आखिरी उसूल / बलराम अग्रवाल
बलात्कार की बात लड़की ने सबसे पहले ‘मौसी’ के आगे रोई । मौसी ने उसकी बात पर हारी हुई-सी साँस ली; फिर बोली,“औरत के लिए सारे-के-सारे मर्द बाज़ हैं बेटी। उनकी निगाह में हमारी हैसियत एक कमजोर चिड़िया से ज्यादा कुछ भी नहीं है। बचकर रहना औरत को लुट जाने के बाद ही सूझता है। सब्र कर और....बचकर रहना सीख।”
लड़की सब्र न कर पाई। खुद पर बलात्कार की शिकायत लिखाने थाने में जा धमकी।
“रहती कहाँ हो ?” शिकायत सुनकर थानेदार ने पूछा।
“जी....रेड-लाइट एरिया में।” लड़की ने बताया।
“रंडी हो ?” इस बार उसने बेहया-अंदाज में पूछा।
“ज्ज्जी।” लड़की ने बेहद संकोच के साथ हामी भरी।
“पैसा दिए बिना भाग गये होंगे हरामजादे, है न!” वह हँसा।
“यह बात नहीं है सर।”
“यही बात है...” लड़की का एतराज सुनते ही वह एकदम-से कड़क आवाज में चीखा और अपनी कुर्सी पर से उठ खड़ा हुआ। उसके इस अप्रत्याशित व्यवहार से वह बुरी तरह चौंक गयी। भीतर का आक्रोश फूट पड़ने को छिद्र तलाशने लगा। उसका शरीर काँपने लगा। आँखों से बहती अश्रुधार कुछ और तेज हो गयी।
“देखो,” इस बार थानेदार ने समझाने के अन्दाज में बोलना शुरू किया,“छोटे-से-छोटा और बड़े-से-बड़ा हर कामदार कम-से-कम एक बार इस तरह की लूट का शिकार जरूर बनता है। जो अपने काम में लगा रहता है, वो देर-सवेर घाटे को पूरा भी कर लेता है। लेकिन, जो इसे सीने से लगाए घूमता है, वो कहीं का नहीं रहता।”
“मामला बिजनेस का नहीं है सर। लड़की ने तड़पकर कहा,“आप समझने की कोशिश तो कीजिए। खरीदारों का नहीं है यह काम...।”
“रेड-लाइट एरिया की लड़कियों की शिकायतें दर्ज करने लगूँगा तो...।” थानेदार ने उसके सामने खड़े होकर बोलना शुरू किया,“तुम्हें तो पूरी जिन्दगी वहीं गुजारनी है। इस एक हादसे से ही इतना घबरा जाओगी तो...।”
लड़की बेबसी के साथ उसकी रूखी और गैर-जिम्मेदार बातों को सुनती रही और...।
“जो हो चुका, उस पर खाक डालो।” धमकी-भरे अन्दाज में वह कड़ाई के साथ उसका कंधा दबाकर बोला,“हर काम, हर धंधे का पहला और आखिरी सिर्फ एक ही उसूल है—लड़ो किसी से नहीं।”
“नहीं...ऽ...!” एक झटके के साथ अपने कंधे से उसका हाथ झटककर लड़की पूरी ताकत के साथ चीखी,“नहीं...ऽ...!!”