आखिरी विकेट / मृणाल आशुतोष
लंगोटिया यार को सरप्राइज देने सहाय जी बिना फ़ोन किये ही चौबे जी के घर पहुँच गये। घन्टी बजायी तो अंदर से आयी आवाज़ से उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ, "इस भरी दोपहरी में कौन मरने आ गया?"
भाभी जी ने दरवाज़ा खोला और माफी माँगते हुये अंदर ले गयीं, "अज़ी, देखिये तो कौन आये हैं?"
अप्रत्याशित रूप से पुराने दोस्त को सामने देख चौबे जी गले लगकर रोने लगे।
"और बताओ भाई, कैसे आना हुआ?"
"कुछ नहीं। बस फ़ोन पर बात करने से मन नहीं भरता था। बहुत दिन मिले हुये हो गया था तो सोचे मिल ही आयें। विनीत बेटा नहीं दिख रहा है।"
"किसी दोस्त के यहाँ गया होगा। साथ में अच्छी तैयारी हो जाती है न!" चौबे जी के जबाब पर भाभीजी ने आँखें तरेरीं।
"सिविल के मेन का रिजल्ट तो आ गया। क्या हुआ?"
"अरे होना क्या है? हमारे तो भाग्य ही फूटे हैं। पास तो नहीं ही हुआ, तीन दिन से कमरे में बन्द है। हमको तो डर लगता है कि कहीं यह भी बड़े बेटे की तरह..." और भाभीजी के दर्द का सैलाब उमड़ पड़ा।
"अरे नहीं भाभी! शुभ-शुभ बोलिये। मैं मिल कर आता हूँ न उससे।" कहते हुये उसके कमरे की ओर बढ़ गये।
"विनीत बेटा, दरवाज़ा खोलो। मैं तुम्हारा पान वाला अंकल!"
"प्रणाम अंकल।" दरवाज़ा खोलते ही विनीत पैर छूने को झुक गया।
"क्या हाल बना रखा है! बेटे, तुम तो काफ़ी मज़बूत थे।"
"जबाब तो दो। अच्छा! आजकल क्रिकेट में क्या चल रहा है?"
"क्या हुआ बेटा। तुमने बताया नहीं कि आजकल क्रिकेट में क्या चल रहा है?"
"अंकल, जब रन नहीं बन रहा हो तो आउट हो जाने में ही भलाई है।" विनीत फफक पड़ा।
"क्या फालतू की बात कर रहे हो?"
"अंकल, सही कह रहा हूँ। मुझसे अब और नहीं हो पायेगा। मैं...मैं... बिल्कुल टूट चुका हूँ।"
"अच्छा। एक चीज़ बताओ। अगर रन नहीं बन रहा हो पर विकेट आखिरी हो तो क्या करना चाहिए?"
"तो अंतिम ओवर तक खेलने का प्रयास करना चाहिये।"
"तो प्रयास जारी रखो न! अंतिम समय तक डटे रहना और आउट होने की कभी सोचना भी मत। चौबे के आखिरी विकेट, आखिरी विकेट की क़ीमत तो तुम समझते ही हो न..."