्यवस्था चलने लगी। काग़ज़ पर खेलावन पति था, लेकिन वह व्यापार का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैंड था, पारिवारिक सहायक था।उसकी देख रेख व निजी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये बसमतिया थी।

यह व्यवस्था काफ़ी बर्षो चली। शराब के ठेके जिले से निकलकर कई जिलों में फैल गयी, लेकिन शराब की लत खेलावन को लग गयी।सुबह का नाश्ता, अनिता मैडम व खेलावन साथ करते, दोपहर और रात में खेलावन बाहर खाना खाते। व्यक्तिगत देखभाल बसमतिया करती।मैडम अनिता कार्यालय में पूरा समय देती और व्यापार पर नियंत्रण रखती।

अत्यधिक भाग दौड़, अनियमित भोजन व रहन सहन ने खेलावन को बीमार कर दिया। डॉक्टरों ने रहन सहन व दिनचर्या को संयमित करने को कहा। खेलावन का कहना था,

अब तो अच्छे दिन आये हैं संयम क्यो? डटकर मेहनत करता हूँ, डटकर क्यो न khau जो मन करे वह क्यो न खाउ जो मन करे वह शराब क्यो न पियूँ।

लेकिन बीमारी बढ़ती गयी। अस्पाल में ले जाया गया। ठीक होकर बाहर आने पर जीवन शैली में कोई परिवर्तन नहीं करता। साल में दो तीन बार ऐसा हुआ। लोगों ने सोचा, इस बार भी ऐसा होगा किंतु ऐसा नहीं हुआ। बीमारी लंबी खिंची। फिर खेलावन को आई-सी यू में भर्ती करना पड़ा। थोड़ी स्थिति सुधरी तो डॉक्टरों ने अस्पताल से छोड दिया।खेलावन घर आ गया लेकिन बीमारी ने उसे नहीं छोड़ा।

बंगले के अपने कमरे में वह पड़ा रहता। बसमतिया खेलावन का देखभाल करती। जब कोई बाहरी व्यक्ति, खेलावन को देखने आता तो, बसमतिया बाहर चली जाती। तब केवल अनिता मैडम पत्नी की तरह से गेस्ट को खेलावन के बारे में बताती।

ऐसे ही एक महीना से अधिक चला। कई लोग देखने आए।रोज सुबह शाम डॉक्टर आते थे, अनिता ने हर सम्भव दवाइयों की व्यवस्था की लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ।एक दिन, रात में अचानक सांस लेने में बहुत तकलीफ हुई। बसमतिया दौड़ी दौड़ी अनिता मैडम को जगाई।मैडम ने डॉक्टर बुलाया।डॉक्टर के आते आते सुबह हो गयी। डॉक्टर ने बताया,

अब ये कुछ घंटों के मेहमान है।

तुरंत पंडित जी बुलाये गए। पंडित जी आने जाने तक रमाकांत के कमरे के बाहर सैकड़ो लोग जमा हो गए।कुछ ख़ास लोग कमरे में भी आ गए।

कमरे में आकर पंडित जी ने मैडम अनिता से कहा,

गाय,वस्त्र आदि दान कराइये तुलसी पत्र लाइये, गंगा जल पिलाइये, कोई अंतिम इच्छा हो तो पूछकर, पूरा कर दीजिए।

मैडम अनिता ने खेलावन से पूछा,

कोई अंतिम इच्छा ?

खेलावन ने मैडम अनिता को इशारा किया कि सभी को बाहर निकालो। सबके बाहर निकलने के बाद अनिता मैडम ने पूछा,

अंतिम इच्छा बताओ

नजर नीचे करते हुए धीमे स्वर में बोले,

दोपयाजा गोश्त खाना है और बसमतिया को भेज दीजियेगा।

कुछ क्षण के मैडम अनिता हतप्रभ हो गयी।कमरे के बाहर निकली तो पंडित जी सुंदर कांड पढ़ रहे थे। बाहर खड़ी और सिसक सिसक रही बसमतिया के प्रति उन्हें पहली बार लगाव भी महसूस हुआ और उसके प्रति सहानुभूति भी हुई। अनिता मैडम ने उसको अपने साथ लेकर किचन में गयी।एक ट्रे में पानी और कुछ ड्राई फ्रूट्स रखकर कहा,

खेलावन ने अंतिम समय में तुम्हे बुलाया है। तुम लेकर खेलावन के पास जाओ।दोपयाजा गोश्त भी खाना चाह रहे, बनवाकर भेजती हूँ।

फिर अपनी सबसे पुरानी नौकरानी को बुलाकर कहा,

तुम बसमतिया के साथ जाओ। खेलावन के कमरे के बाहर रहना किसी को भीतर मत जाने देना।

बसमतिया ने डबडबाई आंखों से अनिता मैडम का चेहरा पढ़ना चाहा, लेकिन मैडम ने तुरंत चेहरा घुमा लिया।