आखिरी दरवाजा / यशपाल जैन

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँचा:GKCatBodhkatha एक फकीर था। वह भीख मांगकर अपनी गुजर-बसर किया करता था। भीख मांगते-मांगते वह बूढ़ा हो गया। उसे आंखों से कम दीखने लगा।

एक दिन भीख मांगते हुए वह एक जगह पहुंचा और आवाज लगाई। किसी ने कहा, "आगे बढ़ो! यह ऐसे आदमी का घर नहीं है, जो तुम्हें कुछ दे सके।"

फकीर ने पूछा, "भैया! आखिर इस घर का मालिक कौन है, जो किसी को कुछ नहीं देता?"

उस आदमी ने कहा, "अरे पागल! तू इतना भी नहीं जानता कि यह मस्जिद है? इस घर का मालिक खुद अल्लाह है।"

फकीर के भीतर से तभी कोई बोल उठा-यह लो, आखिरी दरवाजा आ गया। इससे आगे अब और कोई दरवाजा कहां है?

इतना सुनकर फकीर ने कहा, "अब मैं यहां से खाली हाथ नहीं लौटूंगा। जो यहां से खाली हाथ लौट गये, उनके भरे हाथों की भी क्या कीमत है!"

फकीर वहीं रुक गया और फिर कभी कहीं नहीं गया। कुछ समय बाद जब उस बूढ़े फकीर का अन्तिम क्षण आया तो लोगों ने देखा, वह उस समय भी मस्ती से नाच रहा था।