आखिरी महाराजा की विदाई / जयप्रकाश चौकसे

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आखिरी महाराजा की विदाई
प्रकाशन तिथि :30 जून 2017


एअर इंडिया का प्रतीक चिह्न नमन करते हुए महाराजा की छवि प्रस्तुत करता है। उसकी मूंछें उसके उन कानों तक जाती हैं, जो साफे से बंधे हैं। साफे पर सुंदर कलगी भी है। उसके पैर उसके धड़ को देखते हुए कमजोर लगते हैं। यह प्रतीक चित्र संभवत: इसलिए बनाया गया कि आम आदमी तो ट्रेन, बस या बैलगाड़ी से सफर करता है। महंगा हवाई सफर श्रेष्ठि वर्ग एवं सरकारी अफसर ही करते रहे हैं। दरअसल, सरकार का यह निर्णय आश्चर्यजनक नहीं है। वह तमाम उद्योग अमीर घरानों को सौंपना चाहती है, जो उसके पूंजीवाद को समर्पित होने को भी रेखांकित करता है। प्राइवेट हाथ में जाते ही हवाई यात्रा महंगी हो जाएगी। सच है महाराजा के दरबार में आम आदमी की क्या भूमिका है। आम आदमी से अधिक रौब तो उस चोबदार का है, जो सावधान करता है कि महाराजा पधार रहे हैं।

हवाई सफर को केंद्र में रखकर कुछ फिल्में बनी हैं, जिनमें सत्य घटना पर आधारित 'नीरजा' को बहुत पसंद किया गया था। भारत का एक हवाई जहाज अपहरण करके कंधार ले जाया गया और बंधकों की रिहाई के एवज में भारतीय फौज द्वारा बंदी बनाए गए आतंकी छोड़ दिए गए। कुछ खोजी पत्रकारों का कहना था कि बंधक किए गए भारतीय लोगों में एक महत्वपूर्ण अखबार के परिवार के दो सदस्य भी थे और राइट विंग के इस अखबार के दबाव में भारत सरकार झुकी। इस घटना पर भी कल्पना के रेशे मिलाकर फिल्म बनाई गई थी। वह अखबार उत्तर प्रदेश में लोकप्रिय रहा है।

एक बार इजरायल के जहाज का अपहरण किया गया और उस देश के जांबाज अपने लोगों को बचाने में सफल रहे। इस घटना पर अंग्रेजी भाषा में फिल्म बनी है। हर यात्री के सामान की सघन जांच होती है फिर भी जाने कैसे कुछ यात्री हथियार वायुयान में ले जाने में सफल होते हैं। दरअसल, टेक्नोलॉजी के नए आविष्कार आतंकी पहली ही खरीद लेते हैं और सरकार के टेंडर इत्यादि मंगाने जाने में समय लगता है। हमारे एके-47 खरीदने से पहले ही दाऊद के लोगों के पास ये हथियार थे। आतंकवाद को भले ही मजहब से राजनीतिक स्वार्थों ने जोड़ा हो परंतु यह सुगठित व्यवसाय है। ड्रग्स और टेक्नोलॉजी की तस्करी भी इसके तहत होती है। कोरिया ने इन्हीं गलियों से टेक्नोलॉजी प्राप्त की और आणविक बम बनाने में सफल रहे। यह भी संभव है कि श्रीकृष्ण के शांति प्रयास भी उस व्यापारी समूह ने असफल किए हों, जिन्होंने युद्ध की सामग्री का निर्माण कर लिया था और अरबी घोड़ों को भी खरीद लिया था। व्यापारी समुदाय हर कालखंड में चतुर एवं प्रभावशाली रहा है परंतु जीएसटी के विरोध में वे सफल नहीं हो पा रहे हैं। युद्ध नामक व्यवसाय नया नहीं है और अमेरिका ने इस क्षेत्र में महारत हासिल कर ली है। कुछ सैनिक भी युद्ध का स्वांग प्रस्तुत करने में प्रवीण होते हैं जैसा कि में जॉर्ज बर्नाड शॉ के नाटक 'आर्म्स एंड मैन' में पढ़ा जा सकता है।

भारत के कुछ औद्योगिक घरानों के पास अपने हवाई जहाज हैं, जिनकी भीतरी सजावट फाइव स्टार होटल के समान है। प्रधानमंत्री का हवाई सफर भी आरामदायक है। श्रेष्ठि वर्ग के पास अपनी पावर मोटरबोट्स भी हैं। श्रेष्ठि वर्ग की विचार प्रक्रिया कुछ ऐसी है कि एक अदद हवाई जहाज और मोटरबोट भी नहीं है तो सम्पदा का क्या अर्थ है। आज तक यह पता नहीं चला कि मुंबई में विस्फोट करने वालों की बोट भारत कैसे आई थी, क्योंकि समुद्र में निगरानी सारा समय की जाती है। सच तो यह है कि जयचंद हर कालखंड में पनपे हैं।

राज कपूर की 'जिस देश में गंगा बहती है' में एक युवा डाकू अपने बुजुर्ग सेवानिवृत्त उम्रदराज से पूछता है कि ताऊ हूण का राज हुआ, मुगलों, अंग्रेजों अौर पुर्तगालियों का भी राज हुआ। हम डाकुओं का राज कब आएगा? वह बुजुर्ग खुर्राट कहता है कि हे मूर्ख हमारा राज कब नहीं रहा। हूण, मुगल, अंग्रेज इत्यादि सभी के राज में समानांतर सरकारें तो डाकुओं की ही रही है। आज भी है परंतु अब उनके लिबास बदल गए हैं, सिर पर पहनी टोपियों के रंग बदल गए हैं और अब वे चंबल में ही सीमित नहीं है, सर्वत्र विद्यमान हैं। दिल्ली उनके लिए कभी दूर नहीं थी। गुजर गया समय जब निजामुद्‌दीन औलिया ने कहा था, 'हुनूज़ दिल्ली दूर अस्त।' बहरहाल एअर इंडिया अब किसी भी मिल्कियत है। क्या वह प्रतीक चिह्न महाराजा को कायम रखेगा अथवा किसी हुक्मरान का चित्र होगा?